तमाम सरकारी दांवों के बावजूद सर्पदंश से होने वाली मौत के आंकड़ों में कोई कमी नहीं आ रही है। सर्पदंश का शिकार ज्यादातर समाज के गरीब और हाशिये पर रहने वाले जाति-समूह के लोग होते हैं। अभी हाल में ही रोहतास जिले के करगहर थाना क्षेत्र के जोगवलिया गांव में बीते शनिवार को जहरीले सांप के काटने से सगे भाई-बहन की मौत हो गई। सांप काटने के बाद दोनों को इलाज के बजाय झाड़-फूंक के लिए ले जाया गया। हालत बिगड़ी तो अस्पताल ले गए, पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। आज भी शिक्षा और जागरूकता के अभाव में ग्रामीण इलाके के लोग चिकित्सा सुविधा का लाभ लेने के बजाय सर्पदंश का इलाज झाड़-फूंक में तलाशते हैं।
गाँव के लोग डॉक्टरों पर कम झाड़-फूंक पर ज्यादा करते हैं भरोसा
गाँव के लोग आमतौर पर सांप काटने पर डॉक्टरों से इलाज कराने की बजाए झाड़-फूंक करने वालों पर ज्यादा भरोसा करते है। इनके झाड़ फूंक से कई बार पीड़ित की जान भी चली जाती है। इसके बावजूद इन लोगों का मानना है कि सांप के काटने पर डॉक्टरों के बजाए झाड-फूंक करने वालों के पास जाने में पीड़ित के बचने की संभावना ज्यादा है। यही वजह है कि ऐसे लोग अब भी गाँवों और दूर-दराज के इलाकों में बड़ी संख्या में झाड़-फूंक कर रहे हैं, जिससे सर्पदंश से पीड़ित की मौत हो जाती है।
सांप के काटने पर जहर शरीर में बहुत तेजी से फैलता है। पीड़ित को फौरन अस्पताल ले जाना चाहिए। वहां समय रहते इलाज होने से उसकी जान बचाई जा सकती है। देर करने पर जहर पूरे शरीर में फैल जाता है। इससे उसके बचने की संभावना कम हो सकती है।
भारत में हर साल पचास हजार से एक लाख लोग सर्पदंश से अपनी जान गंवा देते हैं, जिनमें से ज्यादातर लोग गाँवों के रहने वाले हैं। इन मौतों का एक मुख्य कारण है, सांप काटने पर पीड़ित को समय से स्नेक एंटी वेनम दवाओं का न मिलना। एक स्नेक एंटी वेनम इंजेक्शन की कीमत लगभग 500 रुपये है। ऐसे में मरीज को 20 इंजेक्शन लगाने पड़ते हैं, तो दस हजार रुपये तक खर्च हो सकता है। मरीज के परिजन को अपने पास से ही इलाज के पैसे लगाने पड़ते हैं, जिसके कारण वे हास्पिटल में न जाकर ओझा और झोला छाप डाक्टरों का सहारा लेते हैं। सरकारी चिकित्सालयों में स्नेक एंटी वेनम निःशुल्क देने का प्रावधान है, पर बहुत बार सरकारी चिकित्सक मरीज को निजी संस्थानों में भेज देते हैं। उन्हें यह डर रहता है कि कहीं पेशेंट नहीं बचा तो वह क्या जवाब देंगे? इस डर से वह बहाना बना देते हैं कि इंजेक्शन उपलब्ध नहीं है। सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसे गम्भीर समय में हर आदमी को स्वास्थ्य केंद्र पर सही इलाज मिल सके।
