भारतीय राजनीति और न्यायपालिका ने एक भस्मासुर पैदा कर दिया है जो समाज में धार्मिक विभाजन को और गहरा बना रहा है। आज हमें क्या करना चाहिए? क्या हमें हर मस्जिद को खोदकर देखना चाहिए कि उसके नीचे क्या कोई मन्दिर है? या फिर हमें पंडित जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में ‘आधुनिक मन्दिरों’ का निर्माण करना चाहिए। भाखड़ानंगल बाँध की नींव रखते हुए पंडित नेहरू ने वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थाओं, इस्पात कारखानों, बिजली घरों और बाँधों को आधुनिक मन्दिर बताया था. हम आधुनिक मन्दिरों का निर्माण करेंगे या मस्जिदों के नीचे मन्दिर ढूंढते रहेंगे, इस पर ही हमारे देश की नियति निर्भर करेगी।
क्या कारण है कि पूजा स्थल अधिनियम 1991 के पारित के बाद भी अभी हाल के समय में अनेक मस्जिद व दरगाहों के सर्वे के दावे सामने आने लगे, और इसके बाद सेवा निवृत हुए मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड लगातार निशाने पर हैं क्योंकि उन्होंने वाराणसी के ज्ञानवापी में सर्वे की अनुमति देने के बाद कहा था कि पूजा स्थल अधिनियम की धारा 3 में पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र का पता लगाने पर कोई रोक नहीं है, उनका यही बयान मस्जिदों के सर्वे की याचिकाकर्ताओं के साथ है जबकि इसी अधिनियम की धारा 4, 15 अगस्त, 1947 को मौजूद धार्मिक स्थलों के स्वरूप को बदलने पर रोक लगाती है। मस्जिदों और दरगाहों के सर्वे की अनुमति साम्प्रदायिक माहौल को बिगाड़ने की साजिश के अलावा कुछ और नहीं है।
अभी कुछ दिन पहले दुर्गा विसर्जन के दौरान बहराइच में साम्प्रदायिक हिंसा में जो हुआ सभी जानते हैं। डेढ़ महीने बाद संभल में जामा मस्जिद के सर्वे के समय यह हिंसा फ़ैली। समय-समय पर इस तरह की हिंसा फैलने का मतलब है कि सरकार और पुलिस-प्रशासन इसे रोकने में असमर्थ है। रिहाई मंच ने संभल हिंसा और मौतों के लिए भाजपा सरकार जिम्मेदार, घटना की हो उच्च स्तरीय जांच की मांग की है।