दिल्ली के आंगनवाड़ी वर्कर्स और हेल्पर पिछले दो साल से अपनी मांगों को लेकर आंदोलनरत हैं। इस दौरान महिलाओँ ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल और उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के बंगले के सामने प्रदर्शन किया लेकिन पिछले दो साल से कोई हल नहीं निकला।
दिल्ली राज्य के अंतर्गत लगभग 10,897 कार्यकर्ता और 9,451 सहायिका नियुक्त हैं। वेतन बढ़ोतरी की मांग उठाने के कारण दो साल पहले 874 सहायिकाओं को टर्मिनेट कर दिया गया था, जिन्हें आज तक बहाल नहीं किया गया।
दो साल बाद भी एक भी मांग पूरी नहीं
जब लोकसभा चुनाव शुरू होने की कगार पर है तो फिर महिलाएं अपनी मांगों को लेकर दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना प्रदर्शन करने पहुंच गईं। दिल्ली स्टेट आंगनवाड़ी वर्कर्स और हेल्पर्स यूनियन के बैनर तले रविवार को सुबह दस बजे से ही दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों से महिलाएं जंतर-मंतर के आसपास इक्ट्ठा होने लगीं।
आंदोलन का समय एक बजे निर्धारित किया गया था, जैसे ही सभी महिलाएं दोपहर के एक बजे के बाद आंदोलन करने के लिए जंतर-मंतर पहुंची, पुलिस ने लोगों को डिटेन कर लिया।
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दिल्ली में फिलहाल 13 फरवरी से शुरू हुए किसान आंदोलन के बाद से ही धारा 144 लगा दी गई है, जिसके तहत जंतर-मंतर पर किसी तरह का धरना प्रदर्शन नहीं करने दिया जा रहा है। आंदोलन करने आई महिलाओं का कहना है कि इस तरह से धारा लगाकर उनके संवैधानिक अधिकार ‘राइट टू प्रोटेस्ट’ का हनन किया जा रहा है।
महिलाओं की मांग का सिलसिला लगभग दो साल पहले 31 जनवरी 2022 को दिल्ली के सीएम हाउस के पास से शुरू हुआ, जिसमें आंगनवाड़ी कर्मचारी को सरकारी कर्मचारी का दर्जा देने, आंगनवाड़ी वर्करों को 25000 और हेल्पर्स को 20000 रुपए वेतन, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का बकाया देने और आंगनवाड़ी कर्मियों को पेंशन और ग्रेच्युटी की सुविधा देने की मांग उठाई गयी।
इन्हीं मांगों के लेकर महिलाएं पिछले दो सालों से दिल्ली की सड़कों पर संघर्षरत हैं। मांगों के पीछे का एक मुख्य कारण यह है कि यहां कई महिलाएं सिंगल मदर हैं और इतने कम पैसे में घर का गुजारा चलाना बड़ा मुश्किल हो जाता है।
चार किलो राशन से नहीं चल रहा घर
शीला देवी दिल्ली के सीमापुरी इलाके में कार्यरत हैं, उनके चार बच्चे हैं और पति ने उन्हें छोड़ दिया है। बच्चों और घर की जिम्मेदारी शीला देवी के कन्धों पर आ गयी है।
‘गांव के लोग’ से बात करते हुए उन्होंने बताया, ‘मैं सीमापुरी में एक झुग्गी में रहती हूं। दो बेटा और दो बेटी है, आंगनवाड़ी में काम करने से पहले मजदूरी करती थी ताकि बच्चों को किसी तरह से पाल सकूँ लेकिन इस सरकार ने हमसे काम छीन लिया। बच्चे मजदूरी करते हैं किसी तरह गुजारा चल रहा है।’
आर्थिक तंगी के चलते शीला देवी अपने बच्चों को ज्यादा पढ़ा न सकीं। अब बेटे बड़े हो गए हैं उन्हीं की मजदूरी से परिवार का पेट पल रहा है।
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वहीं शीला की चिंता है कि अगर नौकरी वापस नहीं मिली तो भविष्य में क्या होगा?
आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर उनके मन में बहुत गुस्सा है। गुस्से में वह कहती हैं, ‘सरकारें कहती हैं हम महिलओं का बहुत सम्मान करते हैं, लेकिन यह सम्मान कहीं दिखाई नहीं देता है। आज हम लोग इनके कारण ही पिछले दो साल से पैसों के लिए सड़कों पर बैठे हैं। इसलिए मैंने सोच लिया है, मैं न तो वोट दूंगी और न ही देने दूंगी। अगर सरकार हमारी बात नहीं मान रही है तो हम इनकी क्यों मानें?’
