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योगी आदित्यनाथ के दंगामुक्त प्रदेश के दावे की हवा निकालती संभल की साम्प्रदायिक हिंसा

अभी कुछ दिन पहले दुर्गा विसर्जन के दौरान बहराइच में साम्प्रदायिक हिंसा में जो हुआ सभी जानते हैं। डेढ़ महीने बाद संभल में जामा मस्जिद के सर्वे के समय यह हिंसा फ़ैली। समय-समय पर इस तरह की हिंसा फैलने का मतलब है कि सरकार और पुलिस-प्रशासन इसे रोकने में असमर्थ है। रिहाई मंच ने संभल हिंसा और मौतों के लिए भाजपा सरकार जिम्मेदार, घटना की हो उच्च स्तरीय जांच की मांग की है।

संभल हिंसा और मौतों के लिए भाजपा सरकार जिम्मेदार, घटना की हो उच्च स्तरीय जांच- रिहाई मंच

रिहाई मंच ने संभल में हुए तनाव और तीन नागरिकों की मौत के लिए प्रदेश सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए उच्च स्तरीय जांच की मांग की है।कोर्ट के आदेश के बाद हो रहे सर्वे के दौरान हुई हिंसा और पुलिस की भूमिका पर माननीय सुप्रीम कोर्ट को संज्ञान लेना चाहिए। इतने संवेदनशील मुद्दे पर आनन फानन में की गई कार्रवाई प्रदेश की कानून व्यवस्था पर सवाल उठाती है जिसमें तीन परिवारों ने अपनों को खोया।

रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शोएब ने कहा कि कानून व्यवस्था स्थापित करना शासन-प्रशासन का काम है, जिद और बदले की मानसिकता के चलते संभल में हिंसा हुई। आज से शुरू होने वाले संसद सत्र में अडानी समूह रिश्वत मामले को लेकर उठने वाले सवालों को दबाने के लिए संभल जैसी घटनाओं की साजिश की गई। 19 नवंबर, 2024 को कोर्ट में दावा पेश करने के चंद घंटों बाद सर्वे का आदेश और उसी दिन सर्वे, पर बहुत से सवाल हैं। सर्वे टीम के साथ पुलिस की घेराबंदी में नारेबाजी का वीडियो किसी सर्वे टीम का नहीं बल्कि राजनीतिक समर्थकों का हुजूम था। लोगों द्वारा सवाल उठाने पर जिलाधिकारी और एसपी द्वारा सर्वे रोकने से इनकार करना कानून व्यवस्था की बड़ी चूक थी जिसकी वजह से जानमाल का बड़ा नुकसान हुआ। कमिश्नर यह कहकर नहीं बच सकते कि तैयार होकर जुटी थी भीड़, आखिर खुफिया विभाग कहां था?

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रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि नागरिकों की हिंसा में मौत के बाद पुलिस का यह कहना कि उपद्रवियों द्वारा पुलिस पर की गई फायरिंग में ही तीन लोगों की जान गई पर सवाल उठता है। संभल एसपी का कहना है कि बवाल के दौरान पुलिस ने गोली नहीं चलाई तो आखिर में वायरल वीडियो में कहां की पुलिस फायरिंग और पत्थरबाजी कर रही है। सीसीटीवी फुटेज के आधार पर कार्रवाई की बात कहने वाले प्रशासन को गोली चलाओ, मारो-मारो और गाली देने वाला पुलिस का कारनामा नहीं दिखा। हिंसा के शिकार युवकों के परिजनों ने पुलिस की गोली से मौत होने की बात कही है ऐसे में इस मामले की उच्चस्तरीय जांच हो। भविष्य बर्बाद होने की चेतावनी देने वाले पुलिस अधिकारियों ने अगर भविष्य के बारे में सोचा होता तो हिंसा नहीं होती। आखिर एक बार उसी मस्जिद का सर्वे हो चुका था तो कुछ नहीं हुआ और फिर दूसरी बार ऐसा क्या हुआ जो तनाव भड़का।

प्रशासन कह रहा है कि सर्वे का विरोध करते हुए नारेबाजी और पत्थरबाजी होने लगी। यह जांच का विषय है कि आखिर सर्वे टीम के साथ चल रहे नारे लगाने वाले कौन थे। क्या इन नारा लगाने वाले और सर्वे का विरोध करने वालों के बीच यह तनाव बढ़ा। अगर ऐसा नहीं तो प्रशासन बताए कि तनाव के माहौल सर्वे टीम के साथ नारेबाजी करने वालों को क्यों नहीं रोका गया या अबतक उनपर क्या कार्रवाई की गई। क्या इसी तरह के नारों के उकसाए में आकर संभल में तनाव भड़क गया। रासुका के तहत कार्रवाई की बात कहने वाला प्रशासन बताए कि किस वजह से किसके कहने पर कानून व्यवस्था को ताक पर रख दिया गया जो राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हो गया।

रिहाई मंच ने प्रयागराज के अधिवक्ता काशान सिद्दीकी को पुलिस द्वारा उठाए जाने की निंदा करते हुए तत्काल रिहाई की मांग की। गौरतलब है कि काशान सिद्दीकी की पत्नी अस्मा फातिमा जो कि पार्षद भी हैं ने पुलिस आयुक्त प्रयागराज से शिकायत की है कि काशान को 24.11.24 को समय करीब 10:50 बजे रात क़ो पुलिस घर के पास से उन्हें करेली थाना पर ले गयी। उन्हें किस संबंध में उठाया गया है क्या उनके खिलाफ कोई मुक़दमा हुआ है या कोई वारंट है आदि कुछ भी नहीं बताया जा रहा है।. जब कुछ अधिवक्ता और पत्नी और बहन करेली थाने पर पहुंच कर पूछताछ किया तो पुलिस कोई संतोष जनक जवाब नहीं दे पाई, पुलिस का कहना है कि केवल पूछताछ के लिए लाया गया है। देर रात करेली थाने से भी उन्हें हटा दिया गया और उनके घर परिवार को भी उनके बारे मे कोई जानकारी नही दी जा रही है।(प्रेस विज्ञप्ति)

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