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अभिनेता धर्मेन्द्र के प्रयाण पर उनकी फिल्मों पर कुछ बातें

वरिष्ठ कथाकार ज्ञान चतुर्वेदी का उपन्यास बारामासी एक परिवार के बहाने समय के बदलने की भी एक कहानी कहता है। उपन्यास के अंतिम दृश्य में गुच्चन के बेटे के कमरे का दृश्य है जिसमें धर्मेंद्र का एक पोस्टर लगाए लगा हुआ है। वह उस पोस्टर को उखाड़कर फेंक देता है और उसकी जगह एंग्री यंगमैन अमिताभ बच्चन का पोस्टर लगाता है। यह समाज के बदलते ट्रेंड का रूपक है। अब नायकों के चरित्र में व्यवस्था और उसकी संरचना के खिलाफ एक गुस्सा जरूरी है ताकि नई पीढ़ी का मानस उसके साथ तादात्म्य बैठा सके और अपने कर्मों को जायज़ बना सके। धर्मेंद्र ने सत्तर के दशक के आदर्शवादी युवाओं के चरित्र को साकार किया जिसे हम नमक का दारोगा कह सकते हैं लेकिन बदलती अर्थव्यवस्था और सत्ता तंत्र ने अलोपीदीनों की दुनिया में नमक के दरोगाओं को पचा लिया और हर तरह के षडयंत्रों में महारत हासिल कर लिया है जिनसे लड़ने का माद्दा केवल एंग्री यंगमैन में है। ज़ाहिर है समाज और सिनेमा की अन्योन्यश्रित चेतना में धर्मेंद्र की प्रासंगिकता खत्म हो गई थी। पढ़िये अभिनेता धर्मेंद्र को श्रद्धांजलि देते हुये कवि और सिनेमा के अध्येता राकेश कबीर का यह लेख।

पीड़ा, यातना और बहिष्करण से आज़ादी की चाह में पितृसत्ता से छुटकारा पाने तक सिनेमा में तलाक के चित्र

तलाक एक व्यक्तिगत मुद्दा है, लेकिन इसका समाज पर दूरगामी प्रभाव पड़ता है। दुनिया के विकसित पश्चिमी देशों की तुलना में भारत में अभी...

सिनेमा में भारत-पकिस्तान विभाजन की त्रासदी

भारत-पाकिस्तान विभाजन को कई बार और कई-कई तरह से हिन्दी सिनेमा के साथ पाकिस्तानी सिनेमा ने भी पर्दे पर उतारा है।  इतिहास यात्रा की इस परिघटना ने हिन्दी सिनेमा को कुछ महत्वपूर्ण फिल्में दी हैं। जिनमें विस्थापन की व्यथा-कथा बहुत ही मार्मिक तरीके से दर्ज है।

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