Thursday, July 4, 2024
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‘अभियान’ के बावजूद देश की बड़ी आबादी खुले में शौच के लिए मजबूर है

कितनी विडंबना है कि आजादी के 75 साल बाद भी देश की एक बड़ी आबादी खुले में शौच के लिए मजबूर है। 2011 की जनगणना के अनुसार, देश के 53.1 प्रतिशत घरों में शौचालय नहीं था, जिसकी वजह से महिलाओं और लड़कियों को सबसे ज्यादा मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। खुले में शौच जाने […]

कितनी विडंबना है कि आजादी के 75 साल बाद भी देश की एक बड़ी आबादी खुले में शौच के लिए मजबूर है। 2011 की जनगणना के अनुसार, देश के 53.1 प्रतिशत घरों में शौचालय नहीं था, जिसकी वजह से महिलाओं और लड़कियों को सबसे ज्यादा मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। खुले में शौच जाने से महिलाओं और लड़कियों को न केवल मानसिक प्रताड़ना से गुज़ारना पड़ता है, बल्कि उनके स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। घर में शौचालय न होने की वजह से लड़कियां और महिलाएं सुबह सूरज निकलने से पहले घर से दूर शौच के लिए जाती हैं और फिर पूरे दिन वह जाने से परहेज़ करती हैं। इसकी वजह से उन्हें कई प्रकार की बीमारियों का सामना करना पड़ता है। दिन में शौच से बचने के लिए वह काफी कम मात्रा में भोजन ग्रहण हैं, जिससे कई महिलाएं और किशोरियां कुपोषण का शिकार हो जाती हैं। घर में शौचालय न होने का सबसे अधिक खामियाजा गर्भवती महिलाओं को उठाना पड़ता है, जिसका असर उनके प्रसव में नज़र आता है।

घर में शौचालय की कमी का एक उदाहरण राजस्थान के बीकानेर जिला स्थित लूणकरणसर ब्लॉक के बिंझरवाड़ी गांव में देखने को मिलता है जहां कई घरों में शौचालय व्यवस्था न होने के कारण लोग परेशान हैं। हालांकि 3 अप्रैल 2018 को ही राजस्थान की तत्कालीन सरकार ने सभी 43 हज़ार 344 गांवों, के साथ-साथ 295 पंचायत समितियों और 9894 ग्राम पंचायतों को खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिया था। इसका अर्थ है कि गांवों के सभी घरों में शौचालय का निर्माण किया जा चुका है, लेकिन ज़मीनी हकीकत में यह शत प्रतिशत सच नहीं है।

इस संबंध में गांव की एक महिला जशोदा का कहना है कि गांव में शौचालय बनने के बाद अब महिलाओं को खुले में शौच के लिए नहीं जाना पड़ता है। गर्भवती महिलाओं को इससे बहुत ज्यादा सहायता मिली है। वह बीमारियों से मुक्त हो गई हैं। परंतु आज भी गांव के सभी घरों में शौचालय नहीं बने हैं। हालांकि जशोदा को यह नहीं पता है कि उनका गांव खुले में शौच से मुक्त गांव घोषित है या नहीं? उन्हें इस बात की भी जानकारी नहीं है कि जिन घरों में शौचालय नहीं बने हैं, उसके पीछे क्या कारण हैं? लेकिन वह इस बात को स्वीकार करती हैं कि गांव के बहुत से लोग जागरूकता के अभाव में सरकार की विभिन्न योजनाओं का लाभ उठाने से वंचित रह जाते हैं।

