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गैस पीड़ित विधवाओं की दुर्दशा और असंवेदनशील शासन व समाज

मुझे इस बात का इंतजार था कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को उस प्रशासनिक मशीनरी पर जोरदार गुस्सा आएगा जिसने आठ महीने बीत जाने के बाद भी उनकी एक अत्यधिक संवेदनशील और मानवीयता से ओतप्रोत घोषणा पर अमल नहीं किया। उसके बाद बार-बार शासन को यह याद दिलाया गया कि मुख्यमंत्री के निर्णय पर शीघ्र […]

मुझे इस बात का इंतजार था कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को उस प्रशासनिक मशीनरी पर जोरदार गुस्सा आएगा जिसने आठ महीने बीत जाने के बाद भी उनकी एक अत्यधिक संवेदनशील और मानवीयता से ओतप्रोत घोषणा पर अमल नहीं किया।

उसके बाद बार-बार शासन को यह याद दिलाया गया कि मुख्यमंत्री के निर्णय पर शीघ्र अमल हो। इसी मुद्दे को लेकर हम लोग गैस राहत मंत्री विश्वास सारंग से 5 फरवरी 2021 को मिले थे। सारंगजी बहुत अच्छे से मिले और उन्होंने हमें आश्वस्त किया कि शीघ्र ही पेंशन जारी हो जाएगी। परंतु नहीं हुई। इस बीच मैं कई बार सारंगजी को याद दिलाता रहा।

वर्षों से श्री बालकृष्ण नामदेव इन विधवाओं की सेवा में लगे हुए हैं। वे भी पेंशन के लिए दिन-रात प्रयास करते रहे। इन लंगड़ी, लूली, लगभग दिव्यांग विधवाओं ने मुख्यमंत्री निवास पर प्रदर्शन भी किया। इस सबके बाद बड़ी मुश्किल से मामला केबिनेट में आया। इस दौरान मैं भी विभाग के अधिकारियों से बात करता रहा। मुझे हर बार आश्वस्त किया जाता रहा कि बस दो-तीन दिनों में पेंशन प्रारंभ हो जाएगी। इस समय मुझे मालूम नहीं है कि पेंशन चालू हो गई है या नहीं, क्योंकि मैं जानकारी लेते-लेते थक गया हूं।

[bs-quote quote=”मेरा इशारा 5 हजार से ज्यादा गैस पीड़ित विधवाओं को दी जाने वाली पेंशन की ओर है। इन विधवाओं को सन् 2019 के नवंबर माह तक रूपये एक हजार प्रतिमाह पेंशन मिलती थी परंतु दिसंबर 2019 से किन्हीं कारणों से यह पेंशन बंद हो गई थी। मुख्यमंत्री ने गैस त्रासदी की बरसी पर 3 दिसंबर 2020 को आयोजित कार्यक्रम में घोषणा की थी कि अब यह पेंशन पुनः प्रारंभ की जा रही है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

 

मैं सोचता हूं कि यदि आज बापू होते तो तो मैं इन विधवाओं की दुर्दशा के बारे में उनसे शिकायत करता। बापू ने एक जंतर  दिया था कि जब भी कोई नीति बने या निर्णय हो तो पंक्ति में सबसे पीछे वाले व्यक्ति को ध्यान में रखा जाए। यह जंतर इन विधवाओं पर सौ प्रतिशत लागू होता है। आज सभी बापू का नाम लेते हैं परंतु इनकी कथनी और करनी में कितना अंतर है। क्या बापू इनकी दयनीय दशा और स्वतंत्र भारत की भारतीयों द्वारा संचालित सरकार का क्रूर व उपेक्षापूर्ण रवैय देखने के बाद जिंदा रहना चाहते?

इस दरम्यान मेरा एक और भ्रम दूर हुआ। मैं पत्रकार हूं। साठ से ज्यादा वर्षों से पत्रकारिता कर रहा हूं। मैं सोचता था कि चूंकि मैं इस मुद्दे को बार-बार उठा रहा हूं इसलिए शीघ्र ही उस पर अमल होगा। इस मामले में मेरे मित्र, पत्रकार पूर्णेन्दु शुक्ला भी प्रयास कर रहे हैं इसलिए भुखमरी के कगार पर जीवनयापन कर रही इन विधवाओं की विपत्ति दूर हो जाएगी। पर मेरा भ्रम टूट गया।

इन स्थितियों पर मुख्यमंत्री समेत अन्य लोगों को गुस्सा नहीं आया। इनमें राजनेता, अधिकारी, सामाजिक कार्यकर्ता, धर्मगुरू आदि शामिल हैं।

यदि ये विधवाएं अमरीका में रह रही होतीं तो वहां के संवेदनशील नागरिक वहां के शासकों का जीना हराम कर देते। अभी कुछ दिन पहले वहां एक अश्वेत की हत्या कर दी गई थी। वहां के नागरिकों ने सड़क पर निकलकर अपने गुस्से का इजहार किया किंतु हम ऐसा कम ही करते हैं।

एल एस हरदेनिया वरिष्ठ पत्रकार हैं और भोपाल में रहते हैं।

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