Thursday, December 5, 2024
Thursday, December 5, 2024




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमशिक्षानीट पेपरलीक व्यावसायिक शिक्षा का सबसे बड़ा घोटाला है

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

नीट पेपरलीक व्यावसायिक शिक्षा का सबसे बड़ा घोटाला है

4 जून को जब से नीट परीक्षा के नतीजे आए हैं, तब से नीट परीक्षा को लेकर चल रहे विवाद और आंदोलन खत्म होने का नाम नहीं ले रहे। स्वाभाविक है क्योंकि यह मेहनती और गरीब छात्रों के भविष्य का सवाल है। सुप्रीम कोर्ट ने दुबारा परीक्षा लेने से इंकार कर दिया, यह एक तरह से उन लोगों के पक्ष में खड़े होने की बात है, जिन्होंने पेपर खरीदने के लिए लाखों रुपए खर्च किए और उन अभ्यथियों का चयन हो गया है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट, सरकार और परीक्षा लेने वाली एजेंसी एनटीए पर सवाल उठना ही चाहिए।

 भारत की 50% से अधिक आबादी 25 वर्ष से कम आयु वालों की है। इस दृष्टि से हम दुनिया की सर्वाधिक युवा आबादी वाले देशों में से एक हैं। इसलिए 25 वर्ष से कम उम्र के युवाओं को राजनेताओं द्वारा इस पर गर्व करने के लिए कहा जाता है ताकि गर्व की आड़ में इन युवाओं की जरूरतों एवं समस्याओं को छिपाया जा सके। आज इस उम्र के युवा एक ऐसी ही विकट समस्या का सामना कर रहे हैं और उस समस्या का नाम है- नीट पेपर लीक।

एनटीए के मुताबिक़, 5 मई 2024 को 14 विदेशी शहरों सहित 571 शहरों के 4750 केंद्रों पर नीटयूजी 2024 परीक्षा का आयोजन किया गया था। इस बार इस परीक्षा के लिए 24 लाख से अधिक छात्रों ने पंजीकरण कराया था, जो अब तक का सबसे अधिक पंजीकरण है। इस परीक्षा में लगभग 97% छात्र शामिल हुए थे।

अबकी बार इस परीक्षा का पेपर 20 से 50 लाख रुपये में बाजार में परीक्षा से पहले ही बिक गया था। बीते दिनों कई अखबारों में यह खबर छपी थी कि बिहार, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात के कुछ कोचिंग संस्थानों ने पेपर खरीदने वाले अभ्यर्थियों को रात भर प्रश्नपत्र के उत्तर रटवाए थे।

06 जुलाई 2024 को सरकार ने कहा कि नीट पेपर लीक और चीटिंग के मामले पटना-गोधरा तक सीमित है। जबकि नीटपेपर लीक की जाँच में सीबीआई अब तक देश के 4 राज्यों से 25 लोगों को गिरफ्तार कर चुकी है। इसमें बिहार से 13, झारखंड से 5, गुजरात से 5, और महाराष्ट्र से 2 लोग शामिल हैं। जाहिर है कि भाजपा सरकार नीट पेपर लीक की गड़बड़ी को छिपाना चाह रही है।

पहले तो एनटीए ने 1563 छात्रों को ग्रेसमार्क देकर उन्हें सरकारी मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन लायक बनाया। इसका असर यह हुआ कि 67 छात्र 720 अंक की परीक्षा में 720 अंक पा गए और कई हजार छात्र 715 से 719 अंक के बीच प्राप्त किये जो कि इस मूल्यांकन पद्धति में संभव नहीं था। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने नीट ग्रेसमार्क पर सुनवाई करते हुए एनटीए को आदेश दिया कि वह इन 1563 छात्रों के परिणाम रद्द कर दुबारा परीक्षा आयोजित करवाए।

जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एनटीए ने अपने प्रिय 1563 ग्रेसमार्क वाले छात्रों के लिए 23 जून 2024 को परीक्षा आयोजित की तो 813 छात्रों ने ही परीक्षा दी और ग्रेसमार्क वाले 750 छात्रों ने परीक्षा छोड़ दी। जबकि भाजपा सरकार इन 750 छात्रों को भी सरकारी मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश दिलाकर MBBS डॉक्टर बनाने का इरादा तय कर ली थी। यह नीट परीक्षा में गड़बड़ी और भ्रष्टाचार का जीता जागता सबूत है।

यह भी पढ़ें –

बेसिक शिक्षा विभाग में अध्यापकों की ऑनलाइन उपस्थिति क्यों अव्यावहारिक है?

