Saturday, March 29, 2025
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पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

राम पुनियानी

लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं

आज के परिपेक्ष्य में संवैधानिक मूल्य बचाने के लिए लोकतंत्र को सशक्त करने की जरूरत

भारत में फासीवाद के लक्षणों को उभर रहा हैं जैसे स्वर्णिम अतीत, अखंड भारत की अभिलाषा, अल्पसंख्यकों को देश का शत्रु करार देकर निशाना बनाना, अधिनायकवाद, बड़े उद्योग-धंधों को बढ़ावा देना, अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रहार और सामाजिक चिंतन पर हावी होना तेजी से बढ़ रहा है।

क्या छावा के बहाने तथ्यहीन इतिहास लिख रही है भाजपा

क्या औरंगजेब हिंदू विरोधी था? कोई यह कह सकता है कि औरंगजेब न तो अकबर था और न ही दारा शिकोह। वह रूढ़िवादी था और एक स्तर पर हिंदुओं और इस्लाम के गैर सुन्नी संप्रदायों का स्वागत नहीं करता था। दूसरे स्तर पर वह गठबंधनों का मास्टर था क्योंकि उसके प्रशासन में कई हिंदू अधिकारी थे।

राष्ट्रवादी राजनीति की छत्रछाया में हिंदू त्यौहारों में बढ़ती साम्प्रदायिकता

हिन्दुत्ववादी राजनीति का हमारे उत्सवों पर पड़ा प्रभाव उस राजनीति के बारे में बहुत कुछ कहता है।  जिस प्रकार इनमें से कुछ त्योहारों को हथियार बना लिया गया है, यह शर्मनाक है। हिंदू राष्ट्रवादियों का एक छोटा सा समूह भी धार्मिक जुलूस होने का दावा करते हुए अल्पसंख्यकों की बस्तियों से जाने की जिद कर सकता है। राजनैतिक और गाली-गलौज भरे नारे लगाकर और हिंसक गाने और संगीत बजाकर वह कोशिश करता है कि वहां के निवासी युवक भड़क जाएं और उन पर एकाध पत्थर फेकें। इसके आगे का काम सरकार करती है।

आयोगों की सिफारिश के बाद भी नहीं मिलती अल्पसंख्यकों को भागीदारी

संविधान ने दलितों और आदिवासियों के सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन को मान्यता दी और उन्हें आरक्षण दिया जिसने समुदायों को किसी तरह से बनाए रखा। जबकि राष्ट्रीय स्तर पर ओबीसी को 1990 में 27% आरक्षण मिला, कुछ राज्यों ने अपने स्तर पर इसे पहले भी लागू किया था। मोटे तौर पर इन ओबीसी आरक्षणों का 'यूथ फ़ॉर इक्वालिटी' जैसे संगठनों द्वारा कड़ा विरोध किया गया था। यहाँ तक कि दलितों और अन्य वर्गों के लिए आरक्षण का भी बड़े पैमाने पर विरोध होने लगा, जैसे 1980 के दशक में दलित विरोधी और जाति विरोधी हिंसा और फिर 1985 के मध्य में गुजरात में। इस बीच, चूंकि संविधान ने धर्म के आधार पर आरक्षण को मान्यता नहीं दी, इसलिए अल्पसंख्यक आर्थिक रूप से पिछड़ेपन में डूबे रहे।

क्या राष्ट्र की जिम्मेदारी केवल हिन्दू समाज के कंधों पर है?

स्वतंत्रता आंदोलन के मूल्य हमारे संविधान का हिस्सा हैं; जहां धर्मों और भाषाओं से परे बहुलता और विविधता है। मोहन भागवत हिंदू समाज के भीतर विविधता की बात कर रहे हैं और सोचते हैं कि केवल हिंदू ही इस राष्ट्र के लिए जिम्मेदार हैं! भागवत की 'केवल हिंदू' की विचारधारा देश की प्रगति में एक बड़ी बाधा है। वे वसुधैव कुटुंबकम का पालन करने का दावा करते हैं, लेकिन इन पर कोई अमल नहीं होता। देश के लिए हिंदू ही जिम्मेदार हैं, यह कहना विभाजनकारी होने के साथ गैर जिम्मेदाराना बयान है।

क्या हिन्दू राष्ट्रवाद में आर्य मूलनिवासी है? 

