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ग्राउंड रिपोर्ट

हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 में पिछड़ों और दलितों का आरक्षण-हनन का मुद्दा बनेगा?

भारत वर्ष में जाति आधारित आरक्षण देने का प्रावधान नया नहीं है। समाज के एक वर्ग तक सदियों से साधन और संसाधन आसानी से पहुँच रहे हैं, उनसे वंचित समाज व पिछड़ी जातियां किसी भी तरह से प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकती थीं, उनके लिए आरक्षण की सुविधा लागू की गई ताकि समतावादी समाज की स्थापना हो सके। लेकिन पिछले दस वर्षों से सरकारी नौकरियों में निकलने वाली भर्तियों में आरक्षण को लेकर लगातार खुलकर खेल हो रहे हैं। मनुवादी सरकार नहीं चाहती कि एसटी, एससी और ओबीसी कभी आर्थिक व शैक्षणिक रूप से मजबूत हो मुख्यधारा में शामिल हो सकें। हरियाणा उच्च न्यायालय में चपरासी की भर्ती के लिए आरक्षण के नियमों में खुले रूप से खेल हो रहा है। पढ़िये ज्ञानप्रकाश यादव की रिपोर्ट।

भारत में कागजी न्याय की जमीनी हकीकत क्या है? वह किस रूप में हमारे सामने प्रकट होती है? अभी हाल ही में चंडीगढ़ स्थित पंजाब, हरियाणा और केंद्रशासित राज्य चंडीगढ़ के उच्च न्यायालय ने चपरासी के कुल 300 पदों का विज्ञापन निकाला है, जहां आरक्षण के नियमों का खुलेआम उल्लंघन हुआ है। उसके विज्ञापन संख्या 01/Peon/HC/2024 के अनुसार, चपरासी पद के लिए कुल पदों की संख्या 300 है, जिसमें सामान्य श्रेणी के लिए 243 पद अर्थात 81%, संयुक्त रूप से अनुसूचित जाति और पिछड़ी जाति के लिए मात्र 30 पद अर्थात 10%, भूतपूर्व सैनिक के लिए 15 पद और दिव्यांग श्रेणी के लिए 12 पद आरक्षित हैं।

भारत सरकार के 17 अक्टूबर 2016 को जारी शासनादेश में पंजाब की सरकारी सेवाओं में अनुसूचित जाति के लिए 29% और पिछड़ी जातियों के लिए 21%, हरियाणा की सरकारी सेवाओं में अनुसूचित जाति के लिए 19% और पिछड़ी जाति के लिए 27% एवं केन्द्रशासित राज्य चंडीगढ़ की सरकारी सेवाओं में अनुसूचित जाति के लिए 18% और पिछड़ी जाति के लिए 27% आरक्षण का प्रावधान है। पंजाब, हरियाणा और केन्द्रशासित राज्य चंडीगढ़ में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण लागू नहीं है।

पंजाब सरकार की 2021 आरक्षण नीति के अनुसार, अनुसूचित जाति के लिए 20% और पिछड़ी जाति के लिए मात्र 08% आरक्षण का प्रावधान है। हरियाणा सरकार द्वारा 15 जुलाई, 2014 को जारी की गई आरक्षण नियमावली में समूह ‘ग’ और ‘घ’ की सरकारी सेवाओं में अनुसूचित जाति के लिए 20% और पिछड़ी जाति के लिए 27% आरक्षण का प्रावधान है। इसलिए पंजाब, हरियाणा और केन्द्रशासित राज्य चंडीगढ़ के उच्च न्यायालय में चपरासी पद के लिए अनुसूचित जाति को 20% अर्थात 60 पद और पिछड़ी जाति को 27% अर्थात 81 पद आरक्षित होने चाहिए थे, जोकि संयुक्त रूप से अनुसूचित जाति और पिछड़ी जाति के लिए मात्र 30 पद आरक्षित हैं। अर्थात पिछड़े और दलित समाज की 111 सरकारी नौकरियों को पंजाब की आम आदमी पार्टी की सरकार, हरियाणा की भाजपा सरकार और केंद्र की मोदी सरकार ने मिलकर लील लिया है।

चंडीगढ़ में 36 जातियाँ अनुसूचित जाति में शामिल हैं, जिनके नाम क्रमशः इस प्रकार हैं- धर्मी, बंगाली, बरार, बटवल/बरवाला, बावरिया, बाजीगर, बाल्मीकि/भंगी, बंजारा, चमार/रविदासी/रामदासी, चानल, दागी, दरैन, धानक, धोगरी, दुमना, गगरा, गंधीला, कबीरपंथी/जुलाहा, खटिक, कोरी/कोली, मरीजा, मजहबी, मेघ, नट, ओद, पासी, पर्ण, फेरेरा, सनहई, सनहल, सनसोई, सांसी, सपेला, सरेरा, सिकलीगर एवं सिरकीबंद।

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हरियाणा में इन 36 जातियों के अलावा देहा जाति भी अनुसूचित जाति में शामिल है। इसलिए हरियाणा में अनुसूचित जातियों की कुल संख्या 37 हो जाती है।

जबकि पंजाब में देहा, मोची, महातम/राय-सिख जाति भी अनुसूचित जाति में शामिल है। इस प्रकार पंजाब में अनुसूचित जातियों की कुल संख्या 39 हो जाती है।

पंजाब, हरियाणा और केन्द्रशासित राज्य चंडीगढ़ की 39 जातियों के लिए चंडीगढ़ उच्च न्यायालय के चपरासी पद के विज्ञापन में 20% अनुसूचित जाति आरक्षण के तहत 60 पद निकालने चाहिए थे जबकि तथाकथित भारतीय न्याय-व्यवस्था की उच्च-न्यायपालिका ने मात्र 30 पद निकाला है और उसमें भी पिछड़ी जातियों को शामिल किया है। यह कॉलेजियम व्यवस्था से निकले जजों की देख-रेख में किया गया न्याय नहीं तो और क्या है?

