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स्वच्छकार समाज के पुनर्वास और उत्थान के नायक हैं धीरज वाल्मीकि

मैला ढोने की कुप्रथा पर रोक लगाने के क्रम में धीरज वाल्मीकि का ललौली गांव जाना हुआ। वहां धीरज और उनके साथियों ने मैला ढोने वाली महिलाओं की दिनचर्या की वीडियो फिल्म बनाई। उस वीडियो फिल्म को जिला प्रशासन और विद्याभूषण रावत को दे दिया गया। उस वीडियो में एक 14 साल की लड़की भी मानव मल ढोने का काम कर रही थी। इसी के आधार पर धीरज और उनके साथियों ने जिला प्रशासन पर दबाव बनाया। दिल्ली में विद्याभूषण रावत ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति आयोग, बाल आयोग सभी को कटघरे में खड़ा किया।

आजादी के 75 साल बीत जाने के बावजूद स्वच्छकार समाज बुनियादी अधिकारों से वंचित है। सदियों से शोषित और उत्पीड़ित स्वच्छकार समाज को आज भी हाशिए की अंतिम पंक्ति में जकड़ कर रखा गया है। शोषितों और वंचितों की गरीबी और वंचना दूर करने के लिए आज़ादी के बाद से ही सरकारें योजनायें ला रही हैं। लेकिन उन योजनाओं का लाभ स्वच्छकार समाज तक नहीं पहुंच पा रहा है। दो जून की रोटी के लिए स्वच्छकार समाज लंबे समय तक सिर पर मैला ढोता रहा है। आज़ादी के अमृत महोत्सव की चकाचौंध में इस समाज में व्याप्त अंधेरे को ढंक दिया गया। योग्य होने के बाद भी स्वच्छकार समाज के होनहारों को सम्मानित करने की बात तो दूर, सम्मान की नजर से भी नहीं देखा जाता। इस समाज के बच्चों के साथ आज भी स्कूलों में भेदभावपूर्ण रवैया अपनाया जा रहा है। स्वच्छकार समाज अपनी बेबसी पर आंसू बहाने के सिवाय कुछ नहीं कर सकता। देश आजाद हो गया, लेकिन आज़ादी के 75 वर्षों बाद भी स्वच्छकार समाज की स्थिति गुलामों जैसी है।

स्वच्छकार समाज को मैला ढोने से मुक्ति दिलाने के लिए काम कर रहे और इसी समुदाय से संबंध रखने वाले धीरज वाल्मीकि बताते हैं कि, ‘कभी जो समाज स्वच्छकार समाज से पीछे था, वह अब आगे निकल गया हैं और उसके लोग स्वच्छकार समाज से घृणा करने लगे हैं।’ धीरज वाल्मीकि इस स्थिति के लिए सवाल भी उठाते हैं और पूछते हैं कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है? स्वच्छकार समाज? दूसरे समाज? या सरकार? वह आगे कहते हैं कि इसका जवाब हमको तभी मिल सकता है, जब हम अपनी अंतरात्मा को झकझोर कर देंखे। स्वच्छकार समाज को इस स्थिति में पहुंचाने वाला कोई दूसरा समाज नहीं, बल्कि हमारा स्वच्छकार समाज ही है। हमारे समाज के अंदर व्याप्त हीनभावना, सामाजिक कुरीतियां, अंधविश्वास, फिजूलखर्ची, नशाखोरी हमारे समाज की यथास्थिति के लिए जिम्मेदार हैं। हमारे समाज का पढ़ा-लिखा नौजवान जब कोई अच्छी नौकरी पा जाता है, तो वह अपने ही समाज से घृणा करने लगता है। जब कोई पैसे वाला बन जाता है, तो वह अपने ही समाज को लूट अपनी तिजोरी भर अपने को अधिक मजबूत बनाने में लग जाता है। यहां तक कि हमारे समाज की ठेकेदारी का जिम्मा लेकर समाज का नेता बन जाता है। जब समाज को उस नेता से कुछ आशाएं बनती हैं, तो वही नेता समाज के नाम पर अपनी निजी स्वार्थ की पूर्ति कर समाज को बेचने का काम करता है। या फिर समाज को धोखा देकर समाज का आर्थिक दोहन कर आर्थिक रूप से कमजोर करता है। फिर संबंधित अधिकारी से दोस्ती करके झूठी शान दिखाकर अपने आपको गौरवान्वित महसूस करता है। सरकार और नेताओं ने स्वच्छकार समाज को सिर्फ वोट बैंक या ठप्पा मारने की मशीन बना रखा है। अगर वाकई यह समाज खुद को सम्मानजनक पुनर्वास से जोड़ना चाहता है, अपने समुदाय को गरिमा के साथ देखना चाहता है, तो इस समाज को नशाखोरी, जुआ, सामाजिक कुरीतियों, अंधविश्वास, फिजूलखर्ची कर्ज लेना बंद करना होगा। दलाल किस्म के नेताओं से बचना होगा तथा सरकार, नेता और समाज के ठेकेदारों को मुंहतोड़ जवाब देना होगा। अपने आप को संगठित करना होगा और अपने मौलिक अधिकारों को प्राप्त करने के लिए संघर्ष का बिगुल फूंकना होगा।’

