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ग्राउंड रिपोर्ट

सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुच्छेद 370 हटाने को उत्तर प्रदेश पुलिस ने माना ‘कश्मीरियों के उत्पीड़न’ को अपना अधिकार

जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाला कानून जो संविधान के अनुच्छेद 370 के रूप में उल्लेखित है को अब सरकार के साथ सुप्रीम कोर्ट से भी समाप्त करने की सहमति मिल गई है। अब कश्मीर और कश्मीर के लोग भी देश में बिना किसी विशेष दर्जे के हो गए हैं। बिलकुल वैसे ही […]

जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाला कानून जो संविधान के अनुच्छेद 370 के रूप में उल्लेखित है को अब सरकार के साथ सुप्रीम कोर्ट से भी समाप्त करने की सहमति मिल गई है। अब कश्मीर और कश्मीर के लोग भी देश में बिना किसी विशेष दर्जे के हो गए हैं। बिलकुल वैसे ही जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार या फिर तमिलनाडु और केरल के नागरिक इस देश के नागरिक हैं उसी तरह कश्मीर के लोग भी देश के नागरिक होंगे। कश्मीर के लोगों को विशेष से सामान्य बनाने के पीछे सरकार और सुप्रीम कोर्ट की अवधारणा जो भी रही हो पर उत्तर प्रदेश की पुलिस की धारणा अब विलकुल साफ दिखने लगी है। दरअसल उत्तर प्रदेश की पुलिस सिर्फ ‘विशेष’ के सामने ही सम्मान से पेश आती है और अगर कोई बिना ‘विशेष’ वाला उसके हत्थे लग जाये तो पुलिस उसके साथ किस तरह पेश आती है इसके तमाम किस्से हैं। ताजा-ताजा सामान्य नागरिक में बदले कश्मीर के लोग जब लखनऊ पुलिस के हत्थे चढ़े तो पुलिस ने उनके साथ जो बर्बरता की है उसकी कहानी असद रिजवी की रिपोर्ट में पढ़ी जा सकती है। यह रिपोर्ट बता रही है कि उत्तर प्रदेश की पुलिस ने अनुच्छेद 370 हटाने को लाइसेन्स मान लिया है कि अब कश्मीर के लोगों को भी बेइज्जत करने और प्रताड़ित करने का हक उसके पास है।    

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में कश्मीर के खुदरा-फुटकर विक्रेताओं के लिए कारोबार करना अब मुश्किल होता जा रहा है। कश्मीर से शाल और ड्राई फ्रूट (मेवा) आदि बेचने आने वालों पर अतिक्रमण आदि के नाम पर उत्पीड़न की घटनाएँ सामने आ रही हैं। लखनऊ नगर निगम (एलएमसी) अतिक्रमण के नाम पर इनको दुकान नहीं लगाने नहीं देता है और पुलिस इनकी पिटाई कर, मुक़दमा लिख देती है। इन कश्मीरी दुकानदारों को तथाकथित भगवाधारी शरारती तत्वों द्वारा  भी परेशान किया जाता है।

ताज़ा मामला, 17 दिसंबर को 1090 चौराहे  के पास का है, जब लखनऊ नगर एलएमसी द्वारा ‘अतिक्रमण’ विरोधी अभियान के दौरान एक कश्मीरी विक्रेता को कथित तौर पर थप्पड़ मारा गया। जबकि कई अन्य मेवा विक्रेताओं को पकड़ कर पुलिस वाहनों में डाल ले जाया गया। इस इस पूरी घटना की वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गई, जिसमें पुलिस को एक विक्रेता के साथ मारपीट करते और कई लोगों को वैन में खींचते हुए देखा जा सकता है।

सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में एक पुलिसकर्मी को एक युवा विक्रेता को वैन के अंदर धकेलते समय थप्पड़ मारते हुए देखा जा रहा  है। वहीं एलएमसी के अन्य अधिकारियों को 1090 चौराहे के पास गोमती पुल पर अन्य विक्रेताओं को घसीटते हुए भी देखा गया। कश्मीरी विक्रेताओं ने आरोप लगाया कि वे अपने मेवे हटा रहे थे तभी अधिकारियों ने उनका सामान फेंकना शुरू कर दिया और विरोध करने पर उन्हें वाहनों के अंदर खींचना शुरू कर दिया।

एक विक्रेता ने कहा, ‘हम पिछले 10 वर्षों से लखनऊ में मेवे बेच रहे हैं। हम आजीविका कमाने के लिए 2,000 किलोमीटर की यात्रा करते हैं।’ मशकूर अहमद कहते हैं, ‘हमारे पास बच्चों का पेट भरने के लिए पैसे नहीं हैं क्योंकि कश्मीर में हमारे पास कोई काम नहीं है। हम यहां केवल मेवा बेचने के लिए आये  हैं, भीख मांगने के लिए नहीं।’

