प्रयागराज। प्रयागराज के हंडिया थाने में तैनात दो सिपाही समेत तीन लोगों को शनिवार (22 जुलाई) को भदोही जिले के गोपीगंज से गिरफ़्तार किया गया है, जबकि मौके से एक आरोपी नीली बत्ती लगी सफ़ारी लेकर फरार हो गया। ये लोग गोपीगंज के छतमी थाने के पास स्थित एक ढाबे में अवैध वसूली करने पहुँचे थे। बता दें कि छतमी निवासी राकेश वाजपेयी सर्विस रोड पर ढाबा चलाते हैं। शुक्रवार की दोपहर करीब पौने तीन बजे के उनके ढाबे पर चार लोग आये। उन लोगों ने ढाबे का वीडियो बनाते हुए कहा कि वे लोग लखनऊ से जांच करने आये हैं। इसके बाद उन्होंने ढाबे में ही खाना खाया और वेटर व कारीगरों का नाम-पता नोट किया। फिर पांच लाख रुपये की मांग की। रुपये नहीं देने पर फर्ज़ी मामले में फँसाने और होटल बंद कराने की धमकी दी। जब ढाबा संचालक ने इतनी बड़ी रक़म देने में असमर्थता जाहिर की तो एक लाख रुपये देने को कहा। ढाबा संचालक ने पास में पड़े 45 हजार नगद उन्हें देते हुए शेष राशि दो दिन बाद देने की बात की। उस दिन तो वे पुलिसकर्मी 45 हजार रुपये लेकर चले गये, पर अगले ही दिन यानि शनिवार की दोपहर क़रीब तीन बजे चारों कार लेकर शेष रकम लेने फिर आ धमके। जब ढाबा संचालक ने पैसे देने में असमर्थता जाहिर की तो वे लोग उसका हाथ पकड़कर गाड़ी में घसीटने लगे। शोर मचाने पर आस-पास के अन्य ढाबों के भी कर्मचारी इकट्ठे हो गये। इतने में मामला बढ़ता देख पुलिस वालों का एक साथी गाड़ी लेकर भाग खड़ा हुआ। सूचना पाकर मौके पर पहुंची गोपीगंज पुलिस तीनों को गिरफ्तार करके थाने ले गयी। पूछताछ में पता चला कि आरोपी आलोक सिंह (निवासी आशापुर, वाराणसी) और राम परवेश यादव (निवासी अतरौली थाना नगर, बलिया) यूपी पुलिस विभाग में सिपाही हैं एवं प्रयागराज के हंडिया थाने में तैनात हैं। जबकि दो अन्य आरोपी राहुल श्रीवास्तव (निवासी देवरिया, थाना जमनिया, ग़ाज़ीपुर) और चौथा आरोपी गौरव श्रीवास्तव है। पुलिस अधीक्षक गोपीगंज अनिल कुमार ने बताया कि तीनों आरोपियों के ख़िलाफ़ रंगदारी वसूलने, मारपीट, गाली-गलौज व धमकी देने समेत अन्य आरोपों में केस दर्ज़ किया गया है।
आज 26 जुलाई को सोशल मीडिया पर कानपुर जिले के गुजैनी थानाक्षेत्र तात्या टोपे नहर चौकी में तैनात सिपाही ऋषि का अवैध वसूली का ऑडियो लीक हुआ है। सिपाही लोगों को चौकी इंचार्ज के घर पर बुलाता है। और पैसे न देने पर घर से उठवा लेने की धमकी देता है। कानपुर पुलिस कमिश्नरेट द्वारा इस संदर्भ में जानकारी दी गयी है कि प्रकरण की जांच सहायक पुलिस आयुक्त नौबस्ता द्वारा की जा रही है। जांच के उपरान्त नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।
यह ऐसा कोई पहला मामला नहीं है जब वर्दी पर वर्दीधारियों ने दाग लगाया हो, बल्कि अगर अखबारों की छानबीन की जाय तो ऐसी खबरें बड़ी तादाद में मिल जाएंगी। साल 2024 में होने वाले 18वें लोकसभा चुनाव में महज कुछ महीने ही शेष बचे हुए हैं। इधर उत्तर प्रदेश में यूपी पुलिस द्वारा अवैध वसूली और लूटपाट की घटनाओं के कई मामले पकड़े गये हैं। यानि इधर पुलिस द्वारा उगाही के मामलों में बेतहाशा वृद्धि हुयी है। इससे पहले साल 2020-21 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के समय भी यूपी पुलिस द्वारा जबरन धन उगाही के मामलों में वृद्धि दर्ज़ की गयी थी। आखिर चुनाव और यूपी पुलिस द्वारा धन उगाही के बीच क्या सम्बन्ध है?
