बिहार के नवादा में घटी घटना आज भी जातीय भेदभाव को प्रदर्शित करती है। जब बीजेपी और आरएसएस जैसे संगठन हिन्दू एकता का नारा लगाते है तो वे इस तरह दलित उत्पीड़न पर मौन क्यों है? जातिगत उत्पीड़न और पूंजीवादी शोषण आपस में गहरे जुड़े हुए हैं। जब तक ऐसी जातिगत व्यवस्था को चुनौती नहीं दी जाएगी तब तक शोषण जारी रहेगा ।
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने दलितों-पिछड़ों के क्रीमी लेयर आरक्षण पर अपना फैसला सुनाया हैं। लोग अपने-अपने तरीके से सुप्रीम कोर्ट के फैसले की व्याख्या कर रहे हैं। असल में मामला वर्गीकरण का था और फैसला वहीं तक सीमित रखा जाना चाहिए था लेकिन कोर्ट के बहुत से न्यायमूर्तियों की टिप्पणियाँ यह दिखा रही हैं कि बहुतों को तो आरक्षण नाम की व्यवस्था से ही परेशानी है। कुछ वर्षों से सुप्रीम कोर्ट और राज्यों में हाई कोर्ट के कई निर्णय ऐसे आए हैं जिनसे लगता है कि ब्राह्मणवादी शक्तियाँ इस प्रश्न को न्याय प्रक्रिया में उलझाना चाहती हैं। प्रस्तुत है सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले पर विद्या भूषण रावत का विश्लेषण।