Monday, December 23, 2024
Monday, December 23, 2024




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमसामाजिक न्यायमहिला जागरूकता से ही संभव है स्वस्थ समाज का निर्माण

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

महिला जागरूकता से ही संभव है स्वस्थ समाज का निर्माण

मुजफ्फरपुर (बिहार)। स्वस्थ मातृत्व और स्वस्थ शिशु ही समाज और राष्ट्र के लिए मानव संसाधन को पूरा कर सकते हैं। तभी देश का चहुंमुखी विकास संभव है। खराब पोषण और पौष्टिक आहार के अभाव में मातृत्व और बच्चों का संपूर्ण पोषण व जनन प्रभावित होता है। जिससे बच्चे कुपोषित, कमजोर, अल्पबुद्धि, रोग ग्रस्त व अल्पायु […]

मुजफ्फरपुर (बिहार)। स्वस्थ मातृत्व और स्वस्थ शिशु ही समाज और राष्ट्र के लिए मानव संसाधन को पूरा कर सकते हैं। तभी देश का चहुंमुखी विकास संभव है। खराब पोषण और पौष्टिक आहार के अभाव में मातृत्व और बच्चों का संपूर्ण पोषण व जनन प्रभावित होता है। जिससे बच्चे कुपोषित, कमजोर, अल्पबुद्धि, रोग ग्रस्त व अल्पायु होते हैं। कई अध्ययनों से पता चलता है कि अनियमित खान-पान और स्वास्थ्य के प्रति उदासीनता की वजह से महिलाएं पुरुषों के मुकाबले अधिक बीमार और अवसादग्रस्त रहती हैं। इनमें शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं की संख्या अधिक है। कम उम्र में शादी, अवांछित गर्भ, कम उम्र में माँ बनना आदि सबसे अधिक प्रभावित करने वाले कारक हैं।

फलस्वरूप, मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर बढ़ जाती है। जहां कुपोषण, लैंगिक भेदभाव आदि की वजह से महिलाओं का जीवन नारकीय बन जाता है। ग्रामीण महिलाओं की सेहत बच्चोें की देखभाल, घर के सभी सदस्यों का खान-पान, साफ-सफाई, घर की साज-सज्जा से लेकर रसोईघर की पूरी जिम्मेदारियों को निभाते-निभाते ख़त्म हो जाती है। उसे अपने स्वास्थ्य की चिंता का समय भी नहीं मिलता है। खुद का ख्याल कम और पूरे परिवार का ख्याल अधिक रखने के चक्कर में खराब पोषण तथा असंतुलित आहार की वजह से एनीमिया, उदर विकार, स्नायु विकार, रक्तचाप, दिल की बीमारी, मोटापा, स्ट्रोक, मधुमेह, कोलेस्ट्रॉल व यौन संबंधित रोग, मानसिक रोग आदि प्रभावित हो जाती है।

[bs-quote quote=”ग्रामीण महिलाओं का स्वास्थ्य और जीवनशैली में बदलाव किए बिना गर्भ में पल रहे बच्चों का सही पोषण संभव नहीं है। इसके साथ ही महिलाओं को अन्य कई असाध्य रोगों से बचाने के लिए जागरूकता व स्वच्छता का लक्ष्य पूरा करना ज़रूरी है। इसके लिए स्वास्थ्य विभाग के साथ-साथ स्थानीय आंगनबाड़ी केंद्रों, आशा दीदी और पंचायत के जनप्रतिनिधियों को पूरी ईमानदारी से कर्तव्यों का पालन करना ज़रूरी है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

विश्व स्वास्थ्य संगठन के रिपोर्ट के अनुसार 2030 तक वैश्विक स्तर पर होने वाली मौतों में पुरानी जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों के कारण 70 प्रतिशत मौतें होंगी। पूरी दुनिया में महिलाओं के अनहेल्दी जीवनशैली चिंता का विषय बनता जा रहा है। केवल ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं ही नहीं, बल्कि शहरी क्षेत्रों की कामकाजी महिलाएं भी काम को संतुलित करने के चक्कर में स्वास्थ्य पर कम ध्यान देती हैं। जिसका एक सबसे बड़ा कारण है- अनिद्रा, थकान, कमजोरी, तनाव, बासी भोजन एवं फास्टफूड है।

बिहार के मुजफ्फरपुर जिला स्थित सरैया ब्लॉक के बसंतपुर गांव के 35 वर्षीय मोहन कुमार कहते हैं कि गांव में अधिकतर महिलाएं घर के सभी सदस्यों को खिलाने के बाद रसोई में बचे-खुचे भोजन से काम चलाती हैं। रात में बच गए बासी भोजन का सुबह आहार बनता है, जबकि पुरुष वर्ग बासी भोजन करने से कतराते हैं। इस से इतर महिलाएं अधिक पूजा-पाठ में मशगूल रहती हैं। सप्ताह में दो-तीन दिन उपवास रखती हैं। कभी सोमवारी, कभी मंगलव्रत, कभी गुरुव्रत तो कभी शनि व्रत के नाम पर या तो बिल्कुल सीमित भोजन करती हैं या फिर निराहार या फलाहार में ही उनका दिन गुजरता है। एक तो पहले से अनियमित खान-पान, ऊपर से व्रत-त्योहार की जिम्मेदारी शारीरिक रूप से उन्हें कमजोर बना देती है। सक्षम लोगों के लिए फलाहार तो फायदेमंद है, पर अधिकतर परिवार को दो जून की रोटी जुटाने में आकाश-पाताल एक करना पड़ता है, तो भला फल कैसे खरीदें?