[bs-quote quote=”बारिश के सीजन में बालू खनन पर रोक लगा दी जाती है। ऐसे में पुलिस प्रशासन की मदद से बालू खनन और उसकी ढुलाई का काम गैरक़ानूनी तरीके से किया जाता है। दरअसल, बालू खनन पर क़ानूनी रोक के बाद जहां इसकी शॉर्टेज होने लगती है, वहीं दाम भी बहुत तेजी से बढ़ता है। अवैध कामों में पुलिस की वसूली बी ज़्यादा होती है। जैसे कि होली दीवाली पर शराब की दुकानें बंद रखने का आदेश होता है। ऐसे में पुलिस शराब के ठेकेदारों से मोटी रक़म लेकर उन्हें दुकान पर आधा शटर गिराकर शराब बेचने देती है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
कैसे चलता है उगाही का कारोबार
एक युवा पुलिसकर्मी अनौपचारिक बातचीत में बताता है कि बहुत प्रेशर होता है। सब हैंडल नहीं कर पाते। उसने खुद अपनी ड्यूटी पुलिस कार्यालय में लगवा ली है। वह पुलिस वाला बताता है कि महीने का एक तयशुदा टारगेट तो होता ही है। त्योहार और अन्य मौकों पर टारगेट बढ़ा दिया जाता है। जैसे किसी अफ़सर या नेता के बेटे-बेटी की शादी है तो वसूली का टारगेट बढ़ जाएगा। सत्ताधारी नेता की रैली या कोई कार्यक्रम है तो वसूली का टारगेट बढ़ जाएगा। चुनाव के अवसर पर तो टारगेट बढ़ता ही है।
फिर वसूली की यह रकम अधिकारियों के मार्फ़त ऊपर तक जाती है। मान लीजिए किसी थाने को 50 लाख रुपये का टारगेट दिया गया है तो वसूली 1 करोड़ की होगी। टारगेट की रकम छोड़कर बाकी रकम सिपाही से लेकर अफ़सर तक में बँटेगी।
अब सवाल आता है कि किससे होती है वसूली? इलाके में गैरकानूनी काम करने वालों की तो महीने की एकमुश्त रकम तय होती ही है। टारगेट बढ़ने पर वह बढ़ा दी जाती है। जैसे बिल्डर हैं, प्रॉपर्टी डीलर हैं, शराब माफिया हैं, खनन माफिया हैं, रेत माफिया, सर्राफ़ा कारोबारी हैं। इनका काम कभी लीगल हो ही नहीं सकता।
इनके अलावा जब टारगेट बढ़ जाता है तो चालान काटने की दर बढ़ा दी जाती है। कोशिश यही रहती है कि ज्यादा से ज़्यादा लोग चालान कटवाने के बजाय पैसे देकर मामला सेटल कर लें। इसके अलावा वसूली के लिए रोड किनारे दुकान, ढाबा, रेहड़ी आदि लगाने वालों पर डंडा पटका जाता है। सिपाही जाएगा, फोटो खीचेंगा बस दुकानदार खुद-ब-खुद पैसे की पेशकश करके मामला सलटाने की कोशिश करेगा। इसके अलावा उस थाना क्षेत्र में होने वाले छोटे-मोटे विवादों में दोनों पक्ष के लोगों को उठाया जाता है और उन पर डंडा पटककर या रात भर थाने में रखकर दबाव बनाया जाता है। फिर दोनों पक्षों से पैसे लेकर डरा-धमकाकर छोड़ दिया जाता है। नोएडा सेक्टर 44 में तो वसूली का एक अनोखा ही मामला सामने आया था, जहां यूपी पुलिस एक गिरोह बनाकर राहगीरों को रेप के फर्ज़ी मामले में फँसाने की धमकी देकर उनसे 1 से 6 लाख रुपये तक की वसूली करती थी।
