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राजस्थान चुनाव 2023 : नहीं बदली परम्परा, पाँच साल बाद भाजपा की सत्ता में वापसी

राजस्थान में कांग्रेस ने नारा दिया था ‘काम किया दिल से, कांग्रेस फिर से’, मगर अपने रिवाज़ को क़ायम रखते हुए राज्य ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया। भारतीय जनता पार्टी के उदय के बाद से राजस्थान में एक बार कांग्रेस और एक बार भाजपा का चलन 1993 से बदस्तूर जारी है। भारतीय […]

राजस्थान में कांग्रेस ने नारा दिया था ‘काम किया दिल से, कांग्रेस फिर से’, मगर अपने रिवाज़ को क़ायम रखते हुए राज्य ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया। भारतीय जनता पार्टी के उदय के बाद से राजस्थान में एक बार कांग्रेस और एक बार भाजपा का चलन 1993 से बदस्तूर जारी है। भारतीय जनता पार्टी को राजस्थान में खड़ी करने वाले भैरों सिंह शेखावत के बाद वसुंधरा राजे ने दो बार राज्य की सत्ता संभाली मगर इस बार यह परम्परा लगता है टूट जाएगी।

साल 2023 के राजस्थान चुनाव में कई चौंकाने वाले नतीजे आए हैं। जिस तरह भारतीय जनता पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व ने वसुंधरा राजे को आगे नहीं किया, यह लगता है कि पार्टी मुख्यमंत्री का चेहरा बदलना चाहती है। भारतीय जनता पार्टी की ओर से ओम बिड़ला, अश्विनी वैष्णव, गजेन्द्र सिंह शेखावत, बाबा बालकनाथ और सीपी जोशी मुख्यमंत्री पद की दौड़ में है। वसुंधरा ने माहौल भांपते हुए जयपुर में तीन दिसम्बर की दोपहर प्रेस कांफ्रेंस कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व को जीत की बधाई दी। राजेन्द्र राठोड़ के हारने से भाजपा की मुख्यमंत्री पद की दौड़ में एक चेहरा कम हुआ है। तय है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पसंद से ही मुख्यमंत्री का नाम तय होगा, और वसुंधरा के नाम पर शायद ही सहमति बने।

मतगणना पूरी होने के बाद  अंतिम परिणाम के तौर पर भारतीय जनता पार्टी  के खाते में 115, कांग्रेस के खाते में 69 सीटें गई हैं, बहुजन समाज पार्टी ने 2 तथा निर्दलीय और अन्य दलों ने 13 सीटों पर जीत दर्ज की है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी चुनाव जीत चुके हैं।बेहद रोमांचक चुनाव में भाजपा ने सभी कयासों को दरकिनार करते हुए शानदार जीत दर्ज की है और इसके पीछे कई कारण नज़र आते हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ट्वीट कर पहला कारण गिनवा दिया, “राजस्थान की जनता द्वारा दिए गए जनादेश को हम विनम्रतापूर्वक स्वीकार करते हैं। यह सभी के लिए एक अप्रत्याशित परिणाम है। यह हार दिखाती है कि हम अपनी योजनाओं, कानूनों और नवाचारों को जनता तक पहुंचाने में पूरी तरह कामयाब नहीं रहे।”

पार्टी के वरिष्ठ नेता राहुल गाँधी ने हार को स्वीकार करते हुए लिखा ‘मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान का जनादेश हम विनम्रतापूर्वक स्वीकार करते हैं – विचारधारा की लड़ाई जारी रहेगी।’

गहलोत केबिनेट के 13 मंत्री हारे

अगर हार जीत और रुझान को आंकड़ा मानें तो अशोक गहलोत केबिनेट के 25 में से 13 मंत्री चुनाव हार गए हैं। बानसूर सीट से राज्य उद्यम मंत्री शकुंतला रावत भाजपा के रोहिताश कुमार से हार गई हैं। कोलायत से ऊर्जा मंत्री भंवर सिंह भाटी को अंशुमान सिंह भाटी ने हराया, सपोटरा में पंचायत और ग्रामीण विकास मंत्री रमेश चंद मीणा को भाजपा के हंसराज मीणा ने हराया जबकि जयपुर शहर में सिविल लाइंस सीट पर भाजपा के उम्मीदवार और पत्रकार गोपाल शर्मा ने खाद्य और आपूर्ति मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास को हरा दिया। इसी तरह पोकरण से अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री शाले मुहम्मद, खाजूवाला से नीति और योजना मंत्री गोविंदराम मेघवाल, कामां से कला और संस्कृति मंत्री ज़ाहिदा ख़ान, बीकानेर पश्चिम से शिक्षा मंत्री बीडी कल्ला चुनाव हार गए हैं। लालसोट से स्वास्थ्य मंत्री परसादी लाल मीणा और मांडल से राजस्व मंत्री राज रामलाल जाट भी चुनाव हार गए। जयपुर से करीबी और हरियाणा की सीमावर्ती कोटपूतली सीट से उच्च शिक्षा राज्य मंत्री राजेन्द्र सिंह यादव मात्र 321 वोटों से चुनाव हार गए। सांचौर से कारखाना राज्य मंत्री सुखराम विश्नोई, निम्बाहेड़ा से सहकारिता मंत्री उदयलाल आंजना, डीग- कुम्हेर से पर्यटन मंत्री विजेन्द्र सिंह, वैर से लोक निर्माण मंत्री भजनलाल जाटव और अंता से खान मंत्री प्रमोद जैन भाया भी चुनाव हार गए।

