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हमें भोजन चाहिए, तंबाकू नहीं…

विश्व तंबाकू निषेध दिवस पर विशेष आलेख हम अपने आसपास बहुत से लोगों को धूम्रपान तथा तंबाकू का सेवन करते अक्सर देखते हैं। यह लोगों के लिए इतना सस्ता नशा है कि लोग इसे दिन-रात अपनी जेब में लेकर घूमते रहते हैं और जब मन होता है उसी क्षण इसका सेवन कर लेते हैं; फिर […]

विश्व तंबाकू निषेध दिवस पर विशेष आलेख

हम अपने आसपास बहुत से लोगों को धूम्रपान तथा तंबाकू का सेवन करते अक्सर देखते हैं। यह लोगों के लिए इतना सस्ता नशा है कि लोग इसे दिन-रात अपनी जेब में लेकर घूमते रहते हैं और जब मन होता है उसी क्षण इसका सेवन कर लेते हैं; फिर चाहे वह सार्वजनिक जगह ही क्यों न हो। इसके सेवन से उनकी सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है, यह जानते हुए भी कुछ लोग इसका त्याग नहीं करते हैं। हम यह कभी नहीं कह सकते कि अनजाने में उनकी सेहत पर कितना बुरा असर पड़ रहा है, क्योंकि जब वह इसे खरीदते हैं तो उस पर स्पष्ट रूप से बड़े-बड़े अक्षरों में यह चेतावनी भी लिखी होती है कि तंबाकू या धूम्रपान से कैंसर हो सकता है। यह सेहत के लिए हानिकारक है।

ऐसा नहीं है कि तंबाकू से होने वाले दुष्प्रभावों से लोगों को जागरूक नहीं किया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के सदस्यों द्वारा वर्ष 1987 में विश्व तंबाकू निषेध दिवस की घोषणा की गई थी, ताकि इस महामारी से होने वाली मृत्यु तथा बीमारियों पर वैश्विक ध्यान आकर्षित किया जा सके। इसके लिए वर्ष 1988 में एक संकल्प पारित कर प्रत्येक वर्ष 31 मई को विश्व तंबाकू निषेध दिवस मनाने का आह्वान किया गया। प्रत्येक वर्ष विश्व तंबाकू निषेध दिवस पर किसी न किसी थीम को लेकर काम किया जाता है, ताकि आम लोगों को इससे होने वाले अन्य दुष्प्रभावों के प्रति सचेत किया जा सके। इस वर्ष इसकी थीम हमें भोजन चाहिए, तंबाकू नहीं (We Need Food Not Tobacco) रखी गयी है। इसका उद्देश्य तंबाकू उत्पादन करने वाले किसानों के लिए वैकल्पिक फसल उत्पादन और मार्केट के अवसरों के बारे में जागरूकता बढ़ाना, उन्हें टिकाऊ एवं पौष्टिक फसलें उगाने के लिए प्रोत्साहित करना है।

[bs-quote quote=”इंडिया कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के अनुसार भारत में 2020 में देश के कैंसर का 27 प्रतिशत हिस्सा तंबाकू से संबंधित कैंसर का था। 29 प्रतिशत वयस्क और 40 प्रतिशत युवा सार्वजनिक स्थानों पर भी इसका सेवन करते पाए गए हैं। हर साल भारत में 761318 टन तंबाकू की पैदावार होती है। यह चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

इससे जहां तंबाकू के उत्पादन को सीमित करना है, वहीं विकल्प के रूप में पौष्टिक आहार वाली फसलों को बढ़ावा भी देना शामिल है। ज्ञात हो कि दुनिया भर में सालाना करीब 35 लाख हेक्टेयर जमीन तंबाकू की खेती के लिए इस्तेमाल की जाती है। वर्ष 2022 विश्व तंबाकू दिवस की थीम पर्यावरण की रक्षा थी, क्योंकि तंबाकू से केवल मानव शरीर पर ही बुरा प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि इससे पर्यावरण पर भी कई दुष्प्रभाव देखने को मिलते हैं। जैसे तंबाकू का पर्यावरण पर पड़ने वाला दुष्प्रभाव ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन है। एक अनुमान के मुताबिक तंबाकू से एक वर्ष में लगभग 84 मेगा टन से अधिक ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन होता है, जो पर्यावरण के लिए ठीक नहीं है। वहीं दूसरी ओर, सिगरेट बनाने के लिए जल की बहुत अधिक मात्रा का उपयोग किया जाता है। फलस्वरूप यह अत्यधिक जल का दोहन करता है।