पीएम मोदी करोड़ों परिवारों को राशन दे रहे हैं इस बात पर शीला देवी आग बबूला हो जाती हैं। वह कहती हैं ‘कोई मुझे ये बताए कि चार किलो राशन से क्या होगा? इसके साथ नून तेल की भी जरूरत होती है। हमें दवाई की भी जरूरत होती हैं। किसके पास जाकर पैसा मांगे?
बच्चों की पढ़ाई-लिखाई छूट रही
ऐसी ही स्थिति दूसरी आंगनवाड़ी वर्कर सनो की भी है। वह संसद मार्ग की सड़क पर बैठी अपनी साथियों का इंतजार कर रही हैं ताकि उऩके साथ थाने जा सकें और बाकी साथियों को पता लगाया जा सके। वह अपने साथ सूखी रोटी और आलू की भुजिया लेकर आई थीं।
सनो सीमापुरी में ही एक किराए के मकान पर रहती हैं। सनो के कंधों पर भी बच्चों को पालने की जिम्मेदारी है, उनके पति ने दो शादियां की हैं। अब दोनों परिवारों की जिम्मेदारी पति पर है। सनो के अनुसार पति उतना खर्च नहीं देता जिससे घर चल सके। इसलिए बच्चों को लिए उन्हें खुद काम करना पड़ता है। दो साल पहले सनो को काम से भी निकाल दिया गया।
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सनो के चार बच्चे हैं, तीन सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं। वहीं फीस के अभाव में बच्चे को ट्यूशन से हटा दिया है। वह ‘गांव के लोग’ को बताती हैं, ‘पैसे की तंगी के कारण बड़ी बेटी को 10वीं के बाद पढ़ा नहीं सकीं। इस बात का मलाल पूरी जीवन भर रहेगा। बाकी बच्चों को पढ़ाने का पूरी कोशिश कर रही हूँ।’
जो कभी योद्धा थे वे आज सड़क पर हैं
सनो या शीला ही मुसीबत का सामना नहीं कर रही हैं बल्कि सैकड़ों महिलाएं इसी तरह रोजमर्रा के जीवन में आने वाली समस्याओं का सामना कर रही हैं। महिलाएं सरकारों पर बहुत गुस्सा हैं। वह कहती हैं हम वह योद्धा हैं जिन्हें भुला दिया गया है, क्योंकि हम लोग वर्कर्स हैं।
वह कोरोना के दिनों को याद करते हुए कहती हैं, ‘हमने अपनी जान जोखिम में डालकर लोगों की जान बचाई, लोगों के घरों तक पहले राशन पानी पहुंचाया, फिऱ वैक्सीन लगवाने में भी मदद की इसके बावजूद आज हमें सड़कों पर बैठा दिया गया है। इस बार के चुनाव का हमलोग पूरी तरह से विरोध करते हैं।’
साल 2022 में हुए दिल्ली नगर निगम चुनाव के दौरान भी आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने इसका विरोध किया था। महिलाओं ने जहां-जहां रहती थी वहां ही सरकार का विरोध किया। फिलहाल इस आंदोलन को दो साल से ज्यादा का समय हो गया है जिसमें कई बार छोटे-बड़े आंदोलन किए गए।
सामजिक कार्यकर्ता प्रियंवदा के अनुसार इन दो सालों के दौरान पहले सीएम आवास के बाहर लगभग 17 दिनों तक भूख हड़ताल की गई, इसके बाद भी जो महिलाएं इस आंदोलन में शामिल हुई उनमें 874 महिलाओँ को टर्मिनेट कर दिया गया। जिसमें ज्यादातर सिंगल मदर हैं।
एक बड़े आंदोलन का जिक्र करते हुए वह कहती हैं कि इसके ही विरोध में जब एक साल हमारी बात किसी भी सरकार ने नहीं सुनी तो पिछले साल एक मई मजदूर दिवस के दिन मंडी हाउस से जंतर-मंतर तक एक मार्च का आयोजन किया गया। इस दौरान भी पुलिस पहले हमें मंडी हाउस से डिटेन कर लिया। उसके बाद जंतर-मंतर ही लाकर छोड़ दिया। जहां हमने एक बड़ी मीटिंग कर अपने विरोध को दर्ज किया था।
फिलहाल केजरीवाल की दिल्ली सरकार और केंद्र की मोदी सरकार का रवैया देख कर यह नहीं लगता कि आंगनवाड़ी की वर्कर्स को जल्दी कोई राहत मिलने जा रही है।