Monday, June 9, 2025
Monday, June 9, 2025




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमराष्ट्रीयभोपाल गैस कांड : मानवीयता कभी खत्म नहीं हुई, पीड़ित लोगों के...

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

भोपाल गैस कांड : मानवीयता कभी खत्म नहीं हुई, पीड़ित लोगों के संघर्ष के साथ हैं ये लोग

भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड प्लांट में 2 दिसंबर 1984 को आधी रात में मिथाइल आइसोनेट (एमआईसी) के रिसाव के कारण लगभग दस हजार लोगों की मौत हो गई थी। इस हादसे को आज 40 वर्ष हो जाने के बाद भी बचे हुए लोगों के स्वास्थ्य पर इसका असर देखा जा रहा है। हादसे के बाद भोपाल की जो स्थिति थी, उसे संभालने के लिए अनेक संस्थाओं और व्यक्तियों ने लगातार गैस पीड़ितों के लिए काम किया।

भोपाल गैस कांड को इस बार 40 साल पूरे चुके हैं लेकिन इसके पीड़ितों को अभी भी इंसाफ का इन्तजार है। इस त्रासदी के दौरान और उसके बाद कई ऐसे चहरे रहे हैं जिनकी पीड़ितों की जान बचाने के साथ-साथ इस संघर्ष को आगे बढ़ाने में भूमिका रही है

शकील खान

आज इनके बारे में अधिक चर्चा नहीं होती है लेकिन गैस पीड़ित और भोपाल के पुराने लोगों के जेहन में इनकी याद अभी भी जिन्दा है। शकील खान उस शख्स का नाम है जिन्होंने हादसे की रात अपनी जान गवां कर भोपाल के लाखों बाशिंदों की जान बचाई थी। दरअसल शकील यूनियन कार्बाइड कारखाने में काम करने वाले मजदूर थे, जिस रात यह हादसा हुआ उस वक्त फैक्ट्री का लगभग पूरा स्टॉफ अपना जा चुका था जिसमें शकील भी शामिल थे लेकिन गैस रिसाव की जानकारी मिलते ही वे तुरंत अपने घर से फैक्ट्री की ओर निकल पड़े जबकि उस वक्त लीक होने वाली गैस इतनी जहरीली थी, कि फैक्टी में जाने की हिम्मत जुटा पाना एक बड़ा रिस्क था लेकिन शकील खान अपनी जान की परवाह किये बिना ना सिर्फ फैक्ट्री की तरफ गये बल्कि वहां से लीक हो रही गैस का वॉल्व बंद करने के लिए वे करीब 20 से 30 फिट ऊंचे टैंक पर चढ़ गए इस तरह उन्होंने अपनी जान पर खेलते हुए उस पाइप के वॉल्व को बंद कर दिया था लेकिन इसके बाद वे बेहोश होकर टैंक से नीचे गिर गये और बाद में उन्हें अपने जान से भी हाथ धोना पड़ा। इसी के साथ ही वे लाखों लोगों की जिंदगियां बचाने में भी कामयाब हो गये थे। बाद में फैक्ट्री की जांच में सामने आया था कि उस दुर्घटना की दिन प्लांट में तीन दिनों तक रिसने के हिसाब की गैस थी, और अगर सिर्फ 24 घंटे ही गैस का रिसाव होता रहता तो वह यह पूरे शहर को मौत की नींद सुलाने के लिए पर्याप्त था जबकि तीन दिनों में तो यह प्रदेश के दूसरे हिस्सों को भी को भी अपनी चपेट में ले सकता था। अंदाजा लगाया जा सकता है कि अगर शकील ने अपनी जान गंवाकर उस वॉल्व को बंद नहीं किया होता तो मरने वालों का आंकड़ा क्या होता।

राजकुमार केसवानी, भोपाल गैस त्रासदी को दुनिया के सामने लाने वाले पहले पत्रकार

राजकुमार केसवानी भोपाल गैस त्रासदी से पहले इसके बारे में चेताने वाले पहले पत्रकार थे उन्होंने 1982 से 1984 के बीच इस मसले पर चार लेख लिखे थे और अपने हर लेख में उन्होंने इसके खतरे के बारे में चेताया था। उनके इन लेखों के शीर्षक इस प्रकार थे, ‘बचाइए हुज़ूर इस शहर को बचाइए’, ‘ज्वालामुखी के मुहाने बैठा भोपाल’, ‘न समझोगे तो आख़िर मिट ही जाओगे’ और गैस के रिसाव से ठीक छह महीने पहले प्रकाशित उनके लेख का शीर्षक था ‘भोपाल: एक आपदा के कगार पर’  जिसमें उन्होंने संभावित आपदा के बारे में स्पष्ट चेतावनी दी थी।

राजकुमार केसवानी

यही नहीं राजकुमार केसवानी ने नवंबर 1982 में मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह को पत्र लिखकर संयंत्र से होने वाले खतरों की चेतावनी भी दी थी। गैस कांड के बाद उन्होंने इसको लेकर न्यूयॉर्क टाइम्स के लिए इंवेस्टिगेटिव सीरीज की थी जिससे पूरी दुनिया को इस त्रासदी की भयावहता के बारे में पता चला। 21 मई 2021 को करोना की वजह से उनकी मौत हो गयी।

