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महिला आरक्षण अधिनियम लागू होने के बाद भी लोकसभा चुनाव, 2024 में महिलाओं की हिस्सेदारी घट गई है

दुनिया की आधी आबादी की हर क्षेत्र में समान भागीदारी की बातें होती हैं। हमारे देश में 18 सितंबर 2023 को नारी शक्ति  वंदन अधिनियम पारित किया गया, जिसमें लोकसभा और राज्य विधानसभा में महिलाओं के लिए कुल सीटों में से एक तिहाई याने 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने का प्रावधान लागू किया गया। जिसके तहत लोकसभा की 543 सीटों में से 181 सीटों पर महिला संसद के लिए हैं लेकिन लेकिन सवाल यह उठता है कि अधिनियम के आ जाने के बाद 2024 में संसद तक मात्र 74 महिलाएं ही पहुँच पाई हैं, जो पिछली लोकसभा से 1 प्रतिशत कम ही है।

इस बार लोकसभा चुनाव में 74 महिला सांसद चुनी गई हैं। यह कुल सांसदों की संख्या का 13.6 प्रतिशत है। जो पिछली लोक सभा में हिस्सेदारी से लगभग 1 प्रतिशत कम है। महिलाओं की वोट में हिस्सेदारी तो बढ़ रही है लेकिन चुनाव में कुल भागीदारी के मुकाबले जीत का प्रतिशत महज 9.3 प्रतिशत ही रहा। यह स्थिति तब है जब पिछले लोकसभा में संसद में महिलाओं की भागीदारी को 33 प्रतिशत करने का दावा और श्रेय लेने की होड़ मची थी।

संसद में महिलाओं की भागीदारी तुलनात्मक तौर पर पिछले 15 सालों में बढ़ी है। सर्वाधिक हिस्सेदारी 2019 की लोकसभा में 14.4 प्रतिशत थी। जो 2009 के मुकाबले में 3 प्रतिशत से अधिक था। यदि हम चुनाव में हिस्सेदारी का प्रतिशत के अनुपात में जीत को देखें, तब यह बेहद कम दिखता है। इस बार यह महज 9.3 प्रतिशत रहा। 1957 में लोकसभा में हिस्सेदारी 5.4 प्रतिशत था जो 1962 में 6.7 प्रतिशत हुआ। 1977 में यह सबसे कम 3.4 प्रतिशत पर आ गया था। आने वाली लोकसभा चुनावों में हिस्सेदारी बढ़ी लेकिन 2009 के पहले तक 8 प्रतिशत के आसपास ही रहा। इसके बाद ही यह 10 का प्रतिशत पार हुआ।

पहली लोकसभा चुनाव में महिलाओं की हिस्सेदारी जरूर कम थी लेकिन उनकी जीत का प्रतिशत ठीक था। 1957 में 46 महिला उम्मीदवारों में से 22 सांसद चुनी गईं। इस तरह यह प्रतिशत 48.9 प्रतिशत हुआ। आने वाले लोकसभा चुनाव में महिलाओं की चुनाव में भागीदारी का हिस्सा तो बढ़ता हुआ दिखता है लेकिन उनके चुने जाने का हिस्सा घटता हुआ गया है। 1967 में चुनाव का प्रतिशत घटकर 43.3 हो गया। 1984 में 25.7, 2019 में 10.7 और 2024 में मात्र 9.3 प्रतिशत ही रह गया।

यदि हम महिलाओं का लोकसभा चुनाव में वोट हिस्सेदारी का प्रतिशत देखें तब यह उतार-चढ़ाव से होते हुए गुजरा। लेकिन  मुख्य प्रवृत्ति हिस्सेदारी बढ़ने का रहा। खासकर  2000 के बाद महिला वोटरों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ और यह पुरूषों की बराबरी में आ खड़ा हुआ। पहली लोकसभा चुनाव में महिला वोट का प्रतिशत 46.6 प्रतिशत था। 2000 तक इसने 50 प्रतिशत का आंकड़ा पार कर लिया। 2010 के चुनाव में यह 67.10 प्रतिशत पर आ गया। 2019 में यह पुरुषों के वोट 67.18 प्रतिशत के बराबर में आ गया। लेकिन इसके बाद वोट के प्रतिशत गिरावट आई है। यह कुल वोट की भागदारी में गिरावट है लेकिन पुरुषों के मुकाबले बेहद मामूली गिरावट ही दर्ज किया गया है। इस बार के चुनाव में असम, आंध्र प्रदेश और बंगाल में महिलाओं का वोट 80 प्रतिशत से ऊपर रहा। ओडिशा में 75.55 और छत्तीसगढ़ में 72.23 प्रतिशत है।

