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राजस्थान : झुग्गी में रहने वाले स्वास्थ्य सुविधा से वंचित क्यों?

एक गरीब इंसान का बीमार होना अभिशाप है क्योंकि स्वास्थ्य सुविधाएँ इतनी महंगी हो चुकी हैं कि उनके लिए बीमार होने पर इलाज करवाना दुश्वार हो गया है। हालाँकि सरकार ने स्वास्थ्य सम्बन्धी अनेक योजनायें लागू की है लेकिन गरीबों तक बुनियादी सुविधाएँ भी नहीं पहुँच पा रही हैं। जयपुर में राज्य सचिवालय से करीब 12 किमी दूर स्थित एक बस्ती में 40 से 50 झुग्गियां आबाद है, जिसमें लगभग 300 लोग रहते हैं।इस बस्ती में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों की बहुलता है। लेकिन उस बस्ती में इलाज और दवा के अभाव में गर्भवती महिलायें और बच्चे कुपोषण के शिकार हैं।

विश्व की सबसे बड़ी जनसंख्या वाले देश भारत में स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच अभी भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। यद्यपि पिछले कुछ दशकों में इसमें काफी सुधार हुआ है, लेकिन अभी भी इस क्षेत्र में और अधिक काम करने की आवश्यकता है। वर्ष 2024-25 के बजट में भी स्वास्थ्य और परिवार कल्याण के लिए 90,958 करोड़ रुपए के बजट का ऐलान किया गया है. जो पिछले वर्ष 2023-24 के बजट में आवंटित किये गए 89,155 करोड़ रुपए से दो फीसदी अधिक है। इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य अनुसंधान के क्षेत्र में भी बजट में वृद्धि की गई है. वर्ष 2023-24 के 2,980 करोड़ रुपए की तुलना में इस वर्ष दस फीसदी से अधिक की वृद्धि करते हुए 3,301.73 करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं। इसके बावजूद न केवल ग्रामीण, बल्कि शहरी क्षेत्रों में आबाद स्लम बस्तियों के लोगों को भी स्वास्थ्य की समुचित सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। राजस्थान की राजधानी जयपुर स्थित स्लम बस्ती ‘रावण की मंडी’ इसका एक उदाहरण है. जहां अभी भी स्वास्थ्य सुविधाओं तक लोगों की पहुंच नहीं हो पा रही है।

जयपुर शहर अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है, लेकिन रावण की मंडी जैसे शहर के कुछ हिस्से ऐसे भी हैं जहां बुनियादी सुविधाओं का अभाव है, यहां रहने वाले समुदायों को स्वास्थ्य, शिक्षा, पीने का साफ पानी और अन्य बुनियादी सुविधाओं तक पहुंचने में कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस संबंध में बस्ती में रहने वाली 47 वर्षीय लालिमा देवी बताती हैं कि ‘यहां न तो स्वास्थ्य केंद्र है और न ही डॉक्टरों या नर्सों की सुविधा उपलब्ध है. प्रसव, टीकाकरण और अन्य चिकित्सा आवश्यकताओं की देखभाल के लिए भी कोई विशेष व्यवस्था नहीं है। परिणामस्वरूप, यहां गर्भवती महिलाओं और जन्म लेने वाले बच्चों की मृत्यु दर अधिक है। वह बताती हैं कि यहां रहने वाले किसी भी परिवार को पीने का साफ़ पानी भी नहीं मिल पाता है। अक्सर दूषित जल पीने के कारण बच्चे बीमार हो जाते हैं। लेकिन किसी प्रकार का पहचान पत्र नहीं होने के कारण उनका सरकारी अस्पताल में इलाज भी नहीं हो पाता है। वहीं आर्थिक रूप से कमज़ोर होने के कारण माता-पिता उन बच्चों का इलाज किसी निजी अस्पताल में कराने में सक्षम नहीं होते हैं. इस बस्ती में मलेरिया, दस्त और सांस संबंधी बीमारियां आम हैं क्योंकि यहां के लोग गंदगी और कचरे के बीच रहने को मजबूर हैं।

