बच्चों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर विकास मंजूर नहीं

हरीश कुमार

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तकनीक के विकास ने भले ही इंसानों के काम को आसान कर दिया है, लेकिन कई बार इसके कुछ नकारात्मक परिणाम भी सामने आये हैं। आधुनिक टेक्नोलॉजी से लैस मशीनों ने ऊंची-ऊंची इमारतों को बनाना आसान कर दिया है, लेकिन इससे निकलने वाले धुंए और गुबार ने न केवल पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाया है बल्कि लोगों के स्वास्थ्य को भी बिगाड़ा है। सबसे बुरा असर बच्चों की सेहत पर पड़ रहा है। इन्हीं में एक है स्टोन क्रशर। बड़े से बड़े और भारी से भारी पत्थरों को टुकड़ों में बदल देने वाली इस मशीन से निकलने वाले गुबार से पूरा वातावरण प्रदूषित हो रहा है। हालांकि सरकार द्वारा इस दिशा में कई सख्त नियम बनाये गए हैं, लेकिन ज़मीन पर यह सख्ती कहीं नज़र नहीं आ रही है।

केंद्र प्रशासित जम्मू कश्मीर के पुंछ स्थित मंगनाड गांव में लगे स्टोन क्रशर भी आसपास के क्षेत्र को प्रदूषित कर रहे हैं। जिस पर ग्रामीणों ने कड़ी नाराजगी जताई है। गांव वालों का मानना है कि इस प्लांट के कारण बच्चों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है क्योंकि यह प्लांट स्कूल के समीप है। यहां पर लोगों के घर के साथ साथ मंदिर, नारी निकेतन और टूरिस्ट स्पॉट भी हैं। जो लोगों को रोज़गार उपलब्ध कराता है, लेकिन इस स्टोन क्रशर से निकलने वाले प्रदूषण से पर्यटन प्रभावित होगा और इसका प्रभाव उनकी आजीविका पर पड़ेगा। यही कारण है कि इस आधुनिक तकनीक का ग्रामीण लगातार विरोध कर प्रशासन का ध्यान इस ओर आकृष्ट कर रहे हैं। गांव वाले कई बार जिला हेडक़्वार्टर पुंछ जाकर उपायुक्त के सामने अपना विरोध दर्ज करा चुके हैं और इस स्टोन क्रशर को आबादी से दूर स्थापित करने की मांग कर चुके हैं।

सवाल यह है कि इससे निकलने वाले जानलेवा गुबार का क्या होगा? इससे बच्चों, बुज़ुर्गों और स्थानीय लोगों की सेहत पर पड़ने वाले असर का क्या होगा? इसके चलने से स्थानीय स्तर पर जो प्रदूषण फैलेगा, उसे रोकने के लिए क्या योजना बनाई गई है? जिस मशीन से लोगों को रोज़गार से कहीं अधिक उनके स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़े, क्या ऐसी मशीनों का इंसानी बस्ती में चलना ज़रूरी है?

इस संबंध में मंगनाड गांव के नायब सरपंच नरेश कुमार कहते हैं कि ‘यहां अवैध रूप से क्रेशर का चलाया जा रहा है। जबकि कानून के तहत कोई भी क्रशर स्कूल के 500 मीटर के अंदर नहीं लगाया जा सकता है। परंतु जहाँ पर क्रशर का निर्माण किया जा रहा है, वहां से गवर्नमेंट हाईस्कूल मंगनाड महज़ आधा किमी से भी कम दूरी पर है। इस स्कूल में बड़ी संख्या में बच्चे पढ़ते हैं। क्रशर से निकलने वाले धुएं और शोर से बच्चों की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ रहा है। वहीं गांव में प्रदूषण भी फ़ैल रहा है। हम लोग डिप्टी कमिश्नर, पुंछ के ऑफिस भी गए थे और वहां अपनी बात रखी थी। हमने उन्हें बताया कि पंचायत की मंजूरी के बिना अर्थात एनओसी के बिना क्रशर कैसे लगाया जा रहा है?

