बकवास करने का अधिकार केवल ब्राह्मण वर्गों को है (डायरी 21 मई, 2022)
हम जिस देश में रहते हैं, वहां बकवास बहुत किया जाता है। लेकिन सनद रहे कि बकवास करने का अधिकार सभी को नहीं है। ठीक वैसे ही जैसे कि गांवों में होता है। सामंती वर्ग के लोग दलितों और पिछड़ों के लोगों को गालियां देते हैं। उनकी बहन-बेटियों के ऊपर फब्तियां कसते हैं। ये सब […]
हम जिस देश में रहते हैं, वहां बकवास बहुत किया जाता है। लेकिन सनद रहे कि बकवास करने का अधिकार सभी को नहीं है। ठीक वैसे ही जैसे कि गांवों में होता है। सामंती वर्ग के लोग दलितों और पिछड़ों के लोगों को गालियां देते हैं। उनकी बहन-बेटियों के ऊपर फब्तियां कसते हैं। ये सब भी बकवास हैं। लेकिन यही बकवास दलित और पिछड़े वर्ग के लोग नहीं कर सकते। यदि करेंगे तो उनके घर ढाह दिये जाएंगे, उन्हें मारा-पीटा जाएगा और यह भी मुमकिन है कि उनके घर की महिलाओं के साथ यौनिक हिंसा की जाय। यह सब वे कर सकते हैं। लेकिन दूसरा पक्ष कुछ नहीं कर सकता है। यदि वह इसकी शिकायत अपने गांव की पंचायत में करेगा तब उसे यह कह दिया जाएगा कि बड़े लोग हैं, अब उनके खिलाफ कैसी कार्रवाई। यह यह भी हो सकता है कि शिकायत करनेवाले को ही सजा सुना दी जाय। थाने में भी उसकी शिकायत सुनी जाएगी और मामला दर्ज होगा, कहना मुश्किल है। और अगर थाने में मामला दर्ज भी हो जाएगा तो अदालत में पीड़ित कैसे टिकेगा? वहां वकील चाहिए होते हैं जो अपने मुवक्किल का पक्ष रखने से अधिक उसकी जेब कतरने को लालायित रहते हैं। फिर जज का भी सवाल है। जज यदि सामंतों की जाति का हुआ तो इंसाफ मिलने की उम्मीद शून्य तो नहीं, लेकिन न्यूनतम अवश्य हो जाती है।
तो बकवास करने का अधिकार केवल सामंती वर्गों जिसे ब्राह्मण वर्ग भी कह सकते हैं, को ही है। दिल्ली विश्वविद्यालय के दलित प्रोफेसर डॉ. रतनलाल को नहीं। सूचना मिल रही है कि उन्हें कल गिरफ्तार कर लिया गया। उनके ऊपर आरोप है कि उन्होंने सोशल मीडिया पर एक बकवास बात लिखी। मेरी दिलचस्पी इस बात को जानने में रही कि आखिर उन्होंने ऐसा क्या बकवास लिख दिया है कि ब्राह्मण वर्ग ने उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया और दिल्ली पुलिस ने एफआईआर की प्रति तक उन्हें नहीं दी। दरअसल, कल ही मैंने डॉ. रतनलाल से दूरभाष पर बातचीत की। मैंने उनसे कहा कि आपके मामले को लेकर एक खबर लिखना चाहता हूं, कृपया मुझे एफआईआर की प्रति भेज दें। जवाब में उन्होंने कहा कि एफआईआर की प्रति ही नहीं दी जा रही है। कहीं मिल भी नहीं रही है। मैंने पूछा कि मुकदमा किस थाने में दर्ज कराया गया है तो डॉ. रतनलाल ने मौरिस नगर थाने का उल्लेख किया और यह भी कहा कि यदि मिल जाय तो मुझे भी भेज दें।
[bs-quote quote=”दिल्ली पुलिस की कार्यवाही ने यह तो साबित कर दिया है कि डॉ. रतनलाल ने जरूर कुछ बड़ा बकवास किया होगा। यही जानना था। तो मैं उनके ट्वीटर एकाउंट पर गया। वहां एक स्क्रीन शॉट मिला, जिसमें शंकर, लिंग, खतना आदि के अलावा लल्लन टॉप नामक एक वेबपोर्टल के हवाले से उस ऑब्जेक्ट की तस्वीर थी, जो ज्ञानवापी मस्जिद में ब्राह्मण पक्ष को हासिल हुआ है। इस ऑब्जेक्ट को ब्राह्मण वर्ग के लोग शिवलिंग और मुस्लिम समाज के लोग वजूखाने का फव्वारा बता रहे हैं।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
