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क्या भाजपा की शक्ति के स्रोतों से अनजान हैं अखिलेश और उनके सलाहकार!

बीते 20 फरवरी को यूपी में तीसरे चरण का वोट पड़ गया। इस दिन एक राष्ट्रीय दैनिक पत्र में समाजवादी पार्टी के प्रचार सामग्री पर एक खास रिपोर्ट छपी थी। इसके आधार पर कयास लगाया जा सकता हैं कि आगे के चार चरणों में यह किन मुद्दों के आधार पर मतदाताओं को आकर्षित करने जा […]

बीते 20 फरवरी को यूपी में तीसरे चरण का वोट पड़ गया। इस दिन एक राष्ट्रीय दैनिक पत्र में समाजवादी पार्टी के प्रचार सामग्री पर एक खास रिपोर्ट छपी थी। इसके आधार पर कयास लगाया जा सकता हैं कि आगे के चार चरणों में यह किन मुद्दों के आधार पर मतदाताओं को आकर्षित करने जा रही है। ‘चुनावी रण के लिए सपा का नया शस्त्र’ शीर्षक से तैयार इस रिपोर्ट में लिखा है- समाजवादी पार्टी भाजपा के वर्ष 2017 के संकल्प पत्र के वादों की याद जनता को दिलाने के लिए नई प्रचार सामग्री तैयार की है। इसमें किसानों की आय दोगुनी नहीं होने, बेरोजगारी, कानून व्यवस्था, महँगाई जैसे तमाम मुद्दों पर भाजपा को घेरने के की कोशिश की गई है। चुनावी रण के लिए तरकश में सपा ने ऐसे नए तीर शामिल किए हैं, जिनमें भाजपा पर कड़ा प्रहार करने के साथ ही जनता से किए गए अपने वादे की याद दिलाई जा रही है। ‘इस बार अखिलेश’ नाम से सपा ने प्रचार की नई रणनीति बनाई है।

[bs-quote quote=”सपा ने महँगाई को लेकर भी भाजपा पर वार करने वाले वीडियो बनाए हैं। अलग-अलग वर्गों की समस्याओं को लेकर अलग-अलग वीडियो बनाए हैं। कोरोना के दौरान अपनों को खोने के दुख पर भी कई वीडियो बनाए गए हैं। ‘सोच इमानदार-काम दमदार’ पर भी गुस्से में कहते हैं कि तुम्हारे दोगलेपन को भूलेंगे नहीं… प्रचार- प्रचार-प्रचार, अब उखाड़ फेकेंगे यह झूठी सरकार।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

यह चंद वीडियो उदाहरण भर हैं जो सपा के उस तरकश में शामिल हैं, जिसके सहारे वो चुनावी रण में सत्ताधारी दल भाजपा पर वार कर रही है। सपा इसे इंटरनेट मीडिया पर डालने के साथ ही अपने प्रचार-वाहन में भी चला रही है। पहले वीडियो में हरे रंग की टी- शर्ट पहने और माथे पर तिलक लगाए एक मध्यमवर्गीय इनसान को दिखाया गया है, जो भाजपा सरकार के वादों की याद दिलाते हुए उस पर प्रहार कर रहा है। दूसरा वीडियो गाँव के परिवेश का है जिसमें एक बुज़ुर्ग माँ की आँखों में आँसू हैं और वो चूल्हे पर खाना बनाते हुए अखिलेश को याद कर रही है। तीसरे वीडियो में एक बेरोजगार युवा की दुखी माँ को दिखाया गया है, जो बेटे को लाठियों से पिटने पर आक्रोश जाता रही है। एक अन्य वीडियों में एक युवा कह रहा है कि 2017 में हमसे वादा किया 14 लाख रोजगार हर साल देंगे। आज जब हम रोजगार माँगने आए हैं तो खुले मंच से श्राप दे रहे हैं कि पूरी जिंदगी बेरोजगार रह जाओगे। अगर नहीं दे सकते तो हट जाइए। बहुत हो गई बेइज्जती… युवाओं का स्पष्ट संदेश, इस बार अखिलेश…!

सपा ने महँगाई को लेकर भी भाजपा पर वार करने वाले वीडियो बनाए हैं। अलग-अलग वर्गों की समस्याओं को लेकर अलग-अलग वीडियो बनाए हैं। कोरोना के दौरान अपनों को खोने के दुख पर भी कई वीडियो बनाए गए हैं। ‘सोच इमानदार-काम दमदार’ पर भी गुस्से में कहते हैं कि तुम्हारे दोगलेपन को भूलेंगे नहीं… प्रचार- प्रचार-प्रचार, अब उखाड़ फेकेंगे यह झूठी सरकार। इसके अलावा महँगी बिजली, किसानों के खाद की समस्या, गन्ने का भुगतान, युवाओं को फ्री-लैपटॉप और एक जीबी डाटा न देने, नई पेंशन योजना सहित तमाम मुद्दों पर वीडियो बनाकर भाजपा सरकार को घेरने की कोशिश हुई है। बहरहाल, जिन वीडियोज को हथियार बनाकर सपा भाजपा जैसे अतिशक्तिशाली दल से लड़ने जा रही है। उन वीडियो की प्रभावकारिता को देखते हुए ऐसा लगता है जैसे इसके पीछे सक्रिय लोगों और खुद अखिलेश यादव को न तो भाजपा की शक्ति के स्रोतों का इल्म है और न ही उसके हेट पॉलिटिक्स के असर का।