एक कार वाले से वसूली करते हुए पकड़े जाने पर तीन साथियों समेत भ्रष्टाचार के आरोप में जेल और मुक़दमें से गुज़र चुका परिवहन विभाग का एक सिपाही बताता है कि पकड़े जाने पर आप यह नहीं कह सकते कि विभाग में आपके ऊपर के अफ़सर ने वसूली करने के लिए कहा था। अन्यथा विभाग आपको और बुरी तरह फँसा सकता है। यहां तक कि आपकी हत्या भी हो सकती है। वह बताता है कि नेता का जन्मदिन मनाने तक के लिए परिवहन विभाग के चेक पोस्ट को पैसे वसूलने का टारगेट दिया जाता है। यहां ओवरलोडिंग, एक राज्य से दूसरे राज्य में इंट्री, कागज़ पूरे न होने आदि किसी न किसी कारण से वसूली की जाती है। मालवाहक, यात्री वाहन बस, स्कूल बस, निजी वाहन सबसे वसूली होती है। पैसे के अलावा चुनावी रैलियों में लोगों को पहुंचाने के लिए गाड़ियों का इंतजाम करने का जिम्मा भी क्षेत्र के परिवहन विभाग के सिपाहियों के जिम्मे ही होता है।
पुलिस वसूली की हाल की कुछ घटनाएं–
पुलिस द्वारा धन उगाही के कुछ चर्चित मामलों पर एक नज़र डाल लेते हैं। इससे वसूली के पैटर्न को समझने में सहूलियत होगी।
इस महीने की शुरुआत में यानि 2 जुलाई को चंदौली एसपी अंकुर अग्रवाल ने सैयदराजा थाने के एक सिपाही को निलंबित किया था। नौबतपुर बार्डर पर तैनात सिपाही राजेश सिंह और ट्रक मालिक के बीच बातचीत का एक आडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। सैयदराजा थाने में तैनात कुछ सिपाही पूरी रात ट्रकों को रोककर उनसे 10 से 20 हजार रुपये प्रति ट्रक की उगाही करते थे। ऑडियो वायरल होने के बाद एसपी ने संज्ञान लेते हुए तीन सिपाहियों को हटाते हुए सीओ सदर को जांच के आदेश दे दिया था। प्राथमिक जांच में क़सूरवार पाये जाने पर सिपाही राजेश सिंह को सस्पेंड कर दिया गया।
गौरतलब है दो राज्यों के बॉर्डर पर पड़ने वाला थानों को सबसे मलाईदार थाना माना जाता है। ऐसे थानों में तैनाती के लिए बड़ी बोली लगती है। साथ ही ऊंची पहुंच के बिना ऐसे थानों में पोस्टिंग नहीं मिलती। ऐसे थानों पर वसूली का टारगेट भी सामान्य थानों से कई गुना ज्यादा होता है।
यूपी-बिहार बार्डर पर पड़ने वाले सैयदपुर थाना वसूली में पुलिस के साथ बाकायदा एक सिंडिकेट काम करता है। पहले भी अवैध वसूली में थाने के पूरे थाने सहित सहित सैयदराजा, नौबतपुर और बिहार के कई बिचौलियों का नाम सामने आया था। जैसा कि पहले ही बता चुके हैं कि यूपी-बिहार बॉर्डर पर होने के नाते सैयदराजा थाना जिले का सबसे मलाईदार थाना माना जाता है। यहां थानेदार से लेकर सिपाहियों तक की पोस्टिंग में तगड़ी पैरवी चलती है। यहां कई ऐसे सिपाही हैं, जो सालों से जमे हुए हैं। कभी कुछ महीनों के लिए ट्रांसफर हुआ भी हो तो बाद में दोबारा यहां पोस्टिंग मिल गयी। इस थाने के कुछ पुलिसकर्मी सत्ता के जनप्रतिनिधियों के प्रतिनिधि के तौर पर काम करते हैं।