आलोक प्रताप सिंह, जहरीली गैस कांड संघर्ष मोर्चा

आलोक प्रताप सिंह गैस पीड़ितों के हक में आवाज उठाने वाले पहले व्यक्ति थे, भोपाल गैस त्रासदी के चार दिन बाद ही शहर के सरोकारी और चिंतनशील नागरिकों के साथ मिलकर उन्होंने जहरीली गैस कांड संघर्ष मोर्चा नाम से संगठन बनाया, जिसने त्रासदी का शिकार हुए पीड़ितों के हक में सबसे पहली आवाज बुलंद की। इसी संगठन द्वारा गैस पीड़ितों की तरफ से सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई, जिसके आधार पर ही न्यायालय के आदेश द्वारा पहली बार पीड़ितों को  मुआवजा देने का फैसला दिया गया। आलोक प्रताप सिंह गैस पीड़ितों के हित की लड़ाई लड़ते-लड़ते 6 साल पहले इस दुनिया से चले गए हैं, लेकिन उनका संगठन अभी भी सक्रिय है।

अब्दुल जब्बार, भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन

abdul jaffar-gaonkelog
अब्दुल जफ्फार

इन्हें गैस पीड़ितों के संघर्ष का भी कहा जाता है। अब्दुल जब्बार को लोग प्रेम से (जब्बार भाई) नाम से पुकारते थे इन्होंने अकेले ही बीते 35 सालों तक भोपाल गैस पीड़ितों के लड़ाई को पूरे जुनून के साथ लड़ी। इसी साल बीते महीने 14 नवंबर को लंबी बीमारी के बाद उनका देहांत हो गया। अब्दुल जब्बार कोई प्रोफेशनल सामाजिक कार्यकर्ता नहीं थे बल्कि, उन्होंने गैस पीड़ितों के हित और उन्हें इंसाफ दिलाने का प्रण लिया था और इसी को उन्होंने मरते दम तक मिशन बनाए रखा अब्दुल जब्बार को गैस पीड़ितों के प्रति दर्द इसलिए भी ज्यादा था, क्योंकि वो खुद भी गैस त्रासदी का शिकार हुए थे, मिथाइल आइसोसाइनाइट का गहरा असर उनकी आंखों और फेफड़ों पर भी काफी ज्यादा हुआ था, जिसकी पीड़ा उन्हें जीवनभर रही। इन पीड़ाओं को परे रखते हुए सामूहिक संघर्ष का रास्ता चुना और गैस पीड़ितों के संघर्ष का चेहरा बन गए। उनके संघर्ष के बूते पर ही करीब पौने 6 लाख गैस पीड़ितों को मुआवजा और यूनियन काबाईड के मालिकों के खिलाफ कोर्ट में मामला दर्ज कराने में कामयाबी मिली थी। इस पूरी लड़ाई से उन्होंने अपने निजी हितों को पूरी तरह से दूर रखा और अपने अंतिम समय तक शहर के राजेंद्र नगर के अपने दो कमरों के पुराने मकान में ही रहे। पिछले दिनों भारत सरकार द्वारा उन्हें मरणोपरांत पद्मश्री से सम्मानित किया गया है।

रशीदा बी, भोपाल गैस त्रासदी पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ

रशीदा बी और चंपा देवी को गोल्डमैन पर्यावरण अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार

भी उन बदनसीबों में शामिल थीं जिन्होंने इस गैस त्रासदी में अपनों को खोया था। इस हादसे में राशिदा बी ने अपने जख्मी पति और पिता को छोड़ परिवार के 6 लोगों को खोया था। लेकिन इन सबके बावजूद भी उन्होंने गैस त्रासदी से प्रभावित बच्चों की मदद की मदद का फैसला लिया और एक अन्य गैस पीड़िता चम्पा देवी के साथ मिलकर चिंगारी ट्रस्ट की स्थापना की जिसके काम को दुनिया भर में सराहा गया। अपने कामों के लिए उन्हें और चम्पा देवी को गोल्डमैन पर्यावरण अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।

बालकृष्ण नामदेव, भोपाल गैस त्रासदी पीड़ित निराश्रित पेंशनभोगी संघर्ष मोर्चा

भोपाल गैस पीड़ित निराश्रित पेंशनभोगी संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष बालकृष्ण नामदेव ने गैस पीड़ितों के पुनर्वास और रोजगार के लिए मिली राशि की धांधली को उजागर करने का लगातार काम किया। वे आज भी पूरी तरह से अपने इस काम में सक्रिय हैं।

 सतीनाथ षड़ंगी और रचना ढिंगरा, भोपाल ग्रुप फॉर इन्फर्मेशन एंड एक्शन

भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एंड एक्शन से जुड़े सतीनाथ षड़गी और रचना ढींगरा ने गैस पीडि़तों के लिए मुआवजे और स्वास्थ्य देखभाल को लेकर निरंतर सक्रिय हैं

साफरीन ख़ान, डाव-कार्बाइड के ख़िलाफ बच्चे

डाव-कार्बाइड के ख़िलाफ बच्चे संगठन की संस्‍थापिका साफरीन खान लगातार एक ऐसे अधिकार प्राप्त आयोग के गठन की मांग करती आ रही हैं जिनके पास गैस पीडि़तों के पुनर्वास, चिकित्सा आदि के लिए पर्याप्त कोष और अधिकार हो।

 

 

जावेद अनीस
जावेद अनीस
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और और विभिन्न मुद्दों व विषयों पर लिखते हैं। भोपाल में रहते हैं।
1 COMMENT
  1. बहुत ही सार्थक रपट है यह रपट हमें पीड़ितों के लिए संघर्ष करने उनकी आवाज़ बनने वालों की ही कहानी बयां नहीं करता है बल्कि पाठकों को भी संघर्ष के लिए प्ररित करता है
    एक सुझाव रपट में कई बार दुहराव है, इस पर ध्यान दें साथ ही बीच बीच में शब्द छुट गये हैं ।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Bollywood Lifestyle and Entertainment