30 जून, 2024 को एनटीए ने इन 1563 छात्रों के साथ-साथ सभी छात्रों का दुबारा परिणाम जारी किया है। इस परिणाम में 720 में से 720 अंक पाने वाले छात्रों की संख्या 67 से घटकर 61 हो जाती है। असल हैरानी की बात यह है कि ये सभी 61 छात्र एक ही सेंटर पर परीक्षा दिए थे। बड़ा सवाल यह है कि जब एक सेंटर पर 61 छात्र 720 में से 720 अंक प्राप्त कर सकते हैं तो बाकी 4749 सेंटरों के एक भी छात्र 720 में से 720 अंक क्यों नहीं प्राप्त कर सके?

इस धांधली और भ्रष्टाचार को 25 वर्ष से कम उम्र के युवा एवं इस परीक्षा में शामिल 24 लाख अभ्यर्थी कैसे देख रहे हैं, उनकी क्या मनोदशा है? यह समाज एवं सरकार के लिए चिंता का विषय होना चाहिए।

नीट में शामिल 24 लाख अभ्यर्थियों के परिवार वाले में से कितनों ने नीट पेपर लीक के विरोध प्रदर्शन में शामिल होकर दुबारा नीट परीक्षा करवाने की माँग की?

यदि इन अभ्यर्थियों के परिवार वाले अपने बच्चों का साथ नहीं देंगे तो उनके बच्चे सरकारी भ्रष्टाचार और पेपर लीक से तंग आकर अवसाद में जाकर गलत कदम उठा सकते हैं। इन नवजात युवाओं के पास इतनी मानसिक मजबूती कहाँ है कि वे भाजपा सरकार के अड़ियल रवैये का विरोध कर उसे पीछे हटने पर मजबूर कर सके।

मेडिकल का एक घोटाला और 

इसी तरह मध्य प्रदेश में व्यापम (व्यावसायिक परीक्षा मण्डल) द्वारा प्री मेडिकल टेस्ट में एक बड़ा घोटाला हुआ था। व्यापम मध्य प्रदेश में अनेक परीक्षाएँ आयोजित करती थी और हर परीक्षा में इसी तरह के घोटाले किए गए।

पीएमटी के घोटाले की जानकारी 2009 में मिलने के बाद इंदौर के सामाजिक कार्यकार्ट आनंद राय ने इसके खिलाफ एक जनहित याचिका कोर्ट में लगाई। जिसके बाद बहुत सी जानकारी सामने आई। इसी वर्ष 20 नकली अभ्यर्थियों ने असली अभ्यर्थी की जगह बैठकर परीक्षा दी। इस बात की सुगबुगाहट तो अनेक वर्षों से थी लेकिन इस बात की जानकारी और एफआईआर वर्ष 2013 में हुई। नकली अभ्यर्थियों ने  प्रत्येक से 50 हजार से दस लाख रुपए तक वसूले।

इस घोटाले में नकली व असली अभ्यर्थी और उनके अभिभावक ही शामिल नहीं थे बल्कि ये बड़ा रैकेट था। एसटीएफ ने जांच के बाद रिपोर्ट में  बताया कि इस घोटाले में छोटे-बड़े 100 राजनेता के अलावा अबड़े अधिकारी, नौकरशाह, व्यापम के अधिकारी, दलाल की मिलीभगत थी। जून, 2015 तक 2000 से अधिक लोगों को इसमें गिरफ्तार किया जा चुका है। इस घोटाले में पूर्व शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकान्त शर्मा और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम सामने आया।