अगर बात आंकड़ों की जाए तो तंबाकू के सेवन से हर वर्ष लाखों लोगों की मौत हो जाती है। भारत में प्रत्येक वर्ष लगभग 35 मिलियन मौतें केवल तंबाकू के सेवन की वजह से होती हैं। हमारा देश दुनिया में तंबाकू का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता एवं उत्पादक देश भी है। अगर बात विश्वस्तर पर की जाए तो विश्व में प्रत्येक वर्ष लगभग 80 लाख लोगों की मृत्यु केवल तंबाकू के सेवन से होती हैं। विश्व भर में पुरुष ही नहीं, बल्कि धूम्रपान करने वाली महिलाओं की संख्या भी तेज़ी से बढ़ रही है। हालांकि महिलाओं को तंबाकू के दुष्प्रभाव से अधिक खतरों का सामना करना पड़ता है। इनमें प्रतिकूल गर्भावस्था के परिणाम, कैंसर और हृदय संबंधी जोखिम प्रमुख हैं। दृष्टि के एक शोध के अनुसार यदि निरंतर और प्रभावी पहलुओं को लागू नहीं किया जाता है, तो महिला धूम्रपान की व्यापकता वर्ष 2025 तक 20% तक बढ़ने की संभावना है।

इंडिया कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के अनुसार भारत में 2020 में देश के कैंसर का 27 प्रतिशत हिस्सा तंबाकू से संबंधित कैंसर का था। 29 प्रतिशत वयस्क और 40 प्रतिशत युवा सार्वजनिक स्थानों पर भी इसका सेवन करते पाए गए हैं। हर साल भारत में 761318 टन तंबाकू की पैदावार होती है। यह चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। वहीं, इसका सेवन करने के मामले में भी यह चीन के बाद दूसरे नंबर पर है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक चीन में लगभग 30 करोड़ लोग स्मोकिंग करते हैं। भारत भी इसमें पीछे नहीं है। यहां के लगभग 27.20 प्रतिशत लोग किसी ना किसी रूप में तंबाकू का सेवन करते हैं।

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कहाँ है ऐसा गाँव जहाँ न स्कूल है न पीने को पानी

धरती का स्वर्ग कहा जाने वाला केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर भी इस बुराई से अछूता नहीं है। कई नौजवान स्मोकिंग और तंबाकू की लत के कारण अपनी सेहत ख़राब कर चुके हैं। कठुआ जिला के रहने वाले श्याम मेहरा बताते हैं कि मैं एक सफल शेफ था। मैंने विदेशों में भी काम किया है। परंतु धीरे-धीरे मुझे धूम्रपान की लत लग गई। कई वर्ष हो गए मुझे धूम्रपान करते हुए, जिसकी वजह से अब मुझे सांस लेने में काफी दिक्कत आती है। मेरे फेफड़ों में काफी समस्या हो गई है। मैं जब भी डॉक्टर के पास चेकअप कराने जाता हूं तो वह मुझे धूम्रपान छोड़ने की सलाह देते हैं। हालांकि पहले की अपेक्षा मैंने अब धूम्रपान काफी हद तक कम कर दिया है, लेकिन मैं इसे पूरी तरह से छोड़ नहीं पा रहा हूं। मेरा स्वास्थ्य इतना खराब हो चुका है कि मैं 10 कदम भी ठीक से नहीं चल पाता हूं। अपने जीवन का उदाहरण देते हुए श्याम युवाओं से तंबाकू या किसी भी प्रकार के नशे से दूर रहने की सलाह देते हैं।

भारती डोगरा, पुंछ (जम्मू) में सामाजिक कार्यकर्ता हैं।

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