[bs-quote quote=”अब जिस जोरदारी से भाजपा देश की दिशा तय करने वाले यूपी में नफरत की राजनीति के अचूक हथियार को धार दे रही है, उसका मुकाबला भाजपा की वादाखिलाफी, बेरोजगारी, महँगाई, महँगी बिजली, गन्ने का भुगतान, किसानों की खाद समस्या इत्यादि जैसे रूटीन मुद्दों पर वीडियो बनाकर किया जा सकता है, इस सोच पर तरस ही खाया जा सकता है। ऐसे में अगर अखिलेश यादव और उनके सलाहकार वास्तव में भाजपा को मात देने के लिए गम्भीर हैं तो उन्हें काँटे से काँटा निकालने, ज़हर की काट ज़हर से करने की रणनीति पर काम करना होगा।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

भाजपा की शक्ति का प्रधान स्रोत डॉ. हेडगेवार द्वारा स्थापित आरएसएस है। अपने किस्म के विश्व के इकलौते संगठन आरएसएस के पीछे भारतीय मजदूर संघ, सेवा भारती, राष्ट्रीय सेविका समिति, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, विश्व हिन्दू परिषद, स्वदेशी जागरण मंच, सरस्वती शिशु मंदिर, विद्या भारती, वनवासी कल्याण आश्रम, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच, बजरंग दल, अनुसूचित जाति आरक्षण बचाओ परिषद, लघु उद्योग भारती, भारतीय विचार केंद्र, विश्व संवाद केंद्र, राष्ट्रीय सिख संगठन, विवेकानंद केंद्र और खुद भारतीय जनता पार्टी सहित दो दर्जन से अधिक आनुषांगिक संगठन हैं। सूत्रों के मुताबिक इनके साथ 28 हजार, 500 विद्यामंदिर, 2 लाख, 80 हजार आचार्य, 48 लाख, 59 हजार छात्र, 83 लाख, 18 हजार, 348 मजदूर, 595 प्रकाशन समूह, 1 लाख पूर्व सैनिक, 6 लाख, 85  हजार विश्व हिन्दू परिषद-बजरंग दल के सदस्य जुड़े हुए हैं। यही नहीं इसके साथ बेहद समर्पित और इमानदार चार हजार पूर्णकालिक कार्यकर्ता हैं, जो देशभर में फैले 56 हजार, 859 शाखाओं में कार्यरत 55 लाख, 20 हजार स्वयंसेवकों के साथ मिलकर भाजपा को शक्ति प्रदान करते हैं। संघ के बाद भाजपा की दूसरे प्रमुख शक्ति के स्रोत में नज़र आते हैं, वे साधु-संत जिनका चरण-रज लेकर देश के कई पीएम-सीएम और राष्ट्रपति-राज्यपाल खुद को धन्य महसूस करते रहे हैं। इन्हीं साधु-संतों ने मंदिर आंदोलन को हवा देकर इसके सत्ता का मार्ग सुगम किया।

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हालाँकि पिछली सदी में मीडिया मुख्यत: अखबारों-रेडियो तक सीमित रहने के कारण बहुत ज्यादा प्रभावी भूमिका नहीं कर पाती थी किंतु नई सदी में चैनलों के विस्तार ने मीडिया को सत्ता को प्रभावित करने की बेइंतहा ताकत प्रदान कर दी है। इसीलिए तो मीडिया के जोर से सातवीं क्लास पास एक दकियानूस ड्राईवर नए ज़माने का जेपी-गाँधी तो एक एनजीओ सरगना सीएम बन गया। ऐसी ताकतवर मीडिया के प्राय: 90% समर्थन से पुष्ट कोई पार्टी है तो संघ का राजनीतिक संगठन भाजपा ही है। भाजपा की शक्ति का तीसरा स्रोत यही मीडिया है, जबकि चौथे प्रधान शक्ति के स्रोत के रूप में लेखक ही नज़र आते हैं। राष्ट्रवादी और गैर-राष्ट्रवादी खेमे में बंटे मुख्यधारा के प्राय: 90% लेखक ही भाजपा के पक्ष में विचार निर्माण करते देखे जा सकते है। शुरू से ही भाजपा की पहचान मुख्यत:  ब्राहमण-क्षत्रिय, बनियों की पार्टी के रूप में रही है। इनमें बनिया कौन! भारत का धनपति वर्ग ही तो! भाजपा से बनियों के लगाव में आज भी रत्तीभर कमी नहीं आई है। पूँजीपतियों का प्राय: 90% पैसा इसी के हिस्से में आता है। ऐसे में कहा जा सकता है कि आज की तारीख में भारतीय पूँजीपति वर्ग से प्राय: 90% उपकृत होने वाली राजनीतिक पार्टी भाजपा ही है। सिर्फ साधु-संत, लेखक-पत्रकार और पूँजीपति ही नहीं, खेलकूद, फिल्म-टीवी  जगत के प्राय: 90 सेलेब्रिटी भाजपा के साथ ही है। इसके साथ प्राय: शत-प्रतिशत सवर्ण मतदाता भी जुड़ा हुआ है, जो अपने जातिगत प्रभाव के चलते एकाधिक बहुजन मतदाताओं को अपने हिसाब से मोड़ लेते है। शक्ति के इन स्रोतों के प्राबल्य से भाजपा दस माह पहले 18 राज्यों की सत्ता पर काबिज होकर रिकॉर्ड कायम कर चुकी है, जबकि  2017 यह सहयोगी दलों को मिलाकर 324 विधायक जीताने में सफल रही थी।

