Monday, June 24, 2024
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लोकतन्त्र की जगह धर्म अपनाने वाला देश तानाशाही और पिछड़ेपन का शिकार हो जाता है

राजनीति और प्रशासन में किसी भी धर्म की उपस्थिति, वहाँ के पिछड़ेपन का कारण होती है। लोकतन्त्र माने जाने वाले देश भी धर्म आधारित होने पर उनका पिछड़ापन सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक धरातल पर साफ दिखाई देता है। दुनिया में 200 आज़ाद देशों में से अनेक देशों ने इस्लाम और रोमन कैथोलिक राजकीय धर्म है। जहां की सामाजिक और राजनैतिक स्थिति का आकलन कर समझा जा सकता है।

भारत अपनी संस्कृति की प्राचीनता पर गर्व करता रहा है। संस्कृति का प्रवाह इतिहास की धारा मोड़ने में उल्लेखनीय भूमिका निभाता है। संस्कृति की कोख से धर्म, राजनीति, सामाजिक परम्पराएं सब ही तो जन्म लेती रहती हैं। समाज के जीवनमरण के प्रश्न भी तो इन्ही में से उभरते हैं। संस्कृति को प्रत्येक युग की आवश्यकताओं की कसौटी पर कसकर परखने की आवश्यकता होती है। विगत शताब्दियों की सभ्यताओं ने अपने अस्तित्व और अस्मिता की रक्षा के लिये संस्कृति से उन्हीं विचारों और परम्पराओं को चुना है जो वर्तमान को शक्ति दे सकें। विश्व के अन्य देशों की तरह भारत भी सजगता के साथ इस स्वाभाविक प्रक्रिया को अपनाता रहा है।

जिन देशों ने संस्कृति के उपयोगी अंश के चुनाव में गलती की, वे प्रगति की दौड़ में सैकड़ों वर्ष पीछे हो गए। राष्ट्रहित को धर्म, परम्परा, रूढ़ि, जाति आदि के व्यामोह से ऊपर उठकर अपना मार्ग निश्चित करना ही राष्ट्र धर्म का निर्वाह करना है।

उपर्युक्त मानदण्ड से उन विश्व राष्ट्रों पर विचार करना उचित होगा जहां-धर्म-सम्मतराज्यों की स्थापना की गयी है। हमारे देश में भी उन राज्यों का उदाहरण देकर धर्म सम्मत राष्ट्र की कल्पना की जाती रही है और अब तो मांग के स्वर भी उभरने लगे हैं। इस बात पर राजनीतिक दलों के हित-अहित से ऊपर ऊठकर सोचने का आग्रह है।

वर्तमान में विश्व में लगभग 200 आजाद राष्ट्र हैं। उनमें से कुछ ऐसे हैं जिनका अपना राजकीय धर्म है। इनमें से भी कुछ ऐसे हैं जहां धर्म की राजकीय मान्यता नाममात्र की है। वहां के राजनीतिक व प्रशासनिक जीवन में धर्म का कोई खास महत्व नहीं है। सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि विश्व का एक भी ऐसा राष्ट्र नहीं जो प्रगति की प्रतियोगिता दौड़ में काफी आगे हो और जिसका अपना राजकीय मान्यता प्राप्त धर्म हो।

इसके विपरीत जिन राष्ट्रों ने अपने यहां धर्म को राजकीय मान्यता दे रखी है उनमें से एक दो को छोड़ दें तो बाकी प्रत्येक दृष्टि से पिछड़े हैं। उनका पिछड़ापन सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक धरातल पर है।