स्वच्छकार समाज को लेकर यह विचार यह चिंता करने वाले धीरज वाल्मीकि इसी स्वच्छकार समाज से हैं और वह अपने समाज को जागरूक करने, हक, इंसाफ की लड़ाई लड़ने तथा अपने समाज में व्याप्त  कुरीतियों और कुप्रथाओं को  दूर करने के लिए लंबे समय से  संघर्षरत हैं।

20 वर्ष की उम्र में धीरज वाल्मीकि को स्वच्छकार समाज के बीच काम करने का जज़्बा उत्पन्न हुआ। वे जब इंटर के बाद इलाहाबाद पढ़ने गए, तो सामाजिक सरोकारों को लेकर उनकी समझ में और इजाफा हुआ। 1994 में इलाहाबाद से स्नातक करने के बाद धीरज घर वापस आये, तो घर वालों ने उनकी शादी करा दी। धीरज की शादी 22 फरवरी 1995 को हुई। शादी के पहले से ही  सामाजिक कार्यों में अपनी रुचि के कारण धीरज ने वाल्मीकि युवा सेवा दल के नाम से संगठन बनाया। संगठन में अपने तमाम साथियों को पदाधिकारी बनाया। धीरज और उनके संगठन ने उस समय की तमाम परिस्थितियों का अवलोकन किया और सामाजिक कार्यों में हिस्सेदारी की। समाज में शादी-विवाह एवं अन्य सामाजिक कार्यों में संगठन पूरी मदद करता था। अक्सर शादियों में नाचने को लेकर बारातियों से मारपीट हो जाया करती थी। धीरज और उनके साथियों ने इसे गंभीरता से लिया और इस बात पर आम राय कायम हुई कि बारात में लड़की वालों की तरफ से कोई भी नहीं नाचेगा। स्वच्छकार समाज में और भी तमाम कुरीतियां थीं, जैसे शादी के बाद खाना खिलाना, मायन का भोजन खिलाना, पूरी बारात रोकना। इन सबको लेकर धीरज और उनके संगठन ने लगातार काम किया। परिणामस्वरूप धीरे-धीरे यह कुरीतियां कम हुईं।

स्वच्छकार समाज को अंधेरे कुएं से बाहर निकलाने की धीरज वाल्मीकि की संघर्ष यात्रा में 2003-04 महत्त्वपूर्ण पड़ाव साबित हुआ। 2003-04 में पूरे देश में मानव मल ढोने वालों के लिए सरकार द्वारा तमाम तरह की योजनायें चलाई जा रही थीं। एनजीओ के माध्यम से भी स्वच्छकार समाज के बीच कई योजनायें चल रही थीं। धीरज वाल्मीकि बताते हैं कि, ‘तमाम एनजीओ स्वच्छकार समाज के बीच में जाने का नाटक मात्र कर रहे थे। फतेहपुर में स्वच्छकार परिवारों के लिए काम कर रहे एनजीओ अपना काम करके निकल जाते थे। मेरे मन में भी यह बात थी कि एनजीओ वाले भ्रष्टाचारी होते हैं। यह अपना काम करके और अपना उल्लू सीधा करके चले जाते थे। यह मेरे मन में कहीं न कहीं चलता रहता था। उसी दौरान 2005 में मानव सेवा संस्थान द्वारा  स्वच्छकार समाज के बीच मानव मल ढोने की प्रथा को छोड़ने के लिए मुहिम चलाई गई। इसमें गैर स्वच्छकार समाज के 2 लोग स्वच्छकार समाज को मानव मल ढोने की प्रथा के खिलाफ जागरूक करने का काम करते थे। उस समय फतेहपुर शहर में ज्यादातर महिलाएं इसी पेशे से जुड़ी हुई थी।’

