ज्ञानप्रकाश यादव
लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रहे हैं और सम-सामयिक, साहित्यिक एवं राजनीतिक विषयों पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन करते हैं।
सामाजिक न्याय
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी की नीतियों में गरीब कहाँ हैं?
भाजपा की मातृ संस्था आरएसएस देश की राजनीति की रणनीति तैयार करती है। उसकी रणनीति में पिछड़े-दलित का वोट लेना शामिल होता है लेकिन कल्याणकारी नीतियों में पूरी तरीके से उपेक्षित कर दिए जाते हैं। कहने का मतलब है कि भाजपा के समर्थकों में सवर्णों के साथ भले ही पिछड़ी जातियों का एक बड़ा हिस्सा शामिल है लेकिन भाजपा की नीतियों में उनके लिए कोई स्थान नहीं है। जातिवाद की राजनीति करने में सबसे आगे हैं, चाहे वह नौकरी में आरक्षण का मामला हो या राजनैतिक मामला हो या शिक्षा का मामला हो, हर जगह उनके लिए आगे बढ़ने के रास्ते बंद कर दिए गए हैं।
सामाजिक न्याय
दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रावासों में पिछड़े वर्ग के छात्रों की सरकारी सुविधाओं का दमन कब तक?
दिल्ली विश्वविद्यालय में पहली बार आरक्षण को लेकर भेदभाव नहीं हो रहा है। बल्कि पिछड़े वर्ग को मिलने वाली हर सुविधाओं को लेकर भेदभाव किया जाता रहा है। फिलहाल यह मामला दिल्ली विवि में एडमिशन लेने वाले पिछड़े वर्ग के छात्रों को छात्रावास में दिए जाने वाले मामले को लेकर है। उन्हें दिए जाने वाले आरक्षण को नजरंदाज कर उन्हें बाहर रहने को मजबूर किया जा रहा है। दिल्ली विश्वविद्यालय में समाजवादी, मार्क्सवादी, अम्बेडकरवादी एवं मनुवादी विचारधारा के प्रोफेसर पढ़ाते हैं। प्रोफेसर लोग मूलतः शिक्षक हैं। लेकिन ये सभी पिछड़े समाज के छात्रों को मिलने वाली सरकारी सुविधाओं का क़त्ल खुलेआम कर रहे हैं।
विविध
सम्पूर्ण दलित आंदोलन : पसमान्दा तसव्वुर – समाज में दलितों के साथ भेदभाव होता ही है चाहे वे हिंदू हों या मुसलमान
पूर्व राज्यसभा सांसद अली अनवर की ‘सम्पूर्ण दलित आन्दोलन : पसमान्दा तसव्वुर’ किताब में दलित मुसलमानों की सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक एवं राजनीतिक स्थिति की जमीनी पड़ताल की गई है और साथ ही साथ लेखक ने इन स्थितियों में सुधार के संवैधानिक एवं राजनैतिक उपाय भी सुझाया है।
राजनीति
हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 में पिछड़ों और दलितों का आरक्षण-हनन का मुद्दा बनेगा?
भारत वर्ष में जाति आधारित आरक्षण देने का प्रावधान नया नहीं है। समाज के एक वर्ग तक सदियों से साधन और संसाधन आसानी से पहुँच रहे हैं, उनसे वंचित समाज व पिछड़ी जातियां किसी भी तरह से प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकती थीं, उनके लिए आरक्षण की सुविधा लागू की गई ताकि समतावादी समाज की स्थापना हो सके। लेकिन पिछले दस वर्षों से सरकारी नौकरियों में निकलने वाली भर्तियों में आरक्षण को लेकर लगातार खुलकर खेल हो रहे हैं। मनुवादी सरकार नहीं चाहती कि एसटी, एससी और ओबीसी कभी आर्थिक व शैक्षणिक रूप से मजबूत हो मुख्यधारा में शामिल हो सकें। हरियाणा उच्च न्यायालय में चपरासी की भर्ती के लिए आरक्षण के नियमों में खुले रूप से खेल हो रहा है। पढ़िये ज्ञानप्रकाश यादव की रिपोर्ट।
सामाजिक न्याय
दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रावासों में ओबीसी आरक्षण कब लागू किया जाएगा?
