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भाजपा सरकार ने बिलकिस बानो के अपराधियों को बचाने के लिए अपनी ताकत का इस्तेमाल किया – सुभाषिनी अली

आख़िरकार एक लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने बिल्क़ीस बानो मामले में दोषियों की सज़ा माफ़ करने के (गुजरात सरकार के ग़ैर-कानूनी) फैसले को रद्द कर दिया। शीर्ष अदालत का आदेश, जिसमें गुजरात नरसंहार (2002) के दौरान हुए बिल्क़ीस बानो (परिवार के सदस्यों की हत्या और बिल्क़ीस से गैंग रेप) मामले के सभी […]

आख़िरकार एक लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने बिल्क़ीस बानो मामले में दोषियों की सज़ा माफ़ करने के (गुजरात सरकार के ग़ैर-कानूनी) फैसले को रद्द कर दिया।

शीर्ष अदालत का आदेश, जिसमें गुजरात नरसंहार (2002) के दौरान हुए बिल्क़ीस बानो (परिवार के सदस्यों की हत्या और बिल्क़ीस से गैंग रेप) मामले के सभी 11 बलात्कारियों और हत्यारों को आत्मसमर्पण करने एवं वापस जेल जाने का निर्देश दिया गया है।

यह फैसला उन याचिकाकर्ताओं के लिए कुछ ख़ुशी लेकर आया, जिन्होंने अदालत के समक्ष सज़ा माफ़ी को रद्द करने की गुहार लगाई थी।

गुजरात नरसंहार की पीड़िता बिल्क़ीस बानो को इंसाफ दिलाने वालों में उत्तर प्रदेश की जानी-मानी दो महिला एक्टिविस्ट भी थीं- लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति प्रोफेसर रूप रेखा वर्मा और कानपुर की पूर्व सांसद सुभाषिनी अली।

मुस्लिम विरोधी दंगों के जघन्य अपराधियों को माफ करने के अनुचित फैसले पर भारतीय जनता पार्टी की गुजरात सरकार को कटघरे में खड़ा करने वाली दोनों महिलाओं से बीते 8 जनवरी को आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर वरिष्ठ पत्रकार असद रिज़वी ने विशेष बातचीत की। पेश हैं उसे कुछ अंश-

वरिष्ठ कम्युनिस्ट नेता और पूर्व सांसद सुभाषिनी अली

वर्तमान परिदृश्य में आप बिल्क़ीस बानो मामले में शीर्ष अदालत के फैसले को कैसे देखती हैं?

लोग खुश हैं और फैसले का स्वागत कर रहे हैं, क्योंकि हाल के वर्षों में सरकार के खिलाफ यह सबसे मुखर फैसला है। ऐसा लगता है कि भाजपा सरकार, जघन्य अपराधियों के साथ मिली हुई थी, क्योंकि उसने शीर्ष अदालत में उन्हें बचाने के लिए हर संभव कोशिश की थी। समाज को यह देखना चाहिए कि फैसले में यह रेखांकित हुआ कि गुजरात सरकार ने इस मामले में आरोपियों को बचाया था।

इसके अलावा, हम लोग अब, महिला पहलवानों और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय मामले की पीड़िता आदि बारे में चिंतित हैं, क्योंकि बिल्क़ीस बानो मामले की तरह इन दोनों मामलों में भी आरोपी सत्तारूढ़ दल से हैं। जो लोग सत्ता में हैं, उनके खिलाफ लड़ना एक कठिन काम है, और ये लंबी लड़ाई है, लेकिन पीड़ितों को हार नहीं माननी चाहिए, हम सब उनके साथ हैं।

भाजपा शासित राज्यों में यौन उत्पीड़न के मामलों के बारे में आपकी क्या राय है?

आमतौर पर कोई सरकार यौन पीड़ितों के समर्थन में खड़ी नहीं होती हैं, लेकिन यह देखा गया है कि भाजपा उन अपराधियों का खुलकर समर्थन करती है, जिनका उसकी पार्टी से कोई संबंध होता है। मुझे भाजपा के अलावा कोई अन्य राजनीतिक दल ऐसा नहीं दिखता जो खुलेआम बलात्कारियों और अपराधियों का समर्थन करता हो।

क्या इस मामले को आगे बढ़ाने के दौरान आपको कोई धमकी या दबाव मिला?

नहीं, हम पर कोई बाहरी दबाव या ख़तरा नहीं था। लेकिन निगाहें हम पर हैं, क्योंकि हम उन लोगों को चुनौती देते हैं, जो शक्तिशाली हैं और सत्ता में बरक़रार हैं।

यदि गुजरात सरकार या दोषी माफी के लिए महाराष्ट्र उच्च न्यायालय जाएंगे तो आपका क्या रुख होगा?

निश्चित रूप से, हम उन्हें वहां भी चुनौती देगें। लेकिन महाराष्ट्र उच्च न्यायालय के लिए उनकी याचिका स्वीकार करे ऐसा मुश्किल लगता है, क्योंकि वह पहले ही एक बार उनकी याचिका खारिज कर चुकी है। अब बड़ा सवाल यह है कि क्या गुजरात सरकार बिल्क़ीस बानो को मुआवजा और सुरक्षा देगी या नहीं?