तो मैंने किया यह कि दिल्ली पुलिस की वेबसाइट पर एफआईआर की तलाश की। यह सुविधा दिल्ली पुलिस ने दे रखी है। इस सुविधा के तहत दिल्ली पुलिस कुछ जानकारियां मांगती है जैसे कि एफआईआर दिल्ली के किस जिले, किस थाने और किस तारीख को दर्ज कराई गई। साथ ही यह भी कि अभियुक्त, वादी का नाम क्या है। तो मैंने मांगी गई सारी जानकारियां टाइप कर दी। सर्च पर क्लिक करने पर कोई सूचना उपलब्ध नहीं होने की बात कही गई। उसके ठीक नीचे कुछ स्पष्टीकरण भी दिल्ली पुलिस की ओर से दिए गए हैं। उनमें एक यह कि संवेदनशील मामलों के एफआईआर उपलब्ध नहीं कराए जा सकते हैं।
तो मुझे लगा कि दिल्ली पुलिस ने डॉ. रतनलाल के खिलाफ मामले को ‘संवेदनशील’ मामला बना रखा है और वह हर हाल में डॉ. रतनलाल को गिरफ्तार करना ही चाहती है। यदि ऐसा नहीं होता तो एफआईआर की प्रति उपलब्ध होती और यह मुमकिन है कि डॉ. रतनलाल जो कि दिल्ली विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर हैं, तनख्वाह भी अच्छी ही होगी, अपनी अग्रिम जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट तक जा सकते थे। लेकिन दिल्ली पुलिस ने तो सबसे मूल चीज ही अपने पास रखी। अब बिना एफआईआर की प्रति के जमानत के लिए अदालत में अर्जी कैसे दी जा सकती है?
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खैर, दिल्ली पुलिस की कार्यवाही ने यह तो साबित कर दिया है कि डॉ. रतनलाल ने जरूर कुछ बड़ा बकवास किया होगा। यही जानना था। तो मैं उनके ट्वीटर एकाउंट पर गया। वहां एक स्क्रीन शॉट मिला, जिसमें शंकर, लिंग, खतना आदि के अलावा लल्लन टॉप नामक एक वेबपोर्टल के हवाले से उस ऑब्जेक्ट की तस्वीर थी, जो ज्ञानवापी मस्जिद में ब्राह्मण पक्ष को हासिल हुआ है। इस ऑब्जेक्ट को ब्राह्मण वर्ग के लोग शिवलिंग और मुस्लिम समाज के लोग वजूखाने का फव्वारा बता रहे हैं।
मेरे हिसाब से डॉ. रतनलाल ने बकवास बात कही। वे प्रोफेसर हैं और इतिहास के प्रोफेसर हैं तो हल्की बात नहीं कही जानी चाहिए। उन्हें डॉ. आंबेडकर का अनुसरण करना चाहिए। कैसे उन्होंने डॉ. आंबेडकर ने जाति का विनाश और हिंदू धर्म की पहेलियां लिखी। लेकिन बकवास डॉ. रतनलाल भी कर सकते हैं। कायदे से इसकी आजादी भी उन्हें जरूर मिलनी चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं है। बकवास करने का अधिकार केवल ब्राह्मणों को ही है।
[bs-quote quote=”ब्राह्मणों की भावनाएं बहुत जल्दी आहत हो जाती हैं। लेकिन 85 फीसदी दलित-बहुजनों की भावनाएं क्यों आहत नहीं होतीं? अब कल की ही बात जेएनयू की कुलपति शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित महोदया ने कहा है कि भारत को संविधान के दायरे में सीमित नागरिक राष्ट्र के रूप में नहीं रखा जाना चाहिए। कल वह दिल्ली विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित कर रही थीं। उनका कहना है कि भारत को अपने अतीत की सभ्यता को माननेवाला राष्ट्र होना चाहिए।.” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