हम यहां 'पहले आने वाले' थे', कई 'राष्ट्रवादी' 'जातीय' प्रवृत्तियों ने इसका इस्तेमाल विभिन्न देशों में समाज पर हावी होने के लिए किया। इसी तरह श्रीलंका में तमिल (हिंदुओं) पर सिंहल हमले में सिंहल जातीय राष्ट्रवाद के हाथों बहुत नुकसान उठाना पड़ा था, जिनका दावा था कि सिंहल उस द्वीप पर पहले आने वाले हैं इसलिए राष्ट्र उनका है! यहां भारत में हिंदू राष्ट्रवाद अलग नहीं है। इसने ‘विदेशी धर्मों’ इस्लाम और ईसाई धर्म का हौवा खड़ा किया। इसने हिंदुओं को आर्यों का पर्याय माना और दावा किया कि आर्य इस भूमि के मूल निवासी हैं। इस तरह औपनिवेशिक शक्तियों द्वारा अपनी नस्लीय श्रेष्ठता दिखाने का प्रयास था, जिससे उन्हें शासन करने का अधिकार मिल गया। इसी तरह ब्राह्मणवादी विचारधारा ने भी ब्राह्मणों और उच्च जातियों को एक श्रेष्ठ नस्ल के वंशज होने का दावा किया, इसलिए उन्हें समाज में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त करने का अधिकार था।

रैदास : मध्यकालीन सामंती दमन और धार्मिक पाखंड के विरुद्ध सबसे मजबूत आवाज

पूरे देश में आज धर्म की अंधी दौड़ में मानवीयता पीछे छूटती जा रही है, वही 15 वीं सदी में पैदा हुए रैदास ने ब्राह्मणवादी संस्कारों के सख्त खिलाफ रहते हुए मनुष्यों में समानता और जाति से बाहर आकर जीने की बात कही। लेकिन उनके लेखन और विचारों का इतना प्रचार नही हुआ, जिसके वे हकदार थे। रैदास इसी गौरवशाली परंपरा से संबंधित थे, जो मध्यकाल में भारत में फली-फूली। वे भक्ति परंपरा के उत्तर भारतीय संत थे, एक ऐसी परंपरा जिसका गरीब मुसलमान और हिंदू दोनों सम्मान करते थे। वे एक गरीब मोची परिवार से थे।

आज़ादी की लड़ाई में जिनका कोई योगदान नहीं वे गांधी की भूमिका कम करना चाहते हैं

आज सांप्रदायिक दक्षिणपंथ को लगता है कि उसकी जडें काफी गहराई तक पहुँच चुकी हैं, इसलिए उसके चिन्तक-विचारक अब गांधीजी की 'कमियों' पर बात करने लगे हैं और भारत के स्वतंत्रता हासिल करने में उनके योगदान को कम करने बताने लगे हैं। इस 30 जनवरी को जब देश राष्ट्रपिता को श्रद्धांजलि दे रहा था तब कुछ पोर्टल ऐसे वीडियो प्रसारित कर रहे थे जिनका केन्द्रीय सन्देश यह था कि गांधीजी केवल उन कई लोगों में से एक थे जिन्होंने भारत की आज़ादी के लिए संघर्ष किया। अलग-अलग पॉडकास्टों और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के जरिये यह प्रचार किया जा रहा था कि अंग्रेजों के भारत छोड़ने के पीछे महात्मा गाँधी के प्रयासों की बहुत मामूली भूमिका थी। 

समाज सुधारक नारायण गुरु : असमानता पर आधारित धर्म का विरोध करने पर आरएसएस ने उठाए सवाल

मंदिर हमारे सामुदायिक जीवन का भाग हैं। सामाजिक प्रतिमानों में परिवर्तन के साथ मंदिरों में वस्त्र-संबंधी मर्यादाओं में भी बदलाव आवश्यक है। इनका विरोध करना घड़ी की सुइयों को विपरीत दिशा में घुमाने जैसा होगा। धर्म के नाम पर होने वाली राजनीति में प्रायः हमेशा सामाजिक बदलावों और राजनैतिक मूल्यों में परिवर्तन का विरोध होता है।

