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भोपाल गैस त्रासदी – एक रात के ज़ख्म अब दूसरी पीढ़ियों में टीस रहे हैं

इतिहास की सबसे बड़ी रासायनिक औद्योगिक त्रासदी के रूप में दर्ज भोपाल गैस त्रासदी के जख्म ऊपरी तौर पर आज भले ही गायब हो गए हैं, पर उस त्रासदी के भयावह प्रभाव से आज भी भोपालवासी पूरी तरह मुक्त नहीं हो सके हैं। त्रासदी से पीड़ित नई पीढ़ी में इस त्रासदी के प्रभाव को लेकर […]

इतिहास की सबसे बड़ी रासायनिक औद्योगिक त्रासदी के रूप में दर्ज भोपाल गैस त्रासदी के जख्म ऊपरी तौर पर आज भले ही गायब हो गए हैं, पर उस त्रासदी के भयावह प्रभाव से आज भी भोपालवासी पूरी तरह मुक्त नहीं हो सके हैं। त्रासदी से पीड़ित नई पीढ़ी में इस त्रासदी के प्रभाव को लेकर ‘यूनिवर्सिटी ऑफ़ सैन डियागो’ की ओर से एक वैज्ञानिक शोध पत्र विज्ञान के एक अंतर्राष्ट्रीय जनरल में प्रकाशित हुआ है। इस शोध पत्र के परिप्रेक्ष्य में दुनिया की सबसे बड़ी यूनियन कार्बाइड हादसे के पीड़ितों के पांच संगठनों ने आज गर्भस्थ बच्चों के स्वास्थ्य पर हादसे की वजह से हुए क्षति पर हाल ही में प्रकाशित वैज्ञानिक अध्ययन पर एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया।

अध्ययन के निष्कर्षों के बारे में बताते हुए ‘डाव कार्बाइड के खिलाफ बच्चे’ की नौशीन खान ने कहा, ‘अध्ययन में पाया गया है कि भोपाल हादसे के दौरान जो लोग अपनी माँ के गर्भ में थे, उनमें कैंसर होने की आशंका आठ गुना अधिक थी। साथ ही सामान्य बच्चों की तुलना में इन बच्चों में रोजगार बाधित करने वाली विकलांगता और शिक्षा का स्तर बेहद कमजोर था। भारत सरकार द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के आधार पर इस अध्ययन में यह भी बताया गया है कि हादसे के समय कारखाने से 100 किलोमीटर दूर रहने वाले लोगों पर भी इसका का प्रभाव देखा जा सकता है।

रिपोर्ट में दिखाया गया प्रभावित हिस्सा

भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की अध्यक्षा रशीदा बी ने कहा, ‘हम उन शोधकर्ताओं को बधाई और धन्यवाद देते हैं जिन्होंने यूनियन कार्बाइड एवं भारत सरकार द्वारा इसके प्रभाव को जान-बूझकर कम करने के खिलाफ हादसे की भयावहता और दीर्घकालिक परिणामों पर हमारे रुख की पुष्टि की है। हम मांग करते हैं कि यूनियन कार्बाइड और डाव केमिकल कम्पनी हादसे की अगली पीढ़ी के स्वास्थ्य को हुए नुकसान के लिए मुआवजा दे।’

[bs-quote quote=”‘यह वैज्ञानिक प्रकाशन राज्य और केंद्र की सरकारों के लिए एक चेतावनी होनी चाहिए। शोध के सभी निष्कर्ष सरकारी एजेंसियों द्वारा प्रकाशित आंकड़ों पर आधारित हैं। सरकार ने कम्पनी के पीड़ितों के हितों की रक्षा के वादे के बदले में भोपाल के पीड़ितों से यूनियन कार्बाइड पर मुकदमा चलाने का अधिकार छीन लिया है। यदि सरकारें यूनियन कार्बाइड से अगली पीढ़ी को हुए नुकसान की भरपाई करने के लिए कानूनी कदम नहीं उठाती है तो यह उस वादे के साथ विश्वासघात होगा।'” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”रचना ढींगरा ” author_job=”भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉर्मेशन एंड एक्शन ” author_avatar=”https://gaonkelog.com/wp-content/uploads/2023/06/Rachna-Dhingra-2.jpg” author_link=””][/bs-quote]

भोपाल गैस पीड़ित निराश्रित पेंशनभोगी संघर्ष मोर्चा के बालकृष्ण नामदेव के अनुसार, ‘यह प्रकाशन भोपाल में यूनियन कार्बाइड के पीड़ितों पर सभी चिकित्सा अनुसंधान को छोड़ने के निर्णय की तत्काल समीक्षा का भी आह्वान करता है। जैसा कि अध्ययन में कहा गया है, सरकार, पुनर्वास मुहैया कराने में अपनी विफलता के कारण, गैस पीड़ितों की संतानों को हुई आर्थिक और सामाजिक क्षति की भरपाई करने के लिए भी बाध्य है।’

भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरुष संघर्ष मोर्चा की शहजादी बी ने कहा कि जैसा कि हम पिछले लगभग चार दशकों से करते आ रहे हैं, हम न्याय के लिए संघर्ष करना जारी रखेंगे। हम यह सुनिश्चित करेंगे कि भोपाल और भोपाल से बाहर के अधिक से अधिक लोगों को भोपाल में अजन्मे बच्चे को हुए नुकसान के निष्कर्षों के बारे में पता चले और संबंधित राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय एजेंसियों द्वारा हमारी मांगों को सुना जाए।’

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मध्य प्रदेश की राजधानी में 2 दिसम्बर, 1984 की इस गैस त्रासदी के चार दशक बीत चुके हैं पर अब भी बहुत से भोपालवासी और इस नई रिपोर्ट के आधार पर कहा जाय तो अजन्मे बच्चे एवं नवजात भी इसके असर से गंभीर रूप से पीड़ित हैं। गैस पीड़ित आज भी अपनी कई मांगों को लेकर संघर्ष कर रहे हैं।

मिथाइल आइसो सायनाइड गैस का रिसाव दो और तीन दिसंबर की मध्य रात के बाद हुआ था। यह घटना भोपाल में यूनियन कार्बाइड कारखाने के प्लांट नंबर-सी में घटित हुई थी। जैसे ही भोर की ठंडी हवा ने रफ़्तार पकड़ी, वैसे ही यूनियन कार्बाइड कारखाने से रिसती ज़हरीली गैस ने शहर को अपनी चपेट में ले लिया और सरकार द्वारा जारी हलफनामे के मुताबिक, घटना के कुछ ही घंटों के अंदर तकरीबन 3,000 लोगों की मौत हो गई थी।

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