आज से यानी 15 जुलाई 2021 से हम रोज सुबह और शाम दो बार भारत के सभी राज्यों के जनजीवन, राजनीति, समाज, घटनाओं और संस्कृति से जुड़ी खबरें प्रस्तुत करेंगे । प्रस्तुत है आज इस शृंखला की पहली कड़ी –
एक
बिहार में दस दिन पहले शुरू हुई एक हफ्ते की स्कूल शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया में चुने गए 17 हज़ार शिक्षकों की नियुक्ति की गई थी अब वह भ्रष्टाचार का शिकार होकर खटाई में पड़ गई है । बताया जाता है कि बिहार में प्राथमिक स्कूलों के कुल 94000 शिक्षकों को नियुक्त करने के लिए काउंसिलिंग की चल रही है। इस समय बिहार में 4800 नियोजन इकाइयों में भर्ती प्रक्रिया चल रही है लेकिन प्रदेश के कई जिलों से इसमें धांधली की शिकायतें मिलीं जिस पर कार्रवाई करते हुये प्रदेश के शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी ने 400 नियोजन इकाइयों द्वारा नियुक्त किए गए शिक्षकों की नियुक्ति रोक दी। कहा यह भी जा रहा है कि 10229 पदों पर योग्य अभ्यर्थी न होने के कारण नियुक्तियाँ नहीं की गई हैं। लेकिन आंकड़ों के अनुसार बिहार में टीईटी पास करने वालों की संख्या कई लाख है।
[bs-quote quote=”दुर्गाकुंड स्थित हनुमान प्रसाद पोद्दार अंध विद्यालय की तकरीबन सौ करोड़ की संपत्ति का व्यावसायिक उपयोग कर मुनाफे की लालसा के चलते ही पूर्वांचल के पहले अंध विद्यालय को हमेशा के लिए बंद कर दिया गया है। जिससे हजारों छात्रों की जिंदगी में अंधेरे में भटक रही है। आपदा में अवसर का फायदा उठाकर 18 उद्योगपति, जो विद्यालय के ट्रस्टी बताएं जाते है ने, प्रस्ताव पारित कर पिछले 20जून 2020 को कोरोनाकाल में ही विद्यालय को हमेशा के लिए बंद कर दिया।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
दो
बिहार से ही एक खबर के मुताबिक बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव NEET परीक्षा में ओबीसी आरक्षण खत्म किये जाने का लगातार विरोध कर रहे हैं। विपक्ष के नेता रूप में वे अपने राजनीतिक सरोकारों के लिए सजग हैं और उसे लेकर दिन रात काम कर रहे हैं। लोगों का मानना है कि इस मामले में विपक्ष की सीमा है क्योंकि अंतिम फैसला सरकार को करना है। लेकिन इस मामले में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की चुप्पी बहुत खतरनाक है। उनकी राजनीति का एक बड़ा आधार अति पिछड़ा वोटरों का है। जाहिर है मेडिकल की परीक्षा में उस वर्ग का भी बड़ा नुकसान होने जा रहा है। नीतीश जी भाजपा के साथ केंद्र और राज्य दोनों जगह सरकार में सहयोगी हैं। वे चाहें तो एक केंद्र सरकार पर दबाव बनाकर NEET परीक्षा में ओबीसी आरक्षण के खात्मे को रोकने का प्रयास कर सकते हैं। अब यह उनके जमीर के ऊपर है कि वे इस मुद्दे पर पिछड़ों के साथ कहाँ खड़े हैं।
तीन
उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले से मिली खबरों के मुताबिक जिले में भाजपा नेताओं की शह पर प्रशासन द्वारा प्रतापगढ़ के समाजवादी पार्टी से जुड़े लोगों पर मुकदमा कर दिया गया है। इसका नतीजा यह हुआ कि विगत दस जुलाई को देवसरा ब्लॉक पर हुई घटना पर कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं। सूत्रों के मुताबिक एक निर्दोष वीरेंद्र यादव और उनके परिवार पर देवसरा कोतवाल द्वारा कहर बरसाया गया। महिलाओं और छोटे-छोटे बच्चे – बच्चियों को थाने पर ले जाकर मारा पिटा गया। रात भर थाने पर रखकर वीरेंद्र और उनके पिता को जेल भेज दिया गया। इतने से भी मन नहीं भरा तो घर का सारा समान तोड़ दिया गया।
चार
यूँ तो कोई कहीं से चुनाव लड़ सकता है लेकिन उत्तरप्रदेश चुनाव के पहले से ओवैसी की पार्टी AIMIM की घोषणाओं और दावों से लोगों को चुनावी दाल काली नज़र आने लगी है । पार्टी के मुताबिक उत्तर प्रदेश में 100 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। माना यह जा रहा है कि ओवैसी को पता है कि उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी एक सीट भी नहीं जीत सकती, लेकिन ओवैसी भाजपा की बी टीम के रूप में प्रदेश में सांप्रदायिक तनाव पैदा करने के एजेंडे पर काम शुरू कर दिया है । जनता का बड़ा हिस्सा यह समझने लगा है कि भाजपा को हर चुनाव में ओवैसी की जरूरत पड़ती है जिससे वह आसानी से अपनी नैया पार लगा ले । लोग यह भी कह रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की सैकड़ों समस्याएँ हैं लेकिन ओवैसी ने किसी एक पर भी कभी संघर्ष नहीं किया। अभी धर्मांतरण का मुद्दा प्रोजेक्ट किया जा रहा है और ओवैसी नदारद हैं । सवाल यह उठता है कि वे मुसलमानों की बेरोजगारी और उत्पीड़न जैसी समस्याओं को लेकर क्यों नहीं सक्रिय होते ?
पाँच
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रचारित तौर पर बनारस को हजारों करोड़ की परियोजनाओं की सौगात दी है लेकिन इसी शहर में दृष्टिहीनों से इल्म की रौशनी छीन ली गई है । मुनाफे की लालसा ने 1972 से चल रहे अंध विद्यालय को बंद कर दिया गया है।
सूत्रों की मानें तो दुर्गाकुंड स्थित हनुमान प्रसाद पोद्दार अंध विद्यालय की तकरीबन सौ करोड़ की संपत्ति का व्यावसायिक उपयोग कर मुनाफे की लालसा के चलते ही पूर्वांचल के पहले अंध विद्यालय को हमेशा के लिए बंद कर दिया गया है। जिससे हजारों छात्रों की जिंदगी में अंधेरे में भटक रही है। आपदा में अवसर का फायदा उठाकर 18 उद्योगपति, जो विद्यालय के ट्रस्टी बताएं जाते है ने, प्रस्ताव पारित कर पिछले 20 जून 2020 को कोरोनाकाल में ही विद्यालय को हमेशा के लिए बंद कर दिया। ट्रस्टियों का आरोप था कि उन्हें किसी भी तरह की सरकारी सहायता नहीं मिल रही है। विद्यालय बंद करने की खबर को दबाने की भरसक कोशिश की गई लेकिन सच जब सामने आया तो लोगो ने प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, शिक्षा सचिव और सामाजिक न्याय मंत्रालय तक छात्रों की व्यथा-कथा को लिखकर भेजा। 26 मार्च 1972 को इस विद्यालय की स्थापना समाजसेवी हनुमान प्रसाद पोद्दार ने दृष्टिहीनों की जिदंगी में ज्ञान की रोशनी लाने के लिए किया था ताकि वे खुद को स्वावलंबी बना सकें और समाज के विकास में योगदान दे सके। उत्तर प्रदेश में चार अंध विद्यालयों में से यह एक है। सामाजिक न्याय मंत्रालय के दीन दयाल दिव्यांग पुनर्वास योजना के तहत इस विद्यालय को संचालित करने के लिए आर्थिक सहायता दी जाती थी जिसमें पहले कटौती की गई फिर सहायता मिलनी ही बंद हो गई । इस मौके का फायदा उठाकर ट्रस्टियों ने भी खेल खेला और विद्यालय पर ताला लगा दिया। हाल ही में दृष्टिहीन छात्रों ने विद्यालय को खोले जाने को लेकर सड़क पर प्रदर्शन भी किया था। विकास के हवा-हवाई सफर में झूमते इस शहर में अंध विद्यालय का बंद होना कोई मुद्दा नहीं है।
कोई अचरज नहीं कि आने वाले कल शहर के बीच स्थित इस अंध विद्यालय को खाक में मिलाकर गगनचुंबी व्यावसायिक इमारत खड़ी कर दी जाए।
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छः
पटना में भाकपा-माले की एक उच्चस्तरीय टीम ने बिहार के कई जिलों का दौरा करके लोगों के बीच कोरोना पीड़ितों का सर्वेक्षण किया और यह बात सामने आई कि कोरोना पीड़ितों की संख्या और आंकड़ों में भारी हेर-फेर किया गया है जिससे सरकार मुंह दिखाने के काबिल बनी रहे । टीम में कविता कृष्णन, संतोष सहर और अरुण कुमार शामिल थे। इन लोगों ने भोजपुर ,विक्रमगंज, रोहतास,अरवल, पटना,सिवान आदि जिलों के दर्जनों गाँव की यात्रा की और लोगों से मिलकर डाटा इकट्ठा किया। टीम को यह मालूम हुआ कि कोरोना मृतकों के सरकारी आंकड़े वास्तविक नहीं हैं। मृतकों की तादाद 20 से 25 गुना ज्यादा है।
अधिकांश मृतकों में बीमारी की शुरूआत सर्दी, खांसी और बुखार से हुई, फिर आगे चलकर उन्हें सांस लेने में भारी तकलीफ होने लगी और दो-तीन दिनों के भीतर ही उनकी मृत्यु हो गई। बहुत कम लोग अस्पताल पहुंच पाए, अस्पताल जाने के क्रम में या अस्पताल पहुंचते ही मरने वालों की तादाद भी कम नहीं थी। अधिकांश लोगों का इलाज देहाती डॉक्टरों ने किया।
पंचायतों में मौजूद स्वास्थ्य उपकेंद्रों पर आम तौर पर इलाज की कोई व्यवस्था नहीं रहती है और प्रखंड स्तर पर मौजूद प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र व अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र पर भी ऑक्सीजन नहीं था, एंबुलेंस की भी व्यवस्था जर्जर थी। सरकारी अस्पतालों ने बैड व ऑक्सीजन की कमी बताकर मरीजों को भर्ती नहीं किया। लोगों ने प्राइवेट अस्पतालों की ही शरण ली।
अधिकांश कोरोना लक्षण वाले लोगों की कोरोना जांच नहीं हुई। अस्पतालों में भी एंटीजन, आरटीपीसीआर और अन्य जांच की कोई सुविधा नहीं मिली। साथ ही, कोरोना लक्षण होने के बावजूद और अंततः मृत हो जाने पर भी बहुत सारे लोगों की रिपोर्ट निगेटिव ही आई।
अस्पतालों में ज्यादातर कोरोना मरीजों को टाइफाइड का शिकार बताया गया और उसी का इलाज किया गया। अस्पताल से प्राप्त कागजातों में डायगनोसिस या मृत्यु की वजह का कोई जिक्र नहीं किया गया। सरकार द्वारा घोषित मुआवजे के लिए आवेदन करने पर इक्का-दुक्का लोगों को ही यह मुआवजा अब तक मिल सका है।
अधिकांश मृतक ही अपने घर के एक मात्र कमाने वाले थे। इसके अलावा कुछ उम्रदराज लोग, जिनकी मृत्यु हुई, वे पेंशनर थे और पूरा परिवार का खर्च उन्हीं के पेंशन से चलता था। इलाज में खर्च और कर्ज के बोझ को देखते हुए इन सबको तत्काल मुआवजा मिलना चाहिए। मृतकों के परिजनों में खासकर जिन महिलाओं के पति और जिन पुरुषों की पत्नियां अब नहीं रहीं, वे भारी हताशा में जी रहे हैं।
टीम ने यह भी पाया कि कोरोना महामारी को आए हुए लगभग एक साल से अधिक का अर्सा गुजर जाने के बावजूद भी लोगों के बीच कई तरह के भ्रम मौजूद हैं। मास्क लगाने, हाथ धोने और बचाव के लिए सही दवा की जानकारी निचले स्तर तक बिल्कुल नहीं पहुंची है। वैक्सीनेशन का भय भी मौजूद है। इसकी बड़ी वजह मोदी-नीतीश सरकार पर लोगों का भरोसा नहीं होना है। हालांकि यह भी पाया गया कि यह भय लगातार कम होता गया है और लोग कोरोना वैक्सीन लेना चाहते हैं। लेकिन पर्याप्त मात्रा व समय पर वैक्सीन उपलब्ध करवाने में सरकार विफल रही है।
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सात
एक तरफ जहां भीड़-भड़कके को कम करने के लिए राज्य सरकारें कोरोना कर्फ़्यू लगा रही हैं और सरकारी विज्ञापनों में दो गज दूरी मास्क है जरूरी का आलाप लिया जा रहा है तो दूसरी ओर काँवड़ यात्रा को लेकर सरकार का उत्साह उसकी नीयत पर सवाल खड़ा करता है। उच्चतम न्यायालय ने काँवड़ यात्रा की अनुमति देने के सरकारी निर्णयों पर अंकुश लगाने का प्रयास शुरू कर दिए है।
योगी सरकार ने कुछ पाबंदियों के साथ कांवड़ यात्रा की अनुमति दी है। लेकिन कोविड-19 के बीच उत्तर प्रदेश सरकार के कांवड़ यात्रा की अनुमति देने के चलते उच्चतम न्यायालय ने इस मामले का स्वत: संज्ञान लिया। जस्टिस आरएफ नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र सरकार और यूपी सरकार को नोटिस जारी किया है। शुक्रवार को मामले की सुनवाई होगी। पीठ जस्टिस नरीमन ने एसजी तुषार मेहता से कहा कि हमने आज इंडियन एक्सप्रेस में कुछ परेशान करने वाला पढ़ा कि यूपी राज्य ने कांवड़ यात्रा आयोजित करने का फैसला किया है, जबकि उत्तराखंड राज्य ने अपने अनुभव के आधार पर फैसला किया कि कोई यात्रा आयोजित नहीं की जाएगी। हम जानना चाहते हैं कि संबंधित सरकारों का क्या स्टैंड है। भारत के नागरिक पूरी तरह से हैरान हैं, वे नहीं जानते कि क्या हो रहा है और जब प्रधानमंत्री से देश में कोविड-19 की तीसरी लहर के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि हम थोड़ा सा भी समझौता नहीं कर सकते।इस मुद्दे पर यूपी और उत्तराखंड राज्य और भारत संघ को नोटिस जारी किया है। गौरतलब है कि उत्तराखंड सरकार ने मंगलवार को कहा कि उसने कांवड़ यात्रा रद्द कर दी है।
यूपी में कांवड़ यात्रा 26 जुलाई से 6 अगस्त तक आयोजित करने का प्रस्ताव है। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछली बार साल 2019 में यात्रा का आयोजन किया गया था। लगभग 3.5 करोड़ भक्त हरिद्वार गए थे, जबकि 2-3 करोड़ से अधिक लोग पश्चिमी यूपी के तीर्थ स्थलों पर गए थे।
[bs-quote quote=”पिछले दिनों पंचायत चुनाव में हुई कोरोना प्रोटोकोल की अनदेखी के चलते उ.प्र.में हजारो राज्य कर्मचारियों, शिक्षकों, यहाँ तक नवनिर्वाचित ग्राम प्रधान व जिला पंचायत सदस्य तक ने कोरोना से जान गंवाया। अतःजनहित और बदहाल चिकित्सकीय सुविधाओ को कोरोना के तीसरी लहर को देखते हुए प्रधानमंत्री जी के भीड़-भाङ वाले कार्यक्रम जनसभाओ को अविलंब रद्द किया जाय।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
आठ
रिहाई मंच के नेताओं ने आज लखनऊ से आतंकवाद के मामले में गिरफ्तार किए गए शकील के परिजनों से मुलाकात की। इस मौके पर शकील के बड़े भाई इलियास ने कहा कि मेरा भाई निर्दोष है उसे फर्जी तरीक़े से फंसाया जा रहा है। वह सालों से रिक्शा चलाकर अपने परिवार का किसी तरह भरण-पोषण कर रहा था। जब घर से कहीं गया नहीं तो कैसे और कब आतंकवादी हो गया। इलियास ने बताया की रोज की तरह उस दिन भी वह सुबह रिक्शा लेकर चला गया था। सुबह 9 बजे के करीब किसी साथी रिक्शा वाले ने शकील की पत्नी के मोबाइल पर फ़ोन करके बताया कि शकील को पुलिस ने पकड़ लिया है। शकील की पत्नी ने मुझे फोन करके बताया। जब मैं घर आकर देखा तो पूरी गली को पुलिस ने घेर रखा था। इलियास ने बताया की जब पुलिस वालों से हमने पूछा तो उन्होंने हमें डांट दिया। फिर भी हमने कहा कि साहब ऐसा कुछ नहीं है, आप हमारे घर की तलाशी ले लो। उसके बाद हम घर में ले जाकर खुद एक-एक समान चेक कराए, जिसके बाद एक पुलिस वाले ने खुद कहा कि हमें मालूम है कुछ नहीं है।
आगे इलियास ने बताया कि बाद में जब हम पता करने के लिए वज़ीरगंज थाने गए कि मेरे भाई को कहां ले गये तो एक पुलिस वाले ने कहा मास्क हटाओ। जब हमने मास्क हटाया तो उसने कहा भाग यहां से, तुम ही जैसे लोग आतंकवादी होते हो।
इलियास ने रिहाई मंच की टीम को रिक्शा की हालत दिखाते हुये सवाल किया कि आप लोग ही बताएं कि अगर मेरा भाई आतंकवादी होता तो उसे घर चलाने के लिये सुबह से शाम तक यह टूटा-फूटा रिक्शा क्यों चलाना पड़ता?
रिहाई मंच अध्यक्ष एडवोकेट मुहम्मद शुऐब ने कहा कि चुनाव के नजदीक आते ही इस तरह की गिरफ्तारियां पहले भी होती रही हैं, जिससे बहुसंख्यक समाज को दहशत जदा करके उनके वोट हासिल किए जा सकें। इसकी उच्च स्तरीय जाँच हो जिससे हकीकत सामने आए। पुलिस और मीडिया तो खुद जज बनकर फैसला सुनाती रही है। जिसके नतीजे में बेगुनाहों को अपनी जिन्दगी के बेशक़ीमती वक्त निर्दोष होते हुये भी जेल की काल कोठरियों में गुजारनी पड़ी। इस तरह के कई मुकदमों को हमने लड़ा है जिसको पुलिस खूंखार आतंकवादी बता रही थी वह अदालत से निर्दोष साबित हुए।
प्रतिनिधिमंडल में रिहाई मंच अध्यक्ष एडोकेट मुहम्मद शुऐब, शबरोज मोहम्मदी, एडोकेट मोहम्मद कलीम खान, राजीव यादव आदि शामिल रहे।
नौ
अमरोहा में शराब ठेकेदार भाजपा नेता ने ओवर रेटिंग की कवरेज करने पर स्थानीय अखबार के पत्रकार जितेंद्र यादव को मारा-पीटा । घटना के समय वहाँ मौजूद पुलिस तमाशबीन बनी । घटना अमरोहा के रहरा थाने की है ।
दस
वाराणसी के सामाजिक और राजनैतिक कार्यकर्ता संजीव सिंह ने जिलाधिकारी वाराणसी को एक पत्र लिखते हुये कहा है कि अभी देश में कोरोना के तीसरी लहर के आने की संभावना लगातार बनी हुई है।देश विदेश के तमाम स्वास्थ्य विशेषज्ञ, वैज्ञानिक इस संभावना को इंकार भी नहीं कर रहे । कोरोना के खतरनाक डेल्टा वायरस का बढ़ता जानलेवा संक्रमण इंडोनेशिया सहित दक्षिण- पूर्व एशिया के देशों और भारत में भी बना हुआ है।
स्वयं प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री उ.प्र. के बयानों से स्पष्ट होता है कि वे कोरोना की तीसरी लहर को लेकर चिंतित है। प्रधानमंत्री ने कहा है कि मौज-मस्ती अनावश्यक है और भीड़ से तीसरी लहर का खतरा बढ़ेगा। मुख्यमंत्री ने भी कोरोना के बढ़ते संक्रमण की आशंका में अनावश्यक भीड़ पर कारवाई के साथ ‘दस्तक अभियान’ की भी बात कही है।
दूसरी तरफ, वाराणसी में 15 जुलाई को प्रधानमंत्री महोदय कम से कम 5 हजार की जनसभा को बी.एच.यू. में संबोधित करेंगे तो कुछ देर बाद शहर के भीड़-भाड़ वाले क्षेत्र सिगरा नगर निगम स्थित जापान सरकार के सहयोग से ‘रूद्राक्ष’ कन्वेंशन सेंटर का उद्घाटन और 500 लोंगो को मल्टीपरपज हाल में भी संबोधित करेंगे। ऐसे में अधिक भीड़ होने की प्रबल संभावना है जो स्वयं में कोरोना प्रोटोकोल का उल्लंघन है। बी.एच.यू. में जनसभा होनी है जहाँ से कुछ ही दूरी सर सुंदरलाल अस्पताल (बी.एच.यू. हास्पिटल है। ऐसे में इस क्षेत्र में कोरोना संक्रमण के बढ़ने की संभावना से इंकार नहीं कर किया जा जिससे आने वाले दिनों में बी.एच.यू कैम्पस के भीतर रहने वाले कम से कम 50 हजार की आबादी जिनमें शिक्षक, डाक्टर,छात्र- छात्रा और कर्मचारियो का समुदाय और इनके परिजनों को संक्रमित होने का खतरा बनेगा।वहीं दूसरी तरफ नगर निगम के कन्वेंशन सेंटर पर भी कोरोना की तीसरी लहर के बढ़ने की संभावना बलवती होगी।
पिछले दिनों पंचायत चुनाव में हुई कोरोना प्रोटोकोल की अनदेखी के चलते उ.प्र.में हजारो राज्य कर्मचारियों, शिक्षकों, यहाँ तक नवनिर्वाचित ग्राम प्रधान व जिला पंचायत सदस्य तक ने कोरोना से जान गंवाया। अतःजनहित और बदहाल चिकित्सकीय सुविधाओ को कोरोना के तीसरी लहर को देखते हुए प्रधानमंत्री जी के भीड़-भाङ वाले कार्यक्रम जनसभाओ को अविलंब रद्द किया जाय।
साथ में वाराणसी से भास्कर गुहा नियोगी, संजीव सिंह, लखनऊ से राजीव यादव,पट्टी प्रतापगढ़ से मनोज यादव तथा जनचौक वेबसाइट से साभार।
समसामयिक और सच्ची खबरों के लिए बहुत-बहुत बधाई गांव के लोग पत्रिका।