लेकिन डीसी साहब का कहना था कि पंचायत की पॉवर अब खत्म हो चुकी है। पंचायत से एनओसी की जरूरत नहीं है। बाकी एनओसी उनके पास मौजूद हैं जिनकी उनको जरूरत है, जिससे वह क्रशर लगा सकते हैं। लेकिन हमने उनसे साफ कहा कि ‘एक ओर तो सरकार पंचायतों को बढ़ावा देकर उनको अधिकार दे रही है और दूसरी ओर हमारी पंचायत की एनओसी के बिना ही क्रशर लगाया जा रहा है। अगर पंचायत की पॉवर खत्म हो चुकी है तो आने वाले समय में गांव में कोई गैर कानूनी काम होता है तो उसकी जिम्मेदारी भी पंचायत की नहीं होगी।’ नरेश कुमार का यह भी कहना है कि अगर पंचायत की एनओसी नहीं भी है तो वहां पर नारी निकेतन, हाईस्कूल और आम लोगों के घर भी हैं। ऐसे में पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने एनओसी कैसे दे दी? यदि इसे बंद नहीं करवाया गया तो भविष्य में गांव वालों को अन्य कई समस्याएं आएंगी ऐसे में इसकी जिम्मेदारी सरकार की होगी।

Stone Crusher in Magnad village

वहीं, अपर पंचायत के सरपंच मोहम्मद असलम कहते हैं कि ‘बड़ी समस्या तो यहां यह है कि स्कूल के बच्चे कैसे पढ़ेंगे? क्योंकि यह क्रशर स्कूल के बिल्कुल पास में ही लगाया गया है और इसी के साथ ही यहां पर एक छोटा सा टूरिस्ट स्पॉट विक्रम सिंह की डेरिया भी है। इससे कितना प्रदूषण होगा? इस प्रदूषण से बच्चों की जिंदगी पर कितना बुरा असर पड़ेगा? यहां पर धार्मिक स्थान भी हैं और लोगों के घर भी हैं। तो इसका जिम्मेदार कौन है? हम प्रशासन और एलजी से अपील करते हैं कि इस क्रशर को जल्द से जल्द यहां से बंद करवाया जाए ताकि भविष्य में हमें समस्याओं का सामना ना करना पड़े। वहीं स्थानीय समाजसेवी सुखचैन लाल कहते हैं कि क्रशर लगाने वाले यह कह रहे हैं कि यहां पर रोजगार मिलेगा, परंतु इससे होने वाले प्रदूषण से बच्चों के भविष्य का जिम्मेदार कौन है? स्थानीय लोगों के विरोध के कारण इसे कुछ महीने पहले इसे बंद कर दिया गया था, लेकिन हाल ही यह फिर से शुरू हो गया है। जिससे स्थानीय लोगों में चिंता बढ़ गई है। जबकि इसे शुरू करने वाले दलील दे रहे हैं कि उन्होंने इसके लिए प्रशासन से अनुमति ली है। इससे स्थानीय लोगों को रोज़गार मिलेगा और पलायन रुकेगा।

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सवाल यह है कि इससे निकलने वाले जानलेवा गुबार का क्या होगा? इससे बच्चों, बुज़ुर्गों और स्थानीय लोगों की सेहत पर पड़ने वाले असर का क्या होगा? इसके चलने से स्थानीय स्तर पर जो प्रदूषण फैलेगा, उसे रोकने के लिए क्या योजना बनाई गई है? जिस मशीन से लोगों को रोज़गार से कहीं अधिक उनके स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़े, क्या ऐसी मशीनों का इंसानी बस्ती में चलना ज़रूरी है? अब यह सरकार और स्थानीय प्रशासन को तय करना है कि इन समस्या का क्या हल निकाला जाए? क्योंकि बात सिर्फ लोगों की नहीं है, बल्कि बच्चों की शिक्षा और उनके स्वास्थ्य की भी है।

हरीश कुमार, पुंछ (जम्मू) में पत्रकार हैं।

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