आप इस मामले में भाजपा सरकार की भूमिका को किस प्रकार देखती हैं?

केंद्र और गुजरात, दोनों सरकारों ने इन जघन्य दोषियों को बचाने और सजा माफी के फैसले को वैध साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ा था। सरकार ने पूरा विधि विभाग लगा दिया था, ताकि ये दोबारा सलाखों के पीछे न जाने पाए।

क्या आपको लगता है कि राजनीतिक दल महिलाओं की गरिमा की कीमत पर वोट हासिल करते हैं?

कुछ को छोड़कर लगभग सभी पार्टियाँ महिलाओं के मुद्दों के प्रति असंवेदनशील हैं। वे केवल तभी बोलते या सक्रीय होते हैं, जब लोग महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों पर कोई आंदोलन शुरू करते हैं। राजनीतिक क्षेत्र के साथ-साथ समाज में भी हर जगह पितृसत्ता है और यही कारण है कि हम दशकों से महिला आरक्षण की मांग कर रहे हैं।

लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व चांसलर डॉ. रूप रेखा वर्मा

क्या आपको लगता है कि बिल्क़ीस बानो के मामले में पूरा न्याय हुआ है?

हां, जहां तक सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष मामले का सवाल है। लेकिन मुझे डर है कि बिलकिस बानो की समस्याएं खत्म नहीं होंगी। अगर अब महाराष्ट्र में दोषी सजा में छूट की मांग करते हैं तो उनका संघर्ष फिर से शुरू हो सकता है। इसके अलावा, अब बिल्कीस को सुरक्षा और सामाजिक रिश्तों को लेकर भी समस्या हो सकती हैं। मुझे विश्वास है कि इन बिंदुओं पर भी उनको समर्थन मिलेगा। वह बहादुर है और इससे भी लड़ेगी, मुझे यकीन है।

क्या इस मामले के दौरान या उससे पहले आपकी बातचीत बिल्क़ीस से थी?

नहीं।

आप उत्तर प्रदेश से हैं, लेकिन आपने गुजरात दंगा पीड़ित के लिए आवाज उठाई। आप राज्य में महिला सुरक्षा को कैसे देखती हैं?

अभी हाल ही में जारी आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, महिलाओं और बच्चों के खिलाफ हिंसा में यूपी पहले स्थान पर है और हर दिन यह हिंसा बढ़ रही है। स्थिति निराशाजनक और चिंताजनक है।

क्या आपको लगता है कि भाजपा ने अपने से जुड़े अपराधियों के लिए एक दंडमुक्ति का माहौल बनाया है?

अधिकांश लोगों को ऐसा ही लगता है। ऐसे कई उदाहरण हैं, जो इस धारणा का समर्थन करते हैं।

यदि ये अपराधी महाराष्ट्र उच्च न्यायालय में चले जाएं, तो आप क्या करेंगी?

मैं वहां भी उनके (बिल्कीस) साथ खड़ा होना चाहूंगी। इस एकजुटता का ठोस स्वरूप साथी कार्यकर्ताओं से विचार-विमर्श के बाद ही सामने आएगा।

आप ऐसे महत्वपूर्ण मामले में याचिकाकर्ताओं में से एक थी, क्या आपको कोई धमकी मिली या दबाव बनाया गया?

कोई ठोस खतरा नहीं आया, लेकिन समग्र सामाजिक-राजनीतिक माहौल बिल्कुल गैर-खतरे वाला या आरामदायक नहीं था।

उल्लेखनीय है कि लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति प्रोफेसर रूप रेखा वर्मा और कानपुर की पूर्व सांसद सुभाषिनी अली ने मुस्लिम विरोधी दंगों के जघन्य अपराधियों को माफ करने के अनुचित फैसले पर भारतीय जनता पार्टी की गुजरात सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया था। वे इस फैसले को एक ‘ऐतिहासिक फैसले’ की तरह देखती हैं, जो मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य और महिला सुरक्षा के दृष्टिकोण से बहुत अहम हैं।

दोनों महिलाओं ने ही शीर्ष अदालत के इस फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने बिल्क़ीस बानो मामले में बलात्कारियों और हत्यारों के खिलाफ कानूनी लड़ाई जारी रखने का भी फैसला किया है। उन्होंने कहा है कि अगर गुजरात सरकार भविष्य में दोषियों की सजा माफी के लिए महाराष्ट्र उच्च न्यायालय का रुख करती है तो इसकी भी लड़ाई लड़ी जाएगी।

कम्युनिस्ट नेता सुभाषिनी अली और साझी दुनिया की सचिव डॉ. रूप रेखा का मानना है कि भाजपा सरकार ने इस मामले में दोषी दंगाइयों को बचाने एवं पीड़िता व उसके परिवार के जीवन को खतरे में डालने के लिए अपनी शक्ति का ग़लत इस्तेमाल किया है।

उल्लेखनीय है कि बिल्क़ीस पांच महीने की गर्भवती थी, जब मार्च 2002 में सांप्रदायिक हिंसा के दौरान उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था और उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गई थी, जिसमें उसकी तीन वर्षीय बेटी भी शामिल थी, जिसका सिर जमीन पर पटक दिया गया था।

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