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राज्य सचिवालय से करीब 12 किमी दूर स्थित इस बस्ती में 40 से 50 झुग्गियां आबाद है. जिसमें लगभग 300 लोग रहते हैं. इस बस्ती में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों की बहुलता है। जिसमें जोगी, कालबेलिया और मिरासी समुदाय प्रमुख रूप से शामिल है। प्रति वर्ष विजयदशमी के अवसर पर रावण दहन के लिए यहां रावण, मेघनाद और कुंभकरण के पुतले तैयार किए जाते हैं। जिसे खरीदने के लिए जयपुर के बाहर से भी लोग आते हैं। इसी कारण इस बस्ती को रावण की मंडी के रूप में पहचान मिली है। विजयदशमी के अलावा साल के अन्य दिनों में यहां के निवासी आजीविका के लिए रद्दी बेचने, बांस से बनाये गए सामान अथवा दिहाड़ी मज़दूरी का काम करते हैं। शहर में आबाद होने के बावजूद इस बस्ती में मूलभूत सुविधाओं का अभाव देखने को मिलता है। इनमें स्वास्थ्य एक बहुत बड़ा मुद्दा है। यहां महिलाओं और बच्चों में स्वास्थ्य और पोषण की कमी सबसे ज़्यादा देखने को मिलती है। यहां अधिकतर महिलाएं विशेषकर गर्भवती महिलाएं और नवजात बच्चे कुपोषण का शिकार हैं तो वहीं अन्य लोग विभिन्न प्रकार की बीमारियों का शिकार होते हैं।

बस्ती की 38 वर्षीय लीला देवी बताती हैं कि वह कालबेलिया समुदाय से हैं. जिसे घुमंतू और खानाबदोश जनजाति के रूप चिन्हित किया जाता है। घुमंतू होने के कारण उनका कोई स्थाई ठिकाना नहीं होता था। ऐसे में उन लोगों का पीढ़ी दर पीढ़ी कभी कोई प्रमाण पत्र नहीं बन सका है। हालांकि अब वह लोग पिछले 8 वर्षों से रावण की मंडी में रह रहे हैं। इसके बावजूद अब तक उनका या उनके परिवार में किसी का स्थाई निवास प्रमाण पत्र नहीं बना है. इसके कारण सरकारी अस्पताल में उन्हें कोई सुविधा नहीं मिल पाती है। जब वह सरकारी अस्पताल जाती हैं तो उन्हें यह कह कर लौटा दिया जाता है कि उनका कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है। उन्हें निजी अस्पताल में जाने को कहा जाता है. जहां इलाज काफी महंगा होता है। लीला के पति 42 वर्षीय काला राम कहते हैं कि सरकारी रिकॉर्ड में यह बस्ती अधिकृत नहीं हैं। इसलिए अधिकारी यहां पीने का साफ़ पानी या अन्य बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने में असमर्थता व्यक्त करते हैं। वह बताते हैं कि बस्ती के कुछ परिवार आपस में चंदा इकठ्ठा करके प्रति सप्ताह पानी का टैंकर मंगवाते हैं ताकि परिवार को पीने का साफ़ पानी मिल सके। लेकिन पानी ख़त्म हो जाने पर गंदा पानी पीने को मजबूर होना पड़ता है।

एक अन्य महिला गुड़िया देवी बताती हैं कि यहां आसपास फैले कूड़े-कचरे के कारण लोगों में दाद, खाज और खुजली जैसी बीमारियां फैली रहती हैं। बरसात के दिनों में लोगों के घरों में पानी भर जाता है, जिससे उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। लोगों को संक्रामक बीमारियों का खतरा है। गुड़िया के अनुसार यहां के लोगों के पास शौच के लिए भी विशेष सुविधा नहीं है। हर घर शौचालय की व्यवस्था नहीं होने के कारण लोगों को सामुदायिक शौचालय का इस्तेमाल करना पड़ता है जो पानी की विशेष सुविधा नहीं होने के कारण अक्सर गंदा रहता है। इसका सबसे बुरा प्रभाव महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ता है। गंदगी के कारण वह जल्दी जल्दी बीमार हो जाते हैं। वहीं एक 17 वर्षीय किशोरी पूजा बताती है कि उसने स्कूल में दिए जाने वाले आयरन की गोली के बारे में सुना है, इससे किशोरियों का स्वास्थ्य ठीक रहता है। लेकिन घर में छोटे भाई बहनों को संभालने के कारण उसका स्कूल छूट चुका है। वह बताती है कि बस्ती में स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारियां देने कभी कभी स्वयंसेवी संस्थाओं की दीदियां आती हैं।

