नागपुर। बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर बेंच ने मंगलवार को माओवादी संबंध मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा सहित पाँच अन्य को बरी कर दिया, उनकी उम्रकैद की सजा रद्द कर दी थी और आज उन्हें बृहस्पतिवार को नागपुर केंद्रीय कारागार से रिहा कर दिया गया।
पीठ ने कहा कि वह सभी आरोपियों को बरी कर रही है क्योंकि अभियोजन पक्ष उनके खिलाफ संदेह से परे मामला साबित करने में विफल रहा। इनके साथ ही हेम मिश्र, महेश तिर्की, विजय तिर्की, नारायण सांगलीकर, प्रशांत राही और पांडु नरोटे(जो अब नहीं रहे) को माओवादी लिंक मामले में बरी कर दिया है।
महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले की एक अधीनस्थ अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद साईबाबा 2017 से यहां जेल में बंद थे।
जेल से बाहर आते ही संवाददाताओं ने उनसे बात करनी चाही, तब उन्होंने कहा कि, ‘मेरा स्वास्थ्य बहुत खराब है। मैं बात नहीं कर सकता। मुझे पहले इलाज कराना होगा और उसके बाद ही मैं बात कर पाऊंगा।’
जेल से बाहर उनके परिवार के लोग इंतज़ार कर रहे थे। उनकी पत्नी वसन्ता ने कहा कि न्याय मिलने में लंबा समय लगा, लेकिन न्याय मिला क्योंकि उन्होने कोई अपराध नहीं किया था। लेकिन जो दस वर्ष का समय गया उसमें परिवार के साथ उनको बहुत तकलीफ मिली।
मामला क्या था
जीएन साईबाबा और उनके पाँच सहयोगियों के साथ 9 मई, 2014 को गिरफ़्तार किया। उन पर आरोप था कि उनका संबंध प्रतिबंधित भाकपा-माओवादी से हैं और वे इसके सदस्य हैं।
मंगलवार को बॉम्बे हाई कोर्ट ने की दो न्यायधीशों की बेंच ने यह अहम फैसला सुनाया। यह फैसला जस्टिस विनय जोशी और वाल्मीकि एसए मेनेजस की बेंच ने सुनाया। फैसले में यह कहा गया कि दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर को उन पर लगे मामले से बरी किया जाता है और उम्र कैद की सजा अब रद्द की जाती है।
दो न्यायधीशों की बेंच ने कहा कि वह सभी आरोपियों को बरी कर रही है क्योंकि अभियोजन पक्ष उनके खिलाफ संदेह से परे मामला साबित करने में विफल रहा।
उच्च न्यायालय की एक अन्य बेंच ने 14 अक्टूबर, 2022 को इस बात का संज्ञान लेते हुए साईबाबा को बरी कर दिया था कि यूएपीए के तहत वैध मंजूरी के अभाव में मुकदमे की कार्यवाही को अमान्य मानी थी।
महाराष्ट्र सरकार ने उसी दिन फैसले को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।
शीर्ष अदालत ने शुरू में आदेश पर रोक लगा दी और बाद में अप्रैल 2023 में उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया और साईबाबा द्वारा दायर अपील पर नए सिरे से सुनवाई करने का निर्देश दिया।
हालांकि, अभियोजन पक्ष ने उच्च न्यायालय से उसके आदेश पर रोक लगाने का अनुरोध नहीं किया, लेकिन उसने कहा कि वह तुरंत उच्चतम न्यायालय में अपील दायर कर सकता है।
शारीरिक असमर्थता के कारण व्हीलचेयर पर रहने वाले 54 वर्षीय साईबाबा 2014 में मामले में गिरफ्तारी के बाद से नागपुर केंद्रीय कारागार में बंद रखा है।
वर्ष 2017 में, महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले की एक सत्र अदालत ने कथित माओवादी संबंधों और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने जैसी गतिविधियों में शामिल होने के लिए साईबाबा, एक पत्रकार और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के एक छात्र सहित पांच अन्य को दोषी ठहराया था। इससे पहले उन्हें वर्ष 2014 से 2017 टीके इसी जेल में बंद रखा गया था लेकिन बाद में उन्हें जमानत मिल गई थी।
कौन है जीएन साईबाबा
जीएन साईबाबा दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के अध्यापक थे। दिल्ली के ही राम लाल आनंद कॉलेज में वर्ष 2003 से उन्होंने अध्यापन का काम किया। माओवादी संगठन के साथ शामिल होकर काम करने के संदेह में उन्हें महाराष्ट्र सरकार ने 2014 में गिरफ्तार किया था। इसके बाद वर्ष 2014 में उन्हें निलंबित कर दिया गया। वर्ष 2021 में निलंबन के बाद 21 मार्च 2021 को तत्काल प्रभाव से सेवा समाप्त कर दी गई। इसके लिए कॉलेज के प्रिंसिपल ने सेवामुक्त करने वाले ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे। जीएन साईबाबा 90 फीसदी शारीरिक असक्षम हैं और व्हीलचेयर पर हैं।
(भाषा के इनपुट के साथ)