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जानवरों से इंसान में वायरस के संक्रमण से 2050 में मौत के मामले बढ़ने की आशंका

नई दिल्ली(भाषा)। टीबी, कॉलरा, प्लेग जैसी बीमारी, एक समय तक भयंकर संक्रामक बीमारी के रूप में जानी जाती थी लेकिन  मेडिकल शोध के बाद इन बीमारियों का इलाज संभव हुआ। इधर हर दिन कोई न कोई ऐसी बीमारी सामने आ रही है, जो संक्रामक तो है हिन लेकिन उनकी दवा या पूरे इलाज के लिए […]

नई दिल्ली(भाषा)। टीबी, कॉलरा, प्लेग जैसी बीमारी, एक समय तक भयंकर संक्रामक बीमारी के रूप में जानी जाती थी लेकिन  मेडिकल शोध के बाद इन बीमारियों का इलाज संभव हुआ। इधर हर दिन कोई न कोई ऐसी बीमारी सामने आ रही है, जो संक्रामक तो है हिन लेकिन उनकी दवा या पूरे इलाज के लिए कोई शोध अभी तक नहीं हुए हैं या हुए भी हैं तो आधे-अधूरे।

संक्रामक रोग एक व्यक्ति से दूसरे में फैलते हैं, कुछ वर्ष पहले ही कोविड -19 से पूरी दुनिया संक्रमित हुई और लाखों लोग सही इलाज के अभाव में मौत के मुंह में समा गए। संक्रामक बीमारी जीवाणु(बेक्टीरिया), विषाणु(वायरस), कवक(फंगी) और प्रोटोजोआ से फैलती हैं। ये बीमारी रोगग्रसित व्यक्ति  मे उपस्थित रोगणुओं के हवा या स्पर्श या साथ रहने पर संक्रमित करती है। मलेरिया, टाइफाइड। चेचक और फ्लू संक्रामक रोगों के उदाहरण हैं।

इधर जानवरों से इंसान में संक्रमण या जूनोटिक रोग के मामले  लगातार तेजी से बढ़ रहे हैं। चमगादड़, सूअर, कबूतर, मुर्गे द्वारा लगातार ऐसी बीमारियों के नाम सामने आए हैं, जिनसे व्यक्ति की जान तक  चली जा रही है। अभी हाल में ही केरल में चमगादड़ के वायरस से फैलने वाली बीमारी सामने आई, शासन और प्रशासन द्वारा तुरंत सावधानी बारात लिए जाने पर इस पर रोक लग गई। सूअरों के वायरस से फैलने वाली बीमारी स्वाइन फ्लू हा, जो श्वास से संबंधित होती है। मुर्गियों से बर्ड फ्लू, मच्छरों से मलेरिया, डेंगू,चिकनगुनिया है। कबूतर की बीत और पंख सांस संबंधित बीमारी फैलाते हैं।

शोधकर्ताओं ने ब्रिटिश मेडिकल जर्नल (बीएमजे) में वैश्विक स्वास्थ्य अध्ययन में इस बारे में चेताया है कि 2020 की तुलना में 2050 में 12 गुना अधिक लोगों के जानवरों से इंसान में संक्रमण या जूनोटिक रोग से मारे जाने की आशंका है। वर्ष 2008 में स्थापित अमेरिकी जैव प्रौद्योगिकी कंपनी जिंकगो बायोवर्क्स के शोधकर्ताओं ने कहा कि जानवरों से इंसानों में होने वाला संक्रमण, जिसे ‘स्पिलओवर’ संक्रमण भी कहा जाता है, अधिकांश आधुनिक महामारियों का कारण रहा है, जिसमें कोविड​​-19 भी शामिल है।

शोधकर्ताओं ने 60 वर्षों के ऐतिहासिक महामारी विज्ञान डेटा का विश्लेषण करते हुए तेजी से बढ़ते और बार बार होने वाले ‘स्पिलओवर’ संक्रमण के एक सामान्य पैटर्न का पता लगाया। इस विश्लेषण में कोविड​​-19 महामारी शामिल नहीं थी। शोधकर्ताओं ने कहा कि जलवायु और भूमि उपयोग में बदलाव के साथ जनसंख्या घनत्व और कनेक्टिविटी में वृद्धि से इस तरह के संक्रमण की आवृत्ति बढ़ने का अनुमान है।

हालांकि, शोधकर्ताओं ने कहा कि समय के साथ जूनोटिक रोगों की वार्षिक आवृत्ति और गंभीरता पर सीमित ऐतिहासिक डेटा के मद्देनजर भविष्य के वैश्विक स्वास्थ्य के लिए इन निष्कर्षों के निहितार्थ को चिह्नित करना मुश्किल है। इस प्रकार, निहितार्थ को समझने के लिए शोधकर्ताओं ने महामारी विज्ञान के अपने डेटाबेस का सहारा लिया, जो आधिकारिक स्रोतों की एक विस्तृत श्रृंखला के डेटा पर आधारित था, ताकि स्पिलओवर संक्रमण के रुझानों को देखा जा सके जो भविष्य के अपेक्षित पैटर्न पर प्रकाश डाल सकते हैं।

उनके डेटाबेस में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा रिपोर्ट की गई महामारी शामिल थी जिसमें 50 या ज्यादा लोग मारे गए। शोधकर्ताओं ने वायरस के चार समूहों पर ध्यान केंद्रित किया, जो उनके अनुसार, सार्वजनिक स्वास्थ्य और आर्थिक या राजनीतिक स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण खतरा पैदा करने की क्षमता रखते थे। ये समूह थे-फिलोवायरस (इबोला वायरस, मारबर्ग वायरस), सार्स कोरोना वायरस-1, निपाह वायरस और माचुपो वायरस, जो बोलिवियाई रक्तस्रावी बुखार का कारण बनता है।

टीम ने 1963 और 2019 के बीच 3150 से अधिक प्रकोपों ​​और महामारियों के मद्देनजर 24 देशों में कुल 75 स्पिलओवर मामलों की पहचान की। शोधकर्ताओं ने पाया कि इन मामलों के कारण कुल 17,232 मौतें हुईं, जिनमें से 90 प्रतिशत से अधिक (15,771) मौत फिलोवायरस के कारण हुईं। मौत के ज्यादातर मामले अफ्रीका से सामने आए। इसमें 40 से ज्यादा प्रकोपों के डेटा को शामिल किया।

इसके अलावा, उनके विश्लेषण में पाया गया कि वायरस के इन चार समूहों के कारण फैलने वाले संक्रमण और मौतों की संख्या में 1963 और 2019 के बीच हर साल क्रमशः लगभग पांच और नौ प्रतिशत की दर से बढ़ रही है।

शोधकर्ताओं ने अध्ययन में कहा है, ‘अगर वृद्धि की ये वार्षिक दर जारी रहती है तो अनुमान है कि विश्लेषण किए गए रोगाणुओं के कारण 2020 की तुलना में 2050 में स्पिलओवर संक्रमण के मामलों की संख्या चार गुना और मौत के मामलों की संख्या 12 गुना हो जाएगी।’ जो बहुत ही चिंता जनक है।

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