Saturday, July 27, 2024
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बुनियादी ढाँचा है, मगर सुविधा नहीं

रौलियाना (उत्तराखंड)। किसी भी क्षेत्र के विकास के लिए ज़रूरी है कि वहाँ न केवल बुनियादी ढाँचा मज़बूत हो, बल्कि क्षेत्र की जनता को उसका पूरा लाभ भी मिल रहा हो। बुनियादी ढाँचा से तात्पर्य स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, सड़क, बिजली, पीने का साफ़ पानी, शौचालय की सुविधा, आवास और सभी स्तर पर संपर्क की सुविधा […]

रौलियाना (उत्तराखंड)। किसी भी क्षेत्र के विकास के लिए ज़रूरी है कि वहाँ न केवल बुनियादी ढाँचा मज़बूत हो, बल्कि क्षेत्र की जनता को उसका पूरा लाभ भी मिल रहा हो। बुनियादी ढाँचा से तात्पर्य स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, सड़क, बिजली, पीने का साफ़ पानी, शौचालय की सुविधा, आवास और सभी स्तर पर संपर्क की सुविधा का होना आवश्यक है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या केवल बुनियादी ढाँचा खड़ा कर देने से विकास का पैमाना पूरा हो जाता है या समाज के अंतिम पायदान पर खड़े गरीब, वंचित, महिला और दिव्यांग तबके को जब तक इसका लाभ नहीं मिलता है, इसे सफल नहीं माना जा सकता है?

उत्तराखंड के बागेश्वर जिला स्थित गरुड़ ब्लॉक का रौलियाना गाँव इसका एक उदाहरण है, जहाँ विकास का बुनियादी ढाँचा तो खड़ा कर दिया गया  है, लेकिन जनता को उसका कोई ख़ास लाभ नहीं मिल रहा है। यहाँ विकास भी कुछ इस तरह है कि विकसित गाँव में जो सुविधाएँ उपलब्ध होनी चाहिए, वह सभी सुविधाएँ लोगों की नज़र में उन्हें प्राप्त हो गई हैं। गाँव में अच्छे स्कूल, अस्पताल, पंचायत घर, खेलने का मैदान, अच्छी सड़क, शौचालय, सार्वजनिक कूड़ेदान की व्यवस्था, अच्छे रास्ते आदि सुविधाएँ उपलब्ध हों तो वह गाँव विकसित कहलाता है। लेकिन यह पूरी तरह से सच नहीं है। केवल भवन और रास्ते बन जाने मात्र से कोई गाँव विकसित नहीं हो जाता है।

गाँव विकसित तब माना जाता है, जब उपलब्ध साधनों का बढ़िया ढंग से उपयोग हो। इसकी कमी विकास को अधूरा बना देती है। जैसे गाँव में अस्पताल की सुविधा तो है, लेकिन उसमें डॉक्टरों की कमी है। साधारण से लेकर गंभीर बीमारियों के इलाज का ज़िम्मा एक ही डॉक्टर के ज़िम्मे है, जिससे मरीज़ों का अच्छे से इलाज नहीं हो पाता है। 39 वर्षीया रमा देवी कहती हैं कि गाँव में अस्पताल तो है, पर सिर्फ देखने के लिए, क्योंकि इस अस्पताल में डॉक्टर नहीं है। जिस कारण गाँव का विकास नहीं हो रहा है। लोगों को अपना इलाज करवाने के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है। मामूली सर्दी, जुकाम के लिए भी उन्हें बहुत दूर दवा लेने जाना पड़ता है। वह कहती हैं कि यहाँ पर विकास के नाम पर सब कुछ आधा-अधूरा है।

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[bs-quote quote=”वह गाँव से शहर की ओर पलायन करते हैं और फिर वहीं बस जाते हैं। जिससे गाँव में विकास की गति प्रभावित होती है। चालीस वर्षीय चंदन का कहना है कि सरकार गाँव में नई-नई योजनाएँ लाकर गाँव को विकसित तो दिखा देती है, लेकिन वास्तव में गाँव को विकसित बनाने के लिए अच्छे व योजनाबद्ध तरीके से काम नहीं करती है, जिससे गाँव के विकास की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाती है।” style=”style-2″ align=”center” color=”#1e73be” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

केवल स्वास्थ्य के क्षेत्र में ही नहीं, शिक्षा के क्षेत्र में भी यहाँ विकास अधूरा ही नज़र आता है। गाँव में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के साधनों का अभाव है। 12वीं में पढ़ने वाली ज्योति गोस्वामी कहती हैं कि हमारे गाँव की लड़कियों को 12 के बाद आगे अपनी पढ़ाई को जारी रखने में काफी दिक्कत होती है, क्योंकि कॉलेज गाँव से बहुत दूर है। जैसे-तैसे दाखिला हो भी जाए तो शाम को घर आने की समस्या रहती है, क्योंकि गाँव आने वाली सवारी गाड़ियों की संख्या सीमित है। यदि क्लास ज़्यादा देर तक चली तो गाड़ी छूटने का भय बना रहता है। हमारी आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि कॉलेज के करीब हॉस्टल में रह कर पढ़ाई कर सकें। इसी कारण गाँव की लड़कियाँ ज़्यादा पढ़ नहीं पाती हैं और विकास नहीं हो पाता है। यदि कॉलेज आने-जाने की सुविधा हो जाए, गाड़ी पूरे दिन चले तो हम लोग बिना किसी समस्या के समय से कॉलेज आना-जाना कर सकेंगे। इस सुविधा से जहाँ महिला शिक्षा को बढ़ावा मिलेगा, वहीं गाँव का भी विकास संभव होगा।