जैसा कि चलन है, बारिश के सीजन में बालू खनन पर रोक लगा दी जाती है। ऐसे में पुलिस प्रशासन की मदद से बालू खनन और उसकी ढुलाई का काम गैरक़ानूनी तरीके से किया जाता है। दरअसल, बालू खनन पर क़ानूनी रोक के बाद जहां इसकी शॉर्टेज होने लगती है, वहीं दाम भी बहुत तेजी से बढ़ता है। अवैध कामों में पुलिस की वसूली बी ज़्यादा होती है। जैसे कि होली दीवाली पर शराब की दुकानें बंद रखने का आदेश होता है। ऐसे में पुलिस शराब के ठेकेदारों से मोटी रक़म लेकर उन्हें दुकान पर आधा शटर गिराकर शराब बेचने देती है। जिससे उस दिन वही शराब सामान्य दिनों की तुलना में दोगुना-तिगुना दामों में बिकता है। पुलिस का यही नियम बारिश में बालू का खनन बंद होने पर भी काम करता है। बिहार से आने वाले बालू लदे ट्रक बिहार से होकर नौबतपुर के रास्ते सैयदराजा और चंदौली इलाके से होकर गुज़रते आते हैं। सैयदराजा थाने में केवल बालू लदे ट्रकों से एक रात में कई लाख रुपयों की वसूली होती है।
पिछले महीने 7 जून को औरैया जिला कोतवाली क्षेत्र में एक्सप्रेस-वे पर बांदा के सर्राफा कारोबारी मनीष सोनी (सागर) से 52 किलो चांदी लूटने का मामला भी चर्चा के केंद्र में रहा था। इंस्पेक्टर अजय पाल, दरोगा चिंतन कौशिक, हेड कांस्टेबल रामशंकर समेत चार सिपाही इस वारदात में शामिल रहे थे।
ऐसी ही घटना 6 अगस्त, 2022 को अंजाम दी गयी, जब प्रतापगढ़ जिले में तैनात तीन सिपाही राहुल सिंह, राकेश सिंह और धर्मधुरंधर गुप्ता ने मिलकर हाथरस के कारोबारी विक्रम सिंह से इलाहाबाद में 4 किलो चांदी और बुलेट लूट ली थी।पहले सिपाहियों ने कारोबारी को पकड़कर पैसे मांगे बाद में चांदी लूट लिया। हाथरस के सादाबाद कोतवाली थाना क्षेत्र स्थित घड़ी अंता गांव निवासी विक्रम सिंह आभूषण का कारोबार करते हैं। वह इलाहाबाद चौक के व्यापारी सुनील से चांदी की सिल्ली ले जाते हैं और जेवरात बनाकर बेचते हैं। यूपी पुलिस के सिपाहियों ने क्राइम ब्रांच का अफ़सर बनकर उनसे रुपये मांगे और रुपये न देने पर चांदी लूट लिया।
इसी तरह मई 2023 में सोशल मीडिया पर काल रिकार्ड का एक ऑडियो वायरल हुआ, जिसमें लखनऊ के याहियागंज चौकी इंचार्ज अखिलेश कुमार यादव एक बिल्डर से पैसा मांगते हुए सुने गये।
लखनऊ के बिल्डर चमन लाल दिवाकर को खुजौली स्थित उसकी साइट से 19 अप्रैल को अपहरण करके ट्रांसपोर्ट नगर चौकी ले जाया गया, जहां उसके साथ चौकी प्रभारी धीरेंद्र प्रताप सिंह और दो सिपाहियों ने बिल्डर को पीटा, धमकाया और दबाव बनाया। फिर उनकी बेटी को सूचना भेजकर नगदी और चेक मंगवाया गया। अपने पिता की जान बचाने के लिए बेटी कोमल घर से पांच लाख नगद और चेक लेकर आयी। उसे पहले शहीद पथ पर बुलाया गया। जब वह वहां आयी तो उससे कहा गया कि कानपुर रोड आये और फिर ट्रांसपोर्ट नगर चौकी बुलाया गया, जहां 22 लाख रुपये के चेक पर हस्ताक्षर करवाया गया और 5 लाख नगद लूट लिये गये।
