गाजीपुर। जब नदी का पानी उफान पर रहता है तब यह रोड पूरी तरह से डूब जाती है और नदी का पानी बढ़ने से कईं विषैले जीव-जंतु आ जाते हैं, जिससे ग्रामवासियों और पालतू जानवरों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। अगर यह रोड चार फ़ुट ऊँची रहती तो ग्रामवासियों को दिक्कतों का सामना न करना पड़ता। यह बातें गाजीपुर के पटना ग्रामसभा के पूर्व प्रधान कमलेश यादव ने गंगा का वह किनारे दिखाते हुये कही जो बहुत ही मनोहारी दिख रहा था। हमें यह दृश्य जितना नयनाभिराम लग रहा था, उससे कहीं ज्यादा कमलेश यादव भविष्य के उस भय से चिंतित हैं, जिसे हम अभी नहीं देख पा रहे थे। यह गंगा की सुरम्यता उसका मनोहारी किनारा हमारे लिए कितना भी सुन्दर हो, पर इस गाँव में रहने वाले लोग गंगा नदी के बढ़ते जल स्तर को लेकर काफी डरे हुये और चिंतित हैं। उनकी चिंता और डर की एक नहीं, बल्कि दो वजहें हैं जो काफी गंभीर हैं।
कमलेश यादव बताते हैं कि एक तरफ बरसात के मौसम में आने वाली बाढ़ का डर है तो दूसरी ओर, गाँव को मुख्य सड़क से जोड़ने वाले इकलौते संपर्क मार्ग पर बना हुआ पुल जर्जर हो चुका है। अगर यह पुलिया बाढ़ की चपेट में आकर टूट जाती है, तो ग्रामवासियों का आवागमन रुक जायेगा और इससे कई गांव प्रभावित होंगे। गाँव के बाहर आने-जाने वालों को भी काफी दिक्कतें होंगी। वह बताते हैं कि हम लोगों ने शासन-प्रशासन से कई बार इसकी शिकायत की, बाढ़ के समय डीएम और अन्य अधिकारी आते हैं, बोलते हैं इसको ऊँचा करा देंगे। आश्वासन खूब मिलता है, लेकिन होता कुछ भी नहीं।
स्थानीय विधायक अंकित भारती से कभी इस विषय पर बात की? यह पूछने पर वह बताते हैं कि, ‘जितना हो सकता है वह मदद करते हैं। लोगों की सुगमता के लिए उन्होंने स्ट्रीट लाइट भी लगवाएं और बाढ़ के समय भी वह मदद के लिए तत्पर रहते हैं। उन्होंने अपने स्तर पर प्रयास भी किया था, पर अब तक कोई सफलता नहीं मिल सकी।
पटना संपर्क मार्ग पर आगे बढ़ते हुए हम जब उस जर्जर पुलिया से होकर गुजरते हैं, तो एक पल को मन में सिहरन पैदा हो जाती है। पुलिया के ऊपर बने साइड बैरीकेडस पूरी तरह से टूट चुके हैं। पुल के किनारे की तरफ एक बड़ा हिस्सा टूटा हुआ है। तेज बारिश या नीम अंधेरे में चलना बेहद खतरनाक हो सकता है। हम उस पुल को पार कर आगे रूकते हैं, उस पुल की जर्जरता को करीब से देखते हैं। पुल के नीचे के पिलर (खंभे) भी कमजोर हो चुके हैं। यह पुल अब सिर्फ किसी बड़ी दुर्घटना का इंतजार करता हुआ खड़ा है। पुल की चौड़ाई भी बहुत कम है। अगर कोई वाहन जरा भी डगमगा जाये तो कम से कम 12 फुट नीचे गिरना तय है।
हम पुल पर खड़े थे, तभी सिकंदर चौधरी भी वहाँ आ जाते हैं। सिकंदर चौधरी पास के श्मशान घाट पर शवदाह करवाने में लोगों की मदद करते हैं। सिकंदर चौधरी हम लोगों को देखते ही दूर से बोल देते हैं, ‘भैया ई पुलिया अबकी गंगा माई के धारे के आगे थम न पाई।’ हमारे साथ पूर्व प्रधान को देखकर वह उनसे भी कहते हैं कि प्रधानजी, हर बार तो बूड़ा-बाढ़ आए, पर हम लोग एहर से ही निकल लेत रहे, पर अबकी त लागत बा कि ई पुलिया ही बह जाई। सिकंदर चौधरी को यह समझ में आ जाता है कि हम मीडिया के लोग हैं। वह हम लोगों से कहते हैं कि देखीं का पता आप लोगन के हाथ लगाए से हमार लोगन का भी कुछ कल्याण हो सके। भइया लोगन ई समझ ली कि बाढ़ में पूरी खेती-बारी बह जाला। पशु का भी बड़ा नुकसान होला। सिकंदर से हम पूछते हैं कि ऐसा क्या हो सकता है, जिससे आप लोगों की दिक्कत खत्म हो जाये?
