एमएसपी के साथ ही स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू करने की मांग को लेकर हरियाणा के बार्डर पर डटे किसानों में, दो किसानों की मौत हो चुकी है। दूसरी तरफ सरकार अपनी जिद पर अड़ी हुई है। वह अपना अड़ियल रवैया अपनाए हुए है। लोकसभा चुनाव से पहले सरकार इस आन्दोलन को किसी तरह खत्म कराना चाहती है जबकि किसान इस इस आन्दोलन के माध्यम से अपनी समस्याओं का पूर्ण समाधान चाहते हैं। किसान पूरी तरह से आर-पार की लड़ाई के मूड में नजर आ रहे हैं। इस बीच सरकार और किसान नेताओं के बीच चार दौर की बातचीत हो चुकी है लेकिन बात अभी भी बनती हुई नहीं दिख रही है। किसान आन्दोलन का आज आठवां दिन है और इन आठ दिनों में दो किसानों की मौत हो चुकी है।
आंदोलन के दौरान किसानों की मौत का जिम्मेदार कौन
किसान आन्दोलन के बीच शुक्रवार 16 फरवरी को गुरदासपुर के बटाला के एक किसान किसान ज्ञान सिंह (70 वर्ष) की मौत पटियाला के राजिंदरा अस्पताल में हो गई थी।
दूसरी ओर रविवार को एक और किसान की हार्ट अटैक से मौत हो गई। संगरूर के खनौरी बॉर्डर पर बैठे कांगथला पटियाला के किसान मंजीत सिंह को सिविल अस्पताल में ले जाया गया जहां उन्होंने दम तोड़ दिया। किसानों ने आरोप लगाया था कि आंसू गैस के धुएं से तबीयत खराब होने के कारण किसान की जान गई।
इस प्रकार से देखा जाय तो 13 फरवरी, 2024 में शुरू हुआ यह किसान आन्दोलन अभी महज आठ दिनों तक चला और इन आठ दिनों में दो किसानों को अपनी जान गवांनी पड़ी।
इसके पूर्व भी 2020 में किसान आन्दोलन हुए थे और उस समय भी केन्द्र में मोदी की सरकार थी। 2020 का यह किसान आन्दोलन एक वर्ष से अधिक समय तक चला। इस किसान आन्दोलन में 700 सौ से अधिक किसानों ने अपनी जान गंवाई।
सात सौ से अधिक किसानों की मौत के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है? ये सात सौ किसान सरकार से अपना अधिकार मांग रहे थे। सरकार ने उन्हें उनका अधिकार तो नहीं दिया। देखा जाय तो सीधे तौर पर इनकी मौत की जिम्मेदार केंद्र की मोदी सरकार है। किसानों कि मांगों को सरकार ने अगर मन लिया होता तो ये 7 सौ किसान अपने परिवार में अपने बच्चों के बीच होते।
केंद्र सरकार और किसानों के बीच चार दौर की बातचीत असफल
इससे पूर्व केंद्रीय मंत्रियों और किसान नेताओं के बीच 8, 12 ,15 और 18 फरवरी को वार्ता हो चुकी है। 18 फरवरी को हुई बैठक ऐसे वक्त हुई है, जब हजारों किसान अपनी विभिन्न मांगों को लेकर पंजाब और हरियाणा की सीमा पर शंभू और खनौरी में डटे हुए हैं तथा किसानों के ‘दिल्ली चलो’ मार्च को राष्ट्रीय राजधानी में प्रवेश से रोकने के लिए बड़ी संख्या में सुरक्षा बल तैनात हैं।
किसान एमएसपी के लिए कानूनी गारंटी के अलावा, किसान कृषकों के कल्याण के लिए स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने, किसानों और खेत मजदूरों के लिए पेंशन तथा कर्ज माफी, लखीमपुर खीरी हिंसा के पीड़ितों के लिए न्याय, भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 को बहाल करने और पिछले आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों के परिवारों को मुआवजा देने की भी मांग कर रहे हैं।
2024 में एक बार फिर से उसी अधिकार को प्राप्त करने के लिए किसान पूरे जोश और जज्बे के साथ हरियाणा के बार्डर पर इकट्ठा हो चुके हैं। उनके अन्दर के जज्बे को देखकर यही लग रहा है कि वे मौत से डरने वाले नहीं है। वे अपनी मांगों को सरकार से मनवाकर ही रहेंगे। दूसरी ओर सरकार चुनाव से पहले इस आन्दोलन का समाधान निकालने की पूरी कोशिश करेगी, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता।