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पर्यावरण संरक्षण और कचरा प्रबंधन करने के लिए नागरिकों को ज़िम्मेदार बनना जरूरी

जिसे हम खराब कहकर अपदस्थ कर देते हैं, वह कचरा नहीं है। फेंकी जाने वाली हर चीज का मूल्य होता है। फलों और सब्जियों के छिलके जो हम फेंक देते हैं, उन्हें पेड़-पौधों के उपयोग में आने वाली बेशकीमती खाद के रूप में बदला जा सकता है। इन छिलकों को अगर हम घर के एक गमले में मिट्टी की तहों से दबाकर रखें तो तीन से चार सप्ताह के अंदर यह तथाकथित कचरा बेशकीमती खाद बन जाता है जो पूरी तरह ऑर्गेनिक और पेड़ पौधों के लिए प्राणदायक है।

भारत जैसे आबादी बहुल देश में पर्यावरण के मुद्दे को बहुत गंभीरता से लेने की जरूरत है, ताकि आने वाली पीढ़ी के लिए हम सबसे सुंदर ग्रह पृथ्वी को सुरक्षित रख सकें। एक पुरानी कहावत है – धरती हमारे पुरखों की अमानत नहीं, हमारे अपने बच्चों का कर्ज है हम पर। हमारा हर छोटा कदम, धरती के भविष्य को प्रभावित करता है।

पर्यावरण पर हमारी चर्चा शहरों के प्रदूषण और स्वच्छता को लेकर शिकायत के तहत होती है कि हर जगह कूड़े-कचरे से अँटी पड़ी है। हम आज फुटपाथ पर केले-संतरे के छिलके, चॉकलेट-बिस्किट के रैपर पड़े रहते हैं। रिहायशी इलाकों में भी सड़क किनारे कूड़े-कचरे का गंधाता ढेर लगा है। नगर निगम, महानगरपालिका और सरकार जहाँ इसे नियंत्रित करने के लिए कुछ नहीं कर रही है। वहीं, हम भी नाक पर रूमाल दबाकर आगे बढ़ जाते हैं। इनकी सफाई को लेकर ऐसा बहुत कुछ है, जो एक ज़िम्मेदार नागरिक के रूप में हम कर सकते हैं।

हम एक दिन में प्लास्टिक की कितनी थैलियाँ लेते हैं?

आप सब्जियाँ या फल खरीदने रोज बाजार जाते हैं और घर से कपड़े की थैली-झोला लेना भूल जाते हैं। वहीं ठेले वाला हर सब्जी अलग-अलग प्लास्टिक की थैलियों में बांधकर आपको पकड़ा देता है। घर आते ही मिनट भर में यह प्लास्टिक कचरे का हिस्सा बन जाता है। आप बड़े-बड़े मॉल से कुछ खरीदते हैं तब भी हर सामान आपको प्लास्टिक की थैलियों में सील किया हुआ मिलता है। सुविधाजनक लगने वाले प्लास्टिक और उसकी पैकिंग ने हमारे जीवन को ‘बीमार’ बना दिया है। प्लास्टिक ऐसी चीज है, जिसके एक छोटे से टुकड़े को भी पूरी तरह नष्ट होने में सैकड़ों साल लग सकते हैं। फिर भी हम इसका अंधाधुंध इस्तेमाल करते हैं और सड़क पर फेंक देते हैं। इसको खाने से सड़क पर विचरण करने वाले पशुओं की मौत हो जाती है। इसे जलाया भी नहीं जा सकता, क्योंकि इसमें व्याप्त रसायन उड़ने से हवा भी जहरीली हो जाती है। पानी पर भी खतरनाक असर पड़ते हैं। भारी बारिश में प्लास्टिक से नालियाँ जाम हो जाती हैं। मुम्बई की मीठी नदी इसका जीता-जगता उदहारण है। प्लास्टिक के दुरुपयोग से ही 2005 की मूसलाधार बारिश में इसका खतरनाक दुष्प्रभाव सामने आया।

ऐसी समस्याओं की सूची बहुत लंबी है। प्लास्टिक का कचरा इतना खतरनाक है कि सुप्रीम कोर्ट को अंततः कहना पड़ा कि ‘प्लास्टिक टिक-टिक करता हुआ टाइम बम है, जिस पर शहरों के नागरिकों को तत्काल ध्यान देने की सख्त जरूरत है।’

प्लास्टिक के बैग, जिनका उपयोग हम बाज़ार से सामान आदि खरीदने में करते हैं और काम पूरा होते ही उसे फेंक देते हैं। पर्यावरण के असली अपराधी यही हैं। जिन प्लास्टिक के बैग पर बायोडिग्रेडेबल का लेबल लगा हो, उसे पर्यावरण फ्रेंडली मानकर भ्रमित नहीं होना चाहिए। यह भी आम प्लास्टिक जितना ही खतरनाक है। बिना सोचे-समझे प्लास्टिक के बैग इकट्ठे करते जाने से बेहतर है कि जब भी आप सामान खरीदने बाहर निकलें तो एक कपड़े का झोला साथ ले लें। ऐसे बैग घर के बचे हुए कपड़े से दर्जी द्वारा सिलवाया जा सकता है। इसके अलावा कुछ उपयोगी बैग भी होते हैं, जो पर्यावरण के अनुकूल और देखने में सुंदर लगते हैं। ऐसे बैग बनाकर गृहणियां आर्थिक मुनाफा भी कमा सकती हैं। पांडिचेरि का एक गैर-सरकारी संगठन स्मॉल स्टेप्स ऐसे झोले बनाता है, जिसे पर्स में भी रखा जा सकता है। इसमें एक हुक भी लगा होता है और अलग से बेल्ट भी लगाया जा सकता है।

बस, हमारे आँगन से कचरा दूर रहे

जो लोग शहरों में रहते हैं, वे चाहते हैं कि बस मेरे घर में कचरा न रहे। (अंग्रेजी में इसे NIMB सिंड्रोम कहते हैं – नॉट इन माय बैकयार्ड सिंड्रोम)। हम काले रंग की प्लास्टिक की थैली में गंधाता कचरा डाल देते हैं और फिर वह हमारी आँखों से ओझल हो जाता है। जैसे ही यह कचरा और दुर्गंध हमारे घर से बेदखल कर दिया जाता है, उसके बाद इसका क्या हश्र होता है, यह सोचना हमारे सरोकार का हिस्सा नहीं। बेशक यह किसी और की समस्या बन जाए, उससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता।

क्या हम इस समस्या का एक हिस्सा है? जवाब है- शत-प्रतिशत हाँ। फिर इन स्थितियों को बदलने के लिए सरकार या नगरपालिका का इंतजार करना गलत है। समय आ गया है कि हम अपनी नागरिक जवाबदेही को समझते हुए इसको निपटाने की जिम्मेदारी खुद लें। इसके लिए सबसे पहली जरूरत है कि हम यह जानने और समझने की कोशिश करें कि कचरा जब हमारे घर से बाहर जाता है तो इसका होता क्या है?

जो कचरा हमारे घरों से आता है वह गाँव या शहर के बाहर की खाली जमीन पर फेंका जाता है जिससे वहाँ आसपास रहने वाले लोगों को हर तरह से नुकसान पहुँचता है। फेंके गए अंधाधुंध प्लास्टिक, जैवप्रदूषक, मिश्रित कचरे से पैदा हुए रसायन (केमिकल्स) कई तरह की बीमारियाँ पैदा करते हैं और जमीन की तलहटी में पानी के साथ मिलकर पीने के पानी तक को भी प्रदूषित कर देते हैं। ऐसा पानी न घरेलू इस्तेमाल लायक रहता है, न पीने लायक।

जिनके घरों के पास कूड़े का विशालकाय ढेर पूरे पर्यावरण को प्रदूषित कर रहा है, वहाँ के लोग बताते हैं कि जहाँ पहले चिड़ियाँ चहचहाती थीं और साफ सुगंधित हवा बहती थी, अब एक परिंदा भी वहाँ नहीं दिखता। वे भी उड़कर साफ हवा और हरे भरे वातावरण में चले जाते हैं, पर वहाँ के इनसान कहाँ जाएँ? उन्हें तो उसी प्रदूषण में रहना पड़ता है। उनकी तो कहीं सुनवाई तक नहीं है।

इस दुष्चक्र को बदलने के लिए हमें कचरे के प्रति अपनी मानसिकता बदलनी होगी। जिसे हम खराब कहकर अपदस्थ कर देते हैं, वह कचरा नहीं है। फेंकी जाने वाली हर चीज का मूल्य होता है। फलों और सब्जियों के छिलके जो हम फेंक देते हैं, उन्हें पेड़-पौधों के उपयोग में आने वाली बेशकीमती खाद के रूप में बदला जा सकता है। इन छिलकों को अगर हम घर के एक गमले में मिट्टी की तहों से दबाकर रखें तो तीन से चार सप्ताह के अंदर यह तथाकथित कचरा बेशकीमती खाद बन जाता है जो पूरी तरह ऑर्गेनिक और पेड़ पौधों के लिए प्राणदायक है।

प्लास्टिक और कागज को भी रीसाइकल कर फिर से उपयोग में लाया जा सकता है, लेकिन उन्हें अगर गीले कचरे के साथ मिला दिया गया तो आसानी से उसे रीसाइकल (पुनरुपयोगी) नहीं किया जा सकेगा।

कचरा हमारी संपत्ति बन सकता है!

अगर हमें कचरा प्रबंधन में जिम्मेदारी बरतनी है, तो हमें अपने घर का कचरा इस तरह अलग कर रखना होगा कि वह बाहर जाकर भी एक समस्या और परेशानी का बायस न बने। अपनी रसोई में दो डस्टबिन रखें – एक में गीले पदार्थ (तरकारी, छिलके, खुरचन, बचे हुए खाद्य) एवं दूसरे में सूखे पदार्थ (कागज, प्लास्टिक, धातु, पन्नी, खाद्य पैकेजिंग के रैपर) रखें। सूखे और गीले कचरे को अलग रखकर इस स्थिति से निपटा जा सकता है।

सूखा कचरा किसी भी स्थानीय कबाड़ी वाले को दिया जा सकता है। आजकल कई शहरों में ड्राई अपशिष्ट पदार्थों के लिए घरेलू संग्रह कार्यक्रम भी आयोजित किए जा रहे हैं। एक कंपनी है जो, ‘बेकार से बहुमूल्य’ या ‘कचरे से संपत्ति’ (Wealth Out of Waste-WOW) जैसा कार्यक्रम चलाती है,  जिसमें रिहायशी इलाकों से सूखा सामान एकत्र किया जाता है। इनको रीसाइकल कर वह अपने उपयोग के लिए इस्तेमाल करती है और प्लास्टिक दूसरी कंपनी को बेच देती है, जो फेंके गए प्लास्टिक से कोलतार बनाते हैं। सोच कर देखें, पूरे शहर में बिखरे हुए सारे प्लास्टिक का अगर ऐसा उपयोगी इस्तेमाल हो पाए, तो काफी हद तक कई समस्याओं का समाधान को सकता है।

इलेक्ट्रॉनिक कचरे का निपटारा

प्रदूषण का एक अन्य प्रकार भी है, जो ई-अपशिष्ट कहलाता है। जिसमें कोई भी इलेक्ट्रानिक सामान, जैसे- लैपटॉप, पेनड्राइव, डीवीडी, फ्लापी डिस्क, सीएफएल/ एलईडी बल्ब और ट्यूबलाइट आदि शामिल हैं। आजकल बड़ी संख्या में इलेक्ट्रानिक सामग्रियों का उपभोग किया जाता है। दूसरा इन इलेक्ट्रानिक उत्पादों में बेहद विषाक्त रसायन होते हैं। सीसा और पारा स्वास्थ्य को काफी नुकसान पहुँचाते हैं। इनके कारण बच्चे जन्म से ही असामान्य पैदा होते हैं। इसलिए इस अपशिष्ट का उचित निपटारा बहुत जरूरी है। कुछ शहरों में इन अपशिष्टों के पुनरुत्पादन का काम भी हो रहा है। घरेलू स्तर पर इन्हें फेंकते समय हम ध्यान रखें कि खाद्य सामग्री और ई-कचरा अलग-अलग रखा जाए। अगर आपने टूटा हुआ थर्मामीटर या फ्यूज हुआ बल्ब कचरे में मिला दिया तो उसका ज़हर पूरे कचरे को विषाक्त कर देगा और ऐसा कचरा कहीं भी डाला जाये, वह अंततः प्रदूषित माहौल में जबरदस्त बढ़ोतरी करेगा।

पेयजल यानी बोतलबंद पानी

पानी ही है जो हमारी सुंदर पृथ्वी को जीवन देता है। प्रकृति द्वारा यह हमें बहुतायत में निःशुल्क प्राप्त है, लेकिन इन दिनों शहरों मे पानी की किल्लत आम बात हो गई है। कई इलाकों में पानी को लेकर राजनीति तेज हो गई है। कई देश और राज्य पानी के वितरण को लेकर आपस में लड़ रहे हैं। कुछ लोगों का मानना है कि अगला विश्व-युद्ध पानी के लिए ही होगा।

हम सब जानते हैं कि पृथ्वी का 70 प्रतिशत हिस्सा पानी ही है। अधिकांश भाग समुद्र होने के कारण यह पानी खारा होता है और पीने लायक नहीं होता। इसलिए पानी की बचत और शुद्धीकरण ज़रूरी है।

बोतलबंद पानी प्लास्टिक कचरे की बढ़ोतरी में इजाफा करता है और गैर जिम्मेदाराना ढंग से प्लास्टिक की बोतलों को फेंकने से अक्सर गंभीर समस्या उठ खड़ी होती है। अगर आप हिमालय की यात्रा पर निकलें तो प्लास्टिक की बोतलों का विशालकाय ढेर आसपास के प्राकृतिक सौंदर्य को बिगाड़ता हुआ दिखाई देगा। सुदूर प्राकृतिक स्थलों पर प्लास्टिक की बोतलों के ढक्कन और नुकीले काँच खाकर खूबसूरत परिंदे मर जाते हैं।

बोतल बंद पानी एक नया फिनोमिना है और निश्चित रूप से एक अनावश्यक खरीद। आखिर हम इतने बड़े स्तर पर बोतल बंद पानी के आदी कैसे हो गए? ज्यादातर रेस्टोरेंट और होटलों में वाटर फिल्टर होते हैं फिर भी वेटर को बोतल बंद पानी ऑफर करने की जल्दी रहती है। कारण साफ है- आर्थिक मुनाफा। जो चीज होटलों और रेस्टोरेंट को मुफ्त में देनी चाहिए, उसकी भी वे कीमत वसूल करना चाहते हैं। बोतलबंद पानी बेचने वाली कंपनियाँ भी इसे प्रोत्साहित करती हैं। उन्हें मुफ्त में पब्लिसिटी मिल जाती है।

इन कंपनियों पर आरोप है कि वे धरती से अधिक पानी निकाल लेती हैं, जिससे गाँव में रहने वालों के खेतों की सिंचाई के लिए पानी कम पड़ जाता है। बोतलबंद पानी की फैक्ट्रियों से बढ़ता प्रदूषण भी हमारे सरोकार का हिस्सा है। गाँव वाले अपने सिंचाई के अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इसका समाधान आसान है! जहाँ भी हम जाएँ, हमारे साथ पानी की एक बोतल हो और जब भी संभव हो हम इसे फिर से भर लें। प्लास्टिक की बेहिसाब खाली बोतलें फेंकने में इजाफा न करें।