गौरतलब है कि बिल्डर चमनलाल दिवाकर पर जालसाजी का आरोप था। उसकी बेटी कोमल दिवाकर ने पुलिस कमिश्नर एसबी शिरोडकर से मुलाकात करके शिक़ायत की, जिसके बाद एसीपी कृष्णानगर विनय द्विवेदी और एसीपी मोहनलालगंज राजकुमार सिंह की दो सदस्यीय जांच कमेटी गठित की गयी। अधिवक्ता अवनीश कुमार राय ने भी एक मामले में समझौते के नाम पर 50 हजार रुपये की घूस मांगने का आरोप दरोगा धीरेंद्र प्रताप सिंह पर लगाया था।
सिर्फ़ ये ही दो तीन केस नहीं हैं। हाल के दिनों में उत्तर प्रदेश में इस तरह की कई घटनायें घटित हो चुकी हैँ। दो महीने पहले राजधानी लखनऊ, सरोजनीनगर बदलीखेड़ा चौकी प्रभारी दिनेश कुमार और रवि कुमार ने नादरगंज निवासी ठेकेदार सुधीर मौर्या को 21 अप्रैल, 2023 की रात कॉल करके चौकी बुलाया और छह लाख रुपये की मांग की। ठेकेदार ने पैसे देने से मना किया तो रात भर थाने में रखकर उसकी पिटाई की गई और उसके यूपीआई से 15 हजार रुपये ट्रांसफर करवा लिये। पीड़ित ने जब सोशल मीडिया पर आवाज़ उठायी तब आरोपी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई हुयी।
इसी तरह फरवरी 2023 को कानपुर देहात के सिकंदरा निवासी हार्डवेयर कारोबारी सत्यम शर्मा रात को 5.3 लाख रुपये लेकर उन्नाव से अपने घर लौट रहे थे। रास्ते में एक ढाबे के पास कारोबारी को डीसीपी वेस्ट कार्यालय में तैनात दरोगा यतीश कुमार, हेड कांस्टेबल अब्दुल और सचेंडी थाने में तैनात दरोगा रोहित सिंह ने रोक लिया। उन्होंने पहले कारोबारी को धमकाया, मारपीट की और फिर उसके पास मौजूद 5.3 लाख रुपये लेकर फरार हो गये। पीड़ित व्यापारी ने जब कमिश्नर से शिक़ायत की तब मामले का खुलासा हुआ और तीनों आरोपी पुलिसकर्मियों को निलंबित किया गया।
बांदा एसपी को हर महीने छह लाख देने से मना करने पर व्यापारी की हत्या
उत्तर प्रदेश के महोबा जवाहर नगर कबरई निवासी खनन व्यापारी इंद्रकान्त त्रिपाठी की हत्या कर दी गयी। हत्या में महोबा के एसपी मणिलाल पाटीदार का नाम आया। एसपी फरार हो गये, तो उन पर एक लाख रुपये का इनाम रखा गया।
7 सितम्बर, 2020 को एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। वीडियो में खनन व्यापारी ने आरोप लगाया कि उनके क्रशर के पार्टनर बालकिशोर द्विवेदी और पुरुषोत्तम सोनी विस्फोटक के लाइसेंस और मैग्जीन होल्डर हैं, जिनका प्रशासनिक व क़ानूनी कार्य वह देखता है। इस सम्बन्ध में सूर्य केमिकल के सुरेश सोनी महोबा एसपी मणिलाल पाटीदार को प्रतिमाह 6 लाख रुपये देते चले आ रहे हैं। उसी संदर्भ में महोबा के एसपी मणिलाल पाटीदार ने जून 2020 में इंद्रकान्त त्रिपाठी को बुलाकर कहा कि तुमने अपना विस्फोटक का काम बंद क्यों किया हुआ है। जब उसने अपनी समस्याएं बतायी तो एसपी ने कहा कि काम चालू करो और मुझे हर महीने छह लाख रुपये लाकर दो। जब व्यापारी इंद्रकान्त ने पैसा देने में असमर्थता जाहिर की तो महोबा के एसपी पाटीदार उसके परिवार के ख़िलाफ़ फर्ज़ी मुक़दमें दर्ज़ करवाने और उसे जान से मारने की धमकी देने लगे।