सर्पदंश से विश्व में होने वाली कुल मौतों में से आधे से अधिक मौत सिर्फ भारत में होते हैं। चूंकि भारत एक कृषि प्रधान देश है, यहाँ अधिकतर लोग कृषि पर निर्भर हैं। ऐसे में भारत में सांप के काटने की घटनाएं लोगों के लिए आम बात है। दुनिया भर में अनेक सांपों की प्रजातियां हैं। जिनमें से कुछ सांप तो ऐसे होते हैं, जो बहुत ज्यादा जहरीले होते हैं। जिनके काटने पर तुरंत रोगी की मृत्यु हो जाती है, जिसका सबसे बड़ा कारण है- इलाज के बारे में अज्ञानता। ग्रामीण क्षेत्रों में लोग सांप काटने पर झाड़-फूंक और झोलाछाप डॉक्टरों के चक्कर में फंस जाते हैं। जिसके कारण मरीज की हालत गंभीर हो जाती है और बाद में जब अस्पताल लाया जाता है, तब तक स्थिति काफी बिगड़ चुकी होती है। कई ऐसी प्रजातियों के भी सांप होते हैं, जिनके काटने पर रोगी बच जाता है। हालांकि उनके काटने पर रोगी के शरीर में कोई न कोई परेशानी जरूर होती है।
मानसून के मौसम में अधिकतर होती है सांप काटने की घटनाएँ
ग्रामीण इलाकों और वन क्षेत्रों में गर्मी व बरसात के मौसम में सांप काटने की घटनाएं काफी हद तक बढ़ जाती हैं। बरसात के मौसम में बारिश जहाँ भीषण गर्मी से लोगों को राहत पहुंचाती है, वहीं, दूसरी ओर, बारिश सांपों के लिए भी कहर बन जाती है। बारिश की वजह से सांपों का बिल पानी से भर जाता है, जिसके करण वे बाहर आकर सुरक्षित स्थान खोजने लगते हैं। ऐसे में कई सांप घरों में घुस जाते हैं, जिससे सर्पदंश जैसी घटनाएं बढ़ जाती है।
सर्पदंश के सबसे ज्यादा शिकार होते हैं ग्रामीण और किसान
सर्पदंश से होने वाली मौतें सबसे ज्यादा ग्रामीणों और किसानों की होती हैं। बारिश में,खेतों में काम करने के दौरान किसान अक्सर सर्पदंश के शिकर हो जाते हैं। सर्पदंश की स्थिति में पीड़ित मरीज की मौत, बेहतर इलाज न मिल पाने के कारण हो जाती है। सरकारी अस्पताल में एंटी स्नेक वेनम इंजेक्शन मौजूद होता है। अगर मरीज को एक घंटे के भीतर एंटी स्नेक वेनम की खुराक मिल जाए तो उसकी जान बचाई जा सकती है।
भारत में सांपों की 276 प्रजातियां हैं। इनमें 36 प्रजातियां मध्यप्रदेश की हैं। भारत देश में किंग कोबरा, रसल्स वाइपर, स्पैक्टेकल्ड कोबरा, सॉफ्ट स्केल्ड वाइपर, कामनक्रेट, पैटवाइपर जैसी प्रजातियां पाई जाती हैं।
छतीसगढ़ के जशपुर जिले में बाकि जिलों की तुलना में सबसे ज्यादा सांप पाए जाते हैं। यहाँ सर्पदंश से सबसे ज्यादा मौतें होती हैं। जशपुर जिले के फरसाबहार ब्लॉक को नागलोक के नाम से जाना जाता है। लोगों का कहना है कि यहां अभी तक 70 प्रकार के प्रजातियों के सांप की पहचान हुई है, जिनमें से कई सांप बेहद जहरीले हैं। स्नैक कैचरों का दावा है कि यहां इतने जहरीले सांप हैं कि अगर किसी इंसान को काट ले तो चंद मिनटों में इंसान की मौत हो जाए। इस क्षेत्र में किंग कोबरा, करैत जैसे विषधर सांपों की संख्या ज्यादा है। वहीं, विचित्र प्रजाति का सांप ग्रीन पीट वाइपर और अन्य प्रजाति के ग्रीन कैमेलियन, सतपुड़ा लेपर्ड लिजर्ड भी यहां पाए जाते हैं।
होम्योपैथी में भी है सर्पदंश का इलाज