देश में इतनी नफरत फैल चुकी है जितनी संघी नेताओं ने भी शायद ही सोचा हो

आरएसएस लगातार दोहरी नीति पर काम एक तरफ आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और प्रधानमंत्री बयान देते फिरते हैं कि देश में सभी समुदाय के लोग सुरक्षित हैं, वहीं उनके पोषित लोग अल्पसंख्यकों पर लगातार हमला कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने अभी क्रिसमस के मौके पर दिए संदेश में भगवान ईसा मसीह की शिक्षाओं पर अमल करने की बात कही, वहीं दूसरी तरफ लखनऊ मे चर्च के बाहर भक्तों ने गदर मचाया। अहमदाबाद में सांता क्लॉज की पोशाक पहने व्यक्ति की भक्तनुमा व्यक्ति ने पिटाई कर दी। यह मात्र एक या दो घटनाएं है। लेकिन पूरे देश में ऐसी सैकड़ों घटनाएं लगातार हो रही हैं। सवाल यह उठता है कि आखिर नफरत इतनी व्यापक क्यों है?

तालिबान, धार्मिक कट्टरता और महिलाओं के मानवाधिकार

किसी भी देश में धार्मिक कट्टरता का पहला निशाना वहां की महिलायें होती हैं। अफगानिस्तान हो या ईरान या भारत ही क्यों न हो। आज के समय में धार्मिक परम्पराओं का राजनैतिक उपयोग कर राज्य सत्ता समाज पर लादती है और यह सभी परम्पराएं समाज को 100 साल पीछे ले जाती हैं क्योंकि ये सभी परम्पराएँ घीसी-पिटी, दमनकारी व मानसिक गुलामी का झंडा उठाये रहती हैं। हिन्दू राष्ट्रवादियों और तालिबान की नीतियां और कार्यक्रमों में परिमाण या स्तर का फर्क हो सकता है मगर दोनों में मूलभूत समानताएं हैं।

संभल मस्जिद : राष्ट्रवादी ताकतें हर मस्जिद को खोदकर इतिहास बदलने की मुहिम चला रही हैं

भारतीय राजनीति और न्यायपालिका ने एक भस्मासुर पैदा कर दिया है जो समाज में धार्मिक विभाजन को और गहरा बना रहा है। आज हमें क्या करना चाहिए? क्या हमें हर मस्जिद को खोदकर देखना चाहिए कि उसके नीचे क्या कोई मन्दिर है? या फिर हमें पंडित जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में ‘आधुनिक मन्दिरों’ का निर्माण करना चाहिए। भाखड़ानंगल बाँध की नींव रखते हुए पंडित नेहरू ने वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थाओं, इस्पात कारखानों, बिजली घरों और बाँधों को आधुनिक मन्दिर बताया था. हम आधुनिक मन्दिरों का निर्माण करेंगे या मस्जिदों के नीचे मन्दिर ढूंढते रहेंगे, इस पर ही हमारे देश की नियति निर्भर करेगी।

डॉग व्हिसल के माध्यम से अल्पसंख्यकों पर निशाना साधते भाजपा नेता

वर्ष 2014 के बाद  अल्पसंख्यकों को लेकर देश की कुर्सी संभालने वाले जिस तरह की भाषा का प्रयोग लगातार कर  नफरत फैला रहे हैं। जिसका परिणाम यह हुआ कि ध्रुवीकरण की राजनीति तेज हुई और जिसका सीधा असर मतदान पैटर्न  पर दिखाई दिया। सामाजिक धारणायें भी इससे अछूती नहीं रहीं। आज हर हिंदू परिवारों के हजारों व्हाट्सएप ग्रुप और ड्राइंग रूम चैट में मुसलमानों को गुनहगार बनाकर नफरत फैलाई जा रही है। लेकिन इस विभाजनकारी भावना से कैसे निपटा जाए? लोगों के बीच वैकल्पिक आख्यान को विकसित करने की आवश्यकता है