आईपीएस अफ़सर की धमकी से तंग आकर व्यापारी इंद्रकान्त त्रिपाठी ने 7 सितंबर, 2020 को एक वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया, जिसमें आरोप लगाया कि एसपी पाटीदारी उससे लगातार छह लाख रुपये महीने की मांग कर रहे हैं और पैसे न देने पर जान से मारने की धमकी देते हुए कहा है कि वह उसकी हत्या करवा देंगे और हत्या को खुदकुशी में बदल देंगे।
इस मामले को लेकर दो दिन बाद यानि 9 सितम्बर को व्यापारी इंद्रकान्त त्रिपाठी एक प्रेस कान्फ्रेंस भी करने वाले थे, लेकिन उससे एक दिन पहले और वीडियो वायरल होने के अगले ही दिन यानि 8 सितम्बर को उनकी कार का एक्सीडेंट हो गया। अस्पताल ले जाने पर पता चला कि व्यापारी के गले में एक गोली लगी है। अस्पताल में इलाज के दौरान व्यापारी की मौत हो गई। यूपी पुलिस पहले इसे हत्या का मामला बताकर केस दर्ज़ करती है, फिर अपनी रिपोर्ट बदलकर इसे खुदकुशी का मामला बना देती है। इसी बीच आरोपी आईपीएस मणिलाल पाटीदार फरार हो जाते हैं। पुलिस उन पर पहले 25 हजार फिर 1 लाख का इनाम घोषित करती है।
रेप केस में फंसाकर उगाही करने वाला पुलिस गिरोह
9 जून, 2019 को नोएडा के सेक्टर 44 स्थित पुलिस चौकी इंचार्ज सुनील शर्मा, एक सब-इंसपेक्टर, तीन सिपाही, पीसीआर के तीन ड्राइवरों को गिरफ्तार किया गया। इस केस में दो महिलाओं और पुलिसकर्मियों समेत कुल 15 लोगों को गिरफ्तार किया गया। ये सभी लोग एक गिरोह बनाकर वसूली का धंधा चलाते थे। गिरोह में पूरी पुलिस चौकी के अलावा कुछ बाहरी लोग और महिलाओं को शामिल किया गया था। पुलिस की वसूली गैंग में शामिल महिला महामाया फ्लाईओवर के आस-पास राहगीरों से लिफ्ट मांगती थी। लिफ्ट लेने के बाद गाड़ी उस जगह रुकवाती थी, जहाँ पहले से ही शिकार की ताक में पुलिस की पीसीआर वैन खड़ी रहती थी। लिफ्ट देने वाले की गाड़ी से उतरते ही महिला भागते हुए पुलिस पीसीआर के पास जाती और पीसीआर में मौजूद पुलिसकर्मियों से कहती कि लिफ्ट देनेवाले ने उसके छेड़खानी और रेप करने की कोशिश की। महिला की शिक़ायत पर पुलिसवाले योजना के मुताबिक उस महिला और आरोपित लिफ्ट देने वाले व्यक्ति को लेकर अपनी चौकी में जाते थे। वहां एक तयशुदा स्क्रिप्ट के अनुसार, एक कथित सम्मानित समाजसेवी व्यक्ति देशराज अवाना और उक्त महिला का वकील आते और रेप का केस दर्ज़ करने का ज़ोर देते। फिर देशराज अवाना और चौकी इंचार्ज सुनील शर्मा मध्यस्थता के नाम पर उक्त महिला को 12 लाख रुपये देने को कहते और मामला एक से छह लाख रुपये में तय हो जाता। वसूली के बाद सबका तय हिस्सा सबको मिल जाता। 40% चौकी इंचार्ज लेता। 30% मास्टरमाइंड अंकित और उसकी पत्नी का होता। इस घटना के पहले अंकित ऐसे ही मामलों में दो बार जेल की सजा काट चुका था, जबकि 10% खुद को सामाजिक कार्यकर्ता बताकर समझौता कराने वाला देशराज अवाना लेता और बाक़ी का 20% गिरोह के अन्य लोग लेते।