जिन देशों में धर्म को राजकीय मान्यता प्राप्त है या जिन देशों में अपने स्वयं के स्थापित धर्म हैं उनमें 24 ऐसे हैं जहां इस्लाम राज्यीय धर्म है। वे 24 राष्ट्र हैं-1. अल्जीरिया 2. बेहरेन 3. अफगानिस्तान 4 दी कमोरोम 5. इजिप्त 6 ईरान 7. इराक 8. जोर्डन 9. कुवैत 10. मलेशिया 11. मालदोव 12. मोरीटानिया 13. मारीशस 14. मोरक्को 15. ओमान 16. पाकिस्तान 17. कटार 18. सऊदी अरेबिया 19. सोमालिया 20. सूडान 21. ट्यूनीशिया 22. यूनाईटेड अरब अमीरात 23. नार्थ यमन 24. साउथ यमन।

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ग्यारह देश ऐसे हैं जहां रोमन कैथोलिक राजकीय धर्म है। वे देश हैं- 1. अर्जेंटीना 2. कोलंबिया 3. कास्टोरिका 4. डोमोनिकल रिपब्लिक 5. हेटी 6. माल्टा 7. पनामा 8. पेराग्वे 9. पेरू 10. लेश चेलीज 11. वेनेजुएला। चार देश ऐसे हैं जहां ईवेन्जेकोकललूव्यरन चर्च धर्म हैं। वे हैं-डेनमार्क, आईलैंड, नार्वे और स्वीडन । तीन देशों में बुद्ध धर्म राजकीय धर्म है। वे देश हैं भूटान, कंबोडिया तथा थाईलैंड, ग्रीस में आरथोडाक्स चर्च को राजकीय धर्म की मान्यता दी गयी है। इजरायल में यहूदी और इंडोनेशिया में पंचशील शासकीय मान्यता प्राप्त धर्म है। पंचशील एक राष्ट्रीय धर्मनिरपेक्ष विचारधारा है जिसमें एकता तथा सामाजिक न्याय पर काफी जोर दिया गया है। यह भी उल्लेखनीय है कि जिन देशों में रोमन कैथोलिक राजकीय धर्म है उनमें से अर्जेन्नाटीना, कोलंबिया, पनामा, सेचेलीज और वेनजुएला ऐसे देश हैं जहां धर्म को अर्ध शासकीय मान्यता प्राप्त है।

जिन देशों में धर्म को राजकीय मान्यता प्राप्त है उनमें से बहुसंख्यक दुनिया के सर्वाधिक पिछड़े देशों में हैं। यह पिछड़ापन भी बहुआयामी है। इन देशों की एक और विशेषता है। उनका शासन या तो अत्यधिक घटिया दर्जे के तानाशाह या राजशाही के हाथ में है। प्रजातांत्रिक व्यवस्था तो कम ही देशों में है। साक्षरता के मामले में इन देशों की स्थिति ज्यादा पिछड़ेपन की है।

इन देशों की आतंरिक स्थिति जानने के लिये हम उनमें से प्रायः सभी यहां की प्रति व्यक्ति आय, साक्षरता और राजनीतिक व्यवस्था का उल्लेख करेंगे ताकि उनके पिछड़ेपन का अंदाज हो सके। इनमें से अनेक ऐसे हैं जहां वर्षों से तानाशाही या आततायी किस्म की राजशाही है। इस तरह के राष्ट्रों में कुछ ऐसे भी हैं जिनमें तानाशाही ने अपनी रक्षा के लिये अपने देश में धर्म को मान्यता दी है। अल्जीरिया को ही लें। अल्जीरिया फ्रांसीसी साम्राज्य से 1962 में आजाद हुआ। इसके बाद वहां अनेक राजनीतिक परिवर्तन हुये और अंततः 1976 में अल्जीरिया को इस्लामिक गणतंत्र घोषित कर दिया गया।

बेहरीन – इस देश में इस्लाम को राजकीय मान्यता प्राप्त है। बेहरीन में मानव अधिकारों की सुरक्षा के संबंध में कोई जानकारी नहीं है।