सबसे बुरी हार वाले मंत्री परसादी लाल मीणा हैं। वह 47419 वोटों से हारे। फिर रमेश मीणा हैं। वह 43834 वोटों से हारे। प्रताप सिंह खाचरिवास 28329, रामलाल जाट 35878 वोटों से हार गए। शाले मुहम्मद 35427, गोविंद राम मेघवाल 17374, ज़ाहिदा खान 20516, बीडी कल्ला 20194 वोटों के अन्तर से हारे हैं।

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच राजनीतिक द्वेष ने भी कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया। सचिन पायलट के प्रभाव वाले पश्चिमी राजस्थान में कांग्रेस बुरी तरह चुनाव हार गई है।

नहीं हुआ योजनाओं का असर

कांग्रेस सरकार ने राजस्थान की चिरंजीवी स्वास्थ योजना को देश में सबसे बेहतर योजना बताकर प्रचार किया। किसी भी अस्पताल में 50 लाख रुपए तक के मुफ्त इलाज की योजना को जनता ने बहुत गंभीरता से नहीं लिया। इतना ही नहीं सबसे शर्मनाक हार तो स्वास्थ्य मंत्री परसादी लाल मीणा की ही हुई है। वह भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार राम बिलास से 47419 वोटों से हार गए। ऊपर दी गई जानकारी के अनुसार कई हैवीवेट मंत्री अपने ही विभाग की योजनाओं से अपनी विधानसभा को नहीं साध सके।

चुनाव की तारीखों की घोषणा के बाद से मुख्यमंत्री ने 7 गारंटी योजनाओं का एक पोस्टर जारी किया था, जिसे शिकायत के बाद चुनाव आयोग ने हटाने के लिए कहा था। पोस्टर में इन सात नई योजनाओं का वादा किया गया था-

  1. गृह लक्ष्मी गारंटी योजना
  2. गौधन गारंटी योजना
  3. फ्री लैपटॉप/टेबलेट योजना
  4. चिरंजीवी आपदा राहत बीमा गारंटी योजना
  5. ABC अंग्रेजी माध्यम शिक्षा योजना
  6. 500 रुपये में मिलेगा गैस सिलिंडर
  7. पुरानी पेंशन गारंटी योजना

योजना का पोस्टर

योजनाओं के साथ एक मिस्ड कॉल का नम्बर भी डाला गया था। भारतीय जनता पार्टी की शिकायत के बाद गहलोत ने इसका प्रचार रोक दिया। पहले से मुफ्त राशन, चिकित्सा, लड़कियों के लिए शिक्षा, फ्री लैपटॉप, कक्षा 12 तक की मुफ्त शिक्षा समेत कई योजनाओं को भी जनता ने तवज्जो नहीं दी। यही नहीं इन योजनाओं के अधिकांश जिम्मेदार मंत्रियों को धूल चटा दी।

सबसे महत्वपूर्ण पुरानी पेंशन योजना का लाभ राज्य कर्मचारियों से किया गया था। कई सीटों पर बैलट वोटों में भी कर्मचारियों ने भारतीय जनता पार्टी को ही वोट दिए।

बिना चेहरा, पक्के मुद्दे, जीती भाजपा

भारतीय जनता पार्टी ने राजस्थान में सबसे पहले मुख्यमंत्री के चेहरे को हटाकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को आगे रखा। इसके दो फायदे मिले। पहला जनता ने मोदी के नाम पर वोट दिया और दूसरा पार्टी के अन्दर गुटबाजी को नियंत्रित कर लिया गया। लगातार पेपर लीक, उदयपुर में टेलर कन्हैया लाल का हत्याकांड, कथित लाल डायरी, जिसमें भ्रष्टाचार का हिसाब था और महिला अत्याचार को भारतीय जनता पार्टी ने पकड़कर रखा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी कई जगह इसका ज़िक्र किया। कांग्रेस के विकासवादी मॉडल के सामने भाजपा ने विकास की बजाय भावनात्मक मुद्दों को आगे रखा। पार्टी को बिना चेहरे और ज्वलंत मुद्दों ने जबरदस्त धार दी और नतीजा सबके सामने है।

अपने दो महीने के दौरे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लगभग आधे ज़िलों में सभाएं कीं। इसमें उनकी 14 रैलियाँ और 2 रोड शो शामिल हैं। इस तरह 200 में से 102 सीटों तक पार्टी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का चेहरा ले जाने में कामयाब रही। इसमें काफी जनसमुदाय उमड़ा। इसका फायदा भी मिला और इन जनसम्पर्क वाली सीटों को भाजपा ने बहुत आसानी से जीत लिया।

इस दौरान नरेन्द्र मोदी केन्द्र की योजनाओं को राजस्थान से जोड़ते रहे और पार्टी ने धीमे धीमे जनाधार का रुख मोड़ दिया।

राजस्थान के चुनाव नतीजे उम्मीद के अनुसार ही रहे। राजस्थान की जनता बदल बदल कर अपने नेताओं को परखती रही है। देश के सबसे बड़े राज्य की जनता की यह स्वस्थ लोकतंत्र और जनहितैषी बनाए ऱखने की राजनीतिक समझ का परिचायक भी है।

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

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