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चंडीगढ़ में पिछड़ी जाति में 60 जातियाँ शामिल हैं, जिनके नाम क्रमशः इस प्रकार हैं- अहेरी, बगरिया, बैरागी, बरई/तम्बोली, बर्रा/बेर्रेर, बरवर, बटेरा, भड़भूजा, भट,भुहलिया-लोहार, चंग/चहंग, चनगर/चमगर, चिम्बा, चिड़ीमार, अनुसूचित जाति से परिवर्तित ईसाई, दैया, दकौत, कहार/मल्लाह/धीमर/कस्यराजपूत, धोबी, धोसली/भोसली, फ़क़ीर, गड़रिया, यादव/अहीर, घसियारा/घोसी, घिरठ, ग्वारिया, हज्जाम/नाई, झंगरा-ब्राह्मण/खाटी, जोगी/नाथ, जुलाहा, कम्बोज, कंजर, कुम्हार, कुर्मी, खानघेरा, कुचबंद, लबाना/वंजारा, मदारी, मोची, मिरासी, नालबंद, नार, नूनगर, पिंजा, राय-सिख, रेचबंद, रेहर, शोरगिर, सिंघिकांत, सोई, तेली, ठठेरा, भर/राजभर, रामगढ़िया, गुज्जर,सैनी, सोनी एवं लोहार आदि।

पंजाब में इन्हीं 60 जातियों में 7 अन्य जातियाँ (अरैन, धौला, कंगोहरा, बेटा/हेसी, ग्वारिया, कंजर, रहबरी) भी शामिल हैं। अर्थात पंजाब में आरक्षण का लाभ लेने वाली 67 जातियाँ में पिछड़ी जाति(ओबीसी)  हैं।

हरियाणा में पिछड़ी जाति सूची में कुल 74 जातियाँ शामिल हैं, जिनमें 60 चंडीगढ़ में शामिल हुबहू हैं, शेष 14 इस प्रकार हैं- बेटा/हेंसी/हेसी, गोरखा, गढ़ी-लोहार, सिंगिवाला, वीवर, मीणा/मीना, चरण, रैगर, बहतु, लोध/लोधी, मेव, रंगरेज, जैसवार, ग्रामीनी।

इन 74 पिछड़ी जातियों के लिए 27% ओबीसी आरक्षण के तहत 81 पद होते हैं जबकि इन्हें 39 दलित जातियों के साथ मात्र 30 पदों पर समेट दिया गया है। यह अमृतकाल में पिछड़ों एवं दलितों के साथ जबरन किया जा रहा मनुवादी अत्याचार नहीं तो और क्या है?

इस समय हरियाणा विधानसभा चुनाव की तारीख घोषित हो चुकी है। सभी दलों का प्रचार-अभियान जोर-शोर से चल रहा है। क्या किसी दल ने हरियाणा के उच्च न्यायालय में चपरासी पद के आरक्षण घोटाले को मुद्दा बनाया है? क्या हरियाणा की 74 पिछड़ी और 37 दलित जातियाँ मिलकर भाजपा सरकार को आरक्षण की हकमारी के कारण सत्ता से बेदख़ल करने के लिए तैयार हैं? क्या 111 जातियाँ एकजुट होकर सत्ता परिवर्तन में सक्षम नहीं हैं? क्या ये जातियां अपने हकों व अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं है?

हरियाणा में विधानसभा सीटों की संख्या 90 है, जिसमें 17 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। क्या हरियाणा के 17 दलित विधायक दलित समाज के मुद्दे सड़क पर और सदन में उठाते हैं? क्या 73 सामान्य विधायक पिछड़ों की संवैधानिक हकमारी पर अपनी आवाज बुलंद करते हैं? हरियाणा की 73 सामान्य सीटों पर पिछड़ी जातियों के कितने प्रत्याशी चुनाव जीतते हैं? क्या हरियाणा की 74 पिछड़ी जातियों में आपसी एकता है?

आरक्षण

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हरियाणा में पिछड़े और दलित समाज की कुल 111 जातियाँ आरक्षण का लाभ लेती हैं। इन जातियों के जातीय संगठन, जाति महासभा, दलित संगठन, पिछड़े संगठन तथा जातियों के समाजसेवक नेता भी हैं। क्या यह संगठन और उनके नेता उच्च न्यायालय में की गई आरक्षण की हकमारी पर अपनी-अपनी जातियों को जागरूक किये? क्या ये नेता अपने समाज को इस मुद्दे पर एकजुट कर सत्ता दल और विपक्षी दल के पास गये?

पिछड़ी जाति का कोई व्यक्ति मुख्यमंत्री बन जाने मात्र से वह सभी पिछड़ी जातियों को न्याय दिला देगा, ऐसा कत्तई संभव नहीं है। हालाँकि मुख्यमंत्री की जाति के लोग फिजूल का गर्व करके दूसरी जातियों के लोगों को चिढ़ा सकते हैं। यही बात दलित समाज के मुख्यमंत्री के लिए भी कही जा सकती है। इसलिए पिछड़े और दलित समाज को अपने अधिकार के लिए सत्ता और विपक्ष दोनों से बराबर मुठभेड़ करते रहना होगा और साथ ही साथ सामाजिक एवं संवैधानिक जागरूकता को भी बढ़ाते रहना होगा।

ज्ञानप्रकाश यादव
ज्ञानप्रकाश यादव
लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रहे हैं और सम-सामयिक, साहित्यिक एवं राजनीतिक विषयों पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन करते हैं।

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