धीरज वाल्मीकि

ऐसे में एक दिन धीरज वाल्मीकि की मुलाकात मानव सेवा संस्थान के निदेशक जेपी त्रिवेदी से हुई। जेपी त्रिवेदी ने धीरज वाल्मीकि को प्रेरित किया कि अगर वे इस मुहिम से जुड़ जाएँ तो शायद समाज का ज्यादा भला हो सकता है। एनजीओ को लेकर धीरज वाल्मीकि की जो धारणा बनी थी, उस कारण उन्होंने तत्काल हामी नहीं भरी। धीरे-धीरे जेपी त्रिवेदी और धीरज वाल्मीकि के बीच अच्छी समझ और संबंध बने। इसके बाद धीरज वाल्मीकि मानव सेवा संस्थान के साथ जुड़ कर कार्य करने लगे। कार्य के दौरान उन्हें मनाव मल ढोने वाली महिलाओं के बीच जाने का मौका मिला।

धीरज वाल्मीकि एनजीओ से अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े थे। उनके जुड़ने का यह फायदा हुआ कि जो लोग पहले संस्थान वालों की बात नहीं सुनते थे, वे उनकी बातों को गंभीरता से लेने लगे। फिर संस्थान के लोगों ने स्वच्छकार परिवारों की आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक पारिवारिक सर्वे किया। सर्वे के दौरान धीरज और उनके साथियों को समझ आया कि समाज के बीच आंदोलन विकसित करने और उनको जागरूक करने की जरूरत है।

स्वछकार समाज के लोग ज्यादा पढ़े-लिखे ना होने की वजह से इस आंदोलन में साथ आने के लिए तैयार नहीं थे। वे धीरज से कहते कि आप इस प्रथा को कभी खत्म नहीं कर सकते।

पिछली बातों को दरकिनार कर धीरज वाल्मीकि ने समाज के बीच जाकर समाज को नए सिरे से समझाना शुरू किया। धीरज ने सामजिक कार्यकर्ताओं की एक टीम बनाई। उस टीम ने स्वच्छकार समाज के प्रत्येक मोहल्ले का सर्वे किया ताकि जाना जा सके कि वहां क्या-क्या दिक्कतें हैं। इसको लेकर 2005 में तत्कालीन जिलाधिकारी को 14 सूत्रीय मांग पत्र का ज्ञापन दिया गया।

सम्मान प्राप्त करते हुए

प्रशासन को दिए गए ज्ञापन में पहली मांग थी कि मानव मल ढोने वाली महिलाओं को चिन्हित करते हुए उनका सम्मानजनक पुनर्वास किया जाए। परंतु जिले के अधिकारी यह मानने के लिए तैयार नहीं थे कि फतेहपुर में कोई महिला मानव मल ढोने का कार्य करती है। धीरज और उनके साथियों ने 2005 में जो सर्वे किया था, उसमें करीब 176 महिलाएं मानव मल ढोने का  काम कर रही थीं। इस मुद्दे को लेकर धीरज और उनके साथी लगातार जिला प्रशासन को घेरते रहे। आखिरकार जिला प्रशासन को झुकना पड़ा और उन्होंने एक सर्वे टीम बनाई। सर्वे टीम द्वारा मानव मल ढोने वाली महिलाओं को चिन्हित करने का काम शुरू किया गया। सर्वे करने वाली प्रशासनिक टीम ने सर्वे के दौरान स्वच्छकार मोहल्लों में महिलाओं को धमकाया कि अगर यह कहा कि मैला ढोती हो, तो तुमको जेल भेज देंगे। जेल जाने से बचने के लिए तमाम महिलाओं ने यह स्वीकार नहीं किया कि वे मानव मल ढोती हैं। नतीजा यह हुआ कि तमाम महिलाएं इस सूची से बाहर हो गईं। धीरज और उनके साथियों के हस्तक्षेप के बाद फिर से सूची बनाई गई, जिसमें 76 ऐसी महिलाओं को चिह्नित किया गया जो मानव मल ढोती थीं।

