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ग्राउंड रिपोर्ट

लद्दाख : छात्रों और युवाओं के हीरो सोनम वांगचुक 18 दिनों से अनशन पर, सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप 

लद्दाख के लोगों की दो प्रमुख मांग हैं। पहली मांग है, ‘लद्दाख को राज्य का दर्जा दिया जाए तथा दूसरी मांग लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करते हुए लद्दाख को जनजातीय दर्जा दिया जाए।

उत्तर भारत में स्थित लद्दाख की बर्फीली चोटियों पर स्थानीय लोगों का विरोध प्रदर्शन जारी है। पंजाब-हरियाणा के बॉर्डर और दिल्ली के जंतर-मंतर पर बैठे किसानों के बाद अब लद्दाख के नागरिक भी भाजपा पर वादाखिलाफी का आरोप लगा रहे हैं।  

मैग्सेसे अवार्ड विनर, इंजीनियर, सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षा सुधारक सोनम वांगचुक पिछले 18 दिनों से आमरण अनशन पर बैठे हैं। ये वही सोनम वांगचुक हैं जिनके किरदार को थ्री ईडियट फिल्म में रेंचो के रूप में दिखाया गया है। जिन्होंने लाखों युवाओं एवं छात्रों के दिल में अपनी जगह बनाई है।

अनशन पर बैठे सोनम वांगचुक ने वीडियो जारी कर केंद्र सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगाया है। वीडियो में वे कहते हैं, ‘केंद्र सरकार ने लद्दाख के साथ विश्वासघात किया है। मैं लद्दाख को लेकर बहुत व्याकुल व चिंतित हूँ। केंद्र सरकार ने लद्दाख के संवेदनशील पर्यावरण एवं स्थानीय जनजातीय संस्कृतियों को संरक्षण देने का वादा किया था। इन्हीं वायदों पर वे 2 चुनाव भी जीते और अब 4 साल से अधिक का समय बीत गया है लेकिन कोई वायदा पूरा नहीं किया।

आगे वे कहते हैं, ‘देश के जिम्मेदार नेताओं द्वारा अपने वचन को तोड़ना पूरे देश के लिए बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है, इसका दुष्प्रभाव पूरे देश में पड़ेगा। नेताओं से सीखकर लोग भी अपने वचन को तोड़ेंगे।”

 

19 मार्च को सोनम वांगचुक ने ट्वीट करते हुए बताया, ‘वे बाहरी दुनिया के सामने जमीनी हकीकत लाने के लिए जल्द ‘बॉर्डर मार्च’ निकालेंगे।’ उन्होंने 21 दिनों के आमरण अनशन को जरूरत पड़ने पर आगे बढ़ाने की भी बात कही है। बता दें कि पिछले 3 सालों से इलाके के लोग अपनी मांगों के समर्थन में विरोध प्रदर्शन करते रहे हैं। 

आपको बता दें कि केंद्र सरकार ने 2019 में जम्मू और कश्मीर के 2 जिलों – लेह और कारगिल को मिलाकर लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया था। भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान अपने घोषणा पत्र में लद्दाख को छठवीं अनुसूची में शामिल करने का वादा किया था। 2020 में हुए लेह हिल कौंसिल के चुनाव के दौरान भी भाजपा ने लद्दाख को छठवीं अनुसूची में शामिल करने का वायदा किया था। इसी वायदे के चलते भाजपा को दोनों ही चुनावों में लद्दाख में जीत मिली थी।

चुनाव के बाद साढ़े चार साल से अधिक का समय बीत गया लेकिन सरकार ने लद्दाख के लोगों से किए गए वायदों को पूरा नहीं किया है। 

नवंबर 2023 से ही लद्दाख के नागरिक प्रदर्शनों के माध्यम से सरकार को उसके वायदे की याद दिला रहे हैं। लद्दाख के लोगों की मांगों का प्रतिनिधित्व अपेक्स बॉडी लेह (ABL) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस कर रहे हैं। इसी क्रम में 4 मार्च को लद्दाख के 6 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकत भी की थी। सरकार के खानापूर्ति और टाल-मटोल करने वाले रवैये से निराश होकर अब लोग विरोध प्रदर्शन पर बैठ गए हैं। सोनम वांगचुक 6 मार्च से आमरण अनशन पर बैठे हुए हैं। उन्होंने 6 मार्च से ‘#SAVELADAKH, #SAVEHIMALAYAS’ अभियान शुरू कर दिया है।

