डॉ. अमित धर्मसिंह की काव्यमय आत्मकथा हमारे गांव में हमारा क्या है! पर नदलेस ने की परिचर्चा गोष्ठी
दिल्ली। नव दलित लेखक संघ द्वारा आयोजित डॉ. अमित धर्मसिंह की काव्यमय आत्मकथा हमारे गांव में हमारा क्या है! पर परिचर्चा गोष्ठी का आयोजन हुआ। आयोजन की सफलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शाम के ठीक सात बजे शुरू हुई गोष्ठी रात्रि के करीब साढ़े ग्यारह बजे तक चली। आमंत्रित वक्ताओं में से डॉ. नीतिशा खलखो, डॉ. खन्नाप्रसाद अमीन, श्रीलाल बौद्ध, ई. रूप सिंह रूप, डॉ. सीमा माथुर, डॉ. मुकेश मिरोठा, डॉ. नाविला सत्यादास और प्रो. दामोदर मोरे ने विस्तारपूर्वक उत्कृष्ट वक्तव्य दिए। एसएन प्रसाद, चितरंजन गोप लुकाटी और आरपी सोनकर ने सारगर्भित टिप्पणियों से परिचर्चा को समृद्ध किया। गोष्ठी की अध्यक्षता पुष्पा विवेक ने की और संचालन व धन्यवाद ज्ञापन हुमा खातून ने किया।
गोष्ठी के आरंभ में डॉ. गीता कृष्णांगी ने ‘हमारे गांव में हमारा क्या है!’ काव्यमय आत्मकथा के लेखक का बिंदुवार संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया। तत्पश्चात, आमंत्रित वक्ताओं और टिप्पणीकारों ने विचार प्रस्तुत किए। डॉ. नीतिशा खलखो ने कहा कि ‘प्रस्तुत आत्मकथा में दलित बचपन की इतनी घनीभूत पीड़ा दर्ज हुई है कि एक-एक कविता को पढ़कर ठहरकर सोचना पड़ता है। मेरे लिए इस आत्मकथा से गुजरना एकदम अलग अनुभव रहा।’
डॉ. खान्नप्रसाद अमीन ने कहा कि ‘लेखक की आत्मकथा में इतने मार्मिक दृश्य हैं कि पढ़कर दिल कांप जाता है। यह केवल डॉ. अमित की काव्यमय आत्मकथा नहीं, बल्कि भारत भर के दलित शोषित, वंचितों की आत्मकथा है।’ श्रीलाल बौद्ध ने कहा कि ‘लेखक ने आत्मकथा के रूप में हमें एक ऐसा दस्तावेज दिया है जो आने वाले वर्षों में तात्कालिक समय और समाज को समझने में साहित्यकारों, विद्यार्थियों, शोधार्थियों एवं इतिहासकारों की भरपूर मदद करेगा।’
ई. रूप सिंह रूप ने कहा कि ‘विद्वान लेखक की यह ऐसी काव्यमय आत्मकथा है, जिसमें दर्ज संघर्ष से प्रेरणा लेकर आने वाली पीढ़ी निश्चित ही सफलता की ओर अग्रसर हो सकेगी। इसमें दर्ज बहुत-सी चीजें जैसे देसी नुस्खे और घास इत्यादि का इतिहास जीवित रह सकेगा।’ डॉ. सीमा माथुर ने कहा कि ‘यह आत्मकथा हमें ऐसी चीजों से जोड़ने वाली है, जिन्हें आज हम भूल चुके थे। इसे पढ़कर मुझे अपने ही बचपन की बहुत-सी चीजें याद हो आईं, इसलिए इसकी प्रत्येक कविता से मैं अच्छे से रिलेट कर पाई।’ डॉ. मुकेश मिरोठा ने कहा कि ‘हमारे गांव में हमारा क्या है!’ का फलक वाकई बहुत बड़ा है, इसके बहाने ग्रामीण परिवेश से लेकर दलित जीवन पर बहुत-सी बातें की जा सकती हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि लेखक, न सिर्फ उत्कृष्ट साहित्य सृजन कर रहे हैं, बल्कि करियर तक को दांव पर लगाकर निरंतर साहित्य और समाज को महत्त्वपूर्ण सेवाएं दे रहे हैं।’