दिल्ली विश्वविद्यालय के अधिकांश छात्रावासों में ओबीसी आरक्षण लागू नहीं है। डीयू में राजनीति करने वाले छात्र संगठन एवं शिक्षक संगठन ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर मौन व्रत धारण किये हुए हैं। अपनी वेतन एवं सुविधाओं को लेकर आंदोलन करने वाले शिक्षक संगठन एवं प्रोफेसर ‘छात्रावासों में ओबीसी आरक्षण’ के मुद्दे पर चुप्पी साध लेते हैं। यही चुप्पी दिल्ली विश्वविद्यालय में मनुवादियों के वर्चस्व को बनाये रखती है।
पूर्वांचल
उ प्र 69000 शिक्षक भर्ती घोटाला : सरकार ने पिछड़े, दलितों और आदिवासियों की हकमारी
वर्ष 2018 में 69000 हजार सहायक शिक्षकों के लिए हुई भर्ती के नतीजे आने के कुछ दिन बाद ही 19000 पदों पर आरक्षण को लेकर हुआ घोटाला सामने आया, जिसके बाद 13 अगस्त को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मेरिट लिस्ट को रद्द करतीन महीने में आरक्षण के आधार पर नई मेरिट लिस्ट बनाने का आदेश जारी किया है। असल में मंडल कमीशन लागू होने के तीन दशक बाद भी अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल जातियाँ अपना एक समाज नहीं बना पायी हैं। इसीलिए ये कभी एकजुट होकर अपनी जनसंख्या के मुताबिक 52% ओबीसी आरक्षण की माँग करती हुई दिखाई नहीं देती है। हालाँकि इनमें से कुछ जातियाँ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा का एजेंडा बढ़ाते हुएओबीसी वर्गीकरण की माँग करती हुई दिखाई देती है।
शिक्षा
इलाहाबाद विवि : नियुक्तियों में कब तक चलेगा NFS का खेल?
देश में लगातार बेरोजगारी बढ़ती ही जा रही है। उच्च शिक्षित युवा नौकरियों के लिए लगातार भटक रहे हैं। इस वर्ष मार्च में बेरोजगारी दर 7.60 प्रतिशत थी,वहीं अप्रैल में बढ़कर 7.83 प्रतिशत हो गई। इसके बाद भी यदि कहीं छुटपुट रिक्तियां निकल रही है, वहाँ भी आरक्षित पदों के योग्य उम्मीदवारों को नॉट फॉर सूटेबल(NFS) घोषित कर दिया जा रहा है। देश में संविधान-लागू होने के बाद सभी को समान अधिकार प्राप्त हुआ, उसके बाद, ओबीसी, एससी और एसटी वर्ग के लोग शिक्षित हो बेहतर योग्यता से सामने आने लगे, तब उनकी बेचैनी सामने आने लगी। इधर लगातार नॉट फॉर सूटेबल(NFS)के मामले बढ़ गए हैं। पढ़िए ज्ञानप्रकाश का लेख
राष्ट्रीय
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पिछड़े, दलित, आदिवासी और दिव्यांगों के आठ पदों को NFS क्यों किया गया?
आज से 70 वर्ष पहले ऐसे वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था संविधान में लाई गई थी, जो सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से हाशिये पर जीवन जीने को मजबूर थे क्योंकि देश का सवर्ण तबका, खासकर ब्राह्मण, उन्हें आगे बढ़ने देना नहीं चाहते थे लेकिन संविधान के सामने विवश थे। हाशिये के इन समाजों ने शिक्षित हो आगे आना शुरू किया। यही बात भारतीय सवर्णों के लिए अपच हो गई। फिर भी भारतीय संविधान हाशिये के समाजों के अधिकारों की सुरक्षा करता रहा है। अब आरएसएस के दिमाग से संचालित भाजपानीत सरकार ने हाशिये के समाज के लोगों को फिर से हाशिये पर ढकेलने के लिए अलग षड्यंत्र कर रही है। देश का अपना संविधान होने के बावजूद आरएसएस यहाँ अपना एक अलग मनुवादी संविधान थोपने के प्रयास में है। प्रायः सभी चयन समितियों में अपने वर्चस्व का लाभ उठाकर शिक्षा और नौकरियों के मामले में उन्हें NFS कर हटाने के प्रयास में है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के ताजा मामले में जानिए कि कैसे आठ उम्मीदवारों को NFS कर दिया गया।
सामाजिक न्याय
गरीबों, चरवाहों एवं किसानों की अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने की सरकारी रणनीति
देश में अमीरों और गरीबों की जनगणना तो नहीं हुई है लेकिन इसके बाद यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि देश की 80 करोड़ जनता गरीबी में जीवनयापन कर रही है, जिन्हें सरकार हर महीने 5 किलो राशन देती है। लेकिन वर्ष 2024 के आम बजट में इन गरीबों के लिए कोई भी प्रावधान नहीं किया गया। सवाल यह है कि कब इनके ऊपर सरकार मेहरबान होगी।
शिक्षा
सरकारी नौकरियों में आरक्षण के बावजूद क्यों पूरी नहीं हो पा रही है पिछड़ों, दलितों एवं आदिवासियों की भागीदारी?
