Friday, March 29, 2024
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साहित्य समाज ने खोया एक मौन साधक

पूरे देश में बसंत की लहर चल रही थी।  साहित्यकार बसंती रचनाओं से अपनी डायरियों के पन्ने रंग रहे थे। ऐसे में एक साहित्यकार अपने बिस्तर पर अनचाहा आराम फरमा रहा था। कभी-कभी बरसात हो जाने से वह काँप सा जाता और सूरज के बादलों से बाहर आने पर धूप का आनंद भी प्राप्त कर […]

पूरे देश में बसंत की लहर चल रही थी।  साहित्यकार बसंती रचनाओं से अपनी डायरियों के पन्ने रंग रहे थे। ऐसे में एक साहित्यकार अपने बिस्तर पर अनचाहा आराम फरमा रहा था। कभी-कभी बरसात हो जाने से वह काँप सा जाता और सूरज के बादलों से बाहर आने पर धूप का आनंद भी प्राप्त कर लेता था। भविष्य से अनजान चिकित्सक और पारिवारिक सदस्यों के कहने पर दवाई पूरी ईमानदारी से और बिना किसी शोर शराबे के लेते हुए कभी-कभी पुरानी यादों में खो जाता था। जब कोई उसे पुकारता तो वह सुनने वाली मशीन कान में लगी है या नहीं, यह देखने का प्रयास करता था। हरदर्शन सहगल नाम का यह इनसान 10 फरवरी 2022 की शाम अपने निवास स्थान ‘संवाद’ पर सामान्य लेकिन ज़रूरी भोजन और दवाइयों की खुराक लेकर चुपचाप इस दुनिया से कूच कर गया। ऐसा लगा कि शायद कुछ पलों पश्चात यह प्राणी अचानक उठकर कहेगा, ‘मुझे ठंड सी लग रही है, रज़ाई ओढ़ा दो।’ लेकिन उसके प्राण पखेरू  उड़ चुके थे और वह अब कभी वापस न आने के लिए दूसरी दुनिया में चला गया था।

हरदर्शन सहगल का जन्म 26 फरवरी 1935 को कुंदियाँ, ज़िला मियांवली, पाकिस्तान में हुआ था। अपनी रेलवे की नौकरी से संतुष्ट बीकानेर स्थानांतरित होकर आने पर यह शहर उन्हें भा गया और उन्होंने इसी शहर में रहना ठीक समझा। बचपन में दस-ग्यारह वर्ष की उम्र में अपनी जन्मभूमि, अपनी मिट्टी, अपना घर,अपनी गलियाँ,अपना खेल का मैदान, अपना स्कूल, अपना शहर छोड़कर आना उन पर एक वज्रपात था। इन्हीं यादों के सहारे अपने जीवन के प्रत्येक कैनवास पर उन्होंने अपनी इच्छा से रंग भरे और उसे फ्रेम किया। एक शब्द, एक वाक्य, एक पैराग्राफ और फिर एक लघुकथा, कहानी, उपन्यास लिखते चले गए। पुरानी यादों को समेटते हुए आत्मकथा भी लिखी। निष्ठुर और अत्याचारी समाज की बुराइयों को व्यंग्य से ललकारा। पारिवारिक जिम्मेदारियों को संभालते हुए अपने सामने अनगिनत पुस्तकों और पत्रिकाओं का ढ़ेर पाया तो बस पढ़ते चले गए और नया रचते चले गए। मित्रों के बीच और समाज के बीच चुपचाप छा जाने का उनके पास कोई हुनर नहीं था, उनके पास कोई दंद-फंद नहीं था  फिर भी उनके मित्रों की सूची बहुत लंबी है जिसमें से बहुत से मित्र उनके सामने ही इस दुनिया से चले गए थे।