भाजपा क्यों भारत जोड़ो यात्रा से घबराई हुई है

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले देवेन्द्र फड़णवीस का बयान आया कि भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी शहरी नक्सलियों और अति वामपंथी तत्वों से घिरे हुए थे और वे कांग्रेसी कम और अति वामपंथी विचारधारा वाले अधिक लग रहे थे। दक्षिणपंथी हिंदू राष्ट्रवादी अपने गुरु एमएस गोलवलकर के कथन (बंच ऑफ थॉट्स पेज 133) के अनुसार मुस्लिम, ईसाई और कम्युनिस्ट हिंदू राष्ट्र के लिए आंतरिक खतरा हैं, फडणवीस और उनके जैसे लोग हिंदू राष्ट्र के एजेंडे के खिलाफ किसी भी चीज को या तो मुस्लिमों या ईसाइयों या शहरी नक्सलियों या अति वामपंथी के रूप में प्रचारित करते हैं।

व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी : इतिहास पर आधारित या राजनीतिक एजेंडे पर

आज का युवा अकादमिक संस्थानों से भले ही पढ़ाई न कर पाता हो लेकिन व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट की उपाधि जरूर हासिल कर लेता है। इस यूनिवर्सिटी की स्थापना पिछले कुछ वर्षों पहले ही हुई है, जिसके बाद प्राचीन इतिहासकारों द्वारा खोजी और लिखे गए तथ्यों को एक सिरे ने नकारा जा रहा है। इसमें आरएसएस ने बड़ी और महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। असली मुद्दा यह है कि दक्षिणपंथी राजनीति का बोलबाला बढ़ने के साथ ही, उसने बहुत चतुराई से अपना राजनैतिक एजेंडा लागू करना शुरू कर दिया है। वे एक ऐसे इतिहास का निर्माण कर रहे हैं जो न तार्किक हैं और न तथ्यात्मक।

लोकप्रियता के नाम पर साम्प्रदायिक हिंसा फैलाने में दक्षिणपंथी कवियों और गायकों की भूमिका

अभी तक यही बात मानी जाती थी कि कि कविता, गाने और संगीत लोगों के मनोरंजन के लिए होता है लेकिन यह देखा जा रहा है कि कविता और गीतों का उपयोग देश में साम्प्रदायिक ज़हर फ़ैलाने के लिए भी किया जा रहा है। हिन्दू त्योहारों और जुलूसों के दौरान अल्पसंख्यक समुदाय को डराने और हिंसा करने के लिए लगातार भड़काऊ गाने बजाये जा रहे हैं। यह बात निर्भीक पत्रकार कुणाल पुरोहित ने अपनी विचारोत्तेजक पुस्तक ‘एच-पॉप’ में लिखी है। जिसमें स्पष्ट लिखा है कि हिन्दुत्वादी कवि, लेखक और पॉप गायकों की रचनाएं देश में विशेषकर हिन्दुभाषी प्रदेशों में गाई,बजाई और पढ़ी जा रही हैं, जिसका असर साम्प्रदायिक उन्माद और दंगों के रूप में सामने आ रहे हैं।

बोलिए, आपको क्या चाहिए मोहब्बत या नफरत?

पिछले 70 वर्षों तक हिन्दू कभी खतरे में नहीं थे, न ही उन्हें कभी मारे जाने का डर था लेकिन जैसे ही केंद्र में भाजपा का शासन आया, वैसे ही बहुसंख्यक हिन्दू के लिए अल्पसंख्यक मुस्लिम खतरा बन गए और उनकी जान पर बन आई। असल में असली खतरा उन्हें आरएसएस से है, हिंदुतव के नाम पर वही ऐसा माहौल तैयार कर रहे हैं, वही घिनौनी सोच लोगों के दिमाग में घुसा रहे हैं और सबसे ज्यादा बेवकूफ हिंदुत्व के पीछे भागने वाले अंधभक्त है। योगी आदित्यनाथ, जो बुलडोजर (अ)न्याय के प्रणेता ने भी ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ का नारा बुलंद किया है, वहीं आरएसएस ने इस नारे का खुलकर समर्थन किया। धर्म के मुखौटा पहने राष्ट्रवादी होने का दावा करने वाली शक्तियां न केवल उपनिवेश विरोधी संघर्ष में शामिल नहीं हुईं वरन् उन्होंने घृणा और विभाजन के बीज बोए और उन्हें खाद-पानी दिया। आने वाला समय सांप्रदायिकता के लिए चुनौती भरा रहेगा।