ईरान – ईरान में इस्लाम को राजकीय मान्यता प्राप्त है। अयातुल्ला खौमेनी के नेतृत्व में हुई क्रांति के बाद ईरान पर कट्टरपंथियों का शासन स्थापित हो गया। ईरान में इस्लाम को वहां के संविधान से भी ज्यादा महत्व है।

जैसे ईरान का राष्ट्रपति, वहां की असेम्बली भी धार्मिक आदेशों को मानने के लिये बाध्य है। वैसे नाम को वहां 16 राजनीतिक दल हैं परन्तु इस्लामिक रिपब्लिक पार्टी का ही वहां बोलबाला है। इस पार्टी की स्थापना 1978 में इस्लामी क्रांति लाने के लिये हुई थी। प्राचीन देश होने के बावजूद ईरान में साक्षरता का प्रतिशत मात्र 37 है। मानव अधिकारों के मामले में ईरान की स्थिति निंदनीय है। महिलाओं की स्थिति गुलामों जैसी है।

इराक – इराक में खाड़ी युद्ध का प्रमुख पात्र था, इस्लाम राजकीय धर्म है। वैसे सिद्धांत में इराक में अनेक राजनीतिक दल हैं परन्तु व्यवहार में वहां अरब बाथ सोशलिस्ट पार्टी का ही शासन है। इस पार्टी के सर्वाधिक महत्वपूर्ण नेता सद्दाम हुसैन थे, जो वहां के राष्ट्राध्यक्ष भी रहे। इराक में सच पूछा जाये तो सद्दाम हुसैन की तानाशाही थी। यद्यपि वहां साक्षारता का प्रतिशत 43 है परन्तु वहां मानवाधिकार की सुरक्षा का प्रतिशत 19 ही है।

कोमोरोन – कोमोरोन एक छोटा देश है। यहां भी इस्लाम को राजकीय धर्म की मान्यता है। यहां भी एक पार्टी का तानाशाही राज है। इस देश की राजनीतिक व्यवस्था प्रायः फ्रांस के इशारे पर चलती रही है। 62 प्रतिशत निवासी कृषि पर निर्भर हैं। बहुसंख्यक लोग निम्न आय श्रेणी में हैं। साक्षरता का प्रतिशत 48 है। मानव अधिकारों के बारे में किसी भी किस्म की जानकारी उपलब्ध नहीं।

मिस्त्र – वैसे नासर के नेतृत्व में मिस्त्र ने विश्व की राजनीति में निर्णायक भूमिका अदा की थी। परन्तु दुख की बात है कि वहां भी बाद के नेताओं को अपनी गद्दी बचाने के लिये इस्लाम का सहारा लेना पड़ा। इस तथ्य के बावजूद कि राष्ट्र के रूप में मिस्त्र की स्थापना 1922 में हुई थी। वहां साक्षरता का प्रतिशत 38 है। वहां के निवासियों को निम्न आय वालों की श्रेणी में रखा जा सकता है। वहां की राजनीतिक प्रशासनिक व्यवस्था पूरी तरह से प्रजातांत्रिक नहीं है।

 जोर्डेन – जोर्डन भी उन देशों में है जहां इस्लाम का बोलबाला है। इस देश की आबादी लगभग 35 लाख है। इतना छोटा देश होने के बावजूद यहां साक्षरता का प्रतिशत मात्र 6 है। यहां की शासन व्यवस्था सामंती है।

यहां के राजा को संपूर्ण सार्वभौमिक अधिकार प्राप्त है। इस देश के निवासी प्रायः गरीब हैं। 65 प्रतिशत लोग कृषि पर निर्भर हैं। मानव अधिकारों की रक्षा से संबंधित रिकार्ड पूरी तरह निराशाजनक हैं। जार्डन में राजनीतिक दल प्रतिबंधित है।

कुवैत – कुवैत में भी इस्लाम को राजकीय धर्म की मान्यता है। कुवैत की आबादी लगभग 17 लाख है। दूसरे अरब देशों की तुलना में कुवैत में साक्षरता का प्रतिशत अच्छा है।