यह भी पढ़ें…

बलरामपुर में थारू जनजाति के बीच दो दिन

इस संबंध में गांव की 27 वर्षीय गृहिणी रामपरी देवी (बदला हुआ नाम) कहती हैं कि पहले दरवाजे पर बैल, गाय, भैंस आदि को बासी भोजन दे दिया जाता था। अब मवेशी ही नहीं तो, भोजन को फेंकना उचित नहीं लगता है। ऐसे में हम उसे फिर से चूल्हे पर गर्म करके खा लेती हैं। कई बार खाने का स्वाद बिगड़ चुका होता है। लेकिन उसे फेंकने की जगह हम खा लेना उचित समझती हैं। गांव की महिलाएं संक्रामक रोग तथा खुद के स्वास्थ्य की देखभाल कैसे करें? इस बाबत डॉ. बीएस रमण कहते हैं कि गांव की ज्यादातर महिलाएं अपने स्वास्थ्य का पूरा ध्यान नहीं रखती हैं। अनियमित खान-पान और साफ-सफाई की कमी के कारण वह फंग्स एवं जीवाणु संक्रमण का आसानी से शिकार बन जाती हैं। जागरूकता की कमी, बीमारी को छिपाने और लापरवाही के कारण असमय असाध्य रोगों की चपेट में आ जाती हैं।

अक्सर ग्रामीण महिलाएं दमा, लिकोरिया, यूट्रेस संबंधी रोग, स्तन कैंसर, असमय बुढ़ापा, असमय गर्भधारण, गर्भपात, खून की कमी आदि से ग्रस्त रहती हैं। इसके अतिरिक्त वह यौन संचारित रोग, असुरक्षित रहन-सहन, असंतुलित खान-पान, स्वच्छता आदि की कमी के कारण बीमार रहती हैं। महिलाओं में सबसे बड़ी बीमारी एनीमिया है। दूसरी ओर, वैसी किशोरियां जो पहली बार माहवारी के स्टेज पर पहुंचती हैं, उन्हें इस संबंध में कोई जानकारी देने वाला नहीं होता है। परिणामस्वरूप वह ऐसे समय में साफ़-सफाई का ज़्यादा ध्यान नहीं रख पाती हैं और बहुत जल्द बीमारियों का शिकार हो जाती हैं, जो आगे चलकर उनके गर्भाशय में संक्रमण का कारण बन जाता है।

यह भी पढ़ें…

बाल विवाह का दंश झेल रहीं पिछड़े समुदाय की किशोरियां

बिहार में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत बेसिक एवं माध्यमिक विद्यालयों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं को आयरन की नीली-गुलाबी गोलियां (दवाईयां) दी जाती हैं। यह गोली 5 साल से लेकर 19 साल तक की छात्र-छात्राओं को खिलाई जाती है। वहीं विद्यालयों में प्रत्येक वर्ष 300 रुपये सेनेटरी नैपकिन के लिए पैसे छात्राओं के खाते में भी डाले जाने का प्रावधान है। आंगनबाड़ी केंद्रों में बाल और महिला स्वास्थ्य को लेकर कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग की पहल पर प्रत्येक पंचायत में आशा दीदी प्रसूति महिला की देखरेख से लेकर प्रसव तक की जिम्मेवारी निभाती हैं। इसके बावजूद ग्रामीण किशोरियों एवं महिलाओं की सेहत शहर की अपेक्षा कमजोर रहती है।

बहरहाल, ग्रामीण महिलाओं का स्वास्थ्य और जीवनशैली में बदलाव किए बिना गर्भ में पल रहे बच्चों का सही पोषण संभव नहीं है। इसके साथ ही महिलाओं को अन्य कई असाध्य रोगों से बचाने के लिए जागरूकता व स्वच्छता का लक्ष्य पूरा करना ज़रूरी है। इसके लिए स्वास्थ्य विभाग के साथ-साथ स्थानीय आंगनबाड़ी केंद्रों, आशा दीदी और पंचायत के जनप्रतिनिधियों को पूरी ईमानदारी से कर्तव्यों का पालन करना ज़रूरी है। सबसे अधिक परिवार के पुरुष सदस्यों व घर के मुखिया को भी महिलाओं की सेहत में आए उतार-चढ़ाव को गंभीरता से लेना होगा। महिलाओं को भी यौन संचारित रोगों से बचने के लिए लज्जा का त्याग करके चिकित्सकीय सलाह लेने की ज़रूरत है। उन्हें अपनी छोटी-छोटी बीमारियों व अनियमित खान-पान में सुधार करना होगा। वहीं किशोरियों का भी उनके स्वास्थ्य के प्रति मार्गदर्शन करना आवश्यक है। तभी स्वस्थ परिवार और स्वस्थ समाज की कल्पना संभव हो सकती है।

वंदना कुमारी, मुजफ्फरपुर (बिहार) स्थित सामाजिक कार्यकर्ता हैं।

गाँव के लोग
गाँव के लोग
पत्रकारिता में जनसरोकारों और सामाजिक न्याय के विज़न के साथ काम कर रही वेबसाइट। इसकी ग्राउंड रिपोर्टिंग और कहानियाँ देश की सच्ची तस्वीर दिखाती हैं। प्रतिदिन पढ़ें देश की हलचलों के बारे में । वेबसाइट को सब्सक्राइब और फॉरवर्ड करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here