Saturday, July 27, 2024
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Loksabha chunav 2024 : वोट की चोट से पहले युवा बेरोजगारी, अग्निवीर योजना, पेपर लीक मुद्दा और किसानों की समस्या पर गौर करना ना भूलें

केन्द्र की मोदी सरकार की नीतियों से युवाओं में न सिर्फ निराशा और हताशा है बल्कि आक्रोश का एक गुबार भी उनके अन्दर है । बेरोजगार युवाओं के अन्दर का यह गुबार वोट की चोट के रूप में देखने को मिलेगा, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता।

देश के गरीबों, मजदूरों और किसानों के बेटों का भविष्य बर्बाद करने के लिए और देश की रक्षा करने वाले सैनिकों के सम्मान को घटाने के लिए भाजपा सरकार ने तीनों सेनाओं में अग्निवीर योजना लागू किया है।  इस योजना का सर्वाधिक असर 14-18 आयु वर्ग के किशोरों पर पड़ रहा है।

कारण यह है कि गाँव में गरीब, मजदूर और किसान के बेटे हाईस्कूल पास करते ही अपने परिवार की गरीबी दूर करने और सेना में सैनिक बनने के लिए सुबह-शाम दौड़ लगाना शुरू कर देते हैं क्योंकि सैनिक बनने की आयु सीमा 17.5 वर्ष से 21 वर्ष तक की है।  इसीलिए ये नवजात युवा हाईस्कूल पास करते ही तैयारी शुरू कर देते हैं ताकि इंटरमीडिएट पास करते या स्नातक प्रथम वर्ष तक आते-आते सैनिक बन जायें।

18 साल के युवा कठिन परिश्रम के बाद सैनिक बनते हैं और भाजपा सरकार की अग्निवीर योजना कहती है कि चार साल बाद सरकार को सैनिकों की जरूरत नहीं है अर्थात 22 साल की उम्र में अग्निवीर सैनिक जबरन रिटायर कर दिए जायेंगे। सरकार फिर 18 साल के नए युवाओं के लिए भर्ती निकालेगी। इस तरह भाजपा सरकार की अग्निवीर योजना किशोरों एवं नवजात युवाओं को उनके परिवारों के साथ पुनः गरीबी में धकेलने का काम करेगी।

अग्निवीर योजना के नाम पर मोदी क्यों नहीं मांगते वोट? 

अग्निवीर योजना से पहले कोई सैनिक देश के लिए लड़ते हुए अपना बलिदान देता था तो उसे शहीद का दर्जा दिया जाता था लेकिन अग्निवीर योजना के तहत सैनिक बने युवाओं या अग्निवीरों को यह लाभ नहीं दिया जाएगा।  इसीलिए आरएसएस और भाजपा के नेता एवं खुद को अवतार बताने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अग्निवीर योजना के माध्यम से गरीबों, मजदूरों एवं किसानों से वोट नहीं मांगते है जबकि वे पांच किलो राशन के आधार पर दिन-रात प्रत्येक विज्ञापन एवं भाषण में वोट मांगते नजर आते हैं।

भाजपा सरकार ने अपने दस साल के कार्यकाल में बहुत सारे केन्द्रीय संस्थानों को पूंजीपतियों के हाथों बेच दिया है। अब इन संस्थानों में न सरकारी नौकरी निकलेगी और न ही किसी तरह के आरक्षण का पालन किया जाएगा।  इसका सर्वाधिक असर 18-40 आयु-वर्ग के युवाओं पर पड़ रहा है।  इसी कारण देश में बेरोजगारी और शिक्षित बेरोजगारी बहुत तेजी से बढ़ रही है।

बेरोजगार युवा देश और परिवार की तरक्की में बाधक 

बेरोजगारी के परिणाम भयावह होते हैं। जिस घर का युवा बेरोजगार होगा, उस घर के सभी सदस्यों को उसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। बेरोजगार युवा न अपने माता-पिता की स्वास्थ्य-समस्याओं या बीमारियों का इलाज करवा सकता है, न अपना घर बनवाकर समाज में सम्मान के साथ रह सकता है, न अपनी बहन की शादी करवा सकता है, और न ही वह खुद की शादी कर सकता है।

जब युवा अपने पारिवारिक सदस्यों का ख्याल नहीं रख सकते हैं, तब वे समाज और देश की तरक्की के लिए क्या ही कर सकते हैं? देश में रहने वाले सभी व्यक्तियों की तरक्की से ही देश की तरक्की हो सकती है, न कि कुछ गिने-चुने पूंजीपतियों की तरक्की से देश की तरक्की होती है। यदि ऐसा होता तो गौतम अडानी और मुकेशअंबानी के साथ ही साथ देश का हर आदमी अरबपति होता।

भाजपा सरकार जहाँ कुछ गिने-चुने पूंजीपतियों का करोड़ों-अरबों रुपये का कर्जा माफ़ करती है, वहीं जब देश के किसान खाद-बीज-तेल खरीदने के लिए हजार रुपये का कर्ज लेते हैं तब वह उनसे जबरन कर्ज वसूलती है।  जब बाढ़-सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाएं किसानों की फसल तबाह कर देती हैं तब किसान लोन नहीं चुका पाता है और न ही सरकार अपने प्रिय पूंजीपतियों की भांति उसका लोन माफ़ करती है, जिससे पीड़ित और प्रताड़ित होकर किसान आत्महत्या करते हैं। भाजपा सरकार की दस साल की नीतियों का दुष्परिणाम यह है कि आज छात्र, शिक्षित बेरोजगार और किसान इन तीनों की आत्महत्याओं के आँकड़ों में बेतहाशा वृद्धि हो रही है।