नवीनतम आंकड़ों के अनुसार कुवैत में साक्षरता का प्रतिशत 68 है। कुवैत के ऊपर एक परिवार का शासन है। प्रजातंत्र नाम की कोई चीज कुवैत में नहीं है। वहां राजनीतिक पार्टियां प्रतिबंधित हैं।

सोमालिया – सोमालिया एक अफ्रीकी देश है। इसकी आबादी लगभग 70 लाख है। सोमालिया में इस्लाम को राजकीय धर्म की मान्यता प्राप्त है। साक्षरता का प्रतिशत मात्र 6 है। 78 प्रतिशत निवासी कृषि पर निर्भर हैं। सोमालिया के निवासियों को निम्न आय श्रेणी में रखा जा सकता है। प्रशासनिक व्यवस्था तानाशाही है। एक ही राजनीतिक पार्टी को मान्यता प्राप्त है। मानव अधिकारों की रक्षा की व्यवस्था अत्यधिक निराशाजनक है।

सूडान – सूडान भी एक अफ्रीकी देश है जिसकी आबादी 2 करोड़ से ज्यादा है। आबादी का 75 प्रतिशत हिस्सा कृषि पर निर्भर है जिसे निम्न आय वालों की श्रेणी में रखा जा सकता है। साक्षरता का प्रतिशत 31 है। राजनीतिक प्रशासनिक व्यवस्था तानाशाही है। इस्लाम राजधर्म है। 1989 की सैनिक क्रांति के बाद सूडान में राजनीतिक पार्टियों का भविष्य अंधकारमय हो गया है। मानव अधिकार पूरी तरह असुरक्षित है।

ट्यूनीशिया – ट्यूनीशिया की आबादी 70 लाख है। यहां भी इस्लाम को राजकीय मान्यता प्राप्त है। संभवतः ट्यूनीशिया दुनिया के उन देशों में सर्वाधिक बिरला होगा जहां 1975 में हबीब बोरजोबा को जीवन पर्यन्त राष्ट्रपति बना दिया था। यद्यपि उनके उत्तराधिकारी ने संविधान में संशोधन कर इस प्रावधान को समाप्त कर दिया था इसके बावजूद अभी भी वहां प्रजातंत्र नाममात्र को है। 1989 के चुनाव में नेशनल असेम्बली की समस्त सीटों पर एक ही पार्टी का कब्जा हो गया था। उस समय आरोप लगाया गया था कि चुनाव में असीमित धांधलीबाजी की गयी थी।

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अमीरात – यूनाइटेड अरब अमीरात जिसे यू.ए.ई. भी कहते हैं का उदय एक संघीय राष्ट्र के रूप में 1991 में हुआ था। यह राष्ट्र छोटे क्षेत्रों के विलय से बना है। ई.एम.इ. का शासन तानाशाही है। यहां न तो राजनीतिक पार्टियां हैं व न ही चुनी हुई असेम्बली। इस्लाम को यहां भी राजधर्म का दर्जा हासिल है। वैसे साक्षरता का प्रतिशत 54 है।

उपर्युक्त धर्म सम्मत तानाशाही की तरह ही मोरटानिया, मोरक्को, ओमान, कटार, सऊदी अरेबिया में भी कमोबेश यही स्थिति है।

इन राष्ट्रों की स्थिति से यह स्पष्ट होता है कि जिन देशों ने धर्म को शासकीय मान्यता दी है उन्होंने पिछड़ेपन, तानाशाही व रूढ़िवादिता को आमंत्रित किया है। भारत की एकता, अखंडता, वैज्ञानिक विकास के लिये समन्वयमूलक संस्कृति ही उपयोगी है। आग्रह-दुराग्रह से हटकर, निष्पक्ष होकर, सम्पूर्ण राष्ट्र इस प्रश्न पर गहराई से विचार करें।

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