'सबका साथ सबका विकास' यह बात कहने सुनने में अच्छी लगती है लेकिन देश के अनेक हिस्से ऐसे हैं, जहाँ बुनियादी सुविधाओं का अभाव देखने को मिलता है, जिसमें ग्रामीण इलाके के साथ ही शहरों से लगी हुई स्लम बस्तियां भी हैं, जहाँ रहने वाली महिलायें और बच्चे लगातार स्वास्थ्य सम्बन्धी दिक्कतों का सामना कर रहे हैं। इसे देखते हुए लोगों का कहना है कि सामाजिक संस्थाएं और कार्यकर्ता अपने सामूहिक प्रयास से उन बस्तियों की बुनियादी समस्यायों से निजात दिलवा सकते हैं लेकिन सवाल यह उठता है कि सरकार की अनेक योजनायें यहाँ सफल क्यों नहीं हो पाती हैं।
ज़िन्दगी जीने के लिए बहुत नहीं तो कुछ बुनियादी सुविधाओं की जरूरत हर किसी को होती है, जिनमें रहने वाली जगहों के आसपास साफ़ पानी, सड़क, विद्यालय और स्वास्थ्य केंद्र होना जरूरी होता है लेकिन हर शहर की समस्या है कि झुग्गी-झोपड़ी में रह रहे लोगों को बाकी का क्या कहें साफ़ पानी तक उपलब्ध नहीं हो पाता। ऐसे में वहां रहने वालों का जीवन किसी नरक से कम नहीं होता। जबकि सरकार द्वारा झुग्गी पुनर्वास परियोजना चलाई जा रही है, ऐसे में उन तक सुविधा क्यों नहीं पहुँच पाती, प्रश्न यह उठता है।
एक गरीब इंसान का बीमार होना अभिशाप है क्योंकि स्वास्थ्य सुविधाएँ इतनी महंगी हो चुकी हैं कि उनके लिए बीमार होने पर इलाज करवाना दुश्वार हो गया है। हालाँकि सरकार ने स्वास्थ्य सम्बन्धी अनेक योजनायें लागू की है लेकिन गरीबों तक बुनियादी सुविधाएँ भी नहीं पहुँच पा रही हैं। जयपुर में राज्य सचिवालय से करीब 12 किमी दूर स्थित एक बस्ती में 40 से 50 झुग्गियां आबाद है, जिसमें लगभग 300 लोग रहते हैं।इस बस्ती में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों की बहुलता है। लेकिन उस बस्ती में इलाज और दवा के अभाव में गर्भवती महिलायें और बच्चे कुपोषण के शिकार हैं।
देश में 76 प्रतिशत लोग पहले ही पानी की कमी से जूझ रहे हैं। जिसकी वजह से स्लम बस्तियों में रहने वाले लोग साफ पानी के अभाव में जीवन गुजारने को मजबूर हैं। आने वाले वर्षों में यह समस्या और बढ़ सकती है , इस बात को देखते हुए ऐसी योजनाओं पर काम करने की जरूरत है , जिससे सभी को साफ पानी उपलब्ध कराया जा सके।
हर शहर के खुले और बाहरी क्षेत्रों में ऐसे लोग झोपड़ी बनाकर रहते हैं, जिनके पास किसी तरह का कोई काम नहीं होता। कभी-कभी मिल जानी वाली मजदूरी से परिवार चलते हैं। इस वजह से इनके पास शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी कोई सुविधा नहीं होती। इनमें अधिकतर लोगों के सरकारी दस्तावेज़ भी नहीं बन पाते हैं, जिससे इन्हें सरकारी योजना का फायदा मिल सके। ऐसे समुदाय के लिए कुछ करने की ज़िम्मेदारी राज्य की होती है लेकिन राज्य कभी ध्यान नहीं देता।
देश के प्रधानमंत्री ने देश को साफ-सुथरा रखने के लिए स्वच्छ भारत अभियान चलाया। इस अभियान के तहत घर-घर कूड़ा इकट्ठा करने के लिए गाडियाँ जाने लगीं। लेकिन इसके बाद भी हर शहर के कुछ हिस्से ऐसे हैं जहां न कूड़ा लेने वाली गाड़ियां जाती हैं न ही साफ-सफाई वाले आते हैं। ऐसे में वहाँ रहने वाले गंदगी में रहने को मजबूर हैं। इससे एक बात सामने आती है कि केवल कुछ इलाकों को साफ किया जाता है बाकी को नहीं।
हमारे देश की एक बड़ी आबादी आज भी ऐसी है जो शहरों और महानगरों में आबाद है। लेकिन वहां शहर के अन्य इलाकों की तरह सुविधाओं का अभाव होता है। सरकार की ओर से इन बस्तियों में रहने वाले लोगों को पीने का साफ पानी और स्वास्थ्य सुविधाओं का भी लाभ नहीं मिल पा रहा है।