मैतई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने के विरोध में पिछले डेढ़ वर्षों से लगातार आदिवासी समूहों में संघर्ष चल रहा है, जिसमें सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी आज तक मणिपुर नहीं गए, न ही समस्या के हल के लिए कभी कोई चर्चा ही की। इस प्रदेश में नागा एवं कुकी मैतेई द्वारा अनुसूचित जनजाति के दर्जे की मांग के खिलाफ हैं। मैतेई एवं नागा कुकी के अलग प्रशासन की मांग के खिलाफ हैं। मैतेई वृहत्तर नागालिम की मांग के खिलाफ हैं। सवाल उठता है कि कैसे और कब इस समस्या का कोई हल निकलेगा।
जिस आग में आज मणिपुर जल रहा है, उसकी चिंगारी दशकों पहले ही बोई जा चुकी थी। राजनीतिक सत्ता हथियाने के लिए बुना गया यह जाल आज भले ही जातीय बंटवारे की त्रासदी दिखा रहा है पर भविष्य में यह संघर्ष साम्प्रदायिक रंग जरूर ओढ़ेगा। अंतर सिर्फ इतना होगा कि यहाँ हिन्दू बनाम मुसलमान नहीं होगा बल्कि यहाँ हिन्दू बनाम ईसाई होगा। घृणा के इस तूफान में मणिपुर को तबाह करने वाले नेता अभी अधजली लाशों के लिए वक्त से शोक गीत लिखवा रहे हैं। आज रचे जा रहे शोक गीतों से आने वाले कल में एक राजनीतिक विभाजक रेखा खींच दी जाएगी ताकि नए बाहुल्य से नई सत्ता की बुनियाद रखी जा सके।