सड़क पर फेंक दिये गए मेवे

उन्होंने आरोप लगाया कि अधिकारियों ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया और मेवों को सड़क पर फेंक दिया।  मशकूर कहते हैं ‘मेवों के फेंकने से उनका 12-15 हज़ार रुपये का नुकसान हुआ है।’  मशकूर के अनुसार उनके परिवार में 10-12 सदस्य हैं, जिनकी जिम्मेदारी उन पर है। कश्मीर में बर्फ़बारी के दौरान, वह जीविका की तलाश में लखनऊ आते हैं।

पुलिस द्वारा इन कश्मीरी विक्रेताओं को हिरासत में लिए जाने के एक दिन बाद सोमवार की शाम को वकीलों के एक समूह ने कश्मीरी मेवा विक्रेताओं की ज़मानत कराई है।

वकील अनस अहमद ने बताया कि ‘हिरासत में लिए गए सात कश्मीरी मेवा विक्रेताओं का सीआरपीसी की धारा 151,107, 116 के तहत चालान किया गया था और वे गोमती नगर पुलिस स्टेशन में थे। तनवीर लॉ चैंबर्स के वकीलों के समूह द्वारा सोमवार को उनकी ज़मानत ली गई।’

अधिवक्ता ने आगे कहा कि, ‘रविवार को कश्मीरी विक्रेताओं को लखनऊ पुलिस और एलएमसी ने सूखे मेवे बेचने के आरोप में पकड़ लिया था, जिसके जवाब में हमारी पूरी कानूनी टीम उनकी ज़मानत के लिए गई थी और हमारी टीम के प्रयास से निर्दोष कश्मीरी लोगों को रिहा कर दिया गया।’ ज़मानत के लिए जाने वाले अधिवक्ताओं में मोहम्मद तनवीर, अनस अहमद, नुसरत हुसैन और मोहम्मद तैय्यब थे ।

उन्होंने ने बताया कि, पुलिस को 50,000 का ज़मानत बांड दिया गया और उनके साथ एक शपथ पत्र पर हस्ताक्षर किया गया था कि उनके द्वारा विशेष स्थान पर सामान अब  नहीं बेचा जाएगा।

हालाँकि पुलिस ने मामले में कहा है कि ‘वीआईपी मूवमेंट’ के कारण उन्हें हटाया गया और युवाओं ने अधिकारियों के साथ दुर्व्यवहार किया।पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) पूर्वी, आशीष श्रीवास्तव के अनुसार, ‘1090 से समता मूलक के बीच का मार्ग एक वीआईपी सड़क है और उस खंड पर वीआईपी लोगों की आवाजाही के कारण एलएमसी वहां समय-समय पर पुलिस की मदद से अतिक्रमण विरोधी अभियान चलाती है।’

डीसीपी ने आगे कहा कि ‘रविवार को मुख्यमंत्री को सड़क से गुज़रना था, जिसके लिए एलएमसी अधिकारी अतिक्रमण हटाने के लिए वहां गए थे। हालांकि, वहां मेवा बेचने वाले युवाओं ने एलएमसी अधिकारियों के साथ दुर्व्यवहार किया जिसके बाद बल प्रयोग करके उन्हें पुलिस स्टेशन लाया गया।’

पुलिस द्वारा गिरफ्तार कश्मीरी विक्रेता

डीसीपी ने बताया की, ‘कश्मीरी विक्रेताओं पर सीआरपीसी की धारा 151 के तहत मुक़दमा दर्ज किया गया है और उस सड़क पर वीआईपी आवाजाही के कारण उस रास्ते से बचने की चेतावनी दी गई थी।’

मामले ने सियासी रंग भी ले लिया और विपक्ष द्वारा शासन-प्रशासन को निशाना बनाया जाने लगा। समाजवादी पार्टी (सपा) ने इस घटना की जाँच की मांग की है। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक्स (ट्विटर) पर अपना विरोध जताते हुए लिखा, ‘देश भर में जीविकोपार्जन एवं व्‍यवसाय करने की स्‍वतंत्रता का अधिकार हर नागरिक का सांविधानिक मूलभूत अधिकार है, ये बात संविधान की शपथ लेकर सत्ता ‘चलाने वालों’ को याद दिलायी जाए। नियमों के उल्लंघन के स्थान पर यदि दुर्भावना इसका आधार है तो देश के लिए इससे दुर्भाग्यपूर्ण कुछ नहीं हो सकता।’ ‘इस असंवैधानिक कृत्य की तत्काल जाँच हो और इसके पीछे की सही मंशा के आधार पर कार्रवाई की जाए।’

