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जनसंख्या वृद्धि को समस्या में तब्दील कर देती है सरकारी अक्षमता

विश्व जनसंख्या दिवस (11 जुलाई) पर विशेष  साल 1989 में यूनाइटेड नेशन डेवलपमेंट प्रोग्राम की गवर्निंग काउंसिल द्वारा 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस के तौर पर मनाने के फैसले के बाद से पूरी दुनिया में प्रतिवर्ष यह दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य जनसंख्या से संबंधित मुद्दों के महत्व के बारे में लोगों को […]

विश्व जनसंख्या दिवस (11 जुलाई) पर विशेष 

साल 1989 में यूनाइटेड नेशन डेवलपमेंट प्रोग्राम की गवर्निंग काउंसिल द्वारा 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस के तौर पर मनाने के फैसले के बाद से पूरी दुनिया में प्रतिवर्ष यह दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य जनसंख्या से संबंधित मुद्दों के महत्व के बारे में लोगों को जागरूक कराना है, क्योंकि जब इस दिवस की शुरुआत हुई, उस समय विश्व की जनसंख्या 5 बिलियन हो चुकी थी। विश्व जनसंख्या दिवस का सुझाव डॉक्टर केसी जकारिया ने दिया था। इस दिन गरीबी, बच्चे का स्वास्थ्य, लैंगिक समानता, परिवार नियोजन, मानव अधिकार, गर्भनिरोधक दवाइयों के प्रयोग से लेकर सुरक्षित एवं समानता की समस्याओं पर चर्चा की जाती है।

वास्तव में जनसंख्या वृद्धि के तीन बुनियादी चरण होते हैं। इनमें सबसे प्रमुख है समाज में जनसंख्या वृद्धि की दर का कम होना, क्योंकि समाज अल्प विकास और तकनीकी दृष्टि से पिछड़ जाता है। वैसे तो पूरे विश्व में कुल 240 देश हैं, लेकिन संयुक्त राष्ट्र द्वारा मान्यता प्राप्त कुल देशों की संख्या 195 है। इन देशों में जनसंख्या के मामले में भारत चीन को पछाड़ कर प्रथम स्थान पर पहुंच चुका है, जबकि भूभाग की दृष्टि से भारत दुनिया के कुल देशों में सातवें नंबर पर है। भारत अभी भी एक विकासशील देश है। इसका अर्थ है कि विकास के सभी लक्ष्यों में अभी भी भारत पूर्ण रूप से खरा नहीं उतरता है। उसके नागरिकों को समान रूप से सभी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हो पाती हैं। ऐसे में उसकी जनसंख्या का इतनी तेजी से वृद्धि होना अपने आप में चौका देने वाली बात है।

[bs-quote quote=”विशेषज्ञ भारत में बढ़ती जनसंख्या के मूल कारणों में कम उम्र में शादी और फिर जल्द गर्भधारण, गर्म जलवायु, मातृ और शिशु मृत्यु दर में कमी, निम्न जीवन स्तर और स्त्रियों की आर्थिक निर्भरता का कम होने के साथ साथ शिक्षा और जागरूकता में कमी को भी प्रमुख कारण मानते हैं।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

वर्तमान में बढ़ती जनसंख्या दुनिया के कई देशों के लिए एक विकराल समस्या के रूप में खड़ी है। यह मानव समाज  के लिए चिंता का विषय बनती जा रही है। जनवरी 2023 में पूरे विश्व की जनसंख्या 8 अरब यानी कि 800 करोड़ पहुंच चुकी है। इसमें अकेले चीन और भारत की जनसंख्या 280 करोड़ से अधिक है, जो विश्व की संपूर्ण जनसंख्या का 36.17 प्रतिशत है। बढ़ती जनसंख्या वर्तमान समय में एक ग्लोबल समस्या बनकर उभरी है। जिस तेजी से दुनिया की आबादी बढ़ रही है, आने वाले दशकों में यह 10 अरब को भी पार कर जाएगी।. एक आंकड़े के अनुसार, प्रत्येक दिन करीब ढाई लाख से भी अधिक बच्चे जन्म लेते हैं। 1950 के दशक में पूरे विश्व की जनसंख्या ढाई अरब थी, जो अब बढ़कर 8 अरब को भी पार कर चुकी है।