महिलाओं के बीच लगातार काम करते-करते धीरज को काम के तौर-तरीकों और मिलने वाले पैसे की जानकारी मिलती गई। उसी जानकारी के आधार पर धीरज ने सवाल-जवाब बनाए। महिलाओं द्वारा यह पूछने पर कि यह काम छोड़ने पर हमें क्या मिलेगा? के जवाब में धीरज ने उन्हें बताना शुरू किया, ‘एक महिला पूरे जीवन भर काम करती है। मान लीजिए वह 20 घरों में काम करती हैं और 2005 में प्रति आदमी 5 रुपया महीना मिलता था। मान लीजिए इस महिला ने एक साल लैट्रिन उठाई तो उसको 60 रुपया मिला। वह महिला 20 साल से लैट्रिन उठा रही। 20 बर्षों में उसे 1020 रूपये मिले।’

धीरज एक बार तुराबली के पुरवा में मीटिंग कर रहे थे। इत्तेफाक से एक भिखारी आकर भीख मांगने लगा। धीरज ने उससे कहा कि तुम मेरे बच्चे की लैट्रिन उठा दो, तो मैं तुमको 50 रुपया  दूंगा। भिखारी ने चिढ़ते हुए कहा कि तुम मुझे 500 दोगे, तब भी मैं यह काम नहीं करूंगा। तुम्हारे घर की महिलाएं मेरे यहां काम करने आती हैं। उसकी बात सुन धीरज अवाक रह गए। तब धीरज ने स्वच्छकार समाज की महिलाओं से पूछा कि अब हमको यह बताओ कि हमसे ठीक तो यह भिखारी है। हम तो इस से भी गए गुजरे हैं। हमारे परिवार को इस काम में इसलिए जोड़ा गया गया, क्योंकि हमने इस काम को अपनी नियति मान ली है।

ऐसी मीटिंग के दौरान धीरज समाज के लोगों को मानव मल ढोने की वजह से होने वाले सामाजिक, आर्थिक, स्वास्थ्य आदि के नुकसान के बारे में बताते। महिलाओं को सरल भाषा में समझाते थे कि इस कार्य कि वजह से समाज के बच्चों को आज भी स्कूलों में पीछे बैठाया जाता है। मिड डे मील का खाना दूर से फेंक कर दिया जाता है। पुरुषों को सामाजिक कार्यों से दूर रखा जाता है। समाज का बच्चा पढ़ने में कितना भी तेज हो, लेकिन उस बच्चे का मॉरल डाउन यह कहकर किया जाता है कि इसकी अम्मां मैला ढोने का काम करती है।

अपने अभियान के दौरान धीरज वाल्मीकि की मुलाकात ऐसी सैकड़ों महिलाओं से हुई, जो पिछले कई वर्षों से मैला ढोने का काम कर रही हैं। मैला ढोने की वजह से उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता। चेहरे पर मलीनता छाई रहती थी। जो महिला 30 वर्ष की है, वह 45 की लगती थी। उनको तरह-तरह की बीमारियां थीं। धीरज ने उनको उदाहरण देकर समझाया कि, ‘अगर किसी के घर में टीबी का मरीज हो तो डॉक्टर कहता है कि इनका अलग कमरा दे दिया जाए। मरीज का बिस्तर और बर्तन अलग कर दिया जाए। आप लोग जिन 20 घरों में जाती हैं, उन घरों में न जाने कितने लोगों को टीबी, कालरा तमाम तरह की बीमारियां होती हैं और जब आप मैले की टोकरी लेकर काम करने जाती हैं, तो काम करते वक्त उस टोकरी और आपके मुंह और नाक के बीच एक फीट का फासला होता है। इससे हजारों कीटाणु आपके शरीर के अंदर जाते हैं और आपके स्वास्थ्य का नुकसान करते हैं।’