गांव के एक सामाजिक कार्यकर्ता मनी राम बताते हैं कि जब गांव के अधिकतर घरों में शौचालय नहीं था, उस समय महिलाओं और किशोरियों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था, जिसकी वजह से वह बीमार और कुपोषित रहती थीं। मनी राम के अनुसार, 2014-15 के आंकड़ों के मुताबिक गांव के 90 प्रतिशत घरों में शौचालय नहीं थे। इस समस्या को दूर करने के लिए उन्होंने गांव वालों को घर में शौचालय निर्माण के लिए प्रेरित किया। उन्हें न केवल घर में शौचालय होने के लाभों से अवगत कराया, बल्कि शौचालय बनाने के लिए उन्होंने लोन की व्यवस्था भी करवाई। उन्होंने गांव के एसएचजी की सहायता से उन्हें 10,000 का लोन दिलवाया, जिसके बाद गांव के कुछ घरों में शौचालय का निर्माण शुरू हुआ।

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वह बताते हैं कि शुरू में अज्ञानतावश लोगों ने घर में शौचालय निर्माण का विरोध भी किया और इसे परंपरा के विरुद्ध भी बताया। लेकिन वह लगातार लोगों को इस दिशा में जागरूक करते रहे। धीरे-धीरे गांव वालों को घर में शौचालय की महत्ता समझ में आने लगी। आज बिंझरवाड़ी गांव के लगभग सभी घरों में शौचालय का निर्माण किया जा चुका है। जबकि जिन घरों में अभी तक शौचालय नहीं बने हैं मनी राम उन्हें भी इसके लिए जागरूक करने का प्रयास कर रहे हैं, ताकि गांव की सभी महिलाओं और किशोरियों को खुले में शौच से मुक्ति मिल सके। शौचालय निर्माण के लिए भुगतान किए जाने वाले पैसों के संबंध में विभागीय उदासीनता का ज़िक्र करते हुए मनी राम कहते हैं कि गांव वालों ने जब सरकार से शौचालय निर्माण से संबंधित भुगतान राशि मांगी तो विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों के ढीले रवैये के कारण उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और उनके लगातार सक्रियता के कारण देर से ही सही, लोगों को शौचालय निर्माण संबंधी राशियों का भुगतान कर दिया गया।

वहीं, एक अन्य सामाजिक कार्यकर्ता नीलम का कहना है कि आज हमारे पूरे भारतवर्ष में स्वच्छ भारत अभियान चल रहा है। लेकिन आज भी कई स्थान, कई परिवार और कई गांव ऐसे हैं, जो शौचालय की सुविधा नहीं ले पा रहे हैं या यूं कहें कि उनके पास शौचालय की व्यवस्था नहीं है। जबकि शौचालय की सुविधा का सभी तक पहुंच का होना अनिवार्य है। खासकर महिलाओं और किशोरियों के लिए यह प्राथमिक आवश्यकताओं में एक है, क्योंकि मासिक धर्म के समय उन्हें सबसे अधिक कठिनाइयों से गुज़रनी पड़ती है। इस दौरान न केवल उन्हें शरीर को साफ़ रखने की ज़रूरत होती है, बल्कि शौच की जगह का भी साफ़ होना आवश्यक होता है।

ऐसे में इस बात का ख्याल रखना ज़रूरी है कि सरकार की इतनी बड़ी योजना के तहत चलाए जा रहे अभियान से कोई घर वंचित न रह जाए। इसके लिए पंचायत स्तर पर बारीकी से नज़र रखने की ज़रूरत है। केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के अंतर्गत पेयजल एवं स्वच्छता विभाग ने पिछले माह के अंत में जारी बुलेटिन में कहा था कि देश में कुल चार लाख, 31 हज़ार, 350 से अधिक गांवों ने स्वयं को ओडीएफ प्लस घोषित कर दिया है। यह एक सुखद संदेश है, लेकिन धरातल पर यह कितना कारगर साबित हुआ है यह देखना ज़रूरी है, क्योंकि यह महिलाओं और किशोरियों के आत्मसम्मान से जुड़े मुद्दे हैं। जिन्हें प्राथमिकता के आधार पर गंभीरता से हल करने की ज़रूरत है, ताकि यह अभियान कागज़ों से निकल कर धरातल पर कामयाब हो।

(सौजन्य से चरखा फीचर)

खुशी यादव बीकानेर (राजस्थान) की युवा समाजसेवी हैं।

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