भाजपा सरकार सरकारी नौकरी के सेक्टर को धीरे-धीरे समाप्त कर रही है

जाहिर है कि भाजपा सरकार सरकारी नौकरी के सेक्टर को धीरे-धीरे समाप्त कर रही है। वह अपने दस साल के कार्यकाल में बहुत तेजी से सरकारी कंपनियों का निजीकरण की है। जबकि शिक्षा और सरकारी नौकरी के जो सेक्टर इस समय हैं, उनकी हालत भाजपा के शासनकाल में दिनोंदिन बदतर होती जा रही है।

कर्मचारी चयन आयोग केंद्र सरकार का एक संस्थान है, जिसका कार्य भारत सरकार के मंत्रालयों/विभागों,सम्बद्ध और अधीनस्थ कार्यालयों और सीएजी एवं महालेखाकारों के कार्यालयों में गैर तकनीकीय समूह ‘ग’ और ‘ख’ के अराजपत्रित पदों की भर्ती करना है।  पहले यह ऑफलाइन पेपर करवाता था लेकिन अब ऑनलाइन पेपर करवाता है, जिसकी खामियों की वजह से इसकी कई भर्तियों के पेपर लीक हुए हैं।  इससे इस परीक्षा की तैयारी करने वाले युवा बहुत परेशान हैं और उनकी परेशानी का दूसरा बड़ा कारण एसएससी द्वारा दिनोंदिन रिक्तियों की संख्या कम करना भी है।

भारत सरकार का स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय सरकारी कॉलेजों एवं विश्वविद्यालयों में एमबीबीएस में प्रवेश के लिए हर वर्ष राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (UG) या NEET (UG) का आयोजन करता है। इस बार इस परीक्षा का पेपर 35 से 40 लाख रुपये में बाजार में परीक्षा से पहले ही बिक गया था। बीते दिनों कई अख़बारों में यह खबर छपी थी कि पटना, दिल्ली और हरियाणा के कुछ कोचिंग संस्थानों ने रात भर पेपर खरीदने वाले अभ्यर्थियों को पेपर रटवाए थे।

पेपर लीक सरकार की रणनीति का हिस्सा 

भाजपा सरकार में अमीर बच्चे एमबीबीएस डॉक्टर पेपर लीक से बनेंगे। यह भाजपा सरकार का अमीरों के प्रति प्रेम नहीं तो और क्या है? जब परीक्षाएं ईमानदारी से आयोजित नहीं करवायी जाएंगी तो गरीब परिवारों के मेहनती एवं प्रतिभाशाली छात्र हैं, उन्हें अपनी प्रतिभा का समान प्रदर्शन करने का अवसर कहाँ से मिलेगा? अर्थात किसी भी परीक्षा के पेपर लीक से सबसे ज्यादा नुकसान गरीबों, मजदूरों एवं किसानों के बच्चों का होता है क्योंकि अमीर लोग अपने बच्चों के लिए 35 से 40 लाख रुपए में पेपर खरीद ही लेते हैं।

उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार 2017 से है।  उत्तर प्रदेश में 2018 से अब तक होने वाली कई भर्तियों के पेपर लीक हुए हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उस पर मौन धारण किये रहते हैं जबकि जातीय एवं सांप्रदायिक मसलों पर उनकी जबान अनवरत चलती रहती है।

उत्तर प्रदेश में 68500 शिक्षक भर्ती एवं 69000 शिक्षक भर्ती का न केवल पेपर लीक होता है बल्कि इन दोनों शिक्षक भर्तियों में लगभग 30000 से अधिक आरक्षित श्रेणी के पदों का गबन भी किया जाता है।

भाजपा सरकार में सिपाही, प्रवक्ता,असिस्टेंट प्रोफेसर एवं समीक्षा अधिकारी भर्ती आदि का पेपर लीक होता है और उसकी एक कीमत तय होती है।  अभी हाल ही में समीक्षा अधिकारी और पुलिस भर्ती का पेपर लीक हुआ था।  भाजपा सरकार की धूर्तता यह थी कि वह पहले यह मानने को तैयार ही नहीं थी कि सिपाही भर्ती का पेपर लीक हुआ है। लेकिन जब सोशल मीडिया और मीडिया में खबरे आयीं और युवा सड़क पर उतरे तब वह इन दोनों भर्तियों का पेपर निरस्त करवायी। पेपर लीक किसकी गलती की वजह से होता है और इसकी सजा कौन भुगतता है? युवाओं को ऐसे सवालों का जवाब तलाशते हुए वोट करना चाहिए।

ज्ञानप्रकाश यादव
ज्ञानप्रकाश यादव
लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रहे हैं और सम-सामयिक, साहित्यिक एवं राजनीतिक विषयों पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन करते हैं।

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