मोहन भागवत ने फिर से हिन्दू राष्ट्र का राग अलापा

अपेक्षाकृत कम प्रचलित शब्द ‘वोकिज्म’ का इस्तेमाल अधिकांशतः दक्षिणपंथियों द्वारा 'सामाजिक और राजनैतिक अन्यायों के प्रति संवेदनशील रवैया रखने वाले लोगों को अपमानित करने के लिए किया जाता है।' यह भागवत के भाषण का केन्द्रीय मुद्दा था। इस समय हिंदू दक्षिणपंथी देश के सामाजिक-राजनैतिक परिदृश्य पर हावी है। 

गाय के बहाने फिर से आस्था की दुकानदारी की तैयारी

गौ हत्या और बीफ खाने पर प्रतिबन्ध पर आरएसएस बरसों से राजनीति कर रही है लेकिन उस इतिहास को अनदेखा कर रही है जो लिखित में गाय मांस को सेवन को लेकर दर्ज है। वह ऐसा प्रतिबन्ध थोप रही है, जैसे गाय पर उसने बैनामा करवा लिया हो, इसके चलते अनेक मुस्लिमों के साथ मोबलिंचिंग कर उस समुदाय को भयभीत किया गया। गाय एक दुधारू पशु से ज्यादा कुछ नहीं है। महाराष्ट्र में आने वाले दिनों में यहाँ विधानसभा चुनाव के चलते धुवीकरण की राजनीति के चलते ही देशी गाय को ही राज्य माता का दर्जा दिया गया।

अमेरिका में राहुल गाँधी के भाषण पर बचाव करती नज़र आ रही है भाजपा

राहुल गांधी पिछले कुछ वर्षों से एक परिपक्व सोच वाले जनता के प्रिय नेता बनकर सामने आए हैं। उन्होंने तीन दिवसीय अमेरिका प्रवास के दौरान भाजपा पर सीधे-सीधे निशाना साधा, जिस पर भाजपा नेताओं ने पलटकर जवाब दिया। यह घमासान अभी चल ही रहा है। जैसा कि भाजपा की पुरानी और घिसी-पिटी रणनीति है वैसा ही उसने इस बार भी किया है। राहुल गाँधी ने भाजपा के सांप्रदायिक एजेंडे की आलोचना की। भाजपा ने सिख विरोधी दंगे की बात शुरू कर दी।

क्या धर्मनिरपेक्षता पश्चिम का थोपा हुआ विचार है?

भारत में हिन्दू धर्म के बारे में कहा जाता है कि वह पारंपरिक अर्थ में धर्म नहीं है। यह केवल लोगों को भ्रमित करने का तरीका है। जो लोग धर्म का रक्षक होने का दावा करते हैं वे दरअसल जाति और लिंग पर आधारित प्राचीन ऊंच-नीच को बनाए रखना चाहते है। ये ताकतें प्रजातंत्र के आगाज़ से पहले की दुनिया वापस लाना चाहती हैं। वे नहीं चाहतीं कि हर व्यक्ति का एक वोट हो। वे चाहतीं हैं कि राजा को ईश्वर से जोड़ा जाए और पुरोहित वर्ग उसे सहारा दे। 

हैदराबाद का विलय : लोकतांत्रिक सफर की शुरुआत

भारत में हैदराबाद के विलय के पीछे इस्लामोफोबिया नहीं था। इसकी मुख्य वजहों में से एक थी भौगोलिक और दूसरी थी राजशाही से लोकतंत्र की ओर यात्रा। हैदराबाद रियासत की भौगोलिक स्थिति, जो भारत के लगभग मध्य में था, चारों ओर से भारत से घिरा एक स्वतंत्र देश या एक ऐसा राज्य जो पाकिस्तान का हिस्सा होता, एक स्थायी समस्या बन जाता। नेहरू-पटेल की नजरों में भी यही बात सबसे महत्वपूर्ण थी। हैदराबाद के विलय को रेखांकित करता राम पुनियानी का लेख ।