धीरज इन सब मुद्दों को लेकर लगातार मोहल्ला मीटिंग करते रहे और सामाजिक मुद्दों को चिन्हित करते रहे। 2006 में प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव सरकार ने संविदा की नौकरी निकाली। इसको लेकर धीरज ने पदयात्रा निकाली और यह मांग की कि जो भी महिलाएं मानव मल ढोने का काम कर रही हैं, उन महिलाओं को संविदाकर्मी के रूप पर नियुक्ति दी जाए।

पदयात्रा का यह फायदा हुआ कि शहर में मैला ढोने वाली 76 महिलाओं की जो सूची जिलाधिकारी को सौंपी गई थी, उसमें से 27 महिलाओं की नगर पालिका परिषद फतेहपुर में संविदा में सीधी भर्ती हो गई। यह धीरज के संगठन के लिए पहली बड़ी सफलता थी। उनके संगठन ने रोजगार के लिए लोन देने की मांग शुरू की। यह शर्त भी तय की गई कि लोन की प्रक्रिया के दौरान किसी भी अधिकारी को रिश्वत नहीं दी जाएगी। इन सब कार्यों के साथ मानव मल ढोने के खिलाफ आंदोलन इतना तेज हो गया था कि फतेहपुर में मानव मल ढोने का काम खत्म होने लगा था। उत्तर प्रदेश की तमाम संस्थाएं धीरज और उनके संगठन के लोगों के संपर्क में थीं।  एक्शन एड ने धीरज और उसके संगठन के कार्यों का पहचाना और उन्हें सम्मानित किया। मानव सेवा संस्थान में धीरज और उनके संगठन को एक्शन एड से जोड़कर और काम करने का मौका दिया। धीरज ने अपने संगठन का विस्तार किया। उसमें अन्य समुदाय के लोगों को जोड़कर संगठन को नया नाम दलित युवक गरिमा मंच  दिया। संगठन ने अपने सरोकारों का दायरा बढाते हुए प्रत्येक भूमिहीन दलित परिवार के लिए 5 एकड़ खेती और भूमि तथा वाल्मीकि परिवार को 5% सेपरेटेड आरक्षण देने की मांग को अपने एजेंडे में शामिल किया।

सामाजिक कार्यकर्ता विद्याभूषण रावत का एक कार्यक्रम में स्वागत करते धीरज वाल्मीकि

सामाजिक कार्यकर्ता विद्याभूषण रावत से धीरज वाल्मीकि की मुलाकात उनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट साबित हुई। विद्याभूषण रावत का सोशल डेवलपमेंट फाउंडेशन पिछले 30 वर्षों से तमाम समाजिक मुद्दों को लेकर काम कर रहा था। धीरज सोशल डेवलपमेंट फाउंडेशन से जुड़ कर काम करने लगे।

विद्याभूषण रावत से मुलाकात होने के बाद सोशल डेवलपमेंट के सहयोग से धीरज सामाजिक संगठनों के युवा साथियों से लगातार मिलते रहे। इसी दौरान बुधरा मऊ गांव के बुजुर्ग चौधरी ने धीरज और उनके साथियों को गांव आने के लिए प्रेरित किया। गांव जाने पर धीरज और उनके साथियों ने पाया कि 12 साल से लेकर 70 साल तक की महिलाएं मानव मल ढोने का काम कर रही थीं।

धीरज ने जब गांव का गंभीरता से दौरा किया और उन महिलाओं की कार्यशैली देखी तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। सुबह एक महिला काम पर जाती। दोपहर में वापस आकर नहा धोकर एक थाली लेकर फिर काम पर जाती। उस थाली में भोजन सामग्री होती थी। यह देखकर धीरज डर गए कि इन परिवारों में दोपहर का भोजन ही नहीं बनता है। यह किस तरह से इस काम को बंद करेंगे? अगर इस काम को बंद कर दिया तो इनके बच्चे भूखे मरेंगे।