भारत में आरक्षण, समाज के सबसे पिछड़े और वंचित समुदाय को मुख्य धारा में शामिल करने की जाति आधारित सकारात्मक कार्रवाई है। भारतीय संविधान के अनुसार केंद्र और राज्य सरकार में सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए शिक्षा, रोजगार और राजनैतिक निकायों में सीटों का प्रतिशत निर्धारित किया गया है। लेकिन मनुवादी व्यवस्था ने वर्ष 2019 में अपने लिए 10 प्रतिशत सुदामा कोटा हासिल कर लिया, जो उनकी आबादी के हिसाब से है लेकिन पिछड़ों को उनकी आबादी के हिसाब से आधा भी नहीं मिला। इसलिए यह मांग की जाती रही है ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी।'
शिक्षा
दिल्ली विश्वविद्यालय में मनुवादियों की NFS लीला रुकेगी कब?
प्राचीन समय से मनुवादियों ने समाज के दलित-वंचित समुदाय को शिक्षा लेने से वंचित रखने के लिए मनुस्मृति का सहारा ले उन्हें भरमाया। जब-जब वे पढ़ना चाहे, तब-तब पढ़ने से रोकने के लिए उन्हें अपमानित कर अपना पुश्तैनी काम करने के लिए कहा। देश में संविधान -लागू होने के बाद सभी को समान अधिकार प्राप्त हुआ, उसके बाद, जब ओबीसी,एससी और एसटी वर्ग के लोग शिक्षित हो बेहतर योग्यता से सामने आने लगे तब उनकी बेचैनी सामने आने लगी। इस वजह से उन्हें दिये गए आरक्षण को किसी भी तरह से रोकने के लिए शातिर तरीके अपना रहे हैं। अभी लगातार अनेक विश्वविद्यालयों से आरक्षित पदों के उम्मीदवारों को NFS करने की सूचना आ रही है। सवाल यह उठता है कि क्या सभी योग्यता सवर्णों में और सारी अयोग्यता ओबीसी, एससी और एसटी वर्ग में है।
शिक्षा
नीट पेपरलीक व्यावसायिक शिक्षा का सबसे बड़ा घोटाला है
4 जून को जब से नीट परीक्षा के नतीजे आए हैं, तब से नीट परीक्षा को लेकर चल रहे विवाद और आंदोलन खत्म होने का नाम नहीं ले रहे। स्वाभाविक है क्योंकि यह मेहनती और गरीब छात्रों के भविष्य का सवाल है। सुप्रीम कोर्ट ने दुबारा परीक्षा लेने से इंकार कर दिया, यह एक तरह से उन लोगों के पक्ष में खड़े होने की बात है, जिन्होंने पेपर खरीदने के लिए लाखों रुपए खर्च किए और उन अभ्यथियों का चयन हो गया है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट, सरकार और परीक्षा लेने वाली एजेंसी एनटीए पर सवाल उठना ही चाहिए।
शिक्षा
प्रयागराज : आखिर कब तक विश्वविद्यालयों में दलित, पिछड़े और आदिवासियों को NFS किया जाता रहेगा?
देश के विश्वविद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसरों के पदों पर साक्षात्कार के आधार पर चयन किया जाता है। विश्वविद्यालयों की साक्षात्कार समितियों में अधिकतम एक्सपर्ट सवर्ण प्रोफेसर होते हैं। इसलिए वे बड़ी आसानी से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के कोटे की सीट को None Found Suitable कर देते हैं। ताजा मामला उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में स्थित डॉ. राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, प्रयागराज का है।
विचार
Loksabha chunav 2024 : वोट की चोट से पहले युवा बेरोजगारी, अग्निवीर योजना, पेपर लीक मुद्दा और किसानों की समस्या पर गौर करना...