केवल कॉलेज की शिक्षा ही नहीं, बल्कि आधुनिक टेक्नोलॉजी के अभाव ने भी गाँव के विकास को प्रभावित किया है। कम्प्यूटर जैसी शिक्षा से अभी भी गाँव की किशोरियाँ वंचित हैं। कक्षा 9वीं में पढ़ने वाली हिमानी का कहना है कि हमारे गाँव में कम्प्यूटर सेंटर नहीं है। लड़के तो घर से बाहर जाकर सीख लेते हैं लेकिन हम लड़कियों को यह मौका नहीं मिल पाता है। स्कूल में अगर कम्प्यूटर है तो बस दिखाने के लिए। वहाँ कुछ सिखाया नहीं जाता है। शहरों में बच्चों को बचपन से ही स्कूलों में कम्प्यूटर की शिक्षा दी जाती है, परंतु गाँव में हम लड़कियों को यह सुविधा नहीं मिल पाती है। इससे विकास की प्रक्रिया रुक गई है।

गाँव की 44 वर्षीया रजनी देवी कहती हैं कि वैसे तो हमारे गाँव में काम चलाने लायक सभी चीजें हैं, पर प्राप्त कुछ भी नहीं है। अस्पताल है, मगर डॉक्टर नहीं। स्कूल है, परंतु अच्छी शिक्षा नहीं, जिस कारण गाँव का पूर्ण विकास नहीं हो पा रहा है। इन्हीं बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण लोग गाँव का प्राकृतिक वातावरण छोड़कर शहर की ओर पलायन कर रहे हैं। 60 वर्षीया बुजुर्ग दुर्गा गिरी कहती हैं कि गाँव को विकसित करने के लिए सरकार तो हर प्रकार से मदद कर रही है, लेकिन लोगों को विकास से कोई मतलब नहीं है। वह गाँव से शहर की ओर पलायन करते हैं और फिर वहीं बस जाते हैं। जिससे गाँव में विकास की गति प्रभावित होती है। चालीस वर्षीय चंदन का कहना है कि सरकार गाँव में नई-नई योजनाएँ लाकर गाँव को विकसित तो दिखा देती है, लेकिन वास्तव में गाँव को विकसित बनाने के लिए अच्छे व योजनाबद्ध तरीके से काम नहीं करती है, जिससे गाँव के विकास की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाती है।

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ग्राम प्रधान शोभा देवी कहती हैं कि गाँव के विकास के लिए हर साल नई-नई योजनाएँ आती हैं, जिससे गाँव के लोगों को भी रोजगार मिल सकता है। लेकिन सरकार की इन योजनाओं को पूरा करने के लिए हमें गाँव के लोगों की मदद और इच्छाशक्ति की ज़रुरत होती है जो हमें अपेक्षाकृत नहीं मिल पाती है। जैसे गाँव में इंटरनेट का टावर लगवाना है, लेकिन गाँव के लोग किसी भी हालत में टावर के लिए जमीन देने को तैयार नहीं होते हैं। गाँव में अच्छी सिंचाई के लिए चौड़ी नहर बनाने की जरूरत है, लेकिन गाँव के लोग इसके लिए भी जमीन का छोटा सा हिस्सा भी देने को तैयार नहीं हैं। हालाँकि सरकार इसके बदले उन्हें मुआवज़ा देती है, फिर भी लोग तैयार नहीं होते हैं।

बहरहाल, किसी भी क्षेत्र के विकास के लिए केवल बुनियादी ढाँचे का खड़ा होना काफी नहीं है बल्कि उसमें सुविधाओं का पूरा होना आवश्यक शर्त है। लेकिन यह उसी वक़्त मुमकिन है जब सरकार के साथ-साथ जनता भी इसके लिए प्रतिबद्ध हो। समाज के सभी वर्गों तक सुविधाओं के समान वितरण की ज़िम्मेदारी सरकार, स्थानीय प्रशासन, जनप्रतिनिधि और पंचायत के साथ साथ आम जनता की भी है। इसके लिए जागरूकता सबसे ज़रूरी है, जिससे विकास के चक्र को पूरा किया जा सकता है।

पूजा गोस्वामी 11वीं की छात्रा हैं और सामाजिक मुद्दों पर लिखती हैं।

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