इंग्लैड कैसे इस्लामोफोबिया का मुकाबला कर रहा है

हाल में ‘गाय एक पवित्र पशु है और मुसलमान गायों की हत्या कर रहे हैं’ की गलत धारणा ने जोर पकड़ा है। इस धारणा को आधार बनाकर ही जहां एक ओर शाकाहार का प्रचार किया जा रहा है वहीं दूसरी ओर लिंचिंग की जा रही है। नफरत भरे भाषण भी देश के लिए बड़ी समस्या बन चुके हैं। नफरत भरे भाषण देने वालों पर काबू पाने और उन्हें सजा देने का तंत्र एवं प्रक्रिया मौजूद है, मगर जमीनी हकीकत यह है कि ऐसा करने वाले सामान्यतः न केवल दंड से बचे रहते हैं, वरन् उन्हें पदोन्नत कर पार्टी के बड़े पदों से नवाजा जा रहा है। इसी मुद्दे पर प्रस्तुत है राम पुनियानी का लेख।

जाति विवाद के मसले पर आरएसएस का घालमेल

लोकसभा चुनाव 2024 में सबसे बड़ा मुद्दा जातिगत जनगणना कराने का था जिसे इण्डिया गठबंधन ने बहुत मजबूती से आगे बढ़ाया है। जाति का मुद्दा आर एस एस के लिए टेढ़ी खीर बन गया है। क्योंकि उसे पता हैं कि जातिया अपना अधिकार मांगने लगी तो उनका हिंदुत्व बिखर जायेगा। जिसे बचाने के लिए वह तमाम संदर्भ दे रहे हैं। इसी को लेकर राम पुनियानी की रिपोर्ट।

लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा-आरएसएस किस रणनीति पर काम कर रहे हैं।

लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा ने पिछले लोकसभा चुनाव की अपेक्षा कम सीटों से जीत दर्ज की।लोकसभा चुनाव 2024 के परिणाम से ऐसा लगता है कि आरएसएस अपने राजनीतिक वंशज यानी भाजपा की मदद के लिए आगे नहीं आया।आरएसएस की गहरी समझ यह है कि इस चुनाव में भाजपा की हार का मुख्य कारण दलित वोटों का भारत गठबंधन की ओर जाना है।आरएसएस के नेता पहले से ही भाजपा नेताओं के साथ लंबी बैठकें कर रहे हैं, ताकि चुनाव के नतीजों का विश्लेषण किया जा सके और भविष्य की रणनीति बनाई जा सके। भाजपा-आरएसएस किस रणनीति पर काम कर रहे हैं इस पर राम पुनियानी का लेख।

स्वार्थ की राजनीति ने हमेशा जाति जनगणना को रोककर आरक्षण मुद्दे पर पेंच फंसा सामाजिक न्याय की धज्जियां उड़ाईं

इधर कुछ वर्षों से लगातार जाति जनगणना की बात उठाई जा रही है। हमारे देश में इसका कराया जाना जरूरी है क्योंकि आरक्षण का प्रावधान बहुत वर्ष पहले लागू किया गया था। अब जबकि देश की जनसंख्या में वृद्धि हुई है, ऐसे समय में इस कराते हुए जातियों के नए प्रतिशत के हिसाब से आरक्षण दिया जाना होगा। जिससे सामाजिक और आर्थिक स्थिति में समानता आए और सभी सममानपूर्वक जीवन के हकदार हों सकें।

सरकारी कर्मचारियों को आरएसएस से जोड़ने के परिणाम विध्वंसकारी होंगे

फासीवादी संगठन आरएसएस ने सरकारी कर्मचारियों को अपने संगठन की गतिविधियों में भाग लेने पर लगे प्रतिबंध से छूट दे दी है। जबकि कोई भी सरकारी कर्मचारी को किसी भी राजनैतिक संगठन से जुड़ने पर पूरी तरह से मनाही है ताकि वे संविधान के मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध रहें और अपने काम में राजनैतिक पक्षपात न करें। सवाल यह उठता है कि संघ का अगला एजेंडा क्या है, जिसमें वह सरकारी कर्मचारियों का उपयोग(दुरुपयोग) करेगा?