सट्टा और फिरौती की रक़म लूटने वाली पुलिस
साल 2021 में राजधानी के आठ पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ डकैती का मुक़दमा खुद पुलिसकर्मियों द्वारा दर्ज़ करवाया गया था। इन पुलिसकर्मियों ने लखनऊ से कानपुर जाकर आईपीएल में सट्टा लगाने के आरोप में एक युवक को पकड़ा और उससे 40 लाख रुपये लूट लिए। पुलिस ने जब पीड़ित की शिक़ायत नहीं सुनी, तब पीड़ित युवक को कोर्ट की शरण में जाना पड़ा।
कानपुर बर्रा निवासी लैब टेक्नीशियन संजीत यादव (28) का 26 जून, 2020 को अपहरण करके 30 लाख की फिरौती मांगी गयी। परिजनों ने फिरौती की रक़म 30 लाख रुपये पुलिस वालों को दी। पुलिस ने बाद में बताया कि रक़म लेकर बदमाश फरार हो गये और संजीत का कुछ पता नहीं चला। बाद में पता चला कि संजीत की हत्या पहले ही कर दी गयी थी। पुलिस वालों पर फिरौती की रक़म दबाने का आरोप लगा। यूपी पुलिस की संलिप्तता का मामला सामने आने के बाद यह केस सीबीआई को सौंप दिया गया था।
अपहरण करके फिरौती वसूलने वाली पुलिस
एक साल पहले लखनऊ पुलिस वालों ने एक प्रॉपर्टी डीलर का अपहरण करके उससे फिरौती वसूल की थी। तब क्राइम ब्रांच के दो सिपाहियों ने प्रॉपर्टी डीलर का अपहरण करके 5 लाख रुपये देने का दबाव बनाते हुए उससे कहा था कि फिरौती की रकम न देने पर वे लोग उसका एनकाउंटर कर देंगे। प्रॉपर्टी डीलर के जेब में पड़ा 19 हज़ार रुपये भी उन्होंने छीन लिया था। प्रॉपर्टी डीलर अतुल सिंह आईआईएम रोड पर रहते हैं। 12 अप्रैल, 2022 को वह पत्नी के साथ यूपीएससी के फॉर्म को अपलोड करने के लिए भिठौली तिराहे कार से आये थे। वहां पर एक कथित पत्रकार शिवांशू खड़ा था। उनके वहां से निकलने के कुछ ही देर बाद एक कार ने ओवरटेक करके उनकी कार रोक दी। कार से निकलकर एक युवक ने खुद को एसटीएफ बताते हुए प्रॉपर्टी डीलर की कनपटी पर पिस्टल तान दी। व्यापारी डर कर उनकी गाड़ी में जाकर बैठ गये। खुद को एसटीएफ बताने वाले लड़के ने उनसे कहा कि तुमने साइन सिटी में कई लोगों का पैसा लगवाया है अगर 5 लाख नहीं दोगे तो एनकाउंटर कर दूंगा। पैसा न होने पर जेब में पड़ा 19 हजार छीन लिया और बाक़ी पैसे जल्द देने को कहा। फिर उन्होंने उस युवक से साथ जाकर एक जनसेवा केंद्र से 26 हजार रुपये निकालकर दिये। यह पूरी डील मड़ियांव थाना परिसर में हुई।
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संकट में सर्व सेवा संघ, क्या गांधी के लोग बचा पायेंगे गांधी की जमीन