इस बार भाजपा की कुल चुनी गई महिला सांसद की संख्या 31 और कांग्रेस की 13 है। यदि कुल सांसदों के संदर्भ में देखें तब प्रतिशत के हिसाब से दोनों में कोई फर्क नहीं है। दोनों ही महिलाओं की हिस्सेदारी को 33 प्रतिशत करने का दम भरते हैं, लेकिन सच्चाई इससे काफी दूर है। 2023 के आंकड़ों में राज्य सभा में कांग्रेस की ओर से महिलाओं की भागदारी कांग्रेस की ओर से 17 प्रतिशत, टीएमसी की ओर से 15 प्रतिशत और भाजपा की ओर से 10 प्रतिशत थी। पिछले लोकसभा में भाजपा ने अकेले बहुमत की नाममात्र की गठजोड़ सरकार चलाया। लेकिन महिला सांसदों में पार्टी स्तर पर कुल भागीदारी महज 14 प्रतिशत थी। बेहद कम सीट के बावजूद कांग्रेस की हिस्सेदारी भी इतनी ही थी। जनता दल-बीजेडी की 42 प्रतिशत और टीएमसी की 39 प्रतिशत हिस्सेदारी थी। चुनाव आयोग के 2019 के आंकड़ों को देखें, तब यह साफ दिखता है कि कांग्रेस और भाजपा जैसी पार्टियां कुल उम्मीदवारों में महिलाओं की संख्या बेहद कम रखती हैं। वहीं क्षेत्रीय पार्टियां कहीं बेहतर स्थिति में दिखती हैं।

इस बार कुल चुनी हुई महिला सांसदों की संख्या 74 है इसमें से 43 पहली बार चुनी गई है। इसमें से साम्भवी, समस्तीपुर – प्रिया सरोज, मछलीशहर- संजना जाटव, भरतपुर-  इक्रा चौधरी, कैराना-प्रियंका, जारीखोली- चिक्कोदी जैसी सांसद 25 से 26 साल की उम्र में हैं। इसमें संजना जाटव हाल ही में हुए राजस्थान विधान सभा के लिए चुनी गईं और फिर वह इस लोकसभा में सांसद चुनी गईं।

भारत के लोकसभा में कुल आंकड़ों के मद्देनजर यह जीत महिलाओं की भागदारी को लेकर उम्मीद तो बनाती है लेकिन उसकी कमजोरियों को भी सामने लाती है। पूरी दुनिया के 52 देशों में चुने गयी सांसदों की फेहरिस्त और उसमें महिला सांसदों की फेहरिस्त का औसत 2023 में 27.6 प्रतिशत था। भारत इन औसत आंकड़ों में काफी पीछे है।

यहां महिलाओं के सार्वजनिक जीवन में हिस्सेदारी को श्रम में भागीदारी के माध्यम से देखें, तब पिछले दस सालों के आंकड़ों में यह बढ़ते हुए और फिर घटते हुए दिखाई दिये। इधर दो साल के आंकड़ों में इसमें कुछ सुधार को होता दिखा है, हालांकि इन आंकड़ों को लेकर विशेषज्ञों में विवाद रहा।

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 जून, 2021-22 के बीच 15 से 59 साल की उम्र की महिलाओं का भारत की कुल श्रम हिस्सेदारी 29.4 प्रतिशत था। पिछले साल के मुकाबले में 0.4 प्रतिशत गिरावट दर्ज की गई थी। इसी अवधि में पुरुषों की भागीदारी 0.6 प्रतिशत बढ़ी और यह 80.1 प्रतिशत से बढ़कर 80.7 प्रतिशत हो गई थी।

2022-23 में महिलाओं की हिस्सेदारी 37 प्रतिशत बताई गई। इसी के साथ जब बेरोजगारी के आंकड़े सामने आने लगे और 83 प्रतिशत भारतीय युवाओं को अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने बरोजगारों की सूची में डाला तब निश्चित ही इसमें महिलाओं के लिए भी उतनी ही बड़ी रोजगार की चुनौती थी। बहरहाल, महिलाओं द्वारा श्रम में हिस्सेदारी ग्रामीण क्षेत्र में अब भी अधिक है। शहरों में असंगठित क्षेत्र में ही महिलाओं को अधिक काम मिलता है।

सार्वजनिक जीवन और उसी स्तर की श्रम भागीदारी संगठित क्षेत्र में कम होने और घरेलू श्रम में अधिक हिस्सेदारी की प्रकृति निश्चित ही महिलाओं के संगठन की क्षमता को भी प्रभावित करता है। इसी तरह से, शिक्षा और रोजगार के बीच सीधा संबंध जिसका उतना ही सीधा असर महिलाओं की आय और जीवन की गुणवत्ता पर पड़ता है। इस संदर्भ में क्लाडिया गोल्डिन ने विकसित देशों में महिलाओं की शिक्षा,  आय और घरेलू जीवन के अध्ययन को जरूर देखना चाहिए। भारत में शिक्षा, आय और घरेलू जीवन की समस्याएं महिलाओं को सार्वजनिक जीवन में देर तक ठहरने का मौका नहीं देता है। इसका सीधा असर उसकी सामाजिक, राजनीति और सांस्कृतिक हिस्सेदारी पर पड़ता है। लोकसभा चुनावों का इतिहास, उसमें महिलाओं की उम्मीदवार और वोट की भागीदारी और साथ ही उसकी राजनीतिक सक्रियता को इन संदर्भों में जरूर देखना चाहिए।

नारी शक्ति वंदन अधिनियम, 2023) के पारित होने से हासिल किया गया है, जो लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा में महिलाओं के लिए कुल सीटों में से एक-तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रावधान करता है।

अंजनी कुमार
अंजनी कुमार
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

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