सिकंदर कहते हैं कि भैया ई सड़क की ऊँचाई चार फिट बढ़ाकर बांध में बदल दीं जाये और वहीं के हिसाब से ई पुलिया भी बनाय देवल जाय। सिकंदर की उम्र ज्यादा नहीं है, पर वह बेहद जिम्मेदार की तरह बात करते हैं। वह बताते हैं कि बाढ़ आने पर सड़क पर भी पानी भर जाता है। जो लोग शव दाह के लिए यहाँ आते हैं उन्हें भारी असुविधा का सामना करना पड़ता है। सड़क तक पूरा पानी भर जाने से चिता बनाने के लिए जगह ही नहीं मिलती।
इसी बीच गाँव के रामाश्रय यादव भी वहाँ से रूकते हैं। वह गाँव के वरिष्ठ व्यक्ति हैं। कई बार उन्होंने गाँव में बाढ़ की विभीषिका देखी है। गंगा के कछार में उनका लगभग 18 बीघा खेत है। बाढ़ आने पर पूरी फसल चौपट हो जाती है। वह कहते हैं- होश जब से संभाले तब से इसी गाँव में खुद को पलते-बढ़ते हुए पाया। जब बाढ़ आती है, तब हम लोगों का बहुत कुछ बहा ले जाती है। वह बताते हैं कि एक बाढ़ हम किसानों के कम-से-कम दो साल पीछे कर देती है।
फिलहाल, पूर्व प्रधान कमलेश यादव के साथ मैं और गाँव के लोग डॉट कॉम के संपादक रामजी यादव गंगा की तरफ बढ़ जाते हैं। गंगा का वह प्रवाह और किनारे का पूरा लैंडस्केप अच्छा लगता है। हम प्रकृति के इस अवर्णनीय छवि को निहार रहे थे, तभी बगल के मठ की ओर नजर जाती है। पुजारी देवानंद दास बाबा अपने आश्रम श्रीस्वामी रामानन्द मठ के किनारे-किनारे बांध बनवा रहे थे और अगल-बगल उगी घास अपने हाथ से काट रहे थे। किवदंतियों के अनुसार, यह आश्रम शृंगी ऋषि द्वारा स्थापित किया गया था। इस तरह का लगभग चार फुट ऊँचा यह बांध अपने प्रति सहज ही एक जिज्ञासा पैदा करने लगी। इस बांध की आवश्यकता को जानने-समझने के लिए हम लोग आश्रम के अंदर जाते हैं। आश्रम में बस दो ही लोग दिखते हैं।
हम देवानंद से पूछते हैं- बाबा यह सब करने का क्या प्रायोजन है? देवानंद बताते हैं कि श्रीस्वामी रामानन्द मठ को 7-8 सौ वर्ष हो गए हैं। यह काफी पुराना मठ है। योगी सरकार होने के बावजूद इस मठ को कोई सुविधा नहीं मिली है। ना ही इस मठ में एक हैण्डपंप तक लगवाया गया है। अगर बाढ़ आ जाती है, तो हम लोगों को यहाँ से निकलकर अन्यत्र जाना पड़ता है। कहीं रोड पर या इधर-उधर जगहों पर आश्रय लेना पड़ता है। बाढ़ के आने पर भी हम लोगों को कोई सरकारी सुविधा नहीं मिलती है। मुलायम सिंह की सरकार ने खाने-पीने से लेकर सारी सुविधा मुहैया कराई थी, पर अब जब कोई सरकारी सुविधा नहीं मिलती है, तब जो बन पड़ेगा सो खुद ही करते हैं। यह बांध इसीलिए बनवा रहे हैं कि अगर पानी भर गया तो आश्रम की गायें और पेड़-पौधे सब पर संकट आ जाएगा। अपनी अकेले की जान बचाना हो तो आदमी कहीं भी चला जाय, पर इन सबको भी तो देखना पड़ता है। फिलहाल, यह हिम्मत अच्छी लगती है। बाबा भी जानते हैं कि अगर बाढ़ तेज आई तो यह मिट्टी का बांध टिक नहीं पाएगा, पर कुछ न होने से कुछ होना ज्यादा बेहतर होता है। बाबा जीवन बचाने का वह प्रयास कर रहे हैं, जो जीवन के सबसे कठिन समय में भी निराश नहीं होने देता। उनसे मिलकर एक उम्मीद मिलती है। सरकार और कभी-कभी कुछ झूठा आश्वासन देने वाले जन प्रतिनिधियों से वह नाराज हैं। वह कहते हैं कि हम किसी से कुछ मांगने नहीं जाते हैं, फिर भी लोग यहाँ आकार कुछ झूठा आश्वासन दे जाते हैं कि हम मठ के लिए यह करवा देंगे, वह करवा देंगे, पर समस्या आने पर कोई दिखाई नहीं देता। फिलहाल, इस नाराजगी को दबाते हुये वह कहते हैं ‘रुकिए! आप लोगों को ठंडा पानी पिलाता हूँ।’
फिलहाल, एक कमजोर पुलिया पर निर्भर यह गाँव अब बस किसी चमत्कार की उम्मीद कर रहा है कि शायद किसी की निगाह पड़ जाये तो कुछ भला हो जाये। लोग यह भी चाहते है कि सरकार किसी आपात स्थिति की तैयारी भी करके रखे।