13 अप्रैल को आकाश सिंह नामक युवक (अगवा करने वालों में से एक) ने फोन करके अकाउंट में पैसा भेजने को कहा। लेकिन वह अकाउंट जगदीश सिंह लोधी के नाम पर था। 20 हजार रुपये उस अकाउंट में भेजकर डीलर ने उन्हें मिलने के लिए बुलाया। 14 अप्रैल को वह गोमतीनगर में मिलने आया और उसने बताया कि थाने के दो सिपाही और पत्रकार शिवांशु मिले हुए हैं। 5 लाख नहीं देने पर पूरे परिवार को जेल भेजवाने की धमकी दी। प्रॉपर्टी डीलर को मामला समझ में आया तो उसने तहरीर देकर सिपाही अनिल सिंह, सिपाही सुनील सिंह, कथित पत्रकार शिवांशु मिश्र, आकाश उर्फ जगदीश लोधी के ख़िलाफ़ तहरीर दर्ज़ करवायी, तब जाकर आरोपी सिपाही पकड़े गये।
ताबड़तोड़ एनकाउंटर, भय और वसूली की क्रोनोलॉजी
उपरोक्त तमाम मामलों से एक बात स्पष्ट है कि पुलिस ने हर मामले में फ़र्जी मुक़दमे में फंसाने, जेल भेजने, एनकाउंटर करने की धमकी देकर उगाही की। दरअसल, साल 2017 में योगी आदित्यनाथ के सत्ता में आने के बाद यूपी पुलिस ने ताबड़तोड़ एनकाउंटर किये। एक आंकड़े के मुताबिक, योगीराज में अब तक 10933 एनकाउंटर हुए हैं, जिनमें 183 लोगों की मौत हुयी है। पुलिस एनकाउंटर में मरने वालों में 57 मुस्लिम और 126 हिन्दू थे। जाहिर तौर पर एनकाउंटर में मारे गये मुसलमानों की संख्या देश और प्रदेश में उनकी जनसंख्या के अनुपात से कहीं ज़्यादा है, जो कि योगी सरकार और यूपी पुलिस की मुस्लिम समुदाय के प्रति पूर्वाग्रह एवं नफ़रत को दर्शाती है। इन एनकाउंटरों के दौरान 13 पुलिसकर्मियों की भी मौत हुयी है।
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‘नर्क’ में रहते हैं वाराणसी के बघवानालावासी, अपना मकान भी नहीं बेच सकते
इनमें कथित अपराधी ही नहीं, नोएडा का जिम ट्रेनर जितेंद्र यादव, लखनऊ का विवेक तिवारी और कानपुर का व्यापारी मनीष गुप्ता जैसे निरपराध और आम इन्सान भी यूपी पुलिस की बर्बरता और सनक भरे एकनाउंटर का शिकार हुए। वहीं साल 2017 से 2022 तक उत्तर प्रदेश में 41 लोगों की पुलिस कस्टडी में हत्या हो चुकी है। जबकि शायद इनमें से अधिकांश का कोर्ट में आरोप भी साबित न हो पाता। इन ताबड़तोड़ फर्ज़ी एनकाउंटरों से पहले सूबे के आम इंसानों में पुलिस का ख़ौफ़ पैदा गया फिर इस भय का मनोवैज्ञानिक इस्तेमाल धनउगाही में किया गया। बिल्कुल उसी तरह जिस तरह नरेंद्र मोदी के सत्ता में आते ही कथित गौरक्षकों ने ताबड़तोड़ मॉब लिचिंग करके जानवरों और मांस का व्यापार करने वालों में भय पैदा किया और फिर इस भय का मनोवैज्ञानिक इस्तेमाल इनसे धन उगाही करने में किया। कहने का मतलब यह कि पुलिस को वर्दीधारी संगठित अपराधी में तब्दील कर दिया गया है। जो सरकार के लिए धन उगाहने से लेकर प्रतिपक्षी जाति और समुदाय के लोगों को ठिकाने लगाने तक के अपराध को अंजाम दे रही है।
सुशील मानव गाँव के लोग डॉट कॉम के भदोही स्थित संवाददाता हैं।