डॉ. नाविला सत्यादास ने कहा कि ‘इस आत्मकथा को पढ़कर निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि अमितजी बेहद प्रतिभावान साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके हैं और इनकी आत्मकथा न सिर्फ दलित साहित्य की बल्कि संपूर्ण साहित्य की पहली काव्यमय आत्मकथा के रूप में दर्ज हो चुकी है।’ प्रो. दामोदर मोरे ने कहा कि ‘यह काव्यमय आत्मकथा, आत्मकथा के मानक रूप पर भी पूरी तरह खरी उतरती है। इसमें अंबेडकरी चेतना है, चरित्र चित्रण है, संवाद है, प्रकृति चित्रण है, देशकाल और परिवेश का चित्रण है, व्यक्ति चित्र के उत्कृष्ट उदाहरण हैं और हैं दलित जीवन और गांव की यथार्थ कथा। ये सब बातें इसे अपनी ही तरह की अनूठी आत्मकथा बनाती हैं।’ इनके अलावा एसएन प्रसाद, चितरंजन गोप लुकाटी और आरपी सोनकर ने भी सारगर्भित टिप्पणी की। तत्पश्चात, डॉ. अमित धर्मसिंह ने वक्ताओं के प्रति आभार ज्ञापन किया और ‘हमारे गांव में हमारा क्या है!’ में से ‘खामोशी’ कविता का पाठ किया।
अध्यक्षता कर रही पुष्पा विवेक ने कहा कि ‘निश्चित ही लेखक की यह काव्यमय आत्मकथा काबिले तारीफ है। अमितजी न सिर्फ अच्छे कवि और साहित्यकार हैं, बल्कि बहुत अच्छे संगठनकर्ता भी हैं। इनकी कविता, कार्य और व्यवहार सभी कुछ आकर्षित करने वाला है। देश भर से जुड़े साहित्यकारों ने इतनी देर रात तक उपस्थित रहकर और आत्मकथा की भूरि-भूरि प्रशंसा करके साबित कर दिया कि सिर्फ अमितजी की आत्मकथा ही अत्यंत सफल नहीं है, बल्कि यह गोष्ठी भी बहुत कामयाब गोष्ठी रही।’
गोष्ठी में उक्त के अलावा क्रमशः दीक्षांत सागर, मामचंद सागर, शीतल डागे, ईश कुमार गंगानिया, नयन सिंह नयन, मदनलाल राज़, अनूपा. एस. एस., डॉ. प्रकाश धुमाल, अरुण कुमार पासवान, डॉ. रविन्द्र प्रताप सिंह, डॉ. विक्रम कुमार, विक्रम सिंह, डॉ. विजेंद्र प्रताप सिंह, डॉ. धीरज वनकर, बिभाष कुमार, राजेंद्र कुमार राज़, डॉ. सुमन धर्मवीर, ज्ञानेंद्र सिद्धार्थ, बीएल तोंदवाल, जोगेंद्र सिंह, बंशीधर नाहरवाल, सीताराम रविदास, राकेश कुमार धनराज, एडवोकेट राधेश्याम कांसोटिया, शकुंतला दीपांजली, ममता अंबेडकर, डॉ. कुसुम वियोगी, जालिम प्रसाद, डॉ. ईश्वर राही, राजेंद्र सिंह, अजय कुमार, अजय यतीश, प्रमिला सोरन, डॉ. सोरन सिंह, यजवीर सिंह विद्रोही, अनिल कुमार गौतम, रेनू गौर, सुनीता वर्मा, अखिलेश कुमार पासवान, सलीमा, सुनील कुमार कर्दम, उमेश राज़, हरीश पांडल, मिस पूजा, नैना प्रसाद, योगेंद्र प्रसाद अनिल, जयराम कुमार पासवान, प्रवीना, डॉ. आशीष दीपांकर, डॉ. मीनाक्षी धोजिया, जोबा मुर्मू, शकुंतला मुंडा, डॉ. उषा सिंह, डॉ. राधा, प्रमोद दास, डॉ. मोहनलाल सोनल मनहंस, बृजपाल सहज, तारा परमार, इंदु रवि, सरोज प्रसाद, सत्येंद्र प्रसाद, डॉ. राजन तनवर, रेखा सिंह, ज्योति पासवान, दिव्याना, सेवरल प्रैक्टिनर, डॉ. मुकुंद दास, शिवशंकर ओराण, फूलसिंह कुस्तवार, अमित रामपुरी, जितेंद्र चौधरी, हरितोष मोहन, पवन कुमार इंदु और प्रदीप सागर आदि गणमान्य रचनाकार व साहित्यकार उपस्थित रहे।
जरूरी दखल।
रचनात्मक सहयोग के लिए हार्दिक आभार टीम गांव के लोग