रायगढ़। गांधी जयंती के अवसर पर रायगढ़ के तहसील तमनार के ग्राम उरवा में 14वाँ कोयला सत्याग्रह किया गया। सत्याग्रह में देशभर के तमाम पर्यावरणविदों और सामाजिक कार्यकर्त्ताओं ने न सिर्फ अपनी उपस्थिति दर्ज की, बल्कि पेसा कानून, ग्राम सभा वन अधिकार, जिला खनिज न्यास, विस्थापन और पुनर्वास जैसे मुद्दों को लेकर जनसामान्य के सामने अपने विचार भी रखे। इस दौरान बाल और युवा कलाकारों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रमों की भी पेशकश की गई। कार्यक्रम की शुरुआत राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के चित्र पर माल्यार्पण कर हुई। तत्पश्चात डॉ. प्रियंका, डॉ. धीरेंद्र पटेल को स्वास्थ्य के क्षेत्र में अपना अतुल्य योगदान देने के लिए सम्मानित किया गया। कई सामाजिक कार्यकर्ता भी सम्मानित हुए।
बतादें, तमनार में जल-जंगल-ज़मीन को बचाने की मुहिम को लेकर कोयला खदान के विरोध में कोयला सत्याग्रह का आयोजन किया जाता है। आज इस सम्मेलन में सामाजिक कार्यकर्त्ताओं के साथ ग्रामीणों ने शपथ लिया कि किसी भी कीमत पर वह अपनी ज़मीन नहीं देंगे। सामाजिक कार्यकर्त्ताओं द्वारा आंदोलन को और गति देने की बात कही गई।
कोयला सत्याग्रह में पहुँचे सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा कि जल-जंगल-ज़मीन प्राकृतिक सम्पदा है, इसे बचाने वास्ते हम हमेशा संघर्षरत रहेंगे। ज़मीन हमारी है तो खेती हम ही करेंगे और सम्पदा पर भी हमारा ही हक़ होगा। कहा कि सरकार द्वारा सब कुछ प्राइवेट कम्पनियों को दिया जा रहा है, हमें अपने ही अधिकारों के प्रति लड़ना पड़ रहा है। इस संघर्ष को पूरा देश जान रहा है। उसे देखने और समझने के लिए मध्यप्रदेश से भी एक टीम आई थी। कोयला सत्याग्रह के लोगों ने कहा कि हम अपनी ज़मीन पर सिर्फ खेती करेंगे। हमें हमारे पुरखों से जो मिला है, उसे हर हाल में बचाना ही हमारा मकसद है।
इसी क्रम में देश के जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता अशोक श्रीमाली, रवि पंगरहा (एमएमपी प्रमुख), सिया दुलारी (आदिवासी मध्यप्रदेश), कुसुम आलम ताई सहित झारखंड, गुजरात, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश से पहुँचे दिग्गज लोगों ने सरकार पर निशाना साधा। कहा कि संविधान हमें अधिकार देता है कि इस ज़मीन और उसके अंदर जो कुछ भी है, उस पर भू-स्वामी का अधिकार है। उन्होंने कहा कि इस कोयला सत्याग्रह को पूरे देश के संघर्षशील साथी अपना समर्थन दे रहे हैं। यह आदिवासी अस्मिता की लड़ाई है, इसके लिए भले ही सरकार-प्रशासन या कम्पनियों के खिलाफ जाना पड़े, हम जाएँगे।
दरअसल, यहाँ के लगभग 56 गाँव के लोग खनन के लिए किसी भी कीमत पर अपनी ज़मीन नहीं देना चाहते। सामाजिक कार्यकर्त्ताओं ने साफ तौर पर कहा कि जल-जंगल-ज़मीन सरकार के संसाधन नहीं हैं, इस पर जोर-जबरदस्ती नहीं किया जाना चाहिए।