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ग्राउंड रिपोर्ट

अभिनय की खड़ी पाई ट्रेजडी किंग के महान करियर में एक दाग है

स्वाधीनता की पचासवीं वर्षगांठ पर मुझे यह कहने में कोई कुंठा नहीं कि आजादी की आगामी दो सौंवी वर्षगाँठ तक भारत माता की कोख से शायद ही युसूफ खान जैसा कोई अभिनय सपूत जन्म ले सकेगा । सिर्फ अभिनय के जोर से राज कपूर जैसे प्रतिभाधर के साथ नाम उच्चारित करवाने वाला कोई दिलीप ही […]

स्वाधीनता की पचासवीं वर्षगांठ पर मुझे यह कहने में कोई कुंठा नहीं कि आजादी की आगामी दो सौंवी वर्षगाँठ तक भारत माता की कोख से शायद ही युसूफ खान जैसा कोई अभिनय सपूत जन्म ले सकेगा । सिर्फ अभिनय के जोर से राज कपूर जैसे प्रतिभाधर के साथ नाम उच्चारित करवाने वाला कोई दिलीप ही हो सकता है। इनकी क्या तारीफ करूँ , अल्फाज़ नहीं सूझते। अभिनय का वट वृक्ष कहूं या प्रशांत महासागर!राजेन्द्र, मनोज कुमार , जीतेंद्र, अमिताभ बच्चन वगैरह दिलीप साहब की कॉपी कर कहाँ से कहाँ चले गए । और तो और राजेश खन्ना जैसे निराले स्टाइलिश अभिनेता तक कई बार दिलीप साहब की कॉपी करने के लिए विवश रहे। मैं खुद भी नाटकों से लेकर टीवी, सिनेमा के कैमरे का जितना भी मौका पाया दिलीप साहब की कॉपी कर आत्म-विश्वास संचित कर सका ।

1952 अमिया चक्रवर्ती निर्देशित दाग में

भारत वर्ष के अभिनय सम्राट ने दाग में शराबी, देवदास में मायूस प्रेमी, आदमी में शक्की इन्सान, शक्ति के कर्तव्यनिष्ठ पुलिस ऑफिसर से लेकर विधाता के  डॉन का जो भी चरित्र किया : मील का पत्थर बन गया.

किन्तु अभिनय की खड़ी पाई ट्रेजडी किंग के महान करियर में एक दाग है। उन्होंने अमानवीय जाति भेद-भाव वाली व्यवस्था द्वारा गले में थूकदानी और कमर में झाड़ू बांधे सौ-सौ हाथ दूर से बात करने के लिए बाध्य किसी मानवेतर बहुजन नायक का चरित्र निर्वाह कर, संगदिल मनुवादियों को इस अमानवीय व्यवस्था के प्रति दो बूँद आंसू बहाने के लिए मजबूर नहीं किया।

[bs-quote quote=”स्वर्गीय बलराज साहनी ने कहा है,’ जब किसी भारतीय अभिनेता के लिए मुश्किल क्षण आता है तो वह दिलीप साहब की कॉपी करता है’।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

यदि दिलीप साहब चाहते तो ऐसा कैरेक्टर उनके लिए जरूर लिख दिया जाता। इतना ही नहीं महान दिलीप कुमार ने गंगा-जमुना नामक एकमात्र फिल्म बनाकर ग्राम्य भारत को सम्मान दिया. उर्दू जुबान के मास्टर और शहरी संस्कृति में पले-बढे बढे दिलीप साहब ने गंगा-जमुना में ग्रामीण संवाद अदायगी का जो अंदाज़ पेश किया, उसकी असफल कॉपी भारत के तमाम अभिनेता आज तक करते रहे हैं। उनकी अविस्मर्णीय गंगा-जमुना में जाति-भेद की दरिया में डूबा कोई मानवेतर बहुजन नहीं है। उनके जैसा परफेक्शनिस्ट कैसे भूल गया कि भारतवर्ष चार वर्ण से छः हजार मानव गोष्ठियों में विभक्त है । विश्व के दूसरे श्रेणी समाजों की तरह अमीर-गरीब की दो श्रेणियों में बंटा समाज नहीं ।

उपरोक्त टिप्पणी द्वारा सन 2000 में प्रकाशित एच.एल. दुसाध की पुस्तक आदि भारत मुक्ति : बहुजन समाज  का अंश है। दुसाध कोलकाता प्रवास के दौरान रंगकर्म और टी वी सीरियल से जुड़े रहे हैं ।

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