तब तक सुप्रीम कोर्ट की भी गाइडलाइन आ चुकी थी कि इसे पेशे को कराने वाले को 6 महीने कैद की सजा होगी। धीरज और उनके साथियों ने उन महिलाओं के काम करते वक्त का पूरा वीडियो बनाया, जिसमें 12 साल की लड़की भी मानव मल ढोने का काम कर रही थी। इस पूरे वीडियो को विद्याभूषण रावत को रिपोर्ट सहित सौंप दिया गया। 12 साल की लड़की द्वारा मानव मल ढोने की घटना से सरकार को घेरने का मौका मिला। महिला आयोग, बाल आयोग ने इस मामले को संज्ञान में लिया।

धीरज वाल्मीकि और उनके साथी गांवों की तरफ लगातार जा रहे थे। उसी समय वाल्मीकि समाज के चौधरी ने धीरज को गाजीपुर में होने वाले एक मीटिंग के बारे में बताया। धीरज जब वहां पहुंचे तो देखा कि वहां करीब 45 गांवों के लोग जुटे थे। वह वाल्मीकि समाज की पंचायत थी। इस  पंचायत का काम स्वच्छकार समाज की भागी हुई लड़कियों व उनके परिवार पर दंडात्मक कार्रवाई करना था। पंचायत में धीरज ने इस कार्रवाई का पुरजोर विरोध किया। धीरज ने भरी पंचायत में कहा आज भी आपके परिवार की 12 साल की लड़की मैला ढोने का काम कर रही है उस पर आप सब चुप हैं और बेटी के भागने पर उनके परिवारों पर आप जुर्माना लगा रहे हैं, यह अच्छी बात नहीं है। अगर आप लोग चंदा मिलाकर गरीब लड़कियों की शादी करें तो शायद यह समाज के लिए बेहतरीन काम होगा।

धीरज ने पंचायत में कठोर शब्दों में कहा कि जिसकी आंख का पानी जिंदा हो, वह अपनी पत्नी, बेटी, बहू, बहन को मानव मल ढोने के काम के लिए ना भेजे और जिसकी आंख का पानी मर गया हो, वह अपनी पत्नी, बच्चों, बहन, बेटियों को इस काम के लिए भेजे। धीरज की बातों का असर पंचायत पर हुआ। पंचायत में शामिल तमाम गांव के लोगों ने संकल्प लिया कि हम अपनी बहन-बेटियों को इस काम में नहीं भेजेंगे।

इसके बाद धीरज और उनके सहयोगियों के लिए नया रास्ता खुल गया। मैला ढोने वाली महिलाओं को स्वरोजगार योजना के तहत काम सिखा कर स्वावलंबी बनाने के लिए धीरज और उनके सहयोगी संगठनों ने फतेहपुर शहर में तथा गांव में सिलाई सेंटर, कंप्यूटर सेंटर आदि का निर्माण किया। स्वच्छकार समाज के बच्चों के व्यक्तित्व विकास के लिए युवाओं की कार्यशाला का आयोजन किया जाने लगा। कार्यशाला का उद्देश्य बच्चों को अच्छी शिक्षा देना तथा नेतृत्व प्रदान करना था, जिससे कि वे खुद को समाज की मुख्यधारा से जोड़कर आगे बढ़ सकें।