कल मैंने यह सोचा कि आखिर ब्राह्मण शिवलिंग की पूजा कैसे करते हैं? क्या इसके लिए कोई विधि है? मेरे लिए तो लिंग का मतलब लिंग ही है और मैं तो अपने लिंग का इस्तेमाल अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप ही करता हूं। मुझे बकवास बातें पसंद नहीं हैं। लेकिन ब्राह्मण वर्ग शिवलिंग पूजन को बकवास नहीं मानता। तो मैंने गूगल पर यह खोजा कि शिवलिंग की पूजा करने की ब्राह्मणों की विधि क्या है? जवाब में वेबदुनिया डॉट कॉम के हवाले से जो जानकारियां मिलीं, वह निम्नवत है–
शिवलिंग को पंचामूत से स्नानादि कराकर उन पर भस्म से 3 आड़ी लकीरों वाला तिलक लगाएं।
शिवलिंग पर हल्दी नहीं चढ़ाना चाहिए, लेकिन जलाधारी पर हल्दी चढ़ाई जा सकती है।
शिवलिंग पर दूध, जल, काले तिल चढ़ाने के बाद बेलपत्र चढ़ाएं।
केवड़ा तथा चंपा के फूल न चढ़ाएं। गुलाब और गेंदा किसी पुजारी से पूछकर ही चढ़ाएं।
कनेर, धतूरे, आक, चमेली, जूही के फूल चढ़ा सकते हैं।
शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ प्रसाद ग्रहण नहीं किया जाता, सामने रखा गया प्रसाद अवश्य ले सकते हैं।
जाहिर तौर पर गैर ब्राह्मण इसमें कोई बदलाव नहीं कर सकते। यह उनका अधिकार नहीं है। अधिकार केवल ब्राह्मणों को ही है।
बकवास पर एक बात और। ब्राह्मणों की भावनाएं बहुत जल्दी आहत हो जाती हैं। लेकिन 85 फीसदी दलित-बहुजनों की भावनाएं क्यों आहत नहीं होतीं? अब कल की ही बात जेएनयू की कुलपति शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित महोदया ने कहा है कि भारत को संविधान के दायरे में सीमित नागरिक राष्ट्र के रूप में नहीं रखा जाना चाहिए। कल वह दिल्ली विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित कर रही थीं। उनका कहना है कि भारत को अपने अतीत की सभ्यता को माननेवाला राष्ट्र होना चाहिए।
दरअसल, जेएनयू की कुलपति महोदया सभ्यता और संस्कृति के नाम पर मनु के विधान को संविधान से अधिक महत्वपूर्ण बता रही हैं। यह उनके हिसाब से गलत नहीं है। आखिर वह जिस जाति और वर्ग से आती हैं, वह अपने वर्चस्व को बनाए रखने के लिए भी तो कुछ करेगा ही। लेकिन यह देश केवल ब्राह्मणों का नहीं है। यहां 85 फीसदी आबादी गैर ब्राह्मणों की है।
जाहिर तौर पर कुलपति महोदया के उपरोक्त कथन से देश के उन सभी लोगों की भावना आहत होगी, जो संविधान में विश्वास करते हैं। स्वयं भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की भावना भी जरूर आहत हुई होगी, क्योंकि वह देश में संविधान के प्रमुख हैं। लेकिन मुझे नहीं लगता है कि 85 फीसदी दलित-बहुजन में से कोई एक भी जेएनयू की बददिमाग कुलपति के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराएगा कि उन्होंने संविधान का अपमान किया है और उन्हें इसकी सजा दी जाय।
खैर, कल मेरी प्रेमिका ने शब्द दिया अखबार। अखबारनवीस होने के कारण यह मुश्किल नहीं था। लेकिन आसान भी नहीं था।
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24 COMMENTS
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