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Nadi Yatra
यह गंदगी तुम्हीं लोगों ने किया अब चाहे इसका पानी पियो चाहे कमाओ…
‘नदी में ई गंदगी तोही लोगन त कइला, नदी त तहू लोगन क हौ अब वही के पीया चाहे एसे कमा... गंदा तो होते...
अब जहाँ देखो ये अजूबे इंसान, पानी को ही घेरकर मारने में लगे हैं!
पक्के रास्ते धीरे-धीरे कच्चे और उबड़-खाबड़ होते जा रहे थे। कुछ ही समय में हम उस बाँस के पुल के पास पहुँच गए जिसे पहली यात्रा में नदी के उस पार से देखा था। पिछली बार की तरह ही लोग यहाँ नहान कर रहे थे। एक आदमी अपनी बड़ी-सी नाव पर अलकतरा लगा रहा था। वहाँ पहुँचे एक ग्रामीण ने उसकी फिरकी लेते हुए कहा- 'घबरा मत, तू अब जेल जईबा।' यहाँ नदी में नाव चलाने के लिए लाइसेंस बनवाना पड़ता है, शायद इसीलिए यह मजाक किया गया था।
नदियों को लेकर जनता में जागृति फैलाएगी यह मुहिम
नदियों में पानी बहुत कम रह गया है और जो है वह बहुत ही दूषित है। यह बड़ी नदियों के लिए भी नुकसानदेह है। यह स्थिति पेड़, पहाड़ और जंगल के लिए भी खतरनाक है। अभी हाल ही में येल सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल लॉ एंड पॉलिसी के सेंटर फॉर इंटरनेशनल अर्थ साइंस इनफार्मेशन नेटवर्क द्वारा प्रकाशित 2022 पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (EPI) में भारत 180 देशों में सबसे निचले पायदान पर रहा, जो कि चिंताजनक है। इस सूचकांक में डेनमार्क प्रथम, ब्रिटिश द्वितीय और फिनलैंड तृतीय स्थान पर रहा। भारत की यह स्थिति पर्यावरण के संकट पर सोचने और उसे बचाने के लिए ध्यान आकर्षित करता है।