दुकानों पर नाम प्रकरण : निशाने पर पसमांदा मुसलमान, सुप्रीम कोर्ट ने लोकतन्त्र की हिमायत की

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की भाजपा सरकारों ने जिस तरह से काँवड़ यात्रा की राह में पड़ने वाली दुकानों, ठेलों और होटलों पर मालिक के नाम की तख्ती अथवा फ़्लेक्स लगाने का फरमान जारी किया वह निश्चित रूप मेहनतकश पसमांदा मुसलमानों को निशाने पर लेने का प्रयास था। यह 2024 के चुनाव में घुटनों के बल आई भाजपा की हताशा को दर्शाता है। लेकिन इससे भी बढ़कर विकराल होती बेरोजगारी और महंगाई जैसे मुद्दों को उलझाने का षड्यंत्र भी है। भाजपा को लगता है कि इस तरह के नैरेटिव बनाकर वह न सिर्फ हिंदू दूकानदारों बल्कि रोजगार की उम्मीद में उम्रदराज़ हो रहे युवाओं को भी खुश कर देगी। यह एक खतरनाक कदम था जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाम लगाया।

मानसिक विचलन और असुरक्षा की ज़मीन पर फूलता-फलता बाबावाद

अनुयायियों का असुरक्षा वाला पहलू उनके मनोविज्ञान को समझने की कुंजी है। असुरक्षा जितनी अधिक होगी, बाबा के प्रति समर्पण उतना ही अधिक होगा, अनुयायी सामान्य ज्ञान या तर्कसंगत सोच को पूरी तरह से दरकिनार कर देंगे। असुरक्षा के पहलू को तब ठीक से समझा जा सकता है जब हम वैश्विक परिदृश्य को देखें। जिन देशों में आर्थिक और सामाजिक असुरक्षा कम है, वहां धर्मों के सक्रिय अनुयायियों में गिरावट देखी जा रही है।

वर्ष 2014 से देश में चल रहा है अघोषित आपातकाल

पिछले दस वर्षों से केंद्र सरकार जिस तरह से देश में उनके खिलाफ बोलने, लिखने या आंदोलनकारियों को पकड़-पकड़ कर जेल में डालते हुए उन्हें राष्ट्रद्रोही घोषित कर रही है, वह किसी आपातकाल से कम नहीं है। बल्कि यह उस आपातकाल से भी ज्यादा खतरनाक और हिंसक है।

क्यों लगता है कि नालंदा महाविहार को बख्तियार खिलजी ने नष्ट किया था?

देश में हिंदुतव को लेकर जो माहौल चल रहा है, उसमें मुसलमानों को कटघरे में खड़े करने में संघ ने कभी कोई परहेज नहीं करेगा। अभी हाल में नालंदा विश्वविद्यालय के नए कैंपस का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया और अपने भाषण में प्राचीन विश्वविद्यालय के पुस्तकालय को जलाकर नष्ट करने का आरोप बख्तियार खिलजी पर लगाया क्योंकि वह मुसलमान था। लेकिन इतिहास के प्रमाण कुछ और ही बात साबित करते हैं। पढ़िए यह लेख

पिता, पुत्र और हिंदुत्व के एजेंडे की ओर ठेलमठेल

आरएसएस के एक शीर्ष पदाधिकारी इंद्रेश कुमार ने भी कहा कि अहंकार के कारण भाजपा की सीटों में गिरावट आई है। आरएसएस ने तुरंत इस बयान से पल्ला झाड़ लिया और इंद्रेश कुमार ने इसे वापस लेते हुए प्रमाणित किया कि केवल मोदी के नेतृत्व में ही भारत प्रगति कर सकता है। कई टिप्पणीकारों ने डॉ. भागवत के बयान को आरएसएस और भाजपा के बीच दरार के संकेत के रूप में लिया है।

एनडीए सरकार के हिन्दू राष्ट्रवाद का निशाना बनते मुसलमान

पिछले दस वर्षों के दो कार्यकाल में मोदी ने ध्रुवीकरण को करने के लिए साम-दंड-भेद सभी तरीके अपनाए, वह सामने है। मुसलमानों के खिलाफ सांप्रदायिक ज़हर से भरे हुए भाषण, उनके पहनावे, खान-पान, बुर्का-हिजाब, गाय की तस्करी को लेकर हुई मॉब लिंचिंग, लव जेहाद, सीएए/एनआरसी जैसे अनेक मामले सामने आए। तीसरे कार्यकाल में मुसलमानों की सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक स्थिति में कितना और कैसा बदलाव होगा? समय के साथ सामने आएगा।

क्या पूरी दुनिया में गांधी की पहचान रिचर्ड एटनबरो की फिल्म ‘गांधी’ से हुई?