क्या हैं लद्दाख के लोगों की मांगें

लद्दाख के लोगों की दो प्रमुख मांग हैं। पहली मांग है, ‘लद्दाख को राज्य का दर्जा दिया जाए तथा दूसरी मांग लद्दाख को संविधान की छठवीं अनुसूची में शामिल करते हुए लद्दाख को जनजातीय दर्जा दिया जाए।

इसके अलावा वर्तमान में लद्दाख में एक लोकसभा सीट ही है, लोगों की मांग है कि लेह और कारगिल दोनों को अलग-अलग लोकसभा सीट बनाया जाए। स्थानीय लोगों के लिए लद्दाख में नौकरी में आरक्षण की व्यवस्था की जाए।

लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद से ही यहां के निवासियों की  भूमि सुरक्षा, राजनीतिक प्रतिनिधित्व और रोजगार को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं। लद्दाख के लोग हिमालयी पारिस्थतिकी तंत्र, स्थानीय आदिवासी संस्कृति के संरक्षण के लिए संविधान प्रदत्त अधिकार की मांग कर रहे हैं।

सोनम वांगचुक के प्रदर्शन में रोज डेढ़ से 2 हजार स्थानीय लोग पहुंच रहे हैं और अपना समर्थन दे रहे हैं। इनमें भिक्षुगण, विद्यार्थी, महिलाएं प्रमुखता से पहुँच रहे हैं। रोज 150-200 लोग अनशन स्थल पर सोनम वांगचुक के साथ खुले आसमान में  माइनस 8 डिग्री सेल्सियस तापमान में रात बिता रहे हैं।

हिमालयी क्षेत्र में आने वाला लद्दाख पर्यावरणीय दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील है। इसके अलावा चीन की सीमा से सटा होने के कारण यह सामरिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

लद्दाख के लोगों की मांगों के समर्थन में ‘फ्रेंड्स ऑफ लद्दाख, फ्रेंड्स ऑफ नेचर’ नाम से सोशल मीडिया पर अभियान भी चलाया जा रहा है। सोनम वानचुक देश के लोगों से अपील कर रहे हैं कि लद्दाख के नागरिकों के अधिकारों के लिए सभी लोग किसी भी एक दिन अनशन या प्रदर्शन करें।

सोनम वांगचुक की मांगों का समर्थन करते युवा

छठी अनुसूची की मांग क्यों ?

यह अनुसूची कुछ विशेष शक्तियों के साथ स्वायत्त परिषदों के निर्माण की अनुमति देती है। छठी अनुसूची एक संवैधानिक प्रावधान है, जो आदिवासी आबादी की रक्षा करती है और उन्हें स्वायत्त संगठन स्थापित करने की अनुमति देता है।

आपको बता दें कि लद्दाख की कुल आबादी 3 लाख है जिसमें से 97 फीसदी आबादी आदिवासी है।

अनुच्छेद 244 के तहत, छठवीं सूची आत्मनिर्भर प्रशासनिक खंडों (जिलों) में स्वायत्त जिला परिषदों (ऑटोनोमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल्स-एडीसी) की गठन का प्रावधान करती है। एडीसी को भूमि, वन, जल, कृषि, ग्राम पंचायत, स्वास्थ्य, स्वच्छता, ग्रामीण और नगर पुलिस, विवाह और तलाक, सामाजिक रीति और रिवाज, और खनन आदि से संबंधित कानून और नियम बनाने का अधिकार होता है।

भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के तहत पूर्वोत्तर के चार राज्यों- असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम में ‘स्वायत्त ज़िला परिषदों’ की स्थापना की गई है।

ये स्वायत्त ज़िला परिषद आदिवासी संस्कृति की रक्षा करते हैं। इनके माध्यम से भूमि और प्राकृतिक संसाधनों पर स्थानीय जनजातीय लोगों का नियंत्रण सुनिश्चित कर उनकी संस्कृति तथा पहचान को संरक्षित किया जाता है।

लद्दाख के छठी अनुसूची में शामिल होने के बाद वहां के लोग भी स्वायत्त जिला और क्षेत्रीय परिषद बना सकेंगे एवं अपनी संस्कृति को संरक्षित कर पाएंगे।

 

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