इस बात का ज़िक्र करना इसलिए भी जरूरी है कि डॉक्टर के रूप में केरियर बनाने के लिए बच्चों के साथ अभिभावक की महत्त्वाकांक्षा सामने आती आईं। वे घोटाले में लिप्त लोगों से पेपर खरीदने के साथ नकली अभ्यर्थियों को परीक्षा में बैठने के लिए लाखों रुपए खर्च करते हैं। उन्हें लगता है कि एक बार मेडिकल कॉलेज में प्रवेश मिल जाये, डॉक्टर बन जाने के बाद वह तो वसूल हो जाएगा।

यह भी देखें –

Mirzapur : राजगढ़ ब्लॉक के मुसहरों को हटाने की फिराक में है जंगल विभाग

कोचिंग संस्थानों पर सवाल

कोटा में चल रहे कोचिंग संस्थान भी सवालों के घेरे में है क्योंकि आज हर चौथा या पाँचवाँ परिवार अपने बच्चों कोचिंग के लिए लाखों खर्च कर कोटा में नीट और जेईई कोचिंग के लिए भेज रहे हैं लेकिन अभिभावक को यह भी जानना जरूरी होगा कि उस परीक्षा के लिए कितनी सीटें सरकर ने तय की है साथ ही परीक्षा कितने पारदर्शी तरीके से संपन्न होती है? इस परीक्षा की पिछले वर्ष का कटऑफ कितना था? इस बार वह कितना बढ़ सकता है? कोचिंग पर लाखों रुपए खर्च करने से पहले अपने बच्चे के मानसिक स्तर के साथ उसकी रुचि का भी ध्यान रखना जरूरी होगा। कोचिंग पर लाखों रुपए खर्च होने का एक दबाव बच्चे पर होता है, जिस वजह से

आये दिन कोटा से छात्रों की आत्महत्या करने वाली खबरें सामने आती रहती हैं। जनवरी 2024 से अब तक कोटा में 14 छात्र आत्महत्या कर चुके हैं। इन आत्महत्याओं से न समाज को कोई फर्क पड़ता है, न कोचिंग संस्थानों को और न ही सरकार को। भले ही इस उम्र के युवाओं की आबादी देश की जनसंख्या का 50% ही क्यों न हो?

एसीआरवी की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, देश में कुल 1,70,924 आत्महत्याएं हुईं, जिनमें सर्वाधिक आत्महत्या 30 वर्ष तक के युवाओं ने की है, जिनकी संख्या 69,314 है, जो करीब 40% से अधिक है। कोटा आत्महत्या करने वाले टॉप 53 शहरों में 45वें नंबर पर आता है। कोटा में प्रति लाख आत्महत्या का औसत 14.1 व्यक्ति है।

क्या यह चिंता का विषय नहीं है कि एक तरफ अमीर परिवार के बच्चों के लिए एनटीए का पेपर लीक और कोचिंग संस्थान जैसे साधन हैं जबकि दूसरी तरफ गरीब परिवार के बच्चों के लिए सरकारी स्कूल की शिक्षा व्यवस्था ही एकमात्र साधन है। यह वह शिक्षा व्यवस्था है, जहां पढे हुए बच्चे बिना कोचिंग के नीट और जेईई की परीक्षा में अपवाद-स्वरूप ही सफल होते हैं और सफल होने के बाद मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के लिए फीस की व्यवस्था करने असमर्थ होते हैं।

 इसके पीछे बड़ा कारण यह है कि सरकारी स्कूलों का पाठ्यक्रम इन परीक्षाओं के पाठ्यक्रम से बहुत अलग और बहुत बड़ा होता है जबकि सीबीएसई या अन्य दूसरे बोर्डों का पाठ्यक्रम इनसे बहुत मिलता-जुलता और एडवांस होता है।

ज्ञानप्रकाश यादव
ज्ञानप्रकाश यादव
लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रहे हैं और सम-सामयिक, साहित्यिक एवं राजनीतिक विषयों पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन करते हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here