कांग्रेस नेता सदफ़ जफ़र ने कहा कि ‘ये वो लखनऊ नहीं है, जहां हमने साथ खड़े होना सीखा, मुहब्बत, दोस्ती की परिभाषा को समझा, जिया।साल भर बंगाली साड़ी वाले और कश्मीरी शॉल मेवे वालों का इंतजार किया जाता रहा है। ये वो देश अब नहीं जहां मिली को काबूलीवाले की सूरत में एक दोस्त मिला था।’ ‘मेरा मुल्क वाकई बहुत बीमार है।’

बता दें कि कश्मीरी विक्रेताओं के साथ 2019 के बाद से यह चौथी घटना थी जिसमें कश्मीरी विक्रेताओं के व्यवसाय को या तो पुलिस-एलएमसी या दक्षिणपंथी समूहों द्वारा बाधित किया गया है।

ऐसा ही एक मामला नवम्बर में भी हुआ था।  गोमती नदी क्षेत्र के पास सड़क के किनारे अपना सामान फैला कर बेच रहे कश्मीरी विक्रेताओं को 25 नवंबर को भी एलएमसी के अधिकारियों ने कथित ही तौर पर हटा दिया था। उस समय कहा गया था, विक्रेताओं के साथ ऐसा, यातायात प्रवाह में व्यवधान को रोकने के लिए किया गया था, क्योंकि क्षेत्र से गुजरने वाले ग्राहक अक्सर उनसे सूखे फल खरीदने के लिए अपने वाहनों को रोकते हैं।

उस समय भी कश्मीरी विक्रेताओं को परेशान करने वाली एलएमसी टीम का एक वीडियो सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से साझा किया गया था। विक्रेताओं ने कहा था कि ‘अधिकारियों ने उनके सूखे फल जब्त कर लिए और उन्हें केवल तभी लौटाया जब उन्होंने एक शपथ पत्र पर हस्ताक्षर किए कि वे इन स्थानों पर या सड़क के किनारे सूखे फल नहीं बेचेंगे।’ कश्मीरी विक्रेताओं का आरोप था की अधिकारियों ने उनको धमकाया कि ‘अगर तुम दोबारा यहां दिखे तो हम तुम्हारी टांगें तोड़ देंगे और तुम्हारा सामान भी वापस नहीं करेंगे।’

जबकि एलएमसी के अनुसार, जिस इलाके से अधिकारियों ने वेंडरों को हटाया वह ‘नो-वेंडिंग ज़ोन’ में आता है। एक विक्रेता ने आरोप  लगाया कि इस साल की शुरुआत में, फरवरी में, कुछ लोग जो कथित तौर पर एलएमसी  के कर्मचारी थे, ने कश्मीरी विक्रेताओं के एक समूह के साथ दुर्व्यवहार किया और उनके बैग गोमती नदी में फेंक दिए।

राजधानी के डालीगंज पुल पर मार्च 2019 को भगवा पहने लोगों द्वारा,  दो कश्मीरी विक्रेताओं पर हमला किया गया था, जहां अन्य  विक्रेता भी सब्जियां, फल और अन्य सामान बेचने के लिए स्टॉल लगाते थे। उस समय भी कश्मीरी विक्रेताओं अब्दुस सलाम और मोहम्मद अफ़ज़ल नाइक को थप्पड़ मारे गए, लाठियों से पीटा गया।

इसके अलावा उन्हें ‘मौखिक’ दुर्व्यवहार और कश्मीर विरोधी टिप्पणियों का भी सामना करना पड़ा था। बताया जाता है लोगों ने उन्हें ‘आतंकवादी’ और ‘पत्थरबाज़’ कहा भी कहा था। इस घटना का वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल किया गया था

बाद में इस घटना के कारण व्यापक आक्रोश फैल गया, जिसके बाद पुलिस ने एक दक्षिणपंथी समूह, विश्व हिंदू दल ट्रस्ट से जुड़े चार लोगों को गिरफ्तार किया था ।

कश्मीरी ड्राई फ्रूट विक्रेताओं का कहना है कि ‘सब जानते हैं कि हम लोग इतनी दूर से आते हैं, फिर भी बाजारों में उपलब्ध मेवों की तुलना में सस्ती दरों पर अच्छी गुणवत्ता वाले मेवे बेचते हैं।’  उनका कहना है कि ‘उन्हें लगता है कि प्रशासन को उनके प्रति सहानभूति होना चाहिए।’ वह मांग करते हैं कि प्रशासन उन्हें अपने उत्पाद बेचने के लिए एक स्थान आवंटित करे, ताकि स्थानीय अधिकारी उनका शोषण न करें या उन्हें डरा-धमका न सकें।

फ़ोटो: सुमित 

असद रिज़वी स्वतंत्र पत्रकार हैं। 

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