वर्ष 2019 में बस्ती की चंद्रावती देवी मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने अनुच्छेद 23 के अंतर्गत एक फैसला सुनाया था जिसमें उन्होंने कहा था कि 'किसी भी पुरुष या महिला को न्यूनतम वेतन से कम देना मूल वेतन के अधिकारों का हनन है।' उस हिसाब से किसी भी कुशल मजदूर का प्रतिदिन का वेतन न्यूनतम 410 रुपये होना चाहिए। किंतु वे 70 रुपये में ही अपना गुजरा-बसर करने के लिए मजबूर हैं।
भारत जैसे देश में शिक्षा प्राप्त करना एक बड़ी समस्या है, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ जागरूकता और अन्य सामाजिक कारणों से शिक्षा को अधिक महत्व नहीं दिया जाता है। महिलाओं की शिक्षा को नज़रअंदाज़ कर कोई भी देश वास्तविक विकास के पथ पर नहीं चल सकता है। भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों को शिक्षा प्राप्त करने में आज भी कई स्तर पर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। हालांकि बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में कई योजनाएं संचालित कर रही है।
दरअसल सरकारी स्कूलों को बहुत ही प्रायोजित तरीके से निशाना बनाया गया है। प्राइवेट स्कूलों की निजीकरण समर्थक लॉबी की तरफ से विभिन्न अध्ययन और आंकड़ों की मदद से बहुत ही आक्रामक ढंग से इस बात का दुष्प्रचार किया गया है कि सरकारी स्कूलों से बेहतर निजी स्कूल होते हैं और सरकारी स्कूलों में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं बची है