उनके उस पीड़ादायी संघर्ष को मनोरंजक घटना के रूप में पेश कर उनके जीवन संघर्ष की अहमियत और व्यवस्था के अन्याय की असलियत को ढँक देती थीं। बाद में उनसे लम्बी मुलाकात के बाद उनके भोगे गए त्रासद समय और संघर्ष की कथा सामने आयी। सन् 2003 में उन्हें हावर्ड विश्वविद्यालय अमेरिका का ग्लोबल पुरस्कार मिला था। पहली मुलाकात में इसी पर चर्चा करते हुए उन्होंने बताया था कि वह अमेरिका नहीं जा पायेंगे क्योंकि उनके पास पैसा नहीं है। लेकिन उन्हें खुशी है कि उनकी लड़ाई को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान और समर्थन मिला। लालबिहारी मृतक ने एक अद्भुत तरीके की लोकतांत्रिक लड़ाई का सिलसिला शुरू किया। पहले मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक ज्ञापन और अखबारों में अपीलें देना शुरू किया। फिर कुछ अद्भुत तरीकों को भी अपनी लड़ाई में शामिल किया। अपने अस्तित्व को किसी भी तरीके से सिद्ध करने के लिए चचरे भाई का अपहरण किया लेकिन उनके खिलाफ कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं करायी गयी।
फिल्म मिमी में अंग्रेज दम्पति को मेडिकल रिपोर्ट से जब यह पता चलता है कि सरोगेट मदर के पेट में पल रहा बच्चा एबनॉर्मल पैदा होगा तो वे दलाल द्वारा ये मैसेज भेजकर, कि मिमी से बोल दो कि वह बच्चे का एबॉर्शन करा दे, खुद चुपके से अपने देश भाग जाते हैं। दो बच्चे पैदा हो जाने पर एक आस्ट्रेलियन दम्पति ने एक बच्चा सरोगेट के पास ही छोड़ने को लेकर विवाद किया था जिसको लेकर भारतीय संसद में इस विषय पर गम्भीरता से कानून बनाने को लेकर चर्चाएँ हुईं। मातृत्व जैसी प्राकृतिक व्यवस्था पर पूरी तरह इन्सान और तकनीक नियन्त्रण स्थापित नहीं कर सकते लेकिन पैसे देकर कोख किराये पर लेने वाले लोग बेहद स्वार्थी ढंग से व्यवहार करते हैं जिसके कारण गरीब महिलाओं का शोषण बढ़ जाता है।