होम्योपैथी दवा के जानकार दिनेश वर्मा बताते हैं कि सर्पदंश से पीड़ित के इलाज में होम्योपैथी भी काफी हद तक सहायक को सकती है। होम्योपैथ की कई दवाईयां पीड़ित के शरीर में ज़हर को फैलने से भी रोकती हैं। सर्पदंश के मामलों में होम्योपैथ के अधिकतर चिकित्सक पीड़ित को नाजा (NAJA) का सेवन करवाने की ही सलाह देते हैं। नाजा की दो-दो बूंद हर दस मिनट के अंतराल पर रोगी को पिलाते रहना चाहिए।
होम्योपैथ के जाने-माने चिकित्सक डॉ. केएल सोनकर ‘सौमित्र’ बताते हैं कि सांप काटने के मामलों में होम्योपैथ की दवा गुएको (GUACO) भी दी जाती है। पीड़ित को हर पाँच मिनट पर दो-दो बूँद दिया जाना चाहिए साथ ही जहाँ सांप ने काटा है वहाँ भी दो-दो बूँद गिराते रहे। होम्योपैथ की एक अन्य दवा लेक्सीन (LEXIN) भी सर्पदंश में कारगर होती है। महर्षि परेशनाथ बंदोपाध्याय ने इस दवा का ईजाद किया था। डॉक्टर सौमित्र बताते हैं कि सर्पदंश की घटना के बाद अमूमन लोग झाड़-फूंक के चक्कर में फंस जाते हैं। ऐसे ढकोसलावाद और अंधविश्वास के चक्कर में न पड़कर लोग होम्योपैथी दवाओं का सहारा ले सकते हैं। साथ ही घरेलू उपचार भी कर सकते हैं। तुलसी के पत्ते को देसी घी में पकाकर सांप के काटे हुए स्थान पर प्रत्येक 40-50 सेकंड पर इसका लेप लगाते-हटाते रहे। सांप जहरीला होगा तो लेप भी काला हो जाएगा। उसके पहले सांप के काटे हुए स्थान पर हल्का सा ‘चीरा’ लगाकर उसमें से खून निकालने की कोशिश करना चाहिए। खून लाल हुआ तो घबराने की बात नहीं है, लेकिन अगर खून का रंग काला हुआ तो मामला चिंताजनक हो सकता है। सांप काटने पर पीड़ित को कम-से-कम एक गिलास भरके देसी घी पिलाने से भी राहत मिलती है। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि पीड़ित की आँखें न बंद होने पाए।
सांप काटने पर सात दिनों के भीतर मिलता है मुआवजा
सर्पदंश के मामले वैसे तो साल भर सामने आते रहते हैं, लेकिन बरसात के मौसम ऐसी घटनाएं बढ़ जाती है। यूपी में सांप काटने को राज्य आपदा घोषित किया गया है। अगर सांप से काटने पर किसी भी व्यक्ति की मौत होती है, तो उसके पीड़ित परिवार को सात दिन के भीतर चार लाख रुपये का मुआवजा देने का प्रावधान है। मुआवजे के लिए पोस्टमार्टम रिपोर्ट और पंचायतनामा ही मान्य होगा। पीड़ित परिवारों को राहत मिल सके, इसके लिए सरकार ने नियमों में भी छूट दी है। अब विसरा रिपोर्ट (पोस्टमार्टम करने के दौरान शव के विसरल पार्ट यानी किडनी, लीवर, दिल, पेट के अंगों का सैंपल लिया जाता है) की जरूरत नहीं पड़ती। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर ही मुआवजा मिलेगा। उत्तर प्रदेश सरकार ने नियमों में संशोधन करते हुए कहा है कि विसरा रिपोर्ट प्रिजर्व (सुरक्षित) करने की अब जरूरत नहीं है। मुआवजे के लिए पोस्टमार्टम रिपोर्ट और पंचायतनामा ही मान्य होगा।
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