अपने बगीचे में अपनी खाद डालें यानी गृह खाद का उपयोग करें

खाद-निर्माण एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। सूक्ष्म जीवों द्वारा समय के साथ अपने आप ही होता है। घर पर कंपोस्टिंग की प्रक्रिया किसी बड़े बर्तन में या कंपोस्ट बनाए जाने वाले गड्ढे में या मिट्टी के हंडे में की जा सकती है। ये बड़े आकार वाले मिट्टी के बर्तन होते हैं, जिनके ऊपर खूबसूरती से पेंट किया जाता है। इसमें आसानी से कंपोस्ट बनाया जा सकता है। मैंने अपने घर पर पिछले सात सालों तक खाद बनाई है और लैंडफिल में जाने वाला ढाई हजार किलो कचरा बचा लिया।

एक बार आपने कंपोस्ट बना लिया तो आप अपने घर के किचन या टेरेस गार्डन को बढ़ावा दे सकते हैं। ताकि आप अपनी ही बेशकीमती खाद से अपने गमलों या गार्डेन में स्वस्थ ऑर्गेनिक सब्जी खुद उगा सकें। पालक, मेथी, पोदीना, टमाटर, नींबू, हरी-लाल मिर्च तो आप गमलों में भी उगा सकते हैं। ऐसी सब्जियाँ आपको किसी दुकान या बाजार में नहीं मिलेंगी। सब्जियाँ उगाने की घर की खेती से आप अपने बच्चों को भी परिचित कराएँ। इसमें उन्हें किसी खेल सा आनंद मिलेगा।

पृथ्वी को ताप से बचाएँ

वैश्विक ताप के इस युग में मौसम का मिजाज निरंतर खराब होता जा रहा है। ऊर्जा के स्रोत कम हो रहे हैं। लगातार जल की कमी हो रही है। ओजोन स्तर लगातार क्षीण होता जा रहा है। नतीजा यह कि पृथ्वी लगातार गर्म होती जा रही है। यह ऐसी प्रक्रिया है जो अप्रत्याशित है। इन हालातों में हमें व्यक्तिगत वाहनों की जगह सामुदायिक परिवहन वाले साधनों का प्रयोग करना चाहिए। एक घर-चार गाड़ियाँ यानी घर के हर सदस्य के लिए अलग गाड़ी! हम यह सोचते तक नहीं कि हमारे अकेले के आने-जाने में हम पेट्रोल और डीजल का कितना धुआँ वातावरण को सौंप रहे हैं। जहाँ तक संभव हो, व्यक्तिगत एवं सामूहिक स्तर पर जल और ऊर्जा की बचत करें।

अमेरिका के प्रसिद्ध वैज्ञानिक मार्गरेट मीड के शब्दों में- ‘समझदार और समर्पित नागरिकों का छोटा-सा समूह विश्व को बदल सकता है। इस पर कभी संदेह मत करो। दरअसल, इनसे ही कुछ उम्मीद की जा सकती है।’

गांधीजी ने कहा था- ‘दुनिया में जो बदलाव आप देखना चाहते हैं, वह खुद बनिए।’

ग्रेटा थनबर्ग ने प्रमाणित कर दिखाया है कि बदलाव एक व्यक्ति से शुरू हो सकता है और ज़िम्मेदार नागरिकों का समूह अगर चाहे तो दुनिया बदल सकता है!

क्या आप एक समझदार, समर्पित और ज़िम्मेदार नागरिक बनना नहीं चाहेंगे?

 

डॉ गरिमा भाटिया
डॉ गरिमा भाटिया
लेखिका पर्यावरणविद हैं।

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