हरदर्शन सहगल के साहित्य की जो खूबी थी उसके बारे में संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि जहां किसी से मुलाक़ात हुई, जहां किसी से छोटी या लंबी बात हुई, जहां साहित्यिक चर्चा हुई, पुस्तक विमोचन हुआ, गोष्ठी हुई, पुस्तक मेले लगे, सभी जगहों पर उन्होंने अपनी रचनाओं का उद्गम पहचान कर, अपनी संवेदनाओं और भावनाओं को शब्दों में उड़ेला और रचना को आकार दे डाला। उनके द्वारा रचे गए साहित्य की सूची भी लंबी है। जीवन में साथ निभाने वाले साहित्यकारों, परिवार और रिश्तेदारों, दूसरे दोस्तों, मोहल्ले के निवासियों ने उन्हें अपने-अपने तरीके से श्रद्धांजलि अर्पित की।

हरदर्शन सहगल के आकस्मिक निधन पर राजस्थान प्रदेश के मुख्यमंत्री  अशोक गहलोत, लोकसभा के माननीय अध्यक्ष ओम बिरला, भारत सरकार के माननीय संसद कार्य और संस्कृति राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने अपने संदेश में परिवार के प्रति संवेदनाएं प्रकट करते हुए दिवंगत आत्मा को अपने चरणों में शरण देने की प्रार्थना परमपिता परमात्मा से की।  बीकानेर की अनेक संस्थाओं और गणमान्य नागरिक उनके निधन पर शोकमग्न हो गए।

किन्डल लिंक :

हरदर्शन सहगल के निधन पर भगवान अटलानी, प्रताप सहगल, मुरलीधर वैष्णव, नंद भारद्वाज, दुर्गा प्रसाद अग्रवाल,लक्ष्मीशंकर वाजपेयी,सुकेश साहनी, सीमा अनिल सहगल, गंभीर सिंह पालनी, जय प्रकाश मानस, गिरीश पंकज, प्रेम जनमेजय,अरविंद तिवारी,सुरेश कांत,पंकज त्रिवेदी,सुभाष चंदर, कैलाश मनहर,फारुक अफरीदी, कमलेश भारतीय,पूरन सरमा, रत्न कुमार सांभरिया,कृष्ण कुमार रत्तू,मनहर चव्हाण,संतोष खन्ना,रणी राम गढ़वाली, नीलिमा टिक्कू,ममता वाजपेयी,जैनेन्द्र कुमार झांब, कुँवर प्रदीप सिंह,सैली बलजीत,राजीव श्रीवास्तव,रत्न श्रीवास्तव, सुधीर सक्सेना सुधि,इंदुशेखर तत्पुरुष,सुदर्शन पाण्डेय,सुधा तैलंग,श्याम सिंह राजपुरोहित,अमरीक सिंह खनूजा, अश्विनी कुमार, हीरालाल नागर, आशा पाण्डेय ओझा, चंद्रकांता और बीकानेर के मनोहर लाल चावला, मदन केवलिया,सरल विशारद,राम कुमार घोटड़, दीपचंद सांखला,बुलाकी शर्मा, राजेंद्र पी. जोशी, अजय जोशी, पंकज गोस्वामी, महेंद्र मोदी, राजेश कुमार व्यास, बृज रतन जोशी,राजाराम स्वर्णकार, राजेंद्र स्वर्णकार, आभा शंकरन, नीरज दइया, नवनीत पाण्डे,मंदाकिनी जोशी,प्रकाश खत्री,नासिर अली जैदी, अशफाक़ कादरी,प्रमिला गंगल, अब्दुल सत्तार कमल, सुधीर केवलिया,नदीम अहमद नदीम,शरद केवलिया, दयानंद शर्मा, संगीता शर्मा, मुक्ता तैलंग, धर्म प्रकाश शर्मा जैसे अनेक साहित्यकारों और पत्रकारों ने अपने-अपने शब्दों में श्रद्धांजलि प्रकट की।

मरुनगरी बीकानेर के दिग्गज और विचारशील साहित्यकारों की जमात में शामिल हरदर्शन सहगल आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन साहित्य क्षेत्र में उनके योगदान को लेखकीय समाज और उनका विशाल पाठक वर्ग अपने हृदय और मस्तिष्क में हमेशा याद रखेगा।

स्वर्गीय हरदर्शन सहगल को विनम्र श्रद्धांजलि और शत-शत नमन।

मुकेश पोपली सेवानिवृत्त बैंक अधिकारी हैं और बीकानेर में रहते हैं ।

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