केन्द्र की मोदी सरकार की नीतियों से युवाओं में न सिर्फ निराशा और हताशा है बल्कि आक्रोश का एक गुबार भी उनके अन्दर है । बेरोजगार युवाओं के अन्दर का यह गुबार वोट की चोट के रूप में देखने को मिलेगा, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता।
विचार
आरएसएस प्रमुख और भाजपा, आरक्षण समीक्षा की आड़ में पिछड़ों को उचित प्रतिनिधित्व से दूर रखने की मंशा रखते हैं
कुछ समय पहले तक आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ओबीसी आरक्षण के सख्त खिलाफ थे और आरक्षण को लेकर लगातार विरोध में बयान दिया करते थे लेकिन चुनाव आते ही उनके सुर बदल गए क्योंकि देश में ओबीसी का बड़ा वोट बैंक हैं।
राजनीति
Lok Sabha Election : महिलाओं को दिए गए टिकट की संख्या पर राजनैतिक दलों की मंशा को लेकर सवाल उठना जरूरी
वर्ष 2023 में संसद में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने के लिए नारी शक्ति वंदन अधिनियम लागू हुआ, जिसमें उन्हें 33 प्रतिशत आरक्षण देने का नियम बना। महिलाओं ने जश्न मनाया और सभी दलों ने इसका स्वागत किया लेकिन जमीनी हकीकत देखें तो किसी भी राष्ट्रीय या बड़े क्षेत्रीय दलों ने इस अधिनियम के आधार पर टिकट का बंटवारा नहीं किया। देश के सबसे ज्यादा लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में इसका आकलन कर इस बात की वास्तविकता देख आने वाले दिनों में राजनैतिक दलों की भूमिका पर सवाल खड़ा होना स्वाभाविक है
शिक्षा
Lok Sabha Election : शिक्षा और उससे जुड़े मुद्दे क्यों नहीं बन रहे हैं जरूरी सवाल?
पिछले दस वर्षों में शिक्षा का स्तर जितना गिरा है उतना पहले कभी नही। प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक सभी संस्थानों में विज्ञान और तर्क को दरकिनार कर धर्म को केंद्र में रखा गया। 2024 के लोकसभा चुनाव
में शिक्षा जैसा महत्त्वपूर्ण मुद्दा जनता की नजर में क्यों नहीं है?
राजनीति
Lok Sabha Election : बेरोजगारी, महंगाई और अग्निवीर जैसे मुद्दे पहले चरण के मतदान में हावी रहेंगे ?
आखिर क्यों नरेन्द्र मोदी की मीडिया द्वारा गढ़ित छवि को तमिलनाडु की जनता नकार देती है, इस पर उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश, गुजरात एवं महाराष्ट्र के युवाओं एवं आम नागरिकों को भी विचार करना चाहिए।
राजनीति
Lok Sabha Election : क्यों कम हो रही है संसद में पिछड़ी जातियों की भागीदारी?
मंडल बनाम कमंडल यानी ओबीसी आरक्षण बनाम राम मंदिर की लड़ाई में उन पिछड़ी जातियों के साथ आरएसएस और भाजपा ने खुलेआम धोखा किया है, जिन्होंने उसके बहकावे में आकर शैक्षिक एवं आर्थिक अधिकारों के लिए लागू किये गए ओबीसी आरक्षण के बजाय राम मंदिर आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था।
राजनीति
Loksabha chunav : क्या अरविंद राजभर का भाजपा कार्यकर्ताओं से घुटनों के बल बैठकर माफ़ी मांगना पिछड़ों के हित में है?
आम जनता के प्रतिनिधि अपनी गलतियों के लिए भले ही जनता से कभी माफी नहीं मांगे लेकिन कीचड़ की राजनीति में शामिल होने के लिए किस हद तक झुककर सार्वजनिक रूप से माफी मांगते हैं, इसका एक नमूना अभी हाल में ही सामने आया, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार के उप-मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक पिछड़े समाज के चर्चित नेता ओमप्रकाश राजभर के बेटे डॉ. अरविंद राजभर को घुटनों के बल बैठाकर माफ़ी मंगवा रहे हैं ताकि भाजपा की तरफ से टिकट पक्का हो जाये।