चूँकि यूपी में योगी आदित्यनाथ के कुशासन से भाजपा के खिलाफ जनाक्रोश की आँधी चल रही है, इसलिए 2025 में संघ की स्थापना के सौ साल पूरे होने के अवसर पर हिंदू राष्ट्र की घोषणा के लिए यह हर हाल में यूपी जीतना चाहती है। इसके लिए वह सर्वशक्ति से उस हेट पॉलिटिक्स को हवा देने में जुट गई है, जिसकी जोर से ही वह चुनाव दर चुनाव जीत हासिल करती रही है। अब जिस जोरदारी से भाजपा देश की दिशा तय करने वाले यूपी में नफरत की राजनीति के अचूक हथियार को धार दे रही है, उसका मुकाबला भाजपा की वादाखिलाफी, बेरोजगारी, महँगाई, महँगी बिजली, गन्ने का भुगतान, किसानों की खाद समस्या इत्यादि जैसे रूटीन मुद्दों पर वीडियो बनाकर किया जा सकता है, इस सोच पर तरस ही खाया जा सकता है। ऐसे में अगर अखिलेश यादव और उनके सलाहकार वास्तव में भाजपा को मात देने के लिए गम्भीर हैं तो उन्हें काँटे से काँटा निकालने, ज़हर की काट ज़हर से करने की रणनीति पर काम करना होगा।

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इसके लिए कई वीडियो ऐसे बनाने होंगे जिससे कि बहुजन मतदाताओं का आक्रोश मुसलमानों के बजाय भाजपा के कोर वोटर सवर्णों की ओर घूम जाए। इस हेतु ऐसे वीडियो बनाकर बहुजनों के मध्य पहुचाना पड़ेगा जिससे उनको पता चले कि जब मंडल के जरिये पिछड़ों को आरक्षण मिलना एवं सामाजिक न्याय का नया अध्याय रचित होना शुरू हुआ, तब सामाजिक अन्यायवादी भाजपा ने उसके खिलाफ मदिर आंदोलन छेड़ दिया और मंदिर से मिली सत्ता का इस्तेमाल आरक्षण के खात्मे में किया। बहुजनों के आरक्षण से इसे  इतनी नफरत है कि खुद को राष्ट्रवादी कहने वाली यह पार्टी देश बेचने के काम जुट गई और सत्ता मिलने पर शेष बचे सरकारी कम्पनियों को बेचने में आगे बढ़ेगी। ऐसे में ऐसे कई वीडियो बनाकर यह संदेश देना होगा कि भाजपा ने मंदिर आंदोलन के ज़रिए मिली सत्ता के जोर से यदि आरक्षण का खात्मा किया है तो सपा  सत्ता में आएगी तो सरकारी और निजी क्षेत्र की नौकरियों के साथ सप्लाई, डीलरशिप, ठेकेदारी, पार्किंग, परिवहन सहित ए-टू-जेड सभी क्षेत्रों में दलित, पिछड़े और मुस्लिम समुदायों की संख्यानुपात में आरक्षण देगी। ऐसा वीडिय बनाना अखिलेश यादव का नैतिक दायित्व भी है। उन्होंने शुरुआत में लोगों में जो यह संदेश दिया कि सपा सत्ता में आने पर तीन महीने में जाति जनगणना कराकर सभी को समानुपातिक भागीदारी देगी, उसका तो आशय यही था कि वह हर क्षेत्र में संख्यानुपात में हिस्सेदारी देंगे। अगर हर क्षेत्र में संख्यानुपात में आरक्षण देने वाला वीडियो बनाकर सपा यदि दलित, पिछड़े और मुस्लिम बस्तियों में पहुचना शुरू करे तो शेष बचे चरणों में देश- बेचवा पार्टी भाजपा के उम्मीदवारों के लिए जमानत बचाना मुश्किल हो जाएगा।

लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के अध्यक्ष हैं।

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