इस वर्ष विश्व जनसंख्या दिवस का थीम एक ऐसी दुनिया की कल्पना करना, जहां हम सभी 8 अरब लोगों का भविष्य, आशाओं और संभावनाओं से भरपूर हो रखा गया है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या हम इस लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं? केवल भारत की ही बात करें तो जनसंख्या के मामले में भारत दुनिया में पहले नंबर पर आ गया है। इसके क्या दुष्प्रभाव हैं? यह एक विचारणीय मुद्दा है। बढ़ती जनसंख्या का सबसे ज्यादा असर जन्म लेने वाले बच्चे और उनके खान-पान पर पड़ता है, क्योंकि इससे बच्चों को पूरा पोषण नहीं मिल पाता है, जिससे वह कुपोषण और कई अन्य गंभीर बीमारियों का शिकार हो जाते हैं। देश में बढ़ती बेरोजगारी का सबसे बड़ा कारण जनसंख्या में होने वाला इजाफा है। जनसंख्या वृद्धि के कारण अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। बेरोजगारी पर्यावरण से खिलवाड़, आवासों की कमी और निम्न जीवन स्तर शामिल है। भारत में गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों की संख्या काफी अधिक है। यह गरीबी और अपराध, चोरी, भ्रष्टाचार, कालाबाजारी जैसी समस्याओं को जन्म देता है।

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पर्यावरण की दृष्टि से भी जनसंख्या वृद्धि हानिकारक है। बढ़ती आवश्यकताओं के कारण प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन किया जा रहा है, जिसके परिणाम विनाशकारी सिद्ध हो रहे हैं। जनसंख्या वृद्धि को जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण एवं मृदा प्रदूषण के लिए भी दोषी माना जाता है। अर्थव्यवस्था की दृष्टि से भी बढ़ती जनसंख्या चिंता का कारण बनती जा रही है। सीमित संसाधनों के बीच विकराल जनसंख्या ने समस्याओं को और भी बढ़ा दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस विकराल जनसंख्या में सीमित संसाधनों का समान रूप से वितरण संभव नहीं है। ऐसे में स्वस्थ और विकसित समाज की संकल्पना बेमानी हो जाती है, क्योंकि असमान वितरण भ्रष्टाचार और अनेक बुराइयों का कारण बनती है। यह सतत विकास के लक्ष्यों को भी प्रभावित करती है।

विशेषज्ञ भारत में बढ़ती जनसंख्या के मूल कारणों में कम उम्र में शादी और फिर जल्द गर्भधारण, गर्म जलवायु, मातृ और शिशु मृत्यु दर में कमी, निम्न जीवन स्तर और स्त्रियों की आर्थिक निर्भरता का कम होने के साथ साथ शिक्षा और जागरूकता में कमी को भी प्रमुख कारण मानते हैं। बच्चे दो ही अच्छे जैसे नारे और नसबंदी जैसी योजनाओं के बावजूद भारत की बढ़ती जनसंख्या इस बात का प्रमाण है कि ज़मीनी स्तर पर इन योजनाओं और नारों का कोई विशेष लाभ नहीं हुआ है। कई विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि यदि महिलाओं की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाए तो बढ़ती जनसंख्या पर रोक संभव है। जाने-माने शिक्षक खान सर के शब्दों में ‘सरकार जितना पैसा जनसंख्या को रोकने में लगा रही है। अगर उतना ही लड़कियों को पढ़ाने और उन्हें शिक्षित करने में खर्च करे, तो निश्चित रूप से तेजी से बढ़ती जनसंख्या पर रोक लग सकती है।

(सौजन्य से : चरखा फीचर)

भारती देवी पुंछ (जम्मू) में युवा समाजसेवी हैं।

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