गोरखपुर से प्रेमचंद का नाता बहुत भावप्रवण और आत्मीय था। यहीं पर उन्होंने जीवन की बुनियादी नैतिकता और आदर्श का पाठ सीखा। लेकिन आज गोरखपुर में उनके स्मृतिचिन्ह लगातार धूसरित हो रहे हैं। ऐसा लगता है नयी पीढ़ी की टेक्नोसेंट्रिक प्रवृत्ति ने उन्हें इस बात से विमुख कर दिया है कि उनके शहर में एक कद्दावर लेखक की जवानी के दिन शुरू हुये थे और वह लेखक पूर्वांचल की ऊर्जस्विता और रचनाशीलता को आज भी एक ज़मीन देता है। प्रेमचंद जयंती के बहाने अंजनी कुमार ने गोरखपुर की नई मनःसंरचना की पड़ताल की है।
किसी जमाने में लमही एक गाँव था और प्रेमचंद ने बहुत सारे चरित्रों को इसी गाँव से उठाया। मसलन! गाँव में जो पोखरा दिखाई पड़ता है और रामलीला का जो मैदान है। हम समझते हैं कि उनकी प्रसिद्ध कहानी रामलीला में उसका जिक्र है। लमही के पास ही एक ऐसी बस्ती है, जहां से निकल कर ईदगाह का हामिद और उसके साथी नदेसर स्थित ईदगाह की तरफ रुख करते हैं।