28 मई को नरेंद्र मोदी ने मीडिया से बातचीत करते हुए बहुत ही हास्यास्पद बयान दिया कि महात्मा गांधी की पहचान के लिए हमारे देश ने पिछले 75 वर्षों में कुछ भी नहीं किया, इस चुनाव से पहले मोदी ने कभी भी प्रेस का सामना नहीं किया, लेकिन अभी के लोकसभा चुनाव में भाजपा की स्थिति को देखते हुए उन्होंने लगभग 70-72 चैनल, अखबारों और पत्रिकाओं को इंटरव्यू दिये, जिसमें कोई भी महत्त्वपूर्ण बात नहीं कही बल्कि अपने पद की गरिमा के खिलाफ जाते हुए इस तरह के प्रतिकूल व गैरजिम्मेदाराना बयान ही दिये।

नरेन्द्र मोदी : तानाशाही से देवत्व की ओर

गुजरात का मुख्यमंत्री रहने के दौरान से ही नरेन्द्र मोदी की छवि को एक करिश्माई नेता की बनाने का जो प्रयास शुरू हुआ, अब वह देवत्व तक आ चुका है।

भाजपा-आरएसएस के राजनैतिक संबंध आज भी पिता-पुत्र की भांति हैं – जेपी नड़ड़ा

वर्ष 2014 से केंद्र में आरएसएस पोषित भाजपा शासन कर रही है। अब वर्ष 2024 में तीसरी बार सरकार बनाने के लिए मशक्कत कर रही है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड़ड़ा ने साफ़तौर पर यह कहा कि लोग अपने मन इस भ्रम को मिटा दें कि इस चुनाव में आरएसएस भाजपा को किसी तरह से कोई सपोर्ट नहीं कर रहा है।

क्या मोदीजी कांग्रेस के न्याय पत्र से डर गए हैं?

विगत कई जनसभाओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस के घोषणापत्र के खिलाफ तथ्यहीन बातें की हैं क्या वह उनकी संभावित हार और अपने विकास कार्यों के प्रति जनता के अविश्वास का नतीजा है। आखिर वह क्यों इतनी अनर्गल और सांप्रदायिक बातें कर रहे हैं?

बाबाओं के इलाज को खतरनाक बताया सुप्रीम कोर्ट ने

आज हमारे देश में तार्किक सोच और पद्धतियों से परे केवल आस्था पर आधारित ज्ञान का ढोल पीटा जा रहा है। अनेक बाबा इस काम को अंजाम दे रहे हैं लेकिन शैक्षणिक संस्थाओं में भी आस्था आधारित ज्ञान विद्यार्थियों के दिमाग में ठूँसने का काम किया जा रहा है।

इस्लामोफोबिया अन्य धर्मों के प्रति फोबिया से इतना अलग क्यों?

दुनिया भर में जितना इस्लामोफोबिया की चर्चा होती है, उतनी अन्य धर्मों के फोबिया की नहीं जबकि अलग-अलग देशों में प्रचलित और हावी धर्मों के फोबिया का सामना लोगों को करना पड़ता है। क्यों इस्लामोफोबिया अन्य धर्मों के फोबिया से इतना अलग है पढ़िये इस लेख में 

विघटनकारी नैरेटिव को मजबूती देते हुए, सच को तोड़-मरोड़ कर दिखाती फिल्म स्वातंत्र्यवीर सावरकर 

वर्ष 2014 के बाद, जब से लोगों के दिमाग में राष्ट्रवादी विचारधारा ज्यादा मजबूती से हावी हुई है, तब से समाज के सांस्कृतिक परिदृश्य में इसका प्रभाव भी बढ़ा है। जिसमें एक माध्यम सिनेमा भी है, जिसके माध्यम से जनता सबसे ज्यादा अपने ज्ञान को समृद्ध करने पर विश्वास करती है। अभी हाल में ही रणदीप हुड्डा की फिल्म स्वातंत्र्यवीर सावरकर रिलीज हुई है, जिसमें सावरकर को झूठे तथ्यों के साथ महान बताया गया है।