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बनारस के कुम्हारों के लिए मज़ाक बनकर रह गया है इलेक्ट्रिक चाक

बनारस के कुछ गाँवों के 60 कुम्हारों को प्रशिक्षित करके प्रधानमंत्री द्वारा चलाई गई 'कुम्हार सशक्तिकरण योजना' के तहत इलेक्ट्रिक चाक दिये गए ताकि मिट्टी के बर्तन बनाने में आसानी हो लेकिन बिजली का ज्यादा दाम उनके लिए भारी पड़ रहा है। इसके साथ ही कई कुम्हार परिवारों ने इलेक्ट्रिक चाक के लिए आवेदन किया लेकिन उन्हें नहीं मिला। इलेक्ट्रिक चाक पानेवाले कुम्हार चाहते हैं कि उन्हें फिक्स रेट पर बिजली मिले या सोलर से चलने वाले चाक दिये जाएँ। पूरी योजना ही किस तरह कुम्हारों के लिए भारी पड़ रही है इसकी पड़ताल करती हुई रिपोर्ट।

भारत में आज भी दूर हैं कंप्यूटर साक्षरता से ग्रामीण किशोरियां

जब से टेक्नोलॉजी का विकास हुआ है, पूरी दुनिया एक गाँव के रूप में सिमट गई है। इसमें सबसे बड़ी भूमिका कंप्यूटर की है।...

रूढ़िवादी धारणाओं के बंधन में कैद हैं ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं और किशोरियां

पिछले कुछ दशकों में भारत ने तेज़ी से विकास किया है। चाहे वह विज्ञान का क्षेत्र हो, अंतरिक्ष हो, टेक्नोलॉजी हो, राजनीति हो, अर्थव्यवस्था...

भारतीय मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक आरोग्यस्वामी पॉलराज को मिला फैराडे पदक

वाशिंगटन (भाषा)। बिजली और इलेक्ट्रोकैमिस्ट्री पर अपने काम के लिए विख्यात  फैराडे ने इलेक्ट्रोलिसिस के नियम प्रस्तावित किए। उन्होंने बेंजीन और अन्य हाइड्रोकार्बन की...

जलवायु परिवर्तन से प्रभावित होतीं किशोरियां

प्राकृतिक घटनाओं में जिस तरह से एक के बाद एक बदलाव आए हैं, वह जलवायु परिवर्तन का ही परिणाम हैं। अचानक तूफ़ानों की संख्या...

बुनियादी ढाँचा है, मगर सुविधा नहीं

रौलियाना (उत्तराखंड)। किसी भी क्षेत्र के विकास के लिए ज़रूरी है कि वहाँ न केवल बुनियादी ढाँचा मज़बूत हो, बल्कि क्षेत्र की जनता को...

बच्चों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर विकास मंजूर नहीं

तकनीक के विकास ने भले ही इंसानों के काम को आसान कर दिया है, लेकिन कई बार इसके कुछ नकारात्मक परिणाम भी सामने आये...

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