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Hunger strike

क्या बोधगया महाविहार पूरी तरह ब्राह्मणवाद के चंगुल में है, क्यों आमरण अनशन पर बैठे हैं बौद्ध भिक्षु?

पिछले एक माह से आमरण अनशन पर बैठे बोद्ध भिक्षुओं का सरकार से अनुरोध है कि बोधगया महाविहार को ब्राह्मणों के मुक्त करा बौद्धों को सौंप दिया जाए। बोधगया महाविहार अधिनियम 1949, जिसके तहत महाविहार  प्रबंधन में ब्राह्मणों को सदस्य नियुक्त किया गया था, को निरस्त किया जाए। भगवान बुद्ध ने जहां ज्ञान प्राप्त किया, वह स्थान बौद्धों के हाथ में नहीं है। विदित हो की हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी अक्सर दुनिया के सामने कहते हैं कि वे बुद्ध की धरती से आए हैं। ऐसे में क्या उनकी जिम्मेदारी नहीं कि वे बौद्धों के सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण महाविहार  को बौद्धों को सौंप देने की दिशा में आवश्यक कदम उठाएं। क्या बिहार और केंद्र सरकार को आमरण अनशन पर बैठे बौद्धों की सुध नहीं लेनी चाहिए?  और उनके स्वास्थ्य का ख्याल रखते हुए तुरंत इस मसले का हल निकालना चाहिए।

ई-रिक्शा चालकों का निवाला छीनने को वाराणसी प्रशासन क्यों आमादा है

प्राचीन काल से ही बनारस धार्मिक नगरी के रूप में पहचाना जाता रहा है लेकिन वर्ष 2014 के बाद, जब नरेंद्र मोदी ने यहाँ से चुनाव जीता, तब से लग रहा है कि काशी उन्होंने ही बनाई है। पक्के महाल को तोड़कर विश्वनाथ कॉरीडोर के निर्माण के चलते यह शहर पूरी दुनिया की नज़रों में आ गया। लेकिन बनारस को खूबसूरत बनाने के लिए लोगों के घरों को उजाड़ा गया। दुकानें  तोड़ी गईं। इसी तरह शहर को जाम से बचाने के लिए ई रिक्शा को बढ़ावा दिया गया तथा कंपनियों ने हजारों ई रिक्शे बेच डाले। लेकिन ई रिक्शा भी शहर को जाममुक्त नहीं कर सके और अब जाम का ठीकरा रोज कमाने-खाने वाले ई-रिक्शा चालकों पर फूटा है। नए नियम के अनुसार ई-रिक्शे का रूट मात्र 2 से 3 किलोमीटर तय कर दिया गया। इससे 25 हजार ई रिक्शा चालक भूखे मरने की कगार पर आ गए हैं।  

लद्दाख : छात्रों और युवाओं के हीरो सोनम वांगचुक 18 दिनों से अनशन पर, सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप 

लद्दाख के लोगों की दो प्रमुख मांग हैं। पहली मांग है, ‘लद्दाख को राज्य का दर्जा दिया जाए तथा दूसरी मांग लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करते हुए लद्दाख को जनजातीय दर्जा दिया जाए।

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