एक अन्य महिला विमला कहती हैं कि “इस बस्ती में मूलभूत सुविधाएं तक नहीं है. न तो बिजली का कनेक्शन है और न ही पीने का साफ़ पानी उपलब्ध है। हमें ऐसे ही हालात में जीना होगा।” वह कहती हैं कि यहां रहने वाली महिलाओं और किशोरियों का न तो स्वास्थ्य कार्ड बना हुआ है और न ही अस्पताल में उन्हें स्वास्थ्य की कोई सुविधा उपलब्ध हो पाती है। वहीं बच्चों को भी समय पर टीका उपलब्ध नहीं हो पाता है। वहीं 35 वर्षीय शारदा कहती हैं कि “मैं 8 वर्षों से यहां रह रही हूं। यहां रहते हुए मैंने दो बच्चों को जन्म दिया है। लेकिन किसी प्रकार का दस्तावेज़ नहीं होने के कारण सरकारी अस्पताल में मुझे एडमिट नहीं किया गया। जिसकी वजह से मेरी दोनों डिलेवरी घर पर ही हुई है। गर्भावस्था के दौरान भी मुझे स्वास्थ्य संबंधी कोई सुविधा नहीं मिल सकी है।” वह कहती है कि हम दैनिक मज़दूर हैं. रोज़ाना मज़दूरी करने निकल जाते हैं। हमें दस्तावेज़ बनाने की पूरी जानकारी भी नहीं है। इसलिए आज तक हमारे पास कोई कागज़ नहीं बना है। जबकि सरकारी अस्पताल जाते हैं तो वहां दस्तावेज़ या प्रमाण पत्र मांगे जाते हैं। इसीलिए इलाज ही नहीं बल्कि प्रसव भी घर पर ही करवाने पड़ते हैं।

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हालांकि सरकार की ओर से स्वास्थ्य संबंधी कई कार्यक्रम और योजनाएं संचालित की जा रही हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि ऐसी योजनाएं रावण की मंडी जैसी स्लम बस्तियों तक ठीक से लागू नहीं हो पाती हैं। जिसके कारण यहां रहने वाले लोग बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं से भी वंचित रह जाते हैं। इसे यहां बेहतर बनाने के लिए स्थानीय स्तर पर स्वास्थ्य केंद्र स्थापित करने की जरूरत है, जहां प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मी भी उपलब्ध हों। वहीं केंद्रों पर गर्भवती महिलाओं, माताओं और बच्चों के लिए विशेष सुविधाएं प्रदान की किये जाने की आवश्यकता है। दूषित जल आधी बीमारियों की जड़ होती है। ऐसे में यहां पीने का साफ पानी और स्वच्छता उपलब्ध कराने के लिए विशेष उपाय करने की जरूरत है। इससे न केवल स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं कम होंगी बल्कि बीमारियों को फैलने से भी रोका जा सकेगा। इस काम में सरकार और प्रशासन के साथ साथ स्थानीय सामाजिक संस्थाएं और सामाजिक कार्यकर्ता भी अहम भूमिका निभा सकते हैं। आखिर स्लम बस्ती में रहने वालों को भी अन्य लोगों की तरह स्वास्थ्य सुविधाएं पाने का पूरा अधिकार है, जो उन्हें हर परिस्थिति में उपलब्ध कराई जानी चाहिए।(साभार चरखा फीचर्स)

रामलखन गुर्जर
रामलखन गुर्जर
रामलखन गुर्जर जयपुर (राजस्थान) में रहते हैं।

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