माता सावित्री बाई फुले को नमन करते हुए

मैला ढोने की कुप्रथा पर रोक लगाने के क्रम में धीरज वाल्मीकि का ललौली गांव जाना हुआ। वहां धीरज और उनके साथियों ने मैला ढोने वाली महिलाओं की दिनचर्या की वीडियो फिल्म बनाई। उस वीडियो फिल्म को जिला प्रशासन और विद्याभूषण रावत को दे दिया गया। उस वीडियो में एक 14 साल की लड़की भी मानव मल ढोने का काम कर रही थी। इसी के आधार पर धीरज और उनके साथियों ने जिला प्रशासन पर दबाव बनाया। दिल्ली में विद्याभूषण रावत ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति आयोग, बाल आयोग सभी को कटघरे में खड़ा किया। मामला दिल्ली में उठने के बाद स्थानीय जिला प्रशासन ने आनन-फानन में ग्रामसभा ललौली जाने का निर्णय लिया। तत्कालीन एडीएम अच्छे लाल ने ललौली में जाकर एक बड़ी मीटिंग बुलाई, जिसमें लोगों से कहा कि जो भी व्यक्ति इस काम को करेगा/करवाएगा, उसको 6 महीने की कैद की जाएगी। इस तरह धीरज और उनके साथियों के प्रयास से ललौली में मैला ढोने का काम बंद हो गया।

धीरज वाल्मीकि का राजनैतिक जीवन

1997 में भाजपा पूरे उरूज पर थी। स्वच्छकार समाज के तमाम युवा भाजपा से जुड़े थे। धीरज बताते हैं कि ‘कहीं न कहीं उनका झुकाव भी भारतीय जनता पार्टी की ओर हुआ।’ धीरज के राजनैतिक जीवन की शुरुआत भारतीय जनता युवा मोर्चा से जुड़कर हुई। धीरज के सामाजिक प्रभाव को देखते हुए युवा मोर्चा जिलाध्यक्ष रामप्रताप सिंह ने धीरज को युवा मोर्चा का नगर अध्यक्ष घोषित किया। धीरज को नगर अध्यक्ष एक ब्राहमण को हटाकर बनाया गया था। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को यह बात नागवार गुजरी। एक महीने की रार के बाद आखिरकार धीरज से इस्तीफ़ा ले लिया गया।

भाजपा में हुए जाति आधारित अपमान से आहत धीरज बहुजन समाज पार्टी में शामिल हो गए। बसपा के तत्कालीन जिला प्रवक्ता मजहर हुसैन नकवी ने 1999 में धीरज को बहुजन समाज पार्टी की सदस्यता दिलाई। वर्तमान समय में धीरज बहुजन समाज पार्टी के फतेहपुर विधानसभा सदर के अध्यक्ष के रूप में कार्य कर रहे हैं।

राजनीति के साथ धीरज के सामाजिक जागरूकता के कार्यक्रम भी चल रहे थे। इसी क्रम में धीरज और उनके साथियों ने फतेहपुर शहर में वाल्मीकि समाज के बच्चों का शैक्षिक सर्वे करने का काम शुरू किया। 2001 में फतेहपुर में छात्रों के बीच सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इस आयोजन में सभी समाज के बच्चों के साथ वाल्मीकि समाज के बच्चों ने भी भाग लिया। बच्चों को पुरस्कृत करते समय तत्कालीन बसपा सरकार में मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य, इंद्रजीत सरोज, केके गौतम, फतेहपुर के तत्कालीन विधायक आनंद लोधी, खागा विधायक सफीर हंसवा, विधायक अयोध्या पाल, जहानाबाद विधायक फतेहपुर नगर पालिका परिषद के चेयरमैन शब्बीर खान मौजूद थे। इस कार्यक्रम ने धीरज के राजनैतिक जीवन को नई  पहचान दी। इससे धीरज के सरोकारों का दायरा और व्यापक हो गया।

अपनी आर्थिक स्थिति सुचारु बनाए रखने के लिए धीरज वाल्मीकि को कभी पंप चालक की हैसियत से नगर पालिका परिषद में दैनिक वेतन कर्मचारी के रूप में नौकरी करनी पड़ी तो कभी भारतीय जीवन बीमा निगम में बतौर अभिकर्ता खुद को स्थापित किया। जीवन के तमाम संघर्ष से लड़ते जूझते धीरज वाल्मीकि ने स्वच्छकार समाज के उत्थान के प्रयास को कभी कम नहीं होने दिया। धीरज वाल्मीकि उर्फ धीरज कुमार आज भी स्वच्छकार समाज के नायक के रूप में पूरी ऊर्जा के साथ सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ रहे हैं।

 

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