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ग्राउंड रिपोर्ट

हिंदुत्ववादी राजनीति ने इतिहास के पाठ्यक्रम से गायब किया मुस्लिम शासन का पाठ

भारतीय शिक्षा प्रणाली पर हिंदू साम्प्रदायिक तत्वों के पहले भी आरएसएस के साम्प्रदायिक संस्करण के माध्यम से प्रतिभाओं, एकल संप्रदायों और शैक्षणिक संस्थानों को बढ़ावा दिया जा रहा था। एनसीईआरटी की इतिहास की किताब से कक्षा सात से मुगलकालीन शासकों का पाठ हटाकर कुम्भ मेला का पाठ शामिल किया गया।

नई शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 पर धीरे-धीरे अमल किया जा रहा है। अन्य बातों के अलावा, इसमें भारतीय ज्ञान प्रणाली एवं भारतीय आश्रम को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। इतिहास विषय के पाठ्यक्रम में यह परिवर्तन किया गया है कि दिल्ली सल्तनत एवं मुगल शासन का विवरण हटा दिया गया है। इसका मतलब करीब सात सौ ईसा पूर्व का इतिहास बताया गया है। यह किसी भी तरह से एक भारोत्तोलन अवधि पर आधारित है। ‘एनसीई रिटेल ने पहले मुगलों और दिल्ली सल्तनत का विवरण कम कर दिया था – जिसमें तुगलक, खिलजी, मामलुक और लोधी साम्राज्यों की जानकारी और दो शाही साम्राज्यों की जानकारी शामिल थी, जिसमें मुगल सम्राटों की उपलब्धियां की जानकारी शामिल थी। यह विवरण 2022-23 में कोविड-19 महामारी के दौरान युक्तिसंगत पाठ्यक्रम को हटा दिया गया था। अब नए पाठ्यक्रमों में उनका विवरण पूरी तरह से गायब कर दिया गया है।’

दिल्ली सल्तनत और मुगल शासकों का विवरण कक्षा 7 के पाठ्यक्रम पूरी तरह से हटा दिए गए हैं। इसके अलावा जिन अन्य पाठ्य पुस्तकों में भी मुस्लिम शासकों का ज़िक्र था, उसे भी हटा दिया गया है। बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के बाद मुंबई में हुई हिंसा (1992-1993) और गोधरा ट्रेन के बाद गुजरात में हुई हिंसा (2002) का भी विवरण दिया गया है। नाथूराम गोडसे के एक शोध ग्रंथ और गांधीजी की हत्या के बारे में आरएसएस पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद कई अन्य बातें भी हटा दी गई हैं। कुंभ मेले का विवरण दिया गया है लेकिन वहां हुई भगदड़ में मची हलचल और दिल्ली रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़ का कोई ज़िक्र नहीं है।

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इस संस्था की स्थापना कोविड के दौरान हुई जब छात्रों का भार कम करने के लिए कोर्स से कुछ सामग्री हटा दी गई और उसके बाद युक्तियुक्तीकरण का तर्क दिया गया। हटा दिया गया भाग था, जिसे लेकर हिंदू राष्ट्रवादी अलगाववादी सहयोगी महसूस करते थे।

मुगलों के इतिहास के प्रमुख खलनायकों के रूप में प्रस्तुत किया गया है। मुगलों के पहले अलाउद्दीन खिलजी जैसे शासक भी हिंदुत्ववादी आख्यान के आजादी पर रहे हैं। अब तक बराक ओबामा का दानवीकरण मुस्लिम राजनेता को नष्ट किए जाने पर आधारित था, जिसे तर्कवादी इतिहासकार चुनौती दे रहे हैं। मुस्लिम पैगंबर का तलवारों का नोंक इस्लाम पर फैलाया जाना भी एक आधार बना हुआ है। यह पूरी तरह से गलत है क्योंकि शुरुआती दौर में इस्लाम को स्वीकार करने की बात मुस्लिम अरब गणराज्य के साथ भारतीयों का मेल-मिलाप था। बाद में लिबरेशन बिल्डर के कई लोगों ने जाति पर आधारित जुल्मों से इस्लाम के लिए प्राप्त की।

अविश्वासी असत्यवाद तो इस हद तक आगे बढ़ चुका है कि इस कालखंड में अंधकारमय दौर में बताया गया है कि कट्टरपंथियों का व्यापक नरसंहार हुआ था। इसमें कोई शक नहीं कि साम्राज्यों के दौर में राजनीतिक कारणों से युद्ध होना आम बात थी। राजा सदैव अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहते थे और इस प्रक्रिया में बहुत से लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ती थी। लेकिन इसे सार्वजनिक नरसंहार कहना पूरी तरह से गलत है। युवात्व आख्यान के मूल में साम्प्रदायिक दृष्टि से इतिहासलेखन जो कि सोमनाथ ने अपनी फूट डालो और राज करो की नीति के तहत पानी डाला था। इसमें राजनेताओं के सभी निर्णयों को उनके धर्म से जोड़ा जाता है और राजाओं को उनके धार्मिक समुदाय के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।

हिंदू संप्रदायिक इतिहासलेखन में एक कदम और आगे चलकर यह दावा किया गया कि मुस्लिम और ईसाई विदेशी ईसाइयों ने ईसाइयों को सताया। मुस्लिम साम्प्रदायिक इतिहासलेखन में इसी तरह के सिक्कों के अन्य चित्र दिखाए गए हैं जिनमें मुस्लिम शासक थे और हिंदू उनके शासक थे। उन्होंने यह चित्र प्रस्तुत किया था कि यहां के शासक का पूर्ण सम्मान होना था।

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यह देखने के बाद में अंग्रेजों के लिए बहुत ही मददगार साबित हुआ और उन्होंने हमारे मिले-जुले समाज को हमारे देश को दो टुकड़ों में बाँट दिया – भारत और पाकिस्तान में बाँट दिया। सावरकर ने कहा था कि इस देश में दो राष्ट्र हैं और जिन्ना ने एक अलग राष्ट्र के लिए पाकिस्तान की मांग करते हुए एक जैसी बात कही थी  पाकिस्तान अपने निर्माण के समय से ही मुस्लिम सम्प्रदायिकता के आकर्षण में फंस गया और जहां तक ​​वहां के अनुयायियों का संबंध है, वह पाकिस्तान का पुराना मोहम्मद बिन कासिम के समय, यानी आठवीं शताब्दी से प्रचलित है। इस समय उनके अभिलेखों में हिन्दू शासकों के बारे में एक शब्द भी नहीं है। मुस्लिम साम्प्रदायिक संस्था द्वारा स्थापित मुस्लिम साम्प्रदायिक संस्था के बारे में बताया गया कि हिन्दू धर्म और संस्कृति का विवरण पूरी तरह से अलग हो गया है।

एक तरह से पिछले तीन दशकों से भारत, पाकिस्तान की राह पर चल रहा है। पाकिस्तान की घटनाएँ पूरी तरह से यहाँ दुहराया जा रही हैं। इस बात को पाकिस्तान की कवयित्री फहमीदा रियाज़ ने अपनी कविता में बहुत अच्छी तरह से प्रस्तुत किया था – अरे तुम भी हम जैसे निकले, अब तक कहाँ छुपे थे भाई।’

भारतीय शिक्षा प्रणाली पर हिंदू साम्प्रदायिक तत्वों के पहले भी आरएसएस के साम्प्रदायिक संस्करण के माध्यम से प्रतिभाओं, एकल संप्रदायों और शैक्षणिक संस्थानों को बढ़ावा दिया जा रहा था। समय के साथ-साथ मुख्यधारा का मीडिया और सोशल मीडिया पर भी उनका हाथ बंटाने लगा।

संस्कृति सतत विकसित होती रहती है। इतिहास के जिस कालखण्ड को उलट-पलट करने में युवावादी शक्तियाँ शामिल हैं, उनके दौरान कई सामाजिक परिवर्तन हुए। वास्तुकला, एनीमेशन परिधानों और साहित्य में तो परिवर्तन हुआ ही, साथ ही धर्मों के मिलन से भक्ति और सूफी परंपराएँ विकसित हुईं। इसी काल में सिख धर्म की स्थापना हुई और वह फला-फूला।

अब इस सिद्धांत को अपनी रणनीति में बदलाव करना होगा। अब मुस्लिम शासक तो नहीं हैं, तो वे किस अभिनेत्री का दानवीकरण प्रकार करेंगे? औरंगजेब और बाबर की जगह लेने के लिए नए पैनट्रे तैयार किए जा रहे होंगे क्योंकि अब वे तो किसी काम के नहीं रह रहे हैं!

इतिहास राष्ट्रवाद के विचार का केन्द्रीय तत्व है। एरिक फॉर्म  के अनुसार ‘इतिहास का राष्ट्रवाद के लिए वही महत्व है जो अफीम की लत वाले के लिए अफीम का होता है।’ जबसे भाजपा 1998 में एनडीए के रूप में सत्ता पर काबिज हुई, उसने जो सबसे बड़ा काम किया उसे ‘शिक्षा का भगवाकरण‘ कहा जाता है। इसके अंतर्गत इतिहास का विवरण देते समय  वीर और यशस्वी हिंदू राजाओं के दुष्ट और आक्रामक मुस्लिम राजाओं के टकराव का आख्यान पेश किया जाता है। यह आरोप लगाया जाता है कि अब तक इतिहासलेखन वामपंथी इतिहासविद् करते रहे, जिन्होंने दिल्ली के शासकों को केन्द्र में रखा और जो मुस्लिम-समर्थक थे। यहां यह महत्वपूर्ण है कि पाठयपुस्तकों में किसी विशिष्ट वंश का विवरण उनके शासनकाल की अवधि के अनुपात में दिया जाता था।

1980 के दशक तक के इतिहास की खोज में हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों के सिद्धांतों का प्रामाणिक विवरण रहता था। विवरण केवल धर्मों पर केन्द्रित नहीं था बल्कि समुदाय का समग्र विवरण दिया गया था जिसमें व्यापार, संस्कृति और साहित्य सहित अन्य क्षेत्रों की जानकारी भी शामिल थी।

यह सच है कि आपके भविष्य के निर्माण के लिए हमें शासकों द्वारा केन्द्रित इतिहास कहा जाता है की जरूरत नहीं है। हमें समाज के विभिन्न तबकों, संप्रदायों, महिलाओं, संप्रदायों और शिल्पों पर भी ध्यान केन्द्रित करना चाहिए जिनमें इन आख्यानों में साम्य स्थान हासिल नहीं हो पाता